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सोमवार, 19 अक्टूबर 2020
कब जागेगा पब्लिक हेल्थ विभाग?
= एक साल से नहरी पानी को तरस रहे गली पारखांवाली के निवासी
सिरसा। सिरसा शहर को आरओ जैसे नहरी पानी की आपूर्ति करने के लिए गांव पंजुआना में करोड़ों रुपये की लागत से वाटर वक्र्स का निर्माण किया गया। शहरभर में नई पाईप लाइन बिछा दी गई। गलियों में भी पाईप लाइन बिछाकर कनेक्शन देने का काम किया। लेकिन विभागीय अधिकारियों द्वारा इस कार्य में भी भेदभाव किया जा रहा है। अधिकारियों की ओर से प्रभावशाली लोगों के एरिया अथवा गलियों में तो पाईप बिछा दी गई लेकिन शहर के बड़े एरिया में अभी तक नहरी पानी की आपूर्ति सुनिश्चित नही की गई है।
नौहरिया बाजार और भादरा बाजार के बीच गली पारखां वाली के निवासी आज भी नहरी पानी को तरस रहे है। जबकि इस एरिया में विभाग द्वारा नई पाईप लाइन बिछाकर नहरी पानी की आपूर्ति की जा रही है। इस एरिया में अब तक जिस पानी की आपूर्ति की जा रही है वह ट्यूबवेल का हार्ड पानी है। जिसकी वजह से जलजनित रोग की आशंका बनी हुई है। गली पारखां वाली के निवासियों को पंजुआना प्लांट से बड़ी उम्मीद जगी थी कि जल्द ही उन्हें भी नहरी पानी नसीब होगा। लेकिन पब्लिक हेल्थ विभाग के अधिकारी इस कार्य में भेदभाव पूर्ण व्यवहार कर रहे है।
गली निवासी प्रमुख समाजसेवी भीम झूंथरा ने बताया कि उन्होंने एक वर्ष पूर्व 7 अक्टूबर 2019 को उन्होंने पब्लिक हेल्थ विभाग के अधिकारियों से आग्रह किया था कि गली पारखां वाली में भी नहरी पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करें। विभागीय अधिकारियों द्वारा केवल आश्वासन दिया गया। इस दौरान वे 23 दिसंबर 2019 को और 8 फरवरी 2020 को भी पत्र लिख चुके है। लेकिन विभागीय अधिकारी आमजन की सुनने को तैयार नहीं है। उन्हें किसी प्रभावशाली व्यक्ति के फोन या सुविधा शुल्क का इंतजार तो नहीं! कुल मिलाकर गली पारखां वाली के निवासी आज भी नहरी पानी को तरस रहे है।
डाक कर्मियों की लापरवाही, डाक का बैग गुम
डबवाली न्यूज़ डेस्क
डाक कर्मियों की छोटी-सी लापरवाही कितने लोगों को प्रभावित कर सकती है, इसका अंदाजा शायद डाक कर्मियों को भी न हों। चूंकि भेजी जाने वाली डाक में न जाने किसका क्या संदेश है?
खासकर छात्रों के लिए तो डाक के गुम जाने से कैरियर ही दांव पर लग जाता है। ऐसा ही एक मामला सामने आया है।
गांव बनवाला निवासी प्रदीप शर्मा व विनोद कुमार ने बताया कि उन्होंने 6 अक्टूबर को ओढां डाकघर से दो पत्र रजिस्ट्री की थी। जिन्हें एक या दो दिन में गतंव्य पर पहुंच जाना चाहिए था। उन्होंने अपने रजिस्ट्री पत्रों को इंटरनेट पर ट्रेक भी किया, जिसमें डाक ओढां ही दर्शाई जा रही थी। चार दिन बीतने पर उन्होंने डाक विभाग में इस बारे पता किया तो कहा गया कि डाक पहुंच गई है। सर्वर डाऊन होने की वजह से ट्रेक गलत दर्शा रहा है। इसलिए वे बेफ्रिक रहें। प्रदीप शर्मा ने बताया कि जब 10 दिन बाद 15 अक्टूबर को ओढां डाकघर में इस बारे पूछा तो तब भी बहानेबाजी की गई। आखिरकार बताया गया कि ओढां से डाक सिरसा भेज दी गई थी। सिरसा में डाक का बैग कहीं गुम हो गया है, इसलिए डाक अपने गतंव्य पर नहीं पहुंचीं। उन्होंने बताया कि उन्होंने यूनिवर्सिटी की आखिरी तारीख से पहले फार्म पहुंचाने के लिए ही रजिस्ट्री की थी लेकिन डाक विभाग के कर्मियों ने उन्हें अंधेरे में रखा। जिसके कारण फार्म भरने की आखिरी तारीख बीत गई। प्रदीप शर्मा की भांति अन्य के साथ भी क्या हुआ होगा, इसका अंदाजा स्वयं डाक विभाग के कर्मचारियों को भी नहीं होगा। हालांकि डाक विभाग द्वारा इस बारे में रजिस्ट्री करवाने वालों को सूचित नहीं किया गया है, जिसके कारण वे लोग आज भी अंधेरे में है।
