चंडीगढ़, -प्रकाश सिंह बादल ने बुधवार को पंजाब के मुख्यमंत्री के तौर पर पांचवीं बार शपथ ली। लगातार दूसरी बार अकाली-भाजपा गठबंधन सरकार के उप मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले उनके पुत्र सुखबीर बादल सहित कैबिनेट रैंक के 17 अन्य मंत्रियों ने भी आज शपथ ग्रहण की।
चंडीगढ़ से करीब 25 किलोमीटर दूर चप्पड़ चिड़ी में आयोजित शपथग्रहण समारोह में राज्यपाल शिवराज वी पाटिल ने बादल [मुख्यमंत्री], उनके 50 वर्षीय पुत्र सुखबीर [उप मुख्यमंत्री] और कैबिनेट रैंक के 16 मंत्रियों को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। कैबिनेट रैंक के 16 मंत्रियों में से 14 शिअद से और चार भाजपा से हैं। शपथ ग्रहण समारोह में भाजपा, तृणमूल काग्रेस, राकापा, जनता दल [यू] और इनेलो सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता शामिल हुए।
इस अवसर पर मौजूद नेताओं में लालकृष्ण आडवाणी, नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह, वसुंधरा राजे, नवजोत सिद्धू [सभी भाजपा से], मुकुल राय, रचपाल सिंह, केडी सिंह [तृणमूल काग्रेस], केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल [राकापा], जनता दल यू के प्रमुख शरद यादव और इंडियन नेशनल लोकदल [इनेलो] के नेता ओमप्रकाश चौटाला भी सम्मिलित थे। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल भी इस मौके पर मौजूद थे।
बादल ने मंत्रिमंडल के गठन का काम आज एक साथ ही पूरा कर दिया जिसमें मुख्यमंत्री सहित 18 मंत्री ही हो सकते हैं। अकाली-भाजपा गठबंधन ने विधानसभा चुनाव में 68 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत प्राप्त किया था। काग्रेस को केवल 46 सीटें मिली थीं। बादल सीनियर ने 1997 से 2002 तक और 2007 से 2012 तक दो बार पाच साल का कार्यकाल पूरा किया है।
गठबंधन की आठ महिला विधायकों [शिअद 6 और भाजपा 2] में से केवल बीबी जागीर कौर को मंत्रिमंडल में शामिल किया है जो एसजीपीसी की पूर्व अध्यक्ष हैं। मंत्रिमंडल में बादल परिवार के चार सदस्य हैं। बादल सीनियर और उनके पुत्र के अतिरिक्त अन्य पारिवारिक सदस्य अदेश प्रताप सिंह कैरों [बादल सीनियर के दामाद] और विक्रम सिंह मजीठिया [सुखबीर के साले] हैं।
बादल ने ज्यादातर अपने पूर्व मंत्रियों में भरोसा जताया और सरकार में केवल चार नए चेहरों को ही जगह दी है। इनमें भगत चुनी लाल और अनिल जोशी [दोनों भाजपा से तथा सुरजीत सिंह रखड़ा और शरणजीत सिंह ढिल्लों- दोनों शिअद] हैं। रखड़ा ने पंजाब काग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह के पुत्र रनिंदर को हराया था। लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष चरणजीत सिंह अटवाल को नवगठित विधानसभा का कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
सन् 1966 में पंजाब के पुनर्गठन के बाद से एसएडी ने भाजपा के साथ मिलकर सत्ता में लगातार दूसरी बार आकर एक रिकार्ड बनाया है। इस बार के चुनाव में गठबंधन ने अपने आकड़े में वृद्धि करते हुए 68 सीटें हासिल कीं, जबकि 2007 में इसे 67 सीटें मिली थीं। पिछली बार भाजपा के 19 विधायक थे, लेकिन इस बार उसके 12 विधायक ही रह गए।
बादल सीनियर और सुखबीर क्रमश: लांबी तथा जलालाबाद सीटों से निर्वाचित हुए थे। इन दोनों के अतिरिक्त शपथ लेने वालों में भगत चुनी लाल [भाजपा जालंधर पश्चिम], सरवन सिंह फिल्लौर [शिअद-करतारपुर आरक्षित], अदेश प्रताप कैरों [शिअद-पट्टी], अजीत सिंह कोहड़ [शिअद-शाहकोट], गुलजार सिंह रानिके [शिअद-अटारी] , मदन मोहन मित्तल [भाजपा-आनंदपुर साहिब], परमिंदर सिंह ढींडसा [शिअद-सुनाम], जनमेजा सिंह शेखों [शिअद-मौर], तोता सिंह [शिअद-धर्मकोट] , जागीर कौर [शिअद-भोलथ], सुरजीत कुमार ज्ञानी [भाजपा-फजिलका] , बिक्रम सिंह मजीठिया [शिअद-मजीठा], सिकंदर सिंह मलूका [शिअद-रामपुरा फूल], अनिल जोशी [भाजपा-अमृतसर उत्तर], सुरजीत सिंह रखड़ा [श्अिद-समाना] और शरणजीत सिंह ढिल्लों [शिअद-साहनीवाल] शामिल हैं।
पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन [पीसीए] का मोहाली स्थित स्टेडियम आज सूना था जहा पाच साल पहले बादल सरकार ने शपथ ली थी। इस बार शपथ ग्रहण के लिए चप्पड़ चिड़ी को चुना गया जहा शिअद-भाजपा सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में फतेह बुर्ज स्मारक की स्थापना की थी।
सिख इतिहास के अत्यंत सम्मानित योद्धा बंदा सिंह बहादुर ने अजीतगढ़ जिले के चप्पड़ चिड़ी में 1710 में मुगल सेना की कमान संभाल रहे वजीर खान को लड़ाई में हराया था। यह स्थान राज्य की राजधानी से 25 किलोमीटर दूर है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार अकाली-भाजपा गठबंधन अपने परंपरागत पंथिक एजेंडे को त्यागकर विकास और शाति के एजेंडे पर लगातार दूसरी बार सत्ता में आया है।
शपथ ग्रहण समारोह में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और बिहार के मुख्यमंत्रियों ममता बनर्जी, जयललिता और नीतीश कुमार को भी आमंत्रित किया गया था, लेकिन अन्य कार्यो में व्यस्त होने का कारण बताकर उन्होंने आने में असमर्थता जताई,
Young Flame Headline Animator
बुधवार, 14 मार्च 2012
'परमात्मा चाहता था कि जो सर्वे मैंने किया, वह सच साबित हो जाए'
