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मंगलवार, 17 नवंबर 2009

झांसी की रानी का ऐतिहासिक पत्र




लक्ष्मीबाई ने लॉर्ड डलहौज़ी को पत्र लिखा था
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भारत में ब्रितानी शासन के ख़िलाफ़ हुए 1857 के विद्रोह में अहम भूमिका निभाने वाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की एक महत्वपूर्ण चिट्ठी लंदन में ब्रिटिश लाइब्रेरी के आर्काइव्स में मिली हैं.

झांसी की रानी ने 1857 के विद्रोह से कुछ ही देर पहले यह पत्र ईस्ट इंडिया कंपनी के गवर्नर जनरल लॉर्ड डलहौज़ी को लिखा था.

लंदन में आजकल विक्टोरिया एंड एल्बर्ट म्यूज़ियम की महाराजा प्रदर्शनी की रिसर्च क्यूरेटर दीपिका अहलावत ने इस पत्र के बारे में प्रकाश डाला है.

लॉर्ड डलहौज़ी को लिखा पत्र

दीपिका अहलावत का कहना है, " ये चिट्ठी उन दस्तावेज़ों का हिस्सा है जो बॉरिंग कलेशन के नाम से जाने जाते हैं. ये दस्तावेज़ एक ब्रितानी अधिकारी - लेविन बेंथम बॉरिंग के नाम से जाने जाते हैं जिन्होंने भारत के राजाओं-महाराजाओं के बारे में दस्तावेज़, तस्वीरें और अन्य चीज़े एकत्र की थीं."



झांसी की रानी के इस पत्र में उस रात का विवरण है जब उनके पति की मृत्यु हुई थी.

लक्ष्मीबाई ने पत्र में लिखा है कि डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स के डर से उनके पति ने विधिवत ढंग से पुत्र को गोद लिया था ताकि उसे झांसी का अगला राजा स्वीकार किया जाए लेकिन लॉर्ड डलहौज़ी ने इसे स्वीकार नहीं किया.

वर्ष 1857 में भारत में ब्रितानी शासन के ख़िलाफ़ भड़के विद्रोह में झांसी की रानी ने जंग के मैदान में ख़ुद अपने सैनिकों का नेतृत्व किया था और लड़ते-लड़ते मारी गईं थीं.

करीना का राज



छोटे नवाब के अलावा भी कोई है, जिसका नाम करीना कपूर के दिल पर लिखा था। नहीं, हम शाहिद कपूर की बात नहीं कर रहे हैं, बल्कि हॉलिवुड हीरो सिल्विस्टर स्टेलोन के बारे में बता रहे हैं। करीना और सिल्विस्टर के बीच कोई चक्कर नहीं है, लेकिन फिर भी करीना के दिल पर उनका नाम लिखा था। दरअसल, हाल में अपनी अगली फिल्म 'थ्री इडियट्स' के एक प्रोग्राम में करीना ने टी-शर्ट पहनी थी, जिस पर सिल्विस्टर का फोटो छपा था। हो भी क्यों न, बेबो की पिछली फिल्म 'कमबख्त इश्क' में सिल्विस्टर ने उन्हें एक सीन में गुंडों से जो बचाया था। उस सीन में ही पता चल गया था कि करीना उनकी कितनी बड़ी फैन हैं। खैर, आमिर अभिनीत फिल्म 'थ्री इडियट्स' में बेबो एक रोमांटिक सीन भी कर रही हैं। इस फिल्म को राजू हिरानी ने निर्देशित किया है, जो जल्द ही रिलीज होगी।

