कुमार मुकेश,
भारत में छिपकलियों की कोई भी प्रजाति जहरीली नहीं है, लेकिन उनकी त्वचा में जहर जरूर होता है। यही कारण है कि छिपकलियों के काटने से जहर नहीं फैलता, बल्कि जब यह किसी खाने-पीने की चीज (दूध, सब्जी आदि) में गिर जाती है तो वह जहरीला हो जाता है। यह बात जोधपुर के भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के सेवानिवृत्त सहायक निदेशक डॉ. एनएस राठौड़ ने कही। यहां दयानंद महाविद्यालय में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में बतौर मुख्य वक्ता आए डॉ. राठौड़ ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि छिपकलियों की 3200 प्रजातियां हैं। इनमें से सिर्फ दो ही प्रजाति हीलोडरमा सस्पेक्टम व हीलोडरमा हरीडियम ही जहरीली हैं। यह दोनों ही प्रजाति उत्तरी अमेरिका व मैक्सिको में पाई जाती हैं। उन्होंने बताया कि दोनों जहरीली छिपकलियों का रंग पीला व गुलाबी होता है, जिनपर काले धब्बे होते हैं। उन्होंने बताया कि ये दोनों जहरीली छिपकलियां भी अपने इस जहर का प्रयोग अपने शिकार को बेहोश करने के लिए करती हैं न कि इंसानों को काटने के लिए। भारत में पाई जाने वाली छिपकलियों की 165 प्रजातियों में से एक भी जहरीली नहीं है, लेकिन इनकी त्वचा में जहर जरूर है। जब यह किसी वस्तु में गिरती है तो इनकी त्वचा में मौजूद जहर की पोटली फट जाती हैं और वह वस्तु भी जहरीली हो जाती है। दुश्मन नहीं मित्र है छिपकली छिपकलियों की वजह से हम कई प्रकार की बीमारियों से बचते हैं। घरों में पाई जाने वाली छिपकलियां कीड़े, मक्खी और खासकर दीमक को खा जाती हैं। यदि घर में छिपकली न हो तो उस घर में कीड़ों व मक्खियों से फैलने वाली बीमारियां ज्यादा होंगी और उस घर के दरवाजे व लकड़ी से बने अन्य फर्नीचर दीमक लगने से जल्दी नष्ट हो जाएंगे। छत्रपति शिवाजी की सेना में थी गोरपड़ डॉ. राठौड़ ने बताया कि हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में गौ, पाडा, गोयरा और गोरपड़ के नाम से विख्यात छिपकलियों की वेरानस बैंगालेंसिज प्रजाति की न तो त्वचा में और न ही कहीं और जहर है जबकि इनका खौफ सबसे ज्यादा है। उन्होंने बताया कि इनकी पकड़ सबसे ज्यादा है। इसी कारण इसे छत्रपति शिवाजी ने अपनी सेना में इनको शामिल किया था। इनके पंजों पर रस्सी बांधकर इनकी सहायता से किलों पर चढ़ाई की जाती थी। कहां पर कौन-कौन सी छिपकली मिलती है ाघरों में पाई जाने वाली छिपकलियों को हेमी डाइटिलकस ब्रूक कहते हैं। ापंजाब, हरियाणा व राजस्थान में गौ के नाम से विख्यात छिपकली को वेरानस बैंगालेंसिज छिपकली कहते हैं। ागो की ही तरह वेरानस सालवेटोर छिपकली बंगाल व असम में पाई जाती है। ागो की ही तरह वेरानस फ्लेविसेल्फ छिपकली हरियाणा में मिलती है, जो तालाब की मिट्टी में बिल बनाती है।
भारत में छिपकलियों की कोई भी प्रजाति जहरीली नहीं है, लेकिन उनकी त्वचा में जहर जरूर होता है। यही कारण है कि छिपकलियों के काटने से जहर नहीं फैलता, बल्कि जब यह किसी खाने-पीने की चीज (दूध, सब्जी आदि) में गिर जाती है तो वह जहरीला हो जाता है। यह बात जोधपुर के भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के सेवानिवृत्त सहायक निदेशक डॉ. एनएस राठौड़ ने कही। यहां दयानंद महाविद्यालय में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में बतौर मुख्य वक्ता आए डॉ. राठौड़ ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि छिपकलियों की 3200 प्रजातियां हैं। इनमें से सिर्फ दो ही प्रजाति हीलोडरमा सस्पेक्टम व हीलोडरमा हरीडियम ही जहरीली हैं। यह दोनों ही प्रजाति उत्तरी अमेरिका व मैक्सिको में पाई जाती हैं। उन्होंने बताया कि दोनों जहरीली छिपकलियों का रंग पीला व गुलाबी होता है, जिनपर काले धब्बे होते हैं। उन्होंने बताया कि ये दोनों जहरीली छिपकलियां भी अपने इस जहर का प्रयोग अपने शिकार को बेहोश करने के लिए करती हैं न कि इंसानों को काटने के लिए। भारत में पाई जाने वाली छिपकलियों की 165 प्रजातियों में से एक भी जहरीली नहीं है, लेकिन इनकी त्वचा में जहर जरूर है। जब यह किसी वस्तु में गिरती है तो इनकी त्वचा में मौजूद जहर की पोटली फट जाती हैं और वह वस्तु भी जहरीली हो जाती है। दुश्मन नहीं मित्र है छिपकली छिपकलियों की वजह से हम कई प्रकार की बीमारियों से बचते हैं। घरों में पाई जाने वाली छिपकलियां कीड़े, मक्खी और खासकर दीमक को खा जाती हैं। यदि घर में छिपकली न हो तो उस घर में कीड़ों व मक्खियों से फैलने वाली बीमारियां ज्यादा होंगी और उस घर के दरवाजे व लकड़ी से बने अन्य फर्नीचर दीमक लगने से जल्दी नष्ट हो जाएंगे। छत्रपति शिवाजी की सेना में थी गोरपड़ डॉ. राठौड़ ने बताया कि हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में गौ, पाडा, गोयरा और गोरपड़ के नाम से विख्यात छिपकलियों की वेरानस बैंगालेंसिज प्रजाति की न तो त्वचा में और न ही कहीं और जहर है जबकि इनका खौफ सबसे ज्यादा है। उन्होंने बताया कि इनकी पकड़ सबसे ज्यादा है। इसी कारण इसे छत्रपति शिवाजी ने अपनी सेना में इनको शामिल किया था। इनके पंजों पर रस्सी बांधकर इनकी सहायता से किलों पर चढ़ाई की जाती थी। कहां पर कौन-कौन सी छिपकली मिलती है ाघरों में पाई जाने वाली छिपकलियों को हेमी डाइटिलकस ब्रूक कहते हैं। ापंजाब, हरियाणा व राजस्थान में गौ के नाम से विख्यात छिपकली को वेरानस बैंगालेंसिज छिपकली कहते हैं। ागो की ही तरह वेरानस सालवेटोर छिपकली बंगाल व असम में पाई जाती है। ागो की ही तरह वेरानस फ्लेविसेल्फ छिपकली हरियाणा में मिलती है, जो तालाब की मिट्टी में बिल बनाती है।