http://youngflamenews.blogspot.in/2012/03/65.html
डबवाली (यंग फ्लेम) चुनाव चाहे लोकसभा के हों, या विधानसभा के, या फिर स्थानीय निकाय के। हर बार चुनावों में राजनीतिक पंडित या विश्लेषक अपने-अपने अनुमान लगाते हैं। बड़े-बड़े मीडिया ग्रुप, टीवी चैनल आदि प्री-पोल अथवा एग्जिट पोल करवाते हैं। इस बहाने यह अनुमान लगाने की कोशिश की जाती है कि परिणाम क्या रहेगा। अनेक वर्षों से हम देखते आए हैं कि ऐसे एग्जिट पोल मुंह के बल गिरे हैं। मतदाता आजकल बेहद समझदार हो गया है। वह किसी को भी अपने दिल की थाह नहीं देता। ऐसे में यह अंदाजा लगाना बड़ा कठिन हो जाता है कि चुनाव में कौनसा दल विजयी होगा या फिर किसकी सरकार आएगी। हालिया पंजाब विधानसभा चुनाव की बात करें तो सब जानते हैं कि पूरे देश का मीडिया, सभी राजनीतिक जानकार, कांग्रेसी और यहां तक कि कुछ हद तक अकाली व भाजपाई भी अंदरखाने यही कह-सुन रहे थे कि इस बार तो कांग्रेस पार्टी की ही सरकार आएगी। असल में बहुत हद तक उनका अनुमान पंजाब के 46 साल के रिकार्ड पर टिका था। यह रिकार्ड चीख-चीखकर बोल रहा था कि पंजाब में आज तक कभी कोई सरकार दोबारा सत्ता में नहीं आई। यानी 5 साल कांग्रेस तो 5 साल अकाली-बीजेपी। लेकिन असलियत क्या है, वास्तविक परिणाम क्या रहने वाले हैं, उनके पीछे कारक क्या रहेंगे, क्या-क्या फैक्टर काम करेंगे और कौन-कौनसे नहीं करेंगे, इन सब बातों का गहन विश्लेषण किसी ने नहीं किया था। और, जिसने किया, वह आज पूरे पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के इस हिस्से में छा गया है। हालांकि विश्लेषण और भी बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों ने किए, मगर जैसे मां सरस्वती उनकी ही जुबान पर विराजमान होनी थीं। यह हैं, डबवाली निवासी तथा सहारण होटल के संचालक व वरिष्ठ पत्रकार महावीर सहारण। पिछली अनेक बार की तरह इस बार भी पंजाब विधानसभा 2012 चुनावों का परिणाम 6 मार्च को आने से लगभग 72 घंटे पहले श्री सहारण ने 'यंग फ्लेम' के माध्यम से जो राजनीतिक विश्लेषण किया था, वह लगभग अक्षरश: सत्य साबित हुआ है। बादल सरकार की वापिसी किसी करिश्मे से कम नहीं कहीं जा सकती है। तमाम मीडिया, ंजाब की नौकरशाही व प्रदेश की अधिकांश जनता द्वारा यह दावा किया जा रहा था कि कांग्रेस शत-प्रतिशत जीत रही है। लेकिन महावीर सहारण तथ्यों सहित अपनी बात पर अडिग थे कि किसी भी सूरत में कांग्रेस का सत्ता में आना मुमकिन नहीं है। अब चुनाव परिणामों के बाद श्री सहारण से एक विशेष बातचीत हमने 'यंग फ्लेम' के पाठकों के लिये की। प्रस्तुत हैं,
उक्त बातचीत के मुख्य अंश:
सहारण साहब, आपने जो पंजाब की 117 सीटों का आंकलन किया था, यह लगभग पूरी तरह सटीक रहा। यह कैसे संभव हुआ?
मैं विगत 3 दशकों से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान के चुनावों के बारे में आंकलन कर रहा हूं और हर बार मैंने जो आंकलन किया है, उनके नतीजे लगभग उसके मुताबिक ही आये हैं। सबसे पहले मैंने 1980 में उत्तर भारत के जो 9 राज्यों में चुनाव हुए थे, तब चुनाव नतीजों के बारे में नवभारत टाइम्स ने एक प्रश्नावली देकर प्रतियोगिता करवाई थी, जिसमें पूरे देश में मुझे दूसरा स्थान प्राप्त हुआ था। उस समय मेरी उम्र मात्र 15 वर्ष थी तथा इसके बाद मैं लगातार जहां भी चुनाव हो रहे होते हैं, उन हल्कों में खड़े उम्मीदवारों की स्थिति, जातिगत समीकरण, भीतरघात, मुख्य पार्टी की करगुजारी, उम्मीदवारों द्वारा चलाया गया चुनाव अभियान आदि प्रत्येक पहलू का बारीकी से अध्ययन करने के बाद उस हल्के का संभावित नतीजा तैयार करता हूं तथा निष्पक्ष रूप से जब यह आंकलन करता हूं, तभी नतीजा सटीक आता है। यह हैरानी की बात है कि पंजाब प्रदेश की सभी सरकारी एजेंसियां, भारत सरकार की सरकारी एजेंसियां और यहां तक कि सभी न्यूज़ चैनल्स का ओपीनियन पोल, सभी समाचार पत्र और अकाली-भाजपा के अधिकांश समर्थक भी राज्य में कांग्रेस सरकार आने की बात कर रहे थे, परंतु हुआ इसके बिल्कुलल उलट। मैंने जो विश्लेषण किया, उसमें हरेक हल्के में कौन उम्मीदवार जीत रहा है और क्यूं जीत रहा है, विस्तार से बताया। अब आप 4 मार्च का 'यंग फ्लेम' पड़े http://youngflamenews.blogspot.in/2012/03/65.html चुनावी नतीजों के साथ मिलान करें, आपको पता लग जाएगा कि चुनावी सर्वेक्षण कितना सटीक रहा है। अगर जिला और माझा-मालवा क्षेत्रवार बात करें, तो इसमें 1 प्रतिशत भी फर्क नहीं है, 100 फीसदी वही बात हुई है।
क्या आपने सारे पंजाब में घूमकर ये विस्तृत आंकलन तैयार किया था या किसी और माध्यम से?
जी नहीं, मैं कहीं नहीं जाता हूं, लेकिन हल्कावाइज फीडबैक विभिन्न सूत्रों से ले लेता हूं तथा क्षेत्र विशेष की आम जनता अपने उम्मीदवारों के बारे में, प्रमुख पार्टी की कारगुजारी के बारे में क्या सोचती है, इसके बारे में मेरा आंकलन, मेरे नतीजे को सही करने में मदद करता है।
हमें याद है कि जब राजस्थान में 1993 में विधानसभा चुनाव हुए थे, तब आपने लिखा था कि गंगानगर विधानसभा सीट से तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत तीसरे नंबर पर रहेंगे, यह केवल आपने ही कहा था। कैसे संभव हो पाई यह सटीक भविष्यवाणी?