प्यार बिकता है बोलो खरीदोगे


आप भले यकीन न करें लेकिन आस्ट्रेलिया में लोग ऐसा ही मानते हैं। आस्ट्रेलिया के एक अर्थशास्त्री प्रो. पाल फ्रिटर्स के मुताबिक जिंदगी की हरेक घटना से फायदा-नुकसान जुड़ा होता है। शादी से जहां आस्ट्रेलियाई पुरुष को 32 हजार डालर (16 लाख रुपये) का फायदा होता है वहीं महिला को 16 हजार डालर (8 लाख रुपये) का। लेकिन पुरुषों को तलाक की एक बड़ी कीमत अदा करनी पड़ती है। तलाक से पुरुष को 1 लाख दस हजार डालर (55 लाख रुपये) की चपत लगती है वहीं महिला को इससे महज 9 हजार डालर (साढ़े चार लाख रुपये) का नुकसान झेलना पड़ता है। हाल ही में फ्रिटर्स को इकानामिक सोसाइटी आफ आस्ट्रेलिया द्वारा 40 साल से कम उम्र का सर्वश्रेष्ठ अर्थशास्त्री घोषित किया गया था। फ्रिटर्स क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी आफ टेक्नोलाजी में प्रोफेसर हैं। फ्रिटर्स ने अपने अनोखे शोध में खुशी और गम के मूल्य का आकलन किया। इसके लिए फ्रिटर्स ने 2001 से लेकर अब तक हर साल 10 हजार लोगों के जीवन की हर बड़ी घटना का अध्ययन किया। प्रो. फ्रिटर्स ने बताया, ये वे लोग हैं जिनके जीवन में अनचाही घटनाएं घटित होती हैं। वे उन चीजों का चुनाव नहीं करते क्योंकि ये घटनाएं घटित होने वाली होती हैं। इसके बाद हम घटना के पहले व बाद में खुशी-गम का तुलनात्मक अध्ययन करते हैं। कहां फायदा कहां नुकसान : फ्रिटर्स के अनुसार बच्चे का जन्म खुशी और गम दोनों लेकर आता है। बच्चे के जन्म से पहले अभिभावक खुश होते हैं जबकि जन्म के कुछ दिनों बाद खुशी कम होती जाती है। इसके लिए भी फ्रिटर्स ने पैसों को जिम्मेदार बताया है। बच्चे के जन्म पर मां को 8700 डालर (करीब चार लाख रुपये) खर्चने पड़ते हैं जबकि पिता को 32,600 डालर (करीब 15 लाख रुपये)। वहीं जीवनसाथी या बच्चे की मौत से महिला को 1 लाख 30 हजार 900 डालर (करीब 60 लाख रुपये) का दुख पहुंचता है वहीं पुरुष को 6 लाख 27 हजार 300 डालर (लगभग 2 करोड़ 89 लाख रुपये) का। कैसे किया अध्ययन : लोग अपने जीवन से कितने संतुष्ट है, इसका अध्ययन करने के लिए फ्रिटर्स ने 0-10 तक का स्केल तैयार किया। सर्वे के दौरान ज्यादातर लोगों ने खुद की जिंदगी को 8 अंक दिया। लेकिन उन लोगों के जीवन में एक बड़ी घटना होने या आमदनी में परिवर्तन के बाद उन्होंने खुद को कम अंक दिए। आमदनी में बढ़ोतरी या कमी जीवन में होने वाली बड़ी घटनाओं (शादी, बच्चा, तलाक, मृत्यु) के असर को कम कर सकती है। इससे हम जान सकते हैं कि ऐसी किसी घटना के असर को कम करने के लिए हमें कितने धन की जरूरत होगी। यानी पैसा है तो प्यार और खुशी खरीदी जा सकती है।

फिर कौन कहेगा, पकी है बासमती!

