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शनिवार, 31 अक्टूबर 2009

बढ़त हासिल करने की कोशिश



भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच दिल्ली में शनिवार को तीसरा वनडे मैच खेला जाएगा. सात मैचों की श्रृंखला में अभी तक दोनों देश एक-एक मैच जीतकर बराबरी पर हैं.

नागपुर में खेले गए दूसरे एक दिवसीय मैच में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को 99 रनों से हरा दिया है जबकि पहले मैच में भारत चार रनों से हार गया था.

अपने पिछले मैच में मिली ज़बरदस्त जीत के बाद भारतीय टीम के हौसले बुलंद हैं. नागपुर में अच्छे प्रदर्शन के बाद भारतीय बल्लेबाज़ों से ख़ासी उम्मीदें रहेंगी. इस मैच में धोनी ने शानदार शतक लगाया था तो गंभीर और रैना ने भी अच्छी बल्लेबाज़ी की थी.

वहीं ऑस्ट्रेलियाई टीम के कुछ खिलाड़ी घायल हैं जिस कारण रिकी पोंटिंग की चिंता बढ़ गई है.ब्रेट ली चोटिल हैं और वे ऑस्ट्रेलिया लौट रहे हैं. वे पूरी श्रृंखला से बाहर हो गए हैं.

ब्रेट ली के श्रृंखला से बाहर होने पोंटिंग ने कहा, "ज़ाहिर है हमें ली की कमी खलेगी. नागपुर मैच में भी ली की कमी का एहसास हो रहा था." जेम्स होप्स भी पूरी तरह फ़िट नहीं है और उनके खेलने के आसार भी कम ही लग रहे हैं.

हालांकि ऑस्ट्रेलियाई कप्तान ने ये मानने से इनकार किया कि नागपुर में जीत के बाद भारतीय टीम ज़्यादा लय में है. उनका कहना था, मैं इन सब चीज़ों को नहीं मानता. यहाँ चीज़ें बहुत जल्दी बदल जाती हैं.

तीसरे मैच की ख़ास बात ये है कि अगर सचिन तेंदुलकर 79 रन बना लेते हैं तो वे अपने 17 हज़ार रन पूरे कर लेंगे. अब तक वनडे मैचों में उन्होंने कुल 16921 रन बनाए हैं.

आग के ख़ुद ब ख़ुद बुझने का इंतज़ार






जयपुर में गुरुवार की रात लगी आग का धुँआ शहर में शुक्रवार की सुबह दूर-दूर से दिखाई दे रहा था.

राजस्थान के जयपुर में गुरुवार रात को तेल डेपो में लगी आग पर काबू नहीं पाया जा सका है. तेल कंपनी के अधिकारी और दमकल दस्ते अब आग के ख़ुद ब ख़ुद बुझने का इंतज़ार कर रहे है.

हालत को देखते हुए आस-पास की आबादी को हटा दिया गया है और कई रेलगाड़ियो के मार्ग में बदलाव किया गया है क्योंकि जयपुर और कोटा को जोड़ने वाली रेल पटरी उस इलाके से होकर गुज़रती है जहाँ तेल डिपो है.

सीतापुर में शिक्षा केन्द्रों को बंद रखा जा रहा है और कोई दो हज़ार लोगों ने सरकारी आश्रय स्थलों में शरण ली है.सरकार के मुताबिक इस आग ने अब तक सात लोगों की जान ली है और छह लोग लापता हैं.

केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री मुरली देवड़ा ने मोके का दौरा किया और हादसे की जाँच का आदेश दिया है.

सरकार ने महेश लाल की अगुवाई में एक जाँच समिति गठित की है ,जो अगले 12 दिनों में जांच कर सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपेगी.

मुरली देवड़ा ने कहा, “ये समिति भविष्य में ऐसे हादसे न हो इस बारे में सुझाव देगी.”

भारी नुकसान

राज्य के गृह मंत्री शांति धारीवाल ने बताया की ज्वलनशील पदार्थों के भंडारण को शहरों से दूर स्थापित किया जाएगा. जयपुर के ज़िला मजिस्ट्रेट कुलदीप रांका ने बीबीसी को बताया कि ३६ घायल विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हैं.

कोई दो हज़ार लोगो ने सरकारी आश्रय स्थलों में शरण ली है. बड़ी संख्या में लोग अपने रिश्तेदारों के यहाँ पहुंचे हैं.