उस वक्त श्रीगंगानगर जिले की सभी सीटों का मेरे द्वारा किया गया सर्वेक्षण एक समाचार पत्र में छपा था तथा उस वक्त कोई कतरफा लहर नहीं थी। भादरा, टिब्बी, संगरिया से आज़ाद उम्मीदवार और हनुमानगढ़ से भाजपा दो सीटें पर जीती थी। किसी एक पार्टी की लहर वहां उस वक्त नज़र नहीं आ रही थी, कहीं कांग्रेस जीत रही थी, कहीं भाजपा। जिला श्रीगंगानगर की सभी सीटों का नतीजा मेरे आंकलन के मुताबिक ही रहा। उस वक्त संगरिया के बारे में मैंने लिखा था कि आजाद उम्मीदवार स. गुरजंटसिंह विजयी होंगे, भाजपा के शिवप्रकाश सहारण दो नंबर पर, तत्कालीन विधायक का. हेतराम तीन नंबर पर तथा कांग्रेस प्रत्याशी भजनलाल (तत्कालीन मुख्यमंत्री हरियाणा चौ. भजनलाल के रिश्तेदार) चौथे स्थान पर रहेंगे। जब नतीजा आया तो क्रम यही रहा। श्रीगंगानगर मे तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत के बारे मे आंकलन यही था कि वे तीसरे स्थान पर रहेंगे। कांग्रेस के राधेश्याम तथा जनता दल के सुरेंद्र राठौड़ में 2000 से कम वोटों का मार्जिन रहने का अनुमान लगाया था। नतीजा, राधेश्याम मात्र 1700 वोटों से जीते और भैरोंसिंह स्वत: ही तीसरे नंबर पर चले गये। हालांकि उस आंकलन में यह भी लिखा था कि भैरोंसिंह मौजूदा मुख्यमंत्री हैं और पुन: बनेंगे। लेकिन श्रीगंगानगर से वह पराजित होंगे और फिर से सीएम बने भी।
हमने यह भी सुना था कि पिछले विधानसभा चुनाव में भी आपने पंजाब की सीटों के बारे में अखबारों में छपवाया था और तब भी वही सीटें आई थीं, जो कि आपने पहले से भविष्यवाणी की थी?
मैंने कहा था कि वर्ष 2007 में हुए विधानसभा चुनावों में मालवा बैल्ट में अकाली दल को बुरी तरह से पराजित होना पड़ेगा। हालांकि तब कोई भी इस बात पर विश्वास नहीं कर रहा था तथा बठिंडा, मानसा, मोगा आदि जिलों की मालवा पट्टी में 33 में से शिअद-भाजपा को केवल 5 सीटें ही प्राप्त हुई थीं।
वर्ष 2009 में हरियाणा विधानसभा चुनावों में भी आपने जो भविष्यवाणी की थी, वह एकदम सही बैठी?
हरियाणा विधानसभा चुनाव में सभी सर्वेक्षण व अ$खबारी पंडित चौ. ओमप्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल (इनैलो) को केवल 10-12 सीटों पर ही जीता हुआ मान रहे थे। लेकिन मैंने 32 सीटों पर इनैलो के जीतने का आंकलन किया था तथा भाजपा की 4 सीटों पर विजय दिखाई थी। 10 सीटों पर नज़दीकी मुकाबला बताया था। नतीजा भी हूबहू यही आया।
सहारण साहब, जब आपने बठिंडा से हरमिंद्रसिंह जस्सी के हारने की बात कही तो हमे भी यकीन नहीं हुआ। इस बात पर तो कोई विश्वास कर ही नहीं सकता था कि खुद डेरा सच्चा सौदा मुखी कि समधी होने केबावजूद वो कैसे हार सकते हैं?
बठिंडा से सरूपचंद सिंगला, मानसा से प्रेम मित्तल, संगरूर से प्रकाश गर्ग तथा फरीदकोट से दीप मल्होत्रा, डेरा बस्सी से एन.के.शर्मा, आदमपुर से पवन टिन्नू को चुनाव मैदान में उतारने की रणनीति उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल की थी। उस वक्त इसे कोई भी समझ नहीं पाया था, लेकिन मंैने इसको बखूबी भांप लिया था तथा एक ऐसा वर्ग, जो आम तौर पर कांग्रेस के पक्ष में मतदान करता है, ने जातिगत समीकरणों को तरजीह देते हुए शिअद के पक्ष में भारी मतदान किया। इसलिये इन सभी सीटों पर कांग्रेस की बुरी तरह से पराजय हुई तथा कोई भी आदमी 6 मार्च से पहले इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं था। जहां तक बठिंडा की बात है, डेरा सच्चा सौदा प्रेमी फैक्टर वोट बैंक के खिला$फ गैर डेरा प्रेमी वोट बैंक लामबंद हो गया था तथा उन्होंने उत्साहजनक तरीके से मतदान किया, जोकि सरूप सिंगला की जीत का मुख्य कारण बना।
सहारण जी, आपने मनप्रीत बादल के गिदड़बाहा और मौड़ में तीसरे स्थान पर रहने की बात कही थी और यह बात भी शत-प्रतिशत सच साबित हुई है। इसके साथ ही पीपीपी द्वारा अकाली दल की बजाय कांग्रेस को नुकसान का आपका जो आंकलन था, वो वाकई बिल्कुल सही था और आज कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी द्वारा खुले तौर पर इसे स्वीकार भी किया जा रहा है।
मनप्रीत बादल ने सिर्फ विधानसभा हल्का गिदड़बाहा में ही कांगे्रेस का फायदा किया है, बाकी प्रदेश, खासकर मालवा में उनके द्वारा वामपंथियों से समझौता कांग्रेस की हार का बड़ा कारण बना है। क्योंकि वामपंथी परंपरागत रूप से कंग्रेस के पक्ष में मतदान करते रहे हैं, यह बात मतगणना यानी 6 मार्च से पहले कोई भी समझ नहीं पाया। जबकि मैंने पुरजोर तरीके से मुख्यमंत्री स. बादल साहब, उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल एवं सांसद हरसिमरत कौर बादल को कही कि मनप्रीत फैक्टर ही आपको सत्ता में वापसी करवा रहा है, जबकि आज तो यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी भी हार का ठीकरा पी.पी.पी. पर फोड़ रही हैं, लेकिन 6 मार्च से पहले उनके सलाहकार ये बात नहीं भांप पाये कि मनप्रीत से उन्हें कितना नुकसान होने जा रहा है। उल्टे कांग्रेस तो खुश थी कि मनप्रीत की वजह से शिअद-भाजपा गठबंधन हार रहा है।
भाजपा को कोई भी व्यक्ति 3-4 से अधिक सीटें नहीं दिखा रहा था, आपने ही उसके दहाई का आंकड़ा पार करने की बात कही थी। वो कैसे?