घर हो या कोई रेस्तरां। खुशबूदार बासमती का लजीज स्वाद अब जल्द ही बीते जमाने की कहानी हो सकती है। थाली में परोसे गए महंगे बासमती चावल का न तो दाना लंबा रहेगा न वह सुगंध, जिसे तपिश मिलते ही पूरे घर में महक जाया करता था। खासकर पंजाब व दक्षिण उत्तर प्रदेश में पैदा होने वाली मशहूर पूसा सुगंध बासमती व हरियाणा की तारावटी का बासमती चावल अपने स्वाद व खुशबू की पहचान को तरसेगा। बासमती चावल की अधिकतर अच्छी किस्मों की गुणवत्ता व आकार में कमी का कारण मौसम में बदलाव है। इसके उत्पाद वाले क्षेत्रों के तापमान में औसतन एक से दो डिग्री सेल्सियस वृद्धि हो चुकी है। भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र नई दिल्ली के वैज्ञानिकों के लंबे शोध के बाद यही निष्कर्ष निकले हैं। हालांकि केंद्र ने कुछ अर्सा पहले कंट्रोल कंडीशंस स्टडी में यह नतीजा पा लिया था कि महक देने वाले कृषि उत्पाद बढ़ते तापमान के चलते सबसे पहले और सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे, लेकिन हरियाणा, पंजाब व उत्तर प्रदेश में चावल पर खेतों में किए गए व्यावहारिक शोध कृषकों के लिए खतरे की घंटी है
। चावल के साथ-साथ अपनी खुशबू के लिए मशहूर असम की चाय भी अपना जायका खो देगी। दिल्ली के कृषि अनुसंधान केंद्र व असम के टोकलई रिसर्च स्टेशन जोरहट का संयुक्त शोध भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचा है कि चाय में भी वह बात नहीं रहेगी। दिल्ली के वैज्ञानिकों ने शिमला में पर्यावरण में हो रहे बदलाव पर कृषि उत्पाद में शोध नतीजों को आंकड़ों व तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया। लेकिन तथ्यों का दूसरा पहलू यह भी है कि जिस तरह से भारत में कार्बन डायक्साइड गैस उत्सर्जन बढ़ रहा है उसी के कारण गेहूं ही नहीं बल्कि तेल के बीज का उत्पादन बढ़ेगा। यानी पैदावार तो ज्यादा हो जाएगी, लेकिन गुणवत्ता घट जाएगी। कृषि अनुसंधान केंद्र दिल्ली के वरिष्ठ वैज्ञानिक एच पाठक का कहना है कि तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के कारण सरसों, सोयाबीन, आलू व गेहूं की पैदावार 7 प्रतिशत कम हो जाएगी और ज्यों-ज्यों तापमान बढ़ेगा फसल कम होती जाएगी। और ठीक 11 वर्ष के बाद 2020 में इसका असर तेजी से दिखेगा व 2100 में यह उत्पादन 40 फीसदी घट चुका होगा। कुल मिलाकर भारत की अगली पीढ़ी को सब्जियां, चावल, सरसों जैसी फसलें सहज ही उपलब्ध नहीं होगी। सबसे ज्यादा असर धान पर होगा। धान का आकार व गुणवत्ता दोनों नष्ट हो जाएंगी। शोध बताता है कि हरियाणा व पंजाब की पूसा सुगंध बासमती (1121), न्यूनतम व अधिकतम का औसतन तापमान यदि 25 से 26 डिग्री सेल्सियस से एक डिग्री भी ज्यादा जाता है तो इस धान में न तो महक होगी न ही पकने पर चावल का दाना अलग अलग खिलेगा। यह वही किस्म है जिसकी उत्तरी भारत के किसानों को सबसे ज्यादा आमदनी होती है। तारावटी व पूसा की धान की कीमत ही 2300 रुपये प्रति क्विंटल मिलती है। जबकि अमूमन धान करीब 800 रुपये प्रति क्विंटल बिकता है। चावल की यह किस्में एक हेक्टेयर में पांच टन पैदा होती है, लेकिन किसानों को मालामाल करने वाला यह सफेद सोना अब फायदे का सौदा नहीं रहने वाला। दिल्ली के कृषि अनुसंधान केंद्र ने देश में होने जा रहे अन्न संकट के पीछे वैज्ञानिक तर्क देते हुए खतरे से आगाह भी किया है। वैज्ञानिक मानते हैं कि पर्याप्त बारिश न होने से सूखे व अकाल की नौबत आ चुकी है। गत 50 साल में देश में 15 बड़े अकाल पड़ चुके हैं। इसके कारण बारिश से पनपने वाली फसलें तबाह हुई हैं। हर 8 से 9 वर्ष में एक तेज सूखे ने फसलों की तबाही के साथ भुखमरी की नौबत भी लाई है। केंद्र के वैज्ञानिक बताते हैं कि पूरे भारत में वर्ष 2020 तक 0.5 से 1.2 डिग्री सेल्सियस तापमान और बढ़ जाएगा, वर्ष 2050 में यह 3.16 डिग्री सेल्सियस वृद्धि तापमान में होगी। रबी से मौसम, अर्थात सर्दी में यह तापमान और बढ़ेगा जबकि वर्षा के मौसम (खरीफ) में यह कम बढ़ेगा। शोध रबी की फसल के लिए अत्यंत चिंताजनक है। एच पाठक कहते हैं कि 1, 2 या 3 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ा तो धान की पैदावार क्रम से 5.4 प्रतिशत, 7.4 व 25.1 फीसदी कम हो जाएगी।