तेल कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी सार्थिक ने बताया की देश के विभिन्न भागों से दमकल विशेषज्ञों को बुला लिया गया है लेकिन आग इतनी विकराल है की कोई उसके पास नहीं जा सकता.

लिहाज़ा आग के ख़ुद कमज़ोर पड़ने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है. तेल अधिकारी ने बताया की कम से कम उनके छह कर्मचारी आग लगने के बाद से लापता हैं.

उनमें से एक हरीश कुमार घटना के बाद से लापता है.उनके परिजनों ने बताया कि हरीश कुमार आग लगने वाले दिन नौकरी पर गए थे, तब से उनका कोई पता नहीं है.

हरीश कुमार के बेटी नेहा कहती है, “हम जगह जगह उन्हें तलाश रहे हैं.परिवार का रो-रो कर बुरा हाल है. हर अस्पताल की खाक छान मारी मगर हर जगह से निराश लौटना पड़ा.”

नहीं सज पाई बारात...

करोली के विजय कुमार उस तेल डिपो के पास एक फैक्ट्री में काम करते थे और इस माह उनकी बारात सजनी थी. लेकिन आग ने उसे लील लिया.विजय का शव लेकर गाँव लौट रहे उनके भाई बने सिंह कहने लगे, “हम उसकी शादी की तैयारी कर रहे थे,अब शव लेकर लौट रहे हैं.”

जिस तेल डिपो में आग लगी है वो सीतापुर में है और ये एक औद्योगिक केंद्र भी है. एक बड़े निर्यातक राजीव अरोरा कहते है, “वहां कोई एक हज़ार फैक्ट्रियाँ हैं और डेढ़ लाख लोग काम करते हैं.इन फैक्ट्रियों को भरी नुकसान पहुंचा है.”

आग की लपटें कभी प्रबल तो कभी थोडी़ निर्बल पड़ती दिखाई देती है.मगर आग बुझ नहीं रही है. वहां शक्तिमान सेना है, दमकल दस्ते हैं, वैज्ञानिक उपकरण हैं, लेकिन उस निर्मम आग के आगे किसी का बस नहीं चल रहा है.

लिहाज़ा आग को उसकी नियति पर छोड़ दिया गया है कि वो इतना जले, इतना जले की जवाला खुद शांत हो जाए.

कभी दुर्गा, कभी मोहिनी





मार्क टली को सोनिया गांधी में इंदिरा की छाप दिखती है.



इंदिरा गांधी को ‘दुर्गा’, ‘लौह महिला’, ‘भारत की साम्राज्ञी’ और भी न जाने कितने विशेषण दिए गए थे जो एक ऐसी नेता की ओर इशारा करते थे जो आज्ञा का पालन करवाने और डंडे के ज़ोर पर शासन करने की क्षमता रखती थी.

भारत के किसी अन्य प्रधानमंत्री से लोग इतना भय नहीं खाते थे जितना उनसे लेकिन यहां मैं यह भी जोड़ना चाहूंगा कि वो बहुत मोहक भी हो सकती थीं. और इंदिरा गांधी के साथ भेंट ऐसी भी हो सकती थी जैसी किसी प्राध्यापिका की फटकार.

वो आमतौर पर विदेशी संवाददाताओं के प्रति अपनी विकारत को छिपाने का कोई प्रयास नहीं करती थीं. उनके बारे में उनकी राय थी कि वो हमेशा भारत को ग़लत ढंग से प्रस्तुत करते हैं. लेकिन उन्होने मुझे जो अंतिम इंटरव्यू दिया उसके अंत में मुस्कुराते हुए कहा था, “आप अपना टेप रेकार्डर बंद कर दीजिए और फिर बहस करते हैं कि आपके विचार में इस देश में क्या हो रहा है”.

इंदिरा गांधी को अपनी सत्ता मज़बूत करने में वक़्त लगा. जब वो प्रधानमंत्री बनी थीं तो शुरु के दिनों में संसद में विपक्ष उनसे बहुत सवाल जवाब किया करता था. समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया उन्हे ‘गूंगी गुड़िया’ कहा करते थे. जब कभी वो लड़खड़ातीं तो उनके सहयोगी नोट लिख लिख कर उन तक पहुंचाते कि वो क्या जवाब दें.