मेरे आंकलन में तो ये भी लिखा है कि भाजपा प्रत्याशी जहां चुनाव लड़ रहे हैं, ऐसी कम से कम 5-6 सीटें हैं, जिस पर कांग्रेस 3 नंबर पर है तथा वह भाजपा को 4-5 पर कैसे समेट सकती है? भाजपा को दर्जन सीटें मिलने के पीछे यही कारण मैंने भांपा। आमतौर पर सट्टा बाजार पर चुनावों के संबंध में लोग विश्वास करतेे हैं, लेकिन इस बार सट्टा बाजार के दावे भी धरे के धरे रह गये, ऐसे नतीजे सामने आये।
लोगों की स्मरण शक्ति बहुत कमजोर है, लोग जल्दी भूल जाते हैं। सट्टा बाजार का आंकलन मेरे मुताबिक कभी भी सही नहीं रहा। वर्ष 2009 में हरियाणा में सट्टा बाजार चौ. चौटाला को 12 सीटेें दर्शा रहा था, जबकि वस्तुत: 32 सीटें आईं। अब 5 मार्च तक सट्टा बाजार पंजाब में शिअद-भाजपा की सरकार बनाने वालों को 1 रू. के 5 रू. दे रहा था। क्या नतीजा आया? शिअद-भाजपा गठबंधन को 68 सीटें मिलीं, जोकि अपने आप में बड़ी जीत कही जा सकती है।
आपके मुताबिक शिरोमणी अकाली दल-भाजपा की हैरतअंगेज जीत के क्या कारण रहे?
मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल लगातार 5 साल तक जनता के बीच में रहे। विकास कार्यों की झड़ी उन्होंने लगाई। हालांकि कांग्रेस यही प्रचार करती रही कि हजारों करोड़ का कर्ज प्रदेश पर है। कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के दावेदार अमरेन्द्रसिंह कभी जनता के बीच नहीं गए तथा उन्हें चुनावी सभाओं में 'खुंडा' भेंट करके कांग्रेसी खुश होते रहे, लेकिन प्रदेश की जनता, जो कि आतंकवाद का दौर झेल चुकी है, ने इसे पसंद नहीं किया। मुख्यमंत्री बादल को सहयोगी के रूप में सुखबीर बादल व सांसद हरसिमरत बादल का भी बड़ा सहारा मिला। एक लाख युवाओं को मैरिट के आधार पर नौकरियां दिए जाने के कारण कांग्रेस द्वारा भ्रष्टाचार केआरोपों को लोगों ने स्वीकार नहीं किया। बाकी तमाम फैक्टर जो जीत का कारण रहे, वे हमने चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में ही दर्शा दिए थे। अब मीडिया उन कारणों के बारे में अपनी लकीर पीट रहा है।
नतीजे आने के बाद जब आप मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल से मिले तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?
मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल, उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल, सांसद हरसिमरत बादल से जब मैं मिला, तो उन्होंने बेहद हैरान होते हुए कहा कि कैसे आपने यह सब बता दिया, जबकि कोई भी इस बात के नजदीक तक नहीं था। मैंने कहा कि मेरे द्वारा किए जाने वाले तथ्यात्मक विश्लेषण की अबकी बार परीक्षा थी तथा परमात्मा ने इस परीक्षा में मुझे पास होने में मदद की है। परमात्मा की कृपा के अलावा कोई ऐसी चीज नहीं थी, जो अबकी बार मेरे द्वारा किए गए सर्वेक्षण को सही साबित कर सके।
डबवाली (यंग फ्लेम) चुनाव चाहे लोकसभा के हों, या विधानसभा के, या फिर स्थानीय निकाय के। हर बार चुनावों में राजनीतिक पंडित या विश्लेषक अपने-अपने अनुमान लगाते हैं। बड़े-बड़े मीडिया ग्रुप, टीवी चैनल आदि प्री-पोल अथवा एग्जिट पोल करवाते हैं। इस बहाने यह अनुमान लगाने की कोशिश की जाती है कि परिणाम क्या रहेगा। अनेक वर्षों से हम देखते आए हैं कि ऐसे एग्जिट पोल मुंह के बल गिरे हैं। मतदाता आजकल बेहद समझदार हो गया है। वह किसी को भी अपने दिल की थाह नहीं देता। ऐसे में यह अंदाजा लगाना बड़ा कठिन हो जाता है कि चुनाव में कौनसा दल विजयी होगा या फिर किसकी सरकार आएगी। हालिया पंजाब विधानसभा चुनाव की बात करें तो सब जानते हैं कि पूरे देश का मीडिया, सभी राजनीतिक जानकार, कांग्रेसी और यहां तक कि कुछ हद तक अकाली व भाजपाई भी अंदरखाने यही कह-सुन रहे थे कि इस बार तो कांग्रेस पार्टी की ही सरकार आएगी। असल में बहुत हद तक उनका अनुमान पंजाब के 46 साल के रिकार्ड पर टिका था। यह रिकार्ड चीख-चीखकर बोल रहा था कि पंजाब में आज तक कभी कोई सरकार दोबारा सत्ता में नहीं आई। यानी 5 साल कांग्रेस तो 5 साल अकाली-बीजेपी। लेकिन असलियत क्या है, वास्तविक परिणाम क्या रहने वाले हैं, उनके पीछे कारक क्या रहेंगे, क्या-क्या फैक्टर काम करेंगे और कौन-कौनसे नहीं करेंगे, इन सब बातों का गहन विश्लेषण किसी ने नहीं किया था। और, जिसने किया, वह आज पूरे पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के इस हिस्से में छा गया है। हालांकि विश्लेषण और भी बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों ने किए, मगर जैसे मां सरस्वती उनकी ही जुबान पर विराजमान होनी थीं। यह हैं, डबवाली निवासी तथा सहारण होटल के संचालक व वरिष्ठ पत्रकार महावीर सहारण। पिछली अनेक बार की तरह इस बार भी पंजाब विधानसभा 2012 चुनावों का परिणाम 6 मार्च को आने से लगभग 72 घंटे पहले श्री सहारण ने 'यंग फ्लेम' के माध्यम से जो राजनीतिक विश्लेषण किया था, वह लगभग अक्षरश: सत्य साबित हुआ है। बादल सरकार की वापिसी किसी करिश्मे से कम नहीं कहीं जा सकती है। तमाम मीडिया, ंजाब की नौकरशाही व प्रदेश की अधिकांश जनता द्वारा यह दावा किया जा रहा था कि कांग्रेस शत-प्रतिशत जीत रही है। लेकिन महावीर सहारण तथ्यों सहित अपनी बात पर अडिग थे कि किसी भी सूरत में कांग्रेस का सत्ता में आना मुमकिन नहीं है। अब चुनाव परिणामों के बाद श्री सहारण से एक विशेष बातचीत हमने 'यंग फ्लेम' के पाठकों के लिये की। प्रस्तुत हैं,
उक्त बातचीत के मुख्य अंश:
सहारण साहब, आपने जो पंजाब की 117 सीटों का आंकलन किया था, यह लगभग पूरी तरह सटीक रहा। यह कैसे संभव हुआ?