गबन पर पर्दा डालने की कोशिशें जारी,16.11 लाख में से जमा हुए महज 4.80 लाख, दी जा रही मोहलत
डबवाली न्यूज़ डेस्क
पीले-गुलाबी व हरे राशनकार्ड बनाने की एवज में वसूली गई राशि को डकारने वाले खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अधिकारियों को आज भी बचाने की कोशिशें की जा रही है।लगभग दो साल से वसूली जा रही राशि को सरकारी खजाने में जमा नहीं करवाया गया। आरटीआई में मामले का खुलासा होने के बाद विभागीय अधिकारियों ने राशि गबन करने वालों को नोटिस देने की नौटंकी की। जिन लोगों ने सरकारी धन का गबन किया, उनके खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाने की बजाए उन्हें गबन की राशि जमा करवाने का नोटिस दिया गया। नोटिस के बावजूद राशि जमा नहीं हुई। ऐसे में फिर से नया नोटिस जारी कर दिया गया। अंतिम नोटिस की अवधि भी 5 अक्टूबर को बीत चुकी है। लेकिन विभाग के अधिकारी आज भी पूरे मामले में दोषियों को बचाने की हरसंभव कोशिश कर रहे है।शुक्रवार को विभाग की ओर से ब्यान जारी कर कहा गया कि सिरसा केंद्र के अधिकारी द्वारा हरे कार्ड बनाने की फीस के रूप में चार लाख रुपये जमा करवा दिए गए है। ऐलनाबाद केंद्र के इंचार्ज द्वारा पहले ही 80,500 रुपये की राशि जमा करवा दी गई थी, जिसकी रसीद उन्होंने परिमंडल कार्यालय में जमा करवा दी है। यानि 16 लाख में से महज 4 लाख 80 हजार 500 रुपये की राशि ही जमा हुई है। शेष राशि की वसूली आज भी बाकी है। मगर, विभागीय अधिकारियों द्वारा गबन करने वालों के खिलाफ कोई कदम उठाने की बजाए उन्हें बचाने की अधिक कोशिश की जा रही है। विभाग की ओर से जारी बयान इस आशय की पुष्टि करता है कि गबनकत्र्ताओं को मोहलत प्रदान की जा रही है?
गबन हुआ सिद्ध तो पुलिस कार्रवाई क्यों नहीं?
राशनकार्ड बनाने की एवज में जो राशि वसूली गई, उसे सरकारी खजाने में जमा करवाया जाना चाहिए था। अधिकारियों ने 13 लाख 65 हजार 85 रुपये जमा करवाए भी लेकिन 16 लाख 11 हजार 395 रुपये डकार गए। लगभग 9 माह पहले इस आशय का खुलासा भी हो चुका था कि अधिकारी राशि डकार रहे है। मगर, विभागीय अधिकारियों ने मामले पर पर्दा डालने की कोशिश की। डकारी गई राशि जमा करवाने से गबनकत्र्ता पाकसाफ नहीं हो जाते? पकड़े जाने पर यदि चोर माल वापस कर देता है तो उसका गुनाह माफ नहीं हो जाता? ऐसे में जिन अधिकारियों की ओर से गबन राशि को जमा करवाया गया है, उनके खिलाफ गबन सिद्ध होता है और उनके खिलाफ विभाग की ओर से पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई जानी चाहिए। इसमें बरती गई ढील गबनकत्र्ताओं के हौंसले बढ़ाएगी, चूंकि पकड़े जाने पर ही पैसा जमा करवाना है। न पकड़े जाने पर पैसा हजम!
आरटीआई ने खोली पोल
खाद्य एवं आपूर्ति विभाग द्वारा पीले, गुलाबी व हरे राशनकार्ड बनाने की एवज में उपभोक्ताओं से राशि वसूली गई थी। भीम कालोनी निवासी प्रेम जैन ने इस संबंध में आरटीआई मांगी और विभाग द्वारा आरटीआई में ही यह जानकारी दी गई कि पीले-गुलाबी व हरे राशनकार्ड बनाने की एवज में उपभोक्ताओं से 29 लाख 76 हजार 480 की राशि वसूली गई है। यह भी बताया कि इसमें से 13 लाख 65 हजार 85 रुपये जमा करवाई है और 16 लाख 11 हजार 395 रुपये की राशि
सरकारी खजाने में जमा नहीं करवाई। इसी गबन राशि की वसूली के लिए विभाग की ओर से नोटिस भेजने की नौटंकी की गई।
3.40 लाख डूबाने की तैयारी!