सरकार में मौजूद सहकर्मी ऐसा व्यवहार करते थे जैसे वो उनके हाथों में मिट्टी हों जिसे वो जैसे चाहे ढाल लें. लेकिन अंत में इंदिरा गांधी ने कॉंग्रेस के मुखियाओं को चुनौती देकर और पार्टी का विभाजन करके वो साहस दिखाया जो उनके कार्यकाल के दौरान उनकी पहचान बन गया.

उन्होने समय से पहले चुनाव की घोषणा की और उन्हे बुरी तरह हराया जिन्होने उन्हे आंकने में भूल की थी. जब पाकिस्तान की सेना ने ढाका में भारतीय सेना के आगे आत्म समर्पण किया और एक नए राष्ट्र बांगलादेश का जन्म हुआ तो इंदिरा गांधी की सत्ता पर सवाल उठने बिल्कुल बंद हो गए.

लेकिन बांगलादेश की लड़ाई के बाद के सालों में इंदिरा गांधी ने दिखाया कि ज़रूरी नहीं कि सत्ता और सुशासन हमेशा साथ साथ चलें. सत्तर के दशक में उनकी वामपंथी आर्थिक नीतियों ने देश को लाल फीताशाही में बांध दिया.

इंदिरा गांधी ने इस बात की अनदेखी की, कि केन्द्रीकृत योजना, उससे उपजी नौकरशाही और उससे निजी पहल के क्षेत्र में जो बाधाएं आती हैं, दूसरे देश इन सब को नकार चुके हैं. वो उस भ्रष्टाचार को नहीं रोक पाईं जो लाल फीताशाही के साथ आता है और भ्रष्टाचार का विरोध करने वाले जयप्रकाश नारायण के आंदोलन को भी रोकने में असफल रहीं.

अपने को बचाने के लिए उन्होने अपने पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू के सभी सिद्धांतो के ख़िलाफ़ जाकर देश में आपात काल की घोषणा कर दी जिससे देशवासियों की आज़ादी पर पहरा लग गया और प्रशासन की ताक़त और बढ़ गई.

फिर 1977 में हुए आम चुनाव में इंदिरा गांधी की ज़बरदस्त हार के बाद आपात काल का अंत हुआ. जब वो फिर सत्ता में आईं तो उन्हे दोबारा उथल पुथल का सामना करना पड़ा. मुम्बई में मज़दूरों का विद्रोह, असम में जातिवादी तनाव, नक्सलवाद का पुनरुत्थान और पंजाब में उथल पुथल जिसका अंत ऑपरेशन ब्लू स्टार और उनकी हत्या के साथ हुआ.

कांग्रेस पर पकड़

इंदिरा गांधी अपने बेटों के साथ



उन्होने कॉंग्रेस पार्टी पर अपनी पकड़ और कस ली और मनमाने ढंग से राज्य सरकारों को बरख़ास्त करके विपक्ष को कमज़ोर करने के प्रयास किए. लेकिन उनकी मुश्किलों का अंत नहीं हो सका.

इन सब मुश्किलों के बावजूद जिन्होने उन्हे देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रचार करते देखा था वो जानते थे कि देश की ग़रीब जनता पर उनकी कितनी गहरी पकड़ थी.

मेरी नज़र में इंदिरा गांधी की सबसे बड़ी ग़लती ये थी कि वो भूल गईं कि तानाशाह शासकों की तानाशाही उनके नीचे काम करने वालों तक पहुंचती है. और जैसे जैसे वो नीचे की ओर उतरती जाती है उसका ग़लत इस्तेमाल बढ़ता जाता है.

उन्होने प्रशासनिक सेवाओं को अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण रखने का अधिकार दिया और उन्होने ‘लाइसेंस परमिट राज’ बना लिया और उसके साथ फैला भ्रष्टाचार. उन्होने पुलिस को उनके विरोधियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने के अधिकार दिए और पुलिस उसका इस्तेमाल जिस तिस को गिरफ़्तार करने के लिए करने लगी.

उन्होने निचले दर्जे की समूची नौकरशाही को परिवार नियोजन लागू करने का अधिकार दिया और उसका नतीजा हुआ अनिवार्य नसबंदी अभियान. उन्होने अपने छोटे बेटे संजय गांधी को उनके नाम पर काम करने का अधिकार दिया और उन्होने कॉंग्रेस पार्टी में बचे-खुचे लोकतंत्र को भी नष्ट कर दिया.