मैं विगत 3 दशकों से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान के चुनावों के बारे में आंकलन कर रहा हूं और हर बार मैंने जो आंकलन किया है, उनके नतीजे लगभग उसके मुताबिक ही आये हैं। सबसे पहले मैंने 1980 में उत्तर भारत के जो 9 राज्यों में चुनाव हुए थे, तब चुनाव नतीजों के बारे में नवभारत टाइम्स ने एक प्रश्नावली देकर प्रतियोगिता करवाई थी, जिसमें पूरे देश में मुझे दूसरा स्थान प्राप्त हुआ था। उस समय मेरी उम्र मात्र 15 वर्ष थी तथा इसके बाद मैं लगातार जहां भी चुनाव हो रहे होते हैं, उन हल्कों में खड़े उम्मीदवारों की स्थिति, जातिगत समीकरण, भीतरघात, मुख्य पार्टी की करगुजारी, उम्मीदवारों द्वारा चलाया गया चुनाव अभियान आदि प्रत्येक पहलू का बारीकी से अध्ययन करने के बाद उस हल्के का संभावित नतीजा तैयार करता हूं तथा निष्पक्ष रूप से जब यह आंकलन करता हूं, तभी नतीजा सटीक आता है। यह हैरानी की बात है कि पंजाब प्रदेश की सभी सरकारी एजेंसियां, भारत सरकार की सरकारी एजेंसियां और यहां तक कि सभी न्यूज़ चैनल्स का ओपीनियन पोल, सभी समाचार पत्र और अकाली-भाजपा के अधिकांश समर्थक भी राज्य में कांग्रेस सरकार आने की बात कर रहे थे, परंतु हुआ इसके बिल्कुलल उलट। मैंने जो विश्लेषण किया, उसमें हरेक हल्के में कौन उम्मीदवार जीत रहा है और क्यूं जीत रहा है, विस्तार से बताया। अब आप 4 मार्च का 'यंग फ्लेम' पड़े http://youngflamenews.blogspot.in/2012/03/65.html चुनावी नतीजों के साथ मिलान करें, आपको पता लग जाएगा कि चुनावी सर्वेक्षण कितना सटीक रहा है। अगर जिला और माझा-मालवा क्षेत्रवार बात करें, तो इसमें 1 प्रतिशत भी फर्क नहीं है, 100 फीसदी वही बात हुई है।
क्या आपने सारे पंजाब में घूमकर ये विस्तृत आंकलन तैयार किया था या किसी और माध्यम से?
जी नहीं, मैं कहीं नहीं जाता हूं, लेकिन हल्कावाइज फीडबैक विभिन्न सूत्रों से ले लेता हूं तथा क्षेत्र विशेष की आम जनता अपने उम्मीदवारों के बारे में, प्रमुख पार्टी की कारगुजारी के बारे में क्या सोचती है, इसके बारे में मेरा आंकलन, मेरे नतीजे को सही करने में मदद करता है।
हमें याद है कि जब राजस्थान में 1993 में विधानसभा चुनाव हुए थे, तब आपने लिखा था कि गंगानगर विधानसभा सीट से तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत तीसरे नंबर पर रहेंगे, यह केवल आपने ही कहा था। कैसे संभव हो पाई यह सटीक भविष्यवाणी?
उस वक्त श्रीगंगानगर जिले की सभी सीटों का मेरे द्वारा किया गया सर्वेक्षण एक समाचार पत्र में छपा था तथा उस वक्त कोई कतरफा लहर नहीं थी। भादरा, टिब्बी, संगरिया से आज़ाद उम्मीदवार और हनुमानगढ़ से भाजपा दो सीटें पर जीती थी। किसी एक पार्टी की लहर वहां उस वक्त नज़र नहीं आ रही थी, कहीं कांग्रेस जीत रही थी, कहीं भाजपा। जिला श्रीगंगानगर की सभी सीटों का नतीजा मेरे आंकलन के मुताबिक ही रहा। उस वक्त संगरिया के बारे में मैंने लिखा था कि आजाद उम्मीदवार स. गुरजंटसिंह विजयी होंगे, भाजपा के शिवप्रकाश सहारण दो नंबर पर, तत्कालीन विधायक का. हेतराम तीन नंबर पर तथा कांग्रेस प्रत्याशी भजनलाल (तत्कालीन मुख्यमंत्री हरियाणा चौ. भजनलाल के रिश्तेदार) चौथे स्थान पर रहेंगे। जब नतीजा आया तो क्रम यही रहा। श्रीगंगानगर मे तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत के बारे मे आंकलन यही था कि वे तीसरे स्थान पर रहेंगे। कांग्रेस के राधेश्याम तथा जनता दल के सुरेंद्र राठौड़ में 2000 से कम वोटों का मार्जिन रहने का अनुमान लगाया था। नतीजा, राधेश्याम मात्र 1700 वोटों से जीते और भैरोंसिंह स्वत: ही तीसरे नंबर पर चले गये। हालांकि उस आंकलन में यह भी लिखा था कि भैरोंसिंह मौजूदा मुख्यमंत्री हैं और पुन: बनेंगे। लेकिन श्रीगंगानगर से वह पराजित होंगे और फिर से सीएम बने भी।
हमने यह भी सुना था कि पिछले विधानसभा चुनाव में भी आपने पंजाब की सीटों के बारे में अखबारों में छपवाया था और तब भी वही सीटें आई थीं, जो कि आपने पहले से भविष्यवाणी की थी?