खाद्य एवं आपूर्ति विभाग की ओर से शुक्रवार को जो बयान जारी किया गया, उसके अनुसार तीन लाख 40 हजार रुपये तो डूबाने की खुद ही तैयारी की गई है। विभाग की ओर से बताया गया कि 13 हजार पीले, 4700 गुलाबी और 12700 हरे राशनकार्ड विभाग से गलत प्रिंट होकर आए थे, जोकि वितरित ही नहीं किए गए। इन कार्डों की राशि तीन लाख 40 हजार रुपये बनती है। ऐसे में 3.40 लाख रुपये का गबन नहीं हुआ।विभाग के दावे को सच माना जाए तो विभागीय अधिकारी यह बताए कि 30 हजार 400 उपभोक्ता पिछले तीन सालों से किस आधार पर डिपूओं से राशन प्राप्त कर रहे है? जबकि उनके राशनकार्ड गलत प्रिंट होने के कारण स्टोर में पड़े है। हकीकत यह है कि इन 30 हजार 400 उपभोक्ताओं को पीले, गुलाबी व हरे राशनकार्ड की एवज में प्रिंट दिया जा चुका है, जिसके आधार पर ही उन्हें राशन प्राप्त हो रहा है। इन उपभोक्ताओं से राशनकार्ड की एवज में शुल्क भी वसूला जा चुका है। विभागीय अधिकारी भले ही 3 लाख 40 हजार रुपये की राशि को डकारने का मंसूबा पाल रहे हों, लेकिन यह कभी कामयाब नहीं होने वाला? चूंकि चोरबाजारी के खिलाफ न केवल 30 हजार 400 उपभोक्ता अपनी गवाही देंगे बल्कि इनसे संबंधित डिपू होल्डर भी सच्चाई बयान करेंगे। तब, गबनकत्र्ताओं को शह देने वालों की खाल भी नहीं बच पाएगी?
आरटीआई में मांगी सूचना न देने का मामल, जिला के सभी तहसीलदार सूचना आयोग में तलब,12 नवंबर तक देना होगा जवाब,24 मार्च को होगी चंडीगढ़ में सुनवाई
डबवाली न्यूज़ डेस्क
राज्य सूचना आयोग हरियाणा ने आरटीआई के एक मामले में सिरसा जिला के तमाम तहसीलदारों को नोटिस देकर आयोग में तलब किया है।तहसीलदारों को 12 नवंबर तक अपना जवाब दाखिल करने का समय दिया गया है और 24 मार्च 2021 को मामले की सूचना आयोग में सुनवाई होगी। राज्य सूचना आयुक्त जय सिंह बिश्नोई की ओर से यह नोटिस जारी किया गया है। आरटीआई एक्टिविस्ट पवन पारिक एडवोकेट की ओर से आरटीआई के मामले में सूचना आयोग में शिकायत दाखिल की थी, जिस पर संज्ञान लेते हुए आयोग ने नोटिस जारी किया है।पवन पारिक ने जिला राजस्व अधिकारी-सह-राज्य जनसूचना अधिकारी सिरसा से आरटीआई में कुछ जानकारी मांगी थी। सूचना जिला के तमाम तहसील कार्यालयों से संबंधित थी, इसलिए डीआरओ द्वारा तहसीलदार सिरसा, डबवाली, ऐलनाबाद, रानियां, नाथूसरी चौपटा, कालांवाली के अलावा उप तहसीलदार गोरीवाला को आरटीआई अग्र-प्रेषित की थी। मगर, आरटीआई का जवाब नहीं दिया गया, जिस पर सूचना आयोग में शिकायत की गई थी। सूचना आयोग ने शिकायत पर संज्ञान लेते हुए जिला राजस्व अधिकारी सिरसा, तहसीलदार सिरसा, डबवाली, ऐलनाबाद, रानियां, नाथूसरी चौपटा, कालांवाली तथा उप तहसीलदार गोरीवाला को नोटिस जारी किया है।
ये मांगी थी सूचना
पवन पारिक एडवोकेट ने डीआरओ कार्यालय से 8 जून 2020 को डिजिटल डिमार्केशन मशीनों के बारे में जानकारी मांगी थी। पूछा गया था कि विभाग द्वारा किन प्राइवेट फर्मों और आपरेटरों को इस कार्य के लिए प्राधिकृत किया है। डिजिटल डिमार्केशन करने वालों को जारी किए लाईसेंस की प्रति मांगी गई थी। इस बारे में सरकार द्वारा जारी हिदायतों व गाइडलाइंस के बारे में भी जानकारी मांगी थी। यह भी पूछा गया था कि बगैर विभागीय अनुमति के जिला में भूमि की डिमार्केशन करवाई जा सकती है अथवा नहीं। यह भी पूछा गया था कि पंजाब भू-राजस्व अधिनियम 1887 के प्रावधानों के तहत प्लॉट अथवा भूमि की निशानदेही पटवारी और कानूनगो से फीता या जरीब से करवाई जा सकती है। यह भी पूछा गया था कि क्या डिजिटल डिमार्केशन मशीन से पैमाइश करवाना अनिवार्य है। पैमाइश के लिए डिजिटल डिमार्केशन मशीनों के शुल्क बारे भी जानकारी मांगी गई थी। यह भी पूछा गया था कि पिछले 10 वर्षों में किन-किन पटवारियों व कानूनगो द्वारा फीता और जरीब कितनी निशानदेही की गई और कितनी डिजिटल डिमार्केशन मशीन से करवाई गई।
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