वो सभी संस्थाएं जिन्हे सत्ता के मनमाने प्रयोग को रोकना चाहिए उनकी अवमानना हुई. फिर भी इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि इंदिरा गांधी एक साहसी महिला थीं और देश की ग़रीब जनता के दिल में उनके लिए विशेष स्थान था.

ग़रीबों के लिए संघर्ष करने की उनकी छवि के कारण ही नेहरू गांधी वंश इतने लम्बे समय तक टिक पाया है. जिसने भी सोनिया गांधी को अभियान के दौरान देखा है वो मानेगा कि वो अपनी सास की नक़ल करती हैं, उन्ही की तरह तेज़ चलती हैं, हाथ हिलाती हैं, हथकरघे से बुनी साड़ियां पहनती हैं और आक्रामक भाषण देती हैं.

'सुरक्षा परिषद सदस्यता का हक़दार'



अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने कहा है कि भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता मिलनी चाहिए.

दिल्ली में एक सम्मेलन में बोलते हुए उन्होंने चरमपंथ का मुद्दा भी उठाया और कहा कि भारत-अमरीका दोनों वैचारिक स्तर पर चरमपंथियों के ख़िलाफ़ वैचारिक लड़ाई लड़ रहे हैं.

उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में लड़ाई जीतने के लिए भारत और अमरीका को मिलकर काम करना होगा.

बुश ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के प्रवेश का समर्थन किया. उनका कहना था, “भारत ने विश्व पटल पर एक मज़ूबत लोकतंत्र के रूप में जगह बनाई है. भारत में सर्व धर्म लोकतंत्र है, यहाँ शांति और सहनशीलता का माहौल है.”

मनमोहन मेरे अच्छे मित्र
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जॉर्ज बुश भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ अपने मधुर संबंधों का ज़िक्र करना भी नहीं भूले. उनका कहना था, “मुझे आप लोगों के प्रधानमंत्री बेहद पसंद हैं. वे बुद्धिमान हैं और एक अच्छे इंसान हैं. उन्हें अपना दोस्त कहते हुए मुझे गर्व महसूस होता है.”

जॉर्ज बुश वर्ष 2006 में भारत आए थे जब दोनों देशों ने परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए थे और अन्य रणनीतिक मसलों पर भी बातचीत हुई थी.

भारत के प्रति अपना प्यार ज़ाहिर करते हुए बुश ने कहा, “राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद मेरी ज़िंदगी बदल गई है. लेकिन भारत के प्रति मेरा प्यार नहीं बदला है. विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रति अमरीका का अलग ही संबंध है.”

अमरीका के वर्तमान राष्ट्रपति ओबामा को लेकर उन्होंने अपनी राय कुछ यूँ ज़ाहिर की, “व्हाइट हाउस के लिए ओबामा मेरी पहली पसंद नहीं है लेकिन मेरी शुभकामनाएँ उनके साथ हैं. मैं उनकी आलोचना पर ज़्यादा समय ज़ाया नहीं करूंगा, उनके पहले से ही काफ़ी आलोचक हैं.”

छाई की खाई में जिंदगी की परछाई


पांच-पांच रुपये के लिए यहां जिंदगी को जोखिम में डाला जाता है। रोजी का जुगाड़ कब किस पर मौत का पहाड़ बनकर टूटे किसी को पता नहीं। पल भर में जिंदगी यहां हमेशा के लिए दफन हो सकती है.. लेकिन मजबूरी ऐसी कि मौत के डर को भी यहां जिंदगी की जद्दोजहद में हंस कर भुलाना पड़ता है। मिनी मेट्रो कहलाने वाले इस शहर में रोज जिंदगी को जोखिम में डाल कर मेहनत के पसीने से पेट की आग बुझाने वाले ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं। कभी इनकी जिंदगी को करीब से देखना हो तो बिष्टुपुर वोल्टास बिल्डिंग से दिखने वाले छाई के पहाड़ (कंपनी से निकलने वाले अयस्क के अवशेष से बने पहाड़) पर चले जाएं। यहां आपको पांच-पांच रुपये के लिए छाई की खाई में जिंदगी की परछाई तलाशते लोगों की अच्छी खासी तादाद देखने को मिल जाएगी। छाई के पहाड़ को खोद कर ये अपनी जिंदगी के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ करते हैं। इस दौरान अक्सर छाई का यह पहाड़ इनपर मौत बनकर टूट पड़ता है। खोदते पहाड़ निकलती चुहिया दरअसल इस छाई के पहाड़ में से ये लोग बोरा भर-भर कर वो जरूरी चीज निकालते हैं जिससे अन्य घरों में चूल्हा जलता है। क्षेत्रीय भाषा में इसे गुंडी कहते हैं। एक तरह से यह गुंडी, कोयले की ही तरह होता है जिसे चूल्हा जलाने में इस्तेमाल किया जाता है लेकिन यह प्रति बोरी 2 से 5 रुपये में बिकता है। चूंकि शहर में स्थित कंपनियों से निकलने वाले अयस्कों के अवशेष से बना यह पहाड़ वर्षो पुराना है, इसलिए इसके नीचे दबे अवशेष शेष पृष्ठ 17 पर मजबूरी ऐसी कि मौत के डर को भी हंस कर भुलाना पड़ता है