मैंने कहा था कि वर्ष 2007 में हुए विधानसभा चुनावों में मालवा बैल्ट में अकाली दल को बुरी तरह से पराजित होना पड़ेगा। हालांकि तब कोई भी इस बात पर विश्वास नहीं कर रहा था तथा बठिंडा, मानसा, मोगा आदि जिलों की मालवा पट्टी में 33 में से शिअद-भाजपा को केवल 5 सीटें ही प्राप्त हुई थीं।
वर्ष 2009 में हरियाणा विधानसभा चुनावों में भी आपने जो भविष्यवाणी की थी, वह एकदम सही बैठी?
हरियाणा विधानसभा चुनाव में सभी सर्वेक्षण व अ$खबारी पंडित चौ. ओमप्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल (इनैलो) को केवल 10-12 सीटों पर ही जीता हुआ मान रहे थे। लेकिन मैंने 32 सीटों पर इनैलो के जीतने का आंकलन किया था तथा भाजपा की 4 सीटों पर विजय दिखाई थी। 10 सीटों पर नज़दीकी मुकाबला बताया था। नतीजा भी हूबहू यही आया।
सहारण साहब, जब आपने बठिंडा से हरमिंद्रसिंह जस्सी के हारने की बात कही तो हमे भी यकीन नहीं हुआ। इस बात पर तो कोई विश्वास कर ही नहीं सकता था कि खुद डेरा सच्चा सौदा मुखी कि समधी होने केबावजूद वो कैसे हार सकते हैं?
बठिंडा से सरूपचंद सिंगला, मानसा से प्रेम मित्तल, संगरूर से प्रकाश गर्ग तथा फरीदकोट से दीप मल्होत्रा, डेरा बस्सी से एन.के.शर्मा, आदमपुर से पवन टिन्नू को चुनाव मैदान में उतारने की रणनीति उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल की थी। उस वक्त इसे कोई भी समझ नहीं पाया था, लेकिन मंैने इसको बखूबी भांप लिया था तथा एक ऐसा वर्ग, जो आम तौर पर कांग्रेस के पक्ष में मतदान करता है, ने जातिगत समीकरणों को तरजीह देते हुए शिअद के पक्ष में भारी मतदान किया। इसलिये इन सभी सीटों पर कांग्रेस की बुरी तरह से पराजय हुई तथा कोई भी आदमी 6 मार्च से पहले इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं था। जहां तक बठिंडा की बात है, डेरा सच्चा सौदा प्रेमी फैक्टर वोट बैंक के खिला$फ गैर डेरा प्रेमी वोट बैंक लामबंद हो गया था तथा उन्होंने उत्साहजनक तरीके से मतदान किया, जोकि सरूप सिंगला की जीत का मुख्य कारण बना।
सहारण जी, आपने मनप्रीत बादल के गिदड़बाहा और मौड़ में तीसरे स्थान पर रहने की बात कही थी और यह बात भी शत-प्रतिशत सच साबित हुई है। इसके साथ ही पीपीपी द्वारा अकाली दल की बजाय कांग्रेस को नुकसान का आपका जो आंकलन था, वो वाकई बिल्कुल सही था और आज कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी द्वारा खुले तौर पर इसे स्वीकार भी किया जा रहा है।
मनप्रीत बादल ने सिर्फ विधानसभा हल्का गिदड़बाहा में ही कांगे्रेस का फायदा किया है, बाकी प्रदेश, खासकर मालवा में उनके द्वारा वामपंथियों से समझौता कांग्रेस की हार का बड़ा कारण बना है। क्योंकि वामपंथी परंपरागत रूप से कंग्रेस के पक्ष में मतदान करते रहे हैं, यह बात मतगणना यानी 6 मार्च से पहले कोई भी समझ नहीं पाया। जबकि मैंने पुरजोर तरीके से मुख्यमंत्री स. बादल साहब, उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल एवं सांसद हरसिमरत कौर बादल को कही कि मनप्रीत फैक्टर ही आपको सत्ता में वापसी करवा रहा है, जबकि आज तो यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी भी हार का ठीकरा पी.पी.पी. पर फोड़ रही हैं, लेकिन 6 मार्च से पहले उनके सलाहकार ये बात नहीं भांप पाये कि मनप्रीत से उन्हें कितना नुकसान होने जा रहा है। उल्टे कांग्रेस तो खुश थी कि मनप्रीत की वजह से शिअद-भाजपा गठबंधन हार रहा है।
भाजपा को कोई भी व्यक्ति 3-4 से अधिक सीटें नहीं दिखा रहा था, आपने ही उसके दहाई का आंकड़ा पार करने की बात कही थी। वो कैसे?
मेरे आंकलन में तो ये भी लिखा है कि भाजपा प्रत्याशी जहां चुनाव लड़ रहे हैं, ऐसी कम से कम 5-6 सीटें हैं, जिस पर कांग्रेस 3 नंबर पर है तथा वह भाजपा को 4-5 पर कैसे समेट सकती है? भाजपा को दर्जन सीटें मिलने के पीछे यही कारण मैंने भांपा। आमतौर पर सट्टा बाजार पर चुनावों के संबंध में लोग विश्वास करतेे हैं, लेकिन इस बार सट्टा बाजार के दावे भी धरे के धरे रह गये, ऐसे नतीजे सामने आये।
लोगों की स्मरण शक्ति बहुत कमजोर है, लोग जल्दी भूल जाते हैं। सट्टा बाजार का आंकलन मेरे मुताबिक कभी भी सही नहीं रहा। वर्ष 2009 में हरियाणा में सट्टा बाजार चौ. चौटाला को 12 सीटेें दर्शा रहा था, जबकि वस्तुत: 32 सीटें आईं। अब 5 मार्च तक सट्टा बाजार पंजाब में शिअद-भाजपा की सरकार बनाने वालों को 1 रू. के 5 रू. दे रहा था। क्या नतीजा आया? शिअद-भाजपा गठबंधन को 68 सीटें मिलीं, जोकि अपने आप में बड़ी जीत कही जा सकती है।
आपके मुताबिक शिरोमणी अकाली दल-भाजपा की हैरतअंगेज जीत के क्या कारण रहे?
मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल लगातार 5 साल तक जनता के बीच में रहे। विकास कार्यों की झड़ी उन्होंने लगाई। हालांकि कांग्रेस यही प्रचार करती रही कि हजारों करोड़ का कर्ज प्रदेश पर है। कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के दावेदार अमरेन्द्रसिंह कभी जनता के बीच नहीं गए तथा उन्हें चुनावी सभाओं में 'खुंडा' भेंट करके कांग्रेसी खुश होते रहे, लेकिन प्रदेश की जनता, जो कि आतंकवाद का दौर झेल चुकी है, ने इसे पसंद नहीं किया। मुख्यमंत्री बादल को सहयोगी के रूप में सुखबीर बादल व सांसद हरसिमरत बादल का भी बड़ा सहारा मिला। एक लाख युवाओं को मैरिट के आधार पर नौकरियां दिए जाने के कारण कांग्रेस द्वारा भ्रष्टाचार केआरोपों को लोगों ने स्वीकार नहीं किया। बाकी तमाम फैक्टर जो जीत का कारण रहे, वे हमने चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में ही दर्शा दिए थे। अब मीडिया उन कारणों के बारे में अपनी लकीर पीट रहा है।
नतीजे आने के बाद जब आप मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल से मिले तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?
मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल, उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल, सांसद हरसिमरत बादल से जब मैं मिला, तो उन्होंने बेहद हैरान होते हुए कहा कि कैसे आपने यह सब बता दिया, जबकि कोई भी इस बात के नजदीक तक नहीं था। मैंने कहा कि मेरे द्वारा किए जाने वाले तथ्यात्मक विश्लेषण की अबकी बार परीक्षा थी तथा परमात्मा ने इस परीक्षा में मुझे पास होने में मदद की है। परमात्मा की कृपा के अलावा कोई ऐसी चीज नहीं थी, जो अबकी बार मेरे द्वारा किए गए सर्वेक्षण को सही साबित कर सके।
भाजपा गठबंधन को 65 सीटों पर बढ़त, बागी, भीतरघात व मनप्रीत के मोर्चें ने कांग्रेस को पीछे धकेला
महावीर सहारण
9354862355
डबवाली- पंजाब प्रदेश में मतदाता अब की बार रिवायत वाकई बदलने जा रहे है। अकाली-भाजपा गठजोड़ हैरानीजनक तौर पर लगातार दूसरी बार सता सम्भालने के नजदीक पहुंच गया है। प्रदेश भर में कहीं भी सतारूढ़ गठबंधन को एन्टी-एनकम्बैंसी फैक्टर का बड़ा नुकसान होने की कोई सूचना नहीं है। हालांकि चुनावी घोषणा से पूर्व कांग्रेस की बढ़त मानी जा रही थी। मनप्रीत बादल द्वारा अकालीदल से बगावत कांग्रेसी खेमे के लिए वरदान समझी जा रही थी । मालवा के बड़े इलाके को प्रभावित करने वाला डेरा सच्चा सौदा का समर्थक वोट बैंक भी कांग्रेस के पक्ष में एकतरफा माना जा रहा था। परंतु टिकट बंटवारे से कांग्रेस में हुई बड़ी बगावत से हालात पलटने शुरू हुए तथा उसके बाद प्रदेश की राजनीति में घटा प्रत्येक घटनाक्रम अकाली-भाजपा गठबंधन के पक्ष में होता चला गया। जैसे कि मनप्रीत बादल द्वारा वामपंथियों से समझौता कांग्रेस के लिए बेहद नुकसान देह रहा। साथ ही सिरसा के सच्चा सौदा डेरा ने भी कांग्रेस के पक्ष में पिछले चुनाव की तरह स्पष्ट ऐलान करने से इंकार कर दिया। तथा एक दर्जन सीटों पर डेरा प्रेमियों द्वारा अकाली दल गठबंधन के पक्ष में मतदान करने की पुख्ता सूचनाऐं है। प्रदेश में मनप्रीत बादल के नेतृत्व में 115 सीटों पर सांझा मोर्चा चुनाव लड़ा, जिन में 22 सीटों पर वामपंथियों ने उम्मीदवार उतारे। गौरतलब है कि वामपंथियों ने पिछले चुनाव में कांग्रेस का समर्थन किया था। मनप्रीत के मोर्चे की तरफ सतापक्ष से नाराज होने वाले काफी मतदाताओं का रूझान देखा गया। यह भी कांग्रेस के लिए नुकसान देह माना जा रहा है। चूंकि सांझा मोर्चा न बनता तो इन मतों का झुकाव स्वाभाविक रूप से कांग्रेस के पक्ष में होना था। इसके अलावा चुनाव आयोग द्वारा शुरूआती दौर में की गई जबरदस्त सख्ती अंत में खोखली साबित हुई तथा कथित रूप से पैंसों का जो खुला खेल हुआ उसमें भी कांग्रेस पिछड़ती दिखाई दी। कुल मिलाकर वरिष्ठतम मुख्यमंत्री स. प्रकाश सिंह बादल ने राजनीतिक चार्तुय का जैसा सटीक प्रदर्शन चुनावी चक्रव्यूह के प्रत्येक क्षेत्र में किया यह बेमिसाल कहा जा सकता है। एक-दो नेताओं को छोड़कर सभी नामवर नेताओं या उनके प्रभावशाली संबंधियों को चुनाव मैदान में उतारा। जोकि अधिकांश स्थानों पर जीत की ओर अग्रसर है। प्रदेश में प्रभावी किसान जत्थेबंदी प्रधानो ं के साथ-साथ संत समाज प्रमुखों को भी गठबंधन के पक्ष में चुनावी मुहिम चलाने हेतु रजामंद किया साथ ही डेरा प्रेमियों का एक हिस्सा भी अपने पक्ष करने में सफल रहे है कांग्रेस के मुकाबले सतारूढ़ गठबंधन का घोषणापत्र भी मतदाताओं को आकर्षित करने में सफल रहा। वहीं सुखबीर बादल व हरसिमरत कौर बादल के जोशीले भाषणों से जनसभाओं में अकाली कार्यकर्ताओं को उत्साहित होते देखा गया। वहीं कैप्टन अमरेंद्र सिंह का जादू बड़ी बगावत के चलते ढलता सा प्रतीत होता रहा। तथा राजेंद्र कौर भ_ल व जगमीत बराड़ जैसे दूसरे नेता प्रदेश में अपना प्रभाव नही छोड़ पाए।