आज रात आसमानी आतिशबाजी

मंगलवार की रात वर्ष की सर्वश्रेष्ठ कुदरती आसमानी आतिशबाजी का नजारा देखने को मिलेगा। अमावस्या के दूसरी रात को होने जा रही इस (लियोनिड शावर) खगोलीय घटना में 400 उल्कापात प्रतिघंटा होने की संभावना है। पर्वतीय क्षेत्र, रेगिस्तान व खुले समुंदर से इस खगोलीय घटना का लुत्फ उठाया जा सकता है। भारतीय तारा भौतिकी संस्थान बंगलुरु के वैज्ञानिक प्रो. आरसी कपूर ने बताया कि 17 नवम्बर की आधी रात के बाद यह खगोलीय घटना होगी, जो तीन बजे से पांच बजे के बीच चरम पर रहेगी। इस घटना में 200 से 500 उल्कापात प्रति घंटा की रफ्तार से देखे जाने की संभावना है। भारत समेत नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान व अरब देशों में इस आसमानी आतिशबाजी का शानदार नजारा देखने को मिल सकता है। खगोल प्रेमियों समेत उल्कापात की घटनाओं पर शोधरत वैज्ञानिकों को इस घटना का बेसब्री से इंतजार है। अमावस्या की दूसरी रात होने के कारण आसमान घुप अंधेरे से घिरा रहेगा, जिसके चलते इस कुदरती आतिशबाजी को पिछले कुछ वर्षो की तुलना में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। उन्होंने बताया कि पृथ्वी इन दिनों अपने कक्ष से होकर पूर्व में टेम्पलटन नामक पुल्छल तारे द्वारा छोड़े गये मलवे के करीब पहुंच रही है। इस कारण यह खगोलीय घटना होने जा रही है। प्रो. श्री कपूर ने बताया कि यूं तो पूरे वर्ष उल्कापात की घटनाएं होती हंै लेकिन कभी कभार ही इस तरह की स्थिति बन पाती है, जब उल्कापातों का मनमोहक नजारा देखने को मिलता है। उन्होंने बताया कि आकर्षक उल्कापात की आसमानी आतिशबाजी प्रत्येक 33 वर्ष में होती है। वर्ष 1933, 1966 व 1999 में हुई उल्कापात की घटनायें यादगार रहीं हैं। लियोनिड यानी सिंह राशि के तारा मंडल समूह पर होने जा रही इस आतिशबाजी को लियोनिड शावर के नाम से जाना जाता है।

