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शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010

Love is a powerful pain killer

London, Oct 14 (IANS) Intense romantic love is like a drug and can be as effective as morphine in relieving pain, says a new study.
Passions triggered by the early flushes of a relationship block physical pain in a similar way to painkillers and drugs.
Scientists in the US tested the theory on a group of male and female university students who were in the passionate early stages of a love affair.
They were shown photos of their partners while a computer-controlled heat probe placed in the palms of their hands delivered mild doses of pain, reports The Telegraph.
At the same time, the students had their brains scanned by a functional magnetic resonance imaging (fMRI) machine.
The study showed that feelings of love, triggered by seeing a photo of one's beloved, acted as a powerful pain killer.
Focusing on a photo of an attractive acquaintance rather than a relationship partner did not have the same benefit.
The scans revealed that the effects of love could be compared with those of morphine and cocaine, both of which target the brain's 'reward centres'.
Sean Mackey, study leader at Stanford University Medical Centre in California, said: 'When people are in this passionate, all-consuming phase of love, there are significant alterations in their mood that are impacting their experience of pain.

'सफल आयोजन लेकिन कलमाड़ी को माफ़ी नहीं'

जवाहर लाल नेहरु स्टेडियम में मौजूद दर्शकों की प्रतिक्रिया को अगर पैमाना माना जाए तो दिल्ली राष्ट्रमंडल खेल पूरी तरह से सफल हुए हैं. पर इस सफलता का श्रेय सुरेश कलमाड़ी को मिलता नज़र नहीं आता.
खचाखच भरे स्टेडियम में जैसे ही सुरेश कलमाडी बोलने के लिए खड़े हुए, वहाँ मौजूद दर्शकों ने कलमाड़ी की जबरदस्त 'हूटिंग' की.
ये कोई चुनावी सभा वाली 'हूटिंग' नहीं थी जिसे किसी ने नियोजित किया हो, जिस अंदाज़ में मैदान के हर कोने से स्वाभाविक तौर पर एकजुट आवाज़ आई, लगा मानों सभी एकमत से कलमाड़ी को दोषी मान रहें हैं.
हम आप को बता दें कि जैसे ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, यूपीए अध्यक्ष सोनिया गाँधी और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के नाम पुकारे गए, स्टेडियम में मौजूद दर्शकों ने तालियाँ बजाने में कोई कंजूसी नहीं की.

'कलमाड़ी की हूटिंग'
प्रतिक्रिया से लगा मानो जनता फ़ैसला सुना रही हो कि वो किसे किसे दोषी मानती है.
सुरेश कलमाड़ी ने अपने धन्यवाद भाषण में लगभग सभी एजेंसियों समेत सभी गणमान्य लोगों का नाम शामिल किया.
कलमाड़ी नें राहुल गाँधी का विशेष तौर पर धन्यवाद करते हुए कहा कि राहुल गाँधी ने अति-विशिष्ट लोगों के बीच बैठ मैच देखने की बजाए आम लोगों के बीच बैठ खिलाडियों का उत्साह बढ़ाया.
कलमाड़ी ने भारतीय वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी का भी विशेष धन्यवाद किया तो दर्शक चिल्लाते सुनाई दिए, "हम समझ सकते हैं कि पैसा कहाँ से आया हैं."
अक्सर लोगों की आलोचना का शिकार होने वाली दिल्ली पुलिस को भी लोगों की खूब तालियाँ मिलीं. राष्ट्रमंडल खेलों के वॉलंटियर्स का नाम आते ही स्टेडियम गूँज गया.
खेलों की शुरुआत में अतंरराष्ट्रीय स्तर पर हुई आलोचना उस समय धुलती नज़र आई जब विदेशी खिलाड़ी टीम पोस्टर लेकर मैदान पर उतरे जिसपर लिखा था, "भारत, ज़बरदस्त खेलों के लिए धन्यवाद."
भारत के गगन नारंग समापन समारोह में भारत का झंडा लेकर मैदान में उतरे.
उद्धघाटन समारोह में खेलों के शुभांकर शेरा को दरकिनार किए जाने की व्यापक आलोचना के बाद समापन समारोह में इस कमी को दूर करने की कोशिश की गई.
शेरा को खुले ऑटो में मैदान पर गायक शान लेकर आए और शेरा की विदाई का गीत भी गाया.
लेज़र शो ने लोगों में जोश भर दिया तो बॉलीवुड के गानों पर दर्शक आधे घंटे तक थिरकते रहे.

जश्न का माहौल
शुरुआत में विदेशी पत्रकारों ने नाचते हुए लोगों को घूरती नज़रों से देखा, पर संगीत के जादू से वो बच नहीं पाए. कुछ ही देर बाद विदेशी पत्रकार भी झूमते नज़र आए. अवसर देख कुछ लोगों ने उन्हे नाच सिखाना शुरु कर दिया.
संगीत जब बंद हुआ तो सब थके हुए नज़र आए पर चेहरे पर संतोष साफ़ झलक रहा था.
स्टेडियम से बाहर आते वक़्त हमें दो युवा वॉलंटियर मिले जिनके चेहरे उतरे हुए थे. वजह पूछी तो पता चला कि वो सुबह पाँच बजे से घर से निकले हैं.
समापन समरोह के बीच में उन्हे अपने कार्यक्रम पेश करने के बाद स्टेडियम से निकाल, ग्रीन रुम में भेज दिया गया और उन्हे समारोह देखने का अवसर नहीं मिला.जब आपके कानों में हज़ारो लोगों की जोश भरी आवाज़ हो और आंखों के सामने कुछ भी नहीं, तो अपके मन पर क्या बीतेगी? वैसा ही कुछ ये दो वॉलंटियर महसूस कर रहें थे. ऐसे में युवा मन का उदास होना स्वाभाविक है.
हालांकि ऐसा ही कुछ दिल्ली वालों को भी महसूस हुआ होगा. जिन्हें इन खेलों के इतने क़रीब होने के बावजूद, टिकट ना मिलने की वजह से खेल टीवी पर ही देख कर संतोष करना पड़ा.

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