जमशेदपुर में दोहरा सकती है जयपुर की कहानी


ऑयल साइडिंग पर पेट्रोल चोरी बन सकती है त्रासदी
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जयपुर में तो केवल एक ही कंपनी के तेल डिपो में लगी आग ने तबाही मचा दी, मगर जमशेदपुर में जहां एक ही स्थान पर तीन कंपनियों का सुरक्षित तेल भंडार है वहां एक छोटी सी चिंगारी कितना बड़ा दावानल भड़का सकती है, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। यहां रेलवे ऑयल साइडिंग से होने वाली पेट्रोल-डीजल की चोरी कभी भी भयानक हादसे को जन्म दे सकती है। शहर में बर्मामाइंस इलाके के लगभग आधा किलोमीटर की परिधि में इंडियन ऑयल कारपोरेशन, भारत पेट्रोलियम कारपोरेशन और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कारपोरेशन के तेल डिपो हैं। हालांकि इन कंपनियों के डिपो में तो आग से बचाव के पर्याप्त इंतजाम हैं, लेकिन रेलवे ऑयल साइडिंग पर वैगन से तेल की पंपिंग के दौरान होने वाली चोरी कभी भी जयपुर जैसे भयानक अग्निकांड को जन्म दे सकती है। दरअसल, रेलवे ऑयल साइडिंग में ट्रैक पर लगे रेल टैंकरों से पाइप लाइन के जरिए डिपो तक तेल पहुंचाया जाता है। इसके लिए रेल ट्रैक तक हर कंपनी ने अपने पाइप बिछा रखे हैं। इन पाइप में एक वाल्व लगा होता है। इस वाल्व को खोल रेल टैंकर से तेल पाइप में पहुंचता है। तेल चोरी का खेल यहीं से शुरू होता है। हर टैंकर के नीचे प्लास्टिक शीट बिछी टोकरी रखी होती है। इसी में तेल की चोरी की जाती है। हालांकि इस खेल में आरपीएफ जवान, तेल कंपनी के कर्मचारियों की भी मिलीभगत रहती है। इनकी शह पर ही स्थानीय लोग डिपो तक पहुंचने वाले पाइपों से तेल चोरी करते हैं। इस दौरान एक छोटी सी चिंगारी से भड़की आग तीनों तेल डिपो को लपेटे में ले सकती है। यही नहीं बर्मामाइंस स्थित तीनों कंपनियों के तेल डिपो के चारों तरफ आग लगने का पर्याप्त सामान भी है। यहां झुग्गी-झोपड़ी वाली बस्तियां बसी हैं, तो तेल डिपो के पास ही लकड़ी की टाल भी हैं। डिपो क्षेत्र में जगह-जगह सड़क छाप होटल व चाय ठेले भी हैं। इनमें बराबर आग जलती रहती है। हालांकि प्रावधान के अनुसार तेल डिपो के आसपास बस्तियां नहीं बसी होनी चाहिए। और जिस दौर में यहां तेल डिपो स्थापित हुए थे, उस वक्त आसपास कोई बस्ती थी भी नहीं। बाद में समय के साथ-साथ सार्वजनिक जमीन पर अवैध अतिक्रमण होता गया और आज यहां चारो तरफ बस्तियां बसी हुई हैं। इन बस्तियों में बसे गरीब तबके के लोगों की रोटी पेट्रोल-डीजल की चोरी से ही चलती है। ऑयल साइडिंग से चोरी पर अधिकारियों ने झाड़ा पल्ला रेलवे ऑयल साइडिंग में पटरी पर खड़े ट्रैंकरों से पेट्रोल-डीजल की चोरी रोक पाने में विवशता जाहिर करते हुए तीनों कंपनियों के तेल डिपो के अधिकारियों ने पल्ला झाड़ लिया। विभागीय प्रावधान का हवाला देते हुए नाम न छापने की शर्त पर भारत पेट्रोलियम कारपोरेशन, इंडियन ऑयल कारपोरेशन व हिंदुस्तान पेट्रोलियम तेल डिपो के अधिकारियों ने कहा कि डिपो के बाहर होने वाली चोरी को रोकने की जिम्मेदारी आरपीएफ के साथ-साथ जिला पुलिस व प्रशासन की है, इससे हम लोगों को कोई लेना-देना नहीं। 80 के दशक में टैंकर विस्फोट से मची थी तबाही रेलवे ऑयल साइडिंग से होने वाले पेट्रोल-डीजल की चोरी सन् 1980 के दशक में भयंकर तबाही मचा चुकी है। जमशेदपुर के लोग आज भी उस दिन को याद करते हैं, जब ऑयल साइडिंग से भड़की आग की लपटें टाटानगर रेलवे स्टेशन के 1 नंबर प्लेटफार्म तक आ पहुंची थीं। इस दौरान रेलवे के ऑयल टैंकर में विस्फोट हो गया था। हालांकि इस घटना का कारण ऑयल वैगन की लूज शंटिंग को बताया गया था, लेकिन सूत्रों का कहना है कि तेल चोरी ही इसकी वजह थी।