पैसों के लिए अब्बा ने मुझे बेच दिया


वाशिंगटन, एजेंसी : पाकिस्तानी आतंकी मुहम्मद अजमल अमीर इमान उर्फ अजमल कसाब ने कहा है कि उसके अब्बा ने उसे पाकिस्तान के आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा को बेच दिया था। टेरर इन मुंबई शीर्षक वाली टीवी डाक्यूमेंटरी में यह खुलासा किया गया है। इस डाक्यूमेंटरी में मुंबई हमले के दौरान आतंकियों और पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं के बीच फोन पर हुई बातचीत के ऐसे टेप भी शामिल हैं, जिन्हें पहले कभी नहीं सुना गया। इसके साथ ही पुलिस और अजमल के बीच बातचीत के वीडियो फुटेज भी हैं। पिछले साल 26 नवंबर को मुंबई हमले के दौरान दस पाकिस्तानी आतंकियों में से सिर्फ अजमल ही जिंदा पकड़ा गया था। अजमल और उसके एक साथी ने मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस रेलवे स्टेशन पर गोलीबारी कर 50 से ज्यादा लोगों की हत्या कर दी थी। टेरर इन मुंबई डाक्यूमेंटरी गुरुवार को एचबीओ चैनल पर प्रसारित होगी। इसमें अजमल से पूछताछ का ब्यौरा इस तरह है:- सवाल-तुम लश्कर-ए-तैयबा से कैसे जुड़े? अजमल- उन लोगों ने बहुत पैसे दिए थे। अब्बा ने कहा कि हमें भी पैसे चाहिए। हम और गरीब नहीं रहना चाहते। पैसे होने पर तुम्हारे भाइयों और बहनों की शादी हो पाएगी। इन लोगों को देखो, अच्छी जिंदगी जी रहे हैं। तुम भी इनकी तरह हो सकते हो। क्या तुम्हारे अब्बा ने ऐसा कहा? अजमल- हां, मैंने जो कुछ कहा बिल्कुल सही कहा। तुम्हारे अब्बा क्या करते हैं? अजमल- वह फेरी लगाकर खाने-पीने का सामान बेचते हैं। सवाल- उन्होंने तुम्हें लश्कर के हवाले कैसे किया? क्या उन लोगों (आतंकियों) ने तुम्हारे बैंक खाते में पैसे डाले? अजमल- मेरा कोई खाता नहीं है। उन्होंने अब्बा को पैसे दिए थे। सवाल- कितने पैसे दिए? अजमल- मुझे नहीं मालूम। कुछ लाख हो सकते हैं। पूछताछ में एक जगह अजमल बताता है कि आतंकियों को किस तरह प्रशिक्षण दिया जाता है। पुलिस- तुम्हें कितने दिनों तक प्रशिक्षण दिया गया? अजमल- तीन माह का। मेरे साथ 24-25 लोग थे। पुलिस- वे कहां के थे? अजमल- उन्होंने यह नहीं बताया। मैं सिर्फ एक के बारे में जानता हूं। वह लाहौर का था, उससे मेरी दोस्ती हो गई थी। पुलिस- क्या वे तुम लोगों को आपस में बातचीत नहीं करने देते थे? अजमल- हमें एक-दूसरे से बात करने की मनाही थी। इस पर बहुत सख्ती बरती जाती थी। जब प्रशिक्षण पूरा हो जाता था तो वे कहते थे कि यह लड़का अब तैयार है। पुलिस- जिन लोगों की तुम हत्या करते थे, क्या तुम्हें दया नहीं आती थी? अजमल- आती थी, लेकिन वे कहते थे कि तुम्हें बड़ा आदमी बनना है और जन्नत में जगह पानी है तो ऐसा करना होगा। डाक्यूमेंटरी में ट्राइडेंट ओबेराय होटल के बाथरूम में छिपे एक अन्य आतंकी फहदुल्ला और पाकिस्तान में बैठे उसके आका की भी बातचीत है। पाकिस्तान में बैठा आतंकियों का आका फहदुल्ला से कहता है- याद रहे, तुम्हें किसी भी हाल में गिरफ्तार नहीं होना है। फहदुल्ला! मेरे भाई क्या तुम बाहर निकलकर लड़ सकते हो? फहदुल्ला की कमजोर आवाज सुनाई देती है- मेरे पास ग्रेनेड नहीं हैं। दूसरी तरफ से निर्देश आता है- घबराओ नहीं। बहादुर बनो, भाई। तुम्हारा अभियान सफलतापूर्वक पूरा हो इसके लिए तुम्हें जान देनी होगी।

नौकरी के बाद भी नौकरी

देहरादून इस राज्य में युवाओं के लिए भले की नौकरी मिलना बेहद कठिन हो पर बड़े अफसरों को साठ साल की उम्र पूरी करने पर बड़े ओहदे मिल रहे हैं। खास बात ये भी है ये बड़े अफसर नए पद पर ज्वाइन करने को वीआरएस की भी सहारा ले रहे हैं। सरकार ने आमतौर पर सेवानिवृत्ति की उम्र साठ साल तय की है। माना यही जाता है कि जीवन के इस पड़ाव पर आने के बाद व्यक्ति को आराम की मुद्रा में आना चाहिए। इसके साथ ही कुछ खास पदों के लिए उम्र की सीमा 65 साल तक रखी गई है। इनमें से अधिकांश पद संवैधानिक हैं। उत्तराखंड में एक नया चलन शुरू हुआ है। बड़े अफसर रिटायर होने से पहले ही अपने लिए नए पद तलाश कर ले रहे हैं। कुछ ने सेवानिवृत्ति के अगले रोज ही नया पद ज्वाइन किया और बदस्तूर सेवा में बने हैं। कुछ बड़े अफसरों ने पहले नई नौकरी की व्यवस्था बनाई और फिर रियाटर होने से कुछ माह पहले स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) ले नया ओहदा ज्वाइन कर लिया। शासन स्थित सूत्रों ने बताया कि बड़े अफसरों में सबसे पहले आईएएस अफसर डा. आरएस टोलिया ने सूबे के मुख्य सचिव जैसे ओहदे को सेवानिवृत्त होने से तकरीबन दो साल पहले वीआरएस लेकर छोड़ दिया। इसके तुरंत बाद उन्होंने सूबे के पहले मुख्य सूचना आयुक्त का पद ज्वाइन कर लिया। इसके बाद मुख्य सचिव एसके दास ने भी यही रास्ता अपनाया। अपनी सेवानिवृत्ति का समय समाप्त होने से महज एक माह पहले ही उन्होंने वीआरएस ले लिया। इससे पहले राज्य लोक सेवा आयोग में बतौर अध्यक्ष उनकी ताजपोशी तय हो चुकी थी। सेवा निवृत्ति के बाद आईएएस अफसर वीसी चंदोला को राज्य निर्वाचन आयोग में राज्य निर्वाचन आयुक्त का ओहदा मिला हुआ है। पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी के सचिव रहे आईएएस अफसर तारकेंद्र वैष्णव और संयुक्त सचिव रहे जेपी भट्ट को रिटायर होते ही मुख्यमंत्री का ओएसडी बना दिया गया। आईएएस सेवा से वीआरएस लेने वाले अफसर आरके सिंह को मुख्यमंत्री का सलाहकार (उच्च शिक्षा और पर्यटन) बनाया गया है। अब रिटायर होने वाले अफसरों को नए पदों पर समायोजित करने को राज्य के तीसरे वित्त आयोग का गठन किया गया है। इसमें सबसे पहले अभी हाल में ही राज्य वित्त सेवा से सेवानिवृत्त अफसर टीएन सिंह को बतौर विशेष कार्याधिकारी नौकरी दे दी गई। एक अन्य सेवा निवृत्त अफसर एनएन थपलियाल को वित्त विभाग में ओएसडी बना दिया गया। उच्च पदस्थ सूत्रों की मानें तो यह सिलसिला अभी थमा नहीं है। मुख्य सचिव इंदुकुमार पांडे भी इसकी अगली कड़ी बनने जा रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि अगले माह दिसंबर में रिटायर हो रहे श्री पांडे को राज्य के तीसरे वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाया जाना तय कर लिया है। श्री पांडे अवकाश पर हैं और लौटते ही वीआरएस लेकर नया पद ज्वाइन करने वाले हैं। यहां बता दें कि नए पदों का वेतन और सुविधाएं सेवानिवृत्ति वाले पद से किसी भी स्तर पर कम नहीं हैं।

सियासी दंगल में भी उतर सकते हैं खली


व‌र्ल्ड रेसलिंग एंटरटेनमेंट (डब्ल्यूडब्ल्यूई) में देश का नाम रोशन करने वाले दलीप सिंह राणा उर्फ द ग्रेट खली को राजनीति में उतरने से परहेज नहीं है। उन्होंने कहा, मौका मिला तो राजनीति में आने पर भी विचार कर सकता हूं। पहाड़ी युवाओं के लिए बहुत कुछ करने की खली की तमन्ना है। इसके लिए उन्होंने बाकायदा काम भी शुरू कर दिया है। अभी वह अपनी कार्ययोजना का खुलासा करने से बच रहे हैं। उनका कहना है कि इसका खुलासा वह समय आने पर करेंगे। राजनीति में आने का कोई शौक नहीं है, लेकिन मौका मिला तो वह इसके बारे में भी विचार कर सकते हैं। खली सोमवार को हिमाचल के सोलन में पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जनता के साथ-साथ देश-विदेश के लोगों ने उन्हें इतना प्यार दिया है, जिसे वह कभी नहीं भुला सकते। इससे पूर्व खली का सोलन पहुंचने पर जोरदार स्वागत किया गया।

ताड़ी पीकर भूख मिटाते बच्चे


कटिहार जिले के ग्रामीण क्षेत्रों के गरीब बच्चे दूध की जगह ताड़ी पी रहे हैं। उनके अभिभावकों का मानना है कि ताड़ी पीने के बाद नशे की अवस्था में मजदूरी करने में उन्हें दिक्कत नहीं होती है। ताड़ी इन मासूमों के लिए पेट की ज्वाला शांत करने का जरिया बन गई है। लगता है इनके लिए तमाम सरकारी योजनाएं भी बेकार साबित हो रही हंै।

कहां तेंदुलकर,कहां ठाकरे!