आवारा सांड की चपेट में वृद्धा

डबवाली( डॉ सुखपाल)-

कालोनी रोड स्थित अन्नपूर्णा मन्दिर के निकट एक आवारा साड ने टक्कर मारकर बीमार व वृद्ध महिला को घायल कर दिया। मिली जानकारी मुताबिक वार्ड नम्बर 13 निवासी वृद्ध महिला रेशमा देवी सिविल अस्पताल से दवाई लेकर अपने घर वापिस आ रही थी कि अन्नपूर्णा मन्दिर के निकट खडे़ एक आवारा साड ने जोरदार टक्कर मार दी। जिससे वह दूर जा गिरी और घायल हो गई। वहा पर उपस्थित दुकानदारों ने आवारा साड के चंगुल से वृद्ध महिला को छुड़वाया व समीप स्थित सिटी क्लीनिक में उपचार के लिए पहुचाया तथा महिला के परिजनों को सूचित किया। वृद्ध महिला का उपचार कर रहे डॉ. डीडी सचदेवा ने बताया कि महिला के सिर में गहरी चोट आई है तथा उन्हे टाकें लगाए गए है। महिला के परिजनों व उपस्थित दुकानदारों ने प्रशासन व स्थानीय गौशाला की प्रबन्ध समिति से माग की है कि नगर में घूम रहे आवारा पशुओं को गौशाला में बन्द करे।

आग से हजारों का सामान खाक

डबवाली( डॉ सुखपाल)-


नवरत्न बासल पेट्रोल पम्प के सामने ट्रक यूनियन के पूर्व प्रधान गुरचरण फौजी वाली गली में स्थित एक मकान में आग लगने से हजारों की नगदी व मकान में पड़ा सारा सामान जल कर राख हो गया । प्राप्त जानकारी अनुसार बेनामी राम पुत्र हर प्रसाद खुरजा निवासी भूरा भवन आरेवाले के मकान में बतौर किरायेदार है तथा स्वयं कूलर मिस्त्री है और बठिण्डा स्थित एक प्राईवेट फैक्ट्री में कार्यरत है। बीती सायं लगभग 7 बजे बेनामी का परिवार अपने सम्बन्धी के निवास कॉलोनी रोड पर जन्म दिन की पार्टी में शामिल होने के लिए गया हुआ था तथा घर में बने मन्दिर में माँ की जोत जल रही थी। रात्रि 8 बजे के लगभग पड़ोस में रह रही बिन्द्र कौर को कुछ जलने की दुर्गन्ध महसूस हुई तो उसने देखा कि साथ लगते कमरे में धुआ उठ रहा है, उसने इसकी सूचना तुरन्त बेनामी के परिवार को दी। सूचना मिलते ही बेनामी के पारिवारिक सदस्य घर पहुचे तथा कमरे का ताला खोला गया तो पूरे कमरे में आग फैली हुई थी। पड़ोसियों तथा आस पड़ोस के लोगों ने बाल्टियों से पानी डालकर आग पर काबू पाया। लेकिन जाता तब तक कमरे में मन्दिर तथा कमरे में पड़ा कीमती सामान जल कर राख हो चुका था। बेनामी राम के पुत्र प्रवेश ने बताया कि मन्दिर में 8 हजार की नकदी और गुल्लक में रखे 10 व 5 के नोट भी आग की भेंट चढ़ गए, कमरे में रखा अन्य सामान जिसमें बेड, गद्दे बिस्तर व कीमती कपड़ों के जलने से 15-20 हजार रुपये के नुकसान का अनुमान है। इस इमारत में रह रहे अन्य परिवारों के सदस्यों पुरुषोत्तम दास, रानी देवी, सुरेश कुमार ने प्रशासन से हादसे का शिकार व्यक्ति की आर्थिक मदद करने की गुजारिश की है।