जिस दिन पूरा देश सचिन की 20 वर्षीय उपलब्धियों पर उनकी शान में कसीदे काढ़ रहा था, उसी दिन शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे उनके एक देशभक्तिपूर्ण बयान पर उन्हें एक धिक्कार भरा पत्र लिखने में व्यस्त थे। ठाकरे और सचिन, दोनों ही मराठी मानुष हैं। पर एक के सीमित सोच के चलते मराठी मानुष महाराष्ट्र में भी सिमटते जा रहे हैं, तो दूसरे की खूबियों के चलते उनकी बढ़ी प्रतिष्ठा के लिए दुनिया की सीमाएं भी छोटी पड़ती जा रही हैं। शिवसेना प्रमुख ठाकरे और क्रिकेट के बादशाह तेंदुलकर मंुबई के बांद्रा क्षेत्र के निवासी हैं।
बांद्रा के कलानगर क्षेत्र में बाल ठाकरे और सचिन के पिता रमेश तेंदुलकर को सरकारी प्लाटों का आवंटन हुआ था, क्योंकि ठाकरे कार्टूनिस्ट थे, तो रमेश तेंदुलकर उपन्यासकार। थोड़ा पीछे जाएं तो ठाकरे के पिता प्रबोधनकार ठाकरे का भी साहित्य से गहरा जुड़ाव रहा है। बांद्रा से निकल कर ठाकरे और सचिन दोनों ने ही दादर के शिवाजी पार्क से अपने करियर की शुरुआत की।ठाकरे ने करीब 42 साल पहले शिवाजी पार्क में दशहरे के दिन विशाल रैली करने की परंपरा डाली। इन्हीं रैलियों में अपनी तेजतर्रार शैली में भाषण देकर वह मुंबई महानगरपालिका से लेकर मंत्रालय तक की सत्ता पर काबिज होने में सफल रहे। इसी शिवाजी पार्क में सचिन तेंदुलकर भी रमाकांत आचरेकर सर की छत्रछाया में क्रिकेट के गुर सीखते हुए आगे बढ़े। इतनी समानताओं के बावजूद दोनों के सोच में कहीं से समानता नहीं दिखती। ठाकरे के सीमित सोच का ही परिणाम है कि गत विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी वह माहिम विधानसभा क्षेत्र भी गंवा बैठी, जिसमें शिवसेना प्रमुख के रणनीति का केंद्र रहा सेना भवन खड़ा है। मराठी बहुल दादर क्षेत्र भी इसी माहिम विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है। यह सीट इस बार ठाकरे परिवार से ही निकले राज ठाकरे की पार्टी ने जीती है। वास्तव में यह हार ठाकरे के हाथ से फिसलते मराठी वोट बैंक का प्रतीक मानी जा सकती है, जिसे रिझाने-फुसलाने के लिए बाल ठाकरे अब उस मराठी मानुष पर भी प्रहार करने से नहीं चूक रहे हैं, जो देश के साथ-साथ मुंबई का नाम भी सारी दुनिया में रोशन करता आ रहा है। सचिन को लिखे ठाकरे के धिक्कारपूर्ण पत्र से आम मराठी मानुष भी सन्न है। ठाकरे के पत्र ने यह प्रश्न भी खड़ा कर दिया है कि यदि लता मंगेशकर, सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर जैसी हस्तियां सिर्फ अपनी मातृभाषा के दायरे में रह कर अपने क्षेत्र में काम करते तो क्या वे सारी दुनिया की वाहवाही लूट पाते? ठाकरे की बात को सचिन की आलोचना के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। उन्होंने एक अभिभावक की तरह सलाह मात्र दी है। संजय राउत, शिवसेना नेता सचिन भले ही मराठी हों, लेकिन पूरे देश के लिए खेलते हैं। सचिन का बयान जहां पूरे देश को एक सूत्र में पिरोता है, वहीं ठाकरे इस मामले में गंदी राजनीति को हवा दे रहे हैं। अशोक चह्वाण, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री सचिन ने बाल ठाकरे को क्लीन बोल्ड कर दिया है। इस बात को लेकर वह अपनी झुंझलाहट दिखा सकते हैं, लेकिन यह सच्चाई है कि ठाकरे की पारी अब समाप्त हो चुकी है। सलमान खुर्शीद कांग्रेस नेता सचिन का बयान भारतीय सोच और परंपरा को दर्शाता है, जबकि ठाकरे का बयान देश की एकता व अखंडता पर हमला है। सचिन अच्छे खिलाड़ी ही नहीं, अच्छे नागरिक भी हैं। नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री सचिन राष्ट्रीय हीरो हैं। बाल ठाकरे कौन होते हैं उन पर टिप्पणी करने वाले। ऐसी बेकार की टिप्पणी करना ठाकरे की आदतों में शुमार है। लालू प्रसाद यादव, राजद अध्यक्ष

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