परंपरा के मरहम से भरेंगे धरती के घाव


जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से धरती को बचाने के लिए युद्धस्तर पर प्रयास करने की जरूरत है। सभी देश इसे महसूस कर रहे हैं। लेकिन कोई सर्वमान्य रास्ता नहीं सूझ रहा है। ऐसे में क्या परंपरा के मरहम से धरती के घाव भरे जा सकते हैं और उसे फिर से उसके मूल स्वरूप में लौटाया जा सकता है? कोई माने या न माने, अपने देश के आदिवासियों का ऐसा ही मानना है। लेकिन उनका कहना है कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए अगर उन्हें पूरी छूट दी जाए तो वह अपने परंपरागत ज्ञान और दक्षता से धरती के जख्म ठीक कर सकते हैं। हाल ही में देश भर के आदिवासी समूहों ने एक घोषणापत्र जारी किया जिसमें उन्होंने जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से निपटने के लिए समाधानों का जिक्र किया है। ये समाधान उनके परंपरागत ज्ञान और पारिस्थितिकी से करीबी संबंधों पर आधारित हैं। इन समूहों में हर वर्ग जैसे कृषि, वानिकी, चारागाह और मत्स्य क्षेत्र से जुड़े आदिवासी शामिल थे। बैठक में एकमत से चेतावनी दी गई कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के नाम पर परंपरागत ज्ञान और प्राचीन विधियों को हटा कर नई प्रौद्योगिकियां अपनाने से हालात केवल बिगड़ेंगे, सुधार नहीं होगा। नगालैंड एक आदिवासी वेचितियु कहते हैं, हमारा समुदाय जलवायु परिवर्तन के संकट के लिए जिम्मेदार नहीं है। लेकिन हम अपनी महारत से इसका हल निकाल सकते हैं। हम ऐसा करने के लिए पूरी छूट चाहते हैं और हमें अवांछित नीतियों के माध्यम से कोई हस्तक्षेप भी नहीं चाहिए। एक अन्य महिला तनुश्री ने बताया हमारी परंपरागत जल प्रबंधन प्रणाली हमारे जलस्रोतों को स्वच्छ बनाए रखती है। इस संसाधन का हम चतुराई से इस्तेमाल करते हैं जिससे भूजल पर कोई दबाव नहीं पड़ता। यही वजह है कि हमें सूखे और जल संकट के दौरान समस्या नहीं होती। तनुश्री पश्चिम बंगाल के सुन्दरवन इलाके में रहती है। मुन्नार की खाड़ी से आई एक मछुवारन सेल्वी ने कहा कि विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का जरूरत से अधिक दोहन किया जा रहा है। ए संसाधन प्रदूषित हो रहे हैं और कुछ मामलों में नष्ट भी हो चुके हैं। इससे हमारे सामने संकट उत्पन्न हो गया है। सेल्वी ने कहा हमारे पास परंपरागत सुरक्षा के लिए बालू के टीले हैं, समुद्री तट हैं हरे-भरे जंगल हैं और कोरल रीफ भी हैं। यह सब कुछ पीढि़यों की विरासत है। हम इन संसाधनों के संरक्षण का महत्व केवल सह अस्तित्व के लिए ही जरूरी नहीं समझते बल्कि मौसम के मिजाजों से बचाव के लिए दीर्घकालिक उपायों के तौर पर भी इनकी जरूरत है

महफूज और प्यारी जगह मां की गोद


मां का आंचल सबसे न्यारा सिटी ब्यूटीफुल के कलाग्राम में चल रहे पहले नेशनल क्राफ्ट मेले में शुक्रवार को थक जाने के बाद इस मासूम के लिए मां की गोद से महफूज और प्यारी जगह भला क्या हो सकती थी।

भगवान भरोसे तेल डिपो


हादसे के बाद सरकारी अमले को सुरक्षा मजबूत करने की सुध आई
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देश में 21 रिफाइनरियां, 300 से ज्यादा तेल व गैस डिपो तथा हजारों रसोई गैस एजेंसियों के स्टोर का विशाल नेटवर्क। इन सबके बावजूद सुरक्षा के ऐसे इंतजाम कि माचिस की एक चिंगारी से न केवल सैकड़ों लोग काल के गाल में समा जायें बल्कि अरबों रुपये की हानि भी देश को उठानी पड़े। जयपुर स्थित इंडियन आयल के तेल डिपो में लगी आग केवल एक बानगी है कि इतने महत्वपूर्ण व संवेदनशील स्थानों पर सरकार के सुरक्षा इंतजाम कितने कमजोर हैं। ये हालात तब हैं जब केवल पेट्रोलियम भंडारण के स्थलों पर सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने के लिए बहुत ही बड़ा सरकारी अमला लगा हुआ है। जयपुर से लौटे पेट्रोलियम मंत्रालय के एक आला अधिकारी ने बताया कि पेट्रोलियम क्षेत्र में हमने सुरक्षा को कभी वह महत्व दिया ही नहीं जिसकी जरूरत होती है। इस बारे में कड़े मानक हैं, लेकिन उनका पालन नहीं हो पाता है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि डिपो पर सुरक्षा संबंधी मानकों का उल्लंघन किया जाता है। शुरुआती तथ्य से ऐसा लगता है कि जयपुर हादसा के पीछे कोई मानवीय भूल वजह रही है। लिहाजा आने वाले दिनों में मानवीय भूल की संभावनाओं को भी न्यूनतम करने के लिए कदम उठाने होंगे। सबसे पहले तो पेट्रोलियम क्षेत्र में सुरक्षा व्यवस्था का मानकीकरण करना होगा। इसके लिए तेल उद्योग सुरक्षा महानिदेशालय (ओआईएसडी) को कानूनी अधिकार देना होगा। ओआईएसडी पेट्रोलियम कंपनियों के लिए सुरक्षा मानक तय करता है लेकिन उसके पास अपने मानकों को लागू करवाने का कानूनी अधिकार नहीं है। पेट्रोलियम मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक अब ओआईएसडी को कानूनी अधिकार देने पर गंभीरता से विचार किया जाएगा। अभी तक सरकारी तेल कंपनियां इस प्रस्ताव का विरोध कर रही थी। उनका कहना था कि इससे उनके अधिकार का हनन होगा। लेकिन सरकार की मंशा ओआईएसडी के मानकों को सरकारी व निजी कंपनियों के लिए अनिवार्य करने की है। जयपुर कांड से तेल डिपो की स्थापना के लिए स्थान के चयन को लेकर भी दोबारा विचार करने की जरूरत है। दरअसल, अधिकांश डिपो आज से 15-20 वर्ष पहले बनाए गए और उस समय उन्हें आबादी से दूर बनाया गया लेकिन इस दौरान बस्ती धीरे-धीरे इन डिपो के आस-पास के इलाकों में पहुंच गई है। जयपुर की घटना ने साबित कर दिया है कि आबादी के करीब होने से नुकसान की आशंका बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। मुंबई, दिल्ली, चेन्नई स्थित पेट्रोलियम उत्पादों के डिपो आबादी से बेहद करीब हैं। उक्त अधिकारी के मुताबिक पेट्रोलियम क्षेत्र में आग पर पहले कुछ घंटे में ही काबू नहीं हो पाता तो इसमें काफी मुश्किलें आ जाती हैं। लिहाजा यह व्यवस्था करनी होगी कि अगर किसी डिपो में आग लगती है तो उस पर शुरुआत में ही काबू किया जाए। इसके अलावा पेट्रोलियम आग को बुझाने के लिए आवश्यक पदार्थो (फोम, रसायनिक पाउडर और पेट्रोलियम जेली) का स्टाक भी बढ़ाना होगा। यदि जयपुर में लगी आग को बुझाने के लिए फोम, पेट्रोलियम जेली का इस्तेमाल होता तो देश में इनके कुल स्टाक का आधा खत्म हो जाता।

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