माझा, दोआबा में हालांकि सतारूढ़ गठबंधन पिछला प्रदर्शन नहीं दोहरा पा रहा है। वैसे भी जब किसी चुनाव में अगर बड़ी लहर न हो तो स्थानीय समीकरण ही जीत हार तय किया करते है। ऐसे ही हालातों में बागी उम्मीदवार या भीतरघात चुनावी नतीजों को पूरी तरह से बदलने में सफल हो जाते है। परिसिमन के चलते चुनाव क्षेत्रों में हुई फेरबदल चुनावी नतीजों को प्रभावित कर रही है तथा सुच्चा सिंह छोटेपुर व हंसराज जोसन जैसे कई बागी प्रत्याशी दो-दो हलकों के नतीजों को प्रभावित कर रहे है। कांग्रेस के बागी उम्मीदवारों या भीतरघात से पार्टी को जिन सीटों पर यकीनन हार का सामना करना पड़ रहा है उनमें सुजानपुर, पठानकोट, गुरदासपुर, कांदिया, डेरा बाबा नानक, मजीठा, अमृतसर (पूर्वी), बाबा बकाला, जालंधर (उतरी), जालंधर(केंट), मुकेरिया, चब्बेवाल, बलाचौर, आनंदपुर साहिब, चमकौर साहिब, खरड़, डेरा बस्सी, फतेहगढ़ साहिब, अमलोह, साहनेवाल, बाघापुराना, फिरोजपुर शहर, जलालाबाद, बल्लुआना, गिदढ़बाहा, मलोट, कोटकपुरा, रामपुरा फूल, भदोड़, शुतराना,जीरा शामिल है। अकाली-भाजपा गठजोड़ को बागियों के चलते निम्रलिखित स्थानों पर हार का सामना करना पड़ सकता है। तरनतारन, आत्म नगर, अबोहर, घनौर, महलकलां, नवां शहर। डेरा बस्सी व फतेहगढ़ साहिब ऐसी सीटे है जहां अकाली दल एवं कांग्रेस दोनों के ही बागी है। इसके अलावा ऐसे हलके हैं जहां कांग्रेस छोड़कर पीपीपी की टिकट पर चुनाव लड़ रहे व सीपीआई, सीपीएम के चिन्ह पर चुनावी किस्मत आजमा रहे मजबूत प्रत्याशी अकाली दल गठबंधन की जीत का कारण बन रहे ळै। इसमें बठिंडा देहाती, भूच्चो मंडी, तलवंडी साबो, बुडलाडा, होशियारपुर, मानसा आदि है। बसपा भी फाजिल्का, आदमपुर तथा मलेरकोटला जैसी सीटों पर भारी तादाद में कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा रही है।
माझा में पिछली बार 21 सीटों पर सत्तारूढ़ गठबंधन को विजय प्राप्त हुई थी। अब थोड़ी कमजोरी यहां है। पठानकोट जिले की पठानकोट व सुजानपुर सीटों पर कांग्रेस की यकीनी हार है। भाजपा के अश्विनी शर्मा के लिए कांग्रेस के बागी अशोक शर्मा ने राह आसान कर दी है। जबकि सुजानपुर में भाजपा के दिनेश बब्बू, बागी कांग्रेसी नरेशपुरी पर भारी है। यहां कांग्रेस के विनय महाजन तीसरे स्थान पर है।भोआ में भाजपा एवं कांग्रेस के क्रमश: सीमा देवी व बलबीर राज दोनों को भीतरघात से जूझना पड़ रहा है। थोड़ी बढ़त कांग्रेस की यहां है। गुरदासपुर जिले में बटाला सीट पर अश्विनी सेखड़ी (कांग्रेस) की जीत तय है तो गुरदासपुर से अकालीदल के गुरबचन सिंह बब्बेहाली बढिय़ा काम एवं कांग्रेस के भीतरघात के सहयोग से आसान जीत दर्ज कर रहे है। दीना नगर में भाजपा कांग्रेस में नजदीकी मुकाबला है। कांग्रेस के बागी सुच्चा सिंह छोटेपुर ने कांदिया में जहां सेवा सिंह सेखवा (अकालीदल) की राह आसान कर दी। वहीं डेरा बाबा नानक से सूच्चा सिंह लंगाह (अकालीदल) को भी राहत दे रहे हैं। फतेहगढ़ चूडिय़ा में निर्मल सिंह काहलो (अकालीदल) कांग्रेस के तृप्त राजेंद्र सिंह बाजवां पर भारी पड़ रहे है। रिर्जव हलके हरगोबिंदपुर से भी अकालीदल के देशराज घुग्गा की कांग्रेस के बलविंद्र सिंह लाड़ी पर साफ बढ़त है। तरनतारन जिले में अकालीदल का दबदबा बरकरार है। तरनतारन हलका में अकाली बागी दविंद्र सिंह लाली का कांग्रेस के धर्मवीर अग्हिोत्री से मुकाबला है। यहां मौजूदा विधायक हरमीत सिंह संधु पिछे रह गए है। पट्टी से आदेश प्रताप केरो व खेमकरण से बिरसा सिंह बल्टोहा साफ जीत दर्ज कर रहे है। खडूर साहिब हलका से मांझे के दिग्गज अकाली नेता रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा कांग्रेसी रमनजीत सिंह पर भारी माने जा रहे है। अमृतसर जिला में सत्तारूढ़ गठबंधन को बढ़त हासिल हो रही है। अजनाला से अकाली अमरपाल बोनी कांग्रेस के हरप्रताप अजनाला से आगे है। सांसद डॉ. रतन सिंह अजनाला का यह क्षेत्र अकाली दल का परम्परागत गढ़ माना जाता है। मजीठा में विक्रम सिंह मजीठिया बड़ी जीत दर्ज कर रहे है। राजा सांसी में सुखविंद्र सिंह सरकारिया व अकाली वीर सिंह लोपोके में बड़ी टक्कर है। परंतु सरकारिया को थोड़ी बढ़त है। जंडियाला रिर्जव में भी इसी प्रकार का मामला है यहां भी सरदूल सिंह (कांग्रेस)व बलजीत सिंह जलाल (अकालीदल) में नजदीकी टक्कर है। अटारी रिर्जव में अकाली गुलजार सिंह राणिके आरामदायक स्थिति में है। तो बाबा बकाला रिजर्व में भी कांग्रेस की बगावत ने अकाली मनजीत सिंह मना को जीत के राह पर ला दिया है। अमृतसर (उतरी) में भाजपा के अनिल जोशी बेहद मजबूत है तो अमृतसर (पश्चिमी)में यहीं स्थिति कांग्रेस के राजकुमार वेरका की है। अमृतसर केंद्रीय में कांग्रेस के ओपी सोनी भाजपा के तरूण चुघ पर भारी पड़ रहे है। अमृतसर (पूर्वी) में डॉ. नवजोत कौर सिधु की राह कांग्रेस की लड़ाई ने आसान कर दी है। अमृतसर (दक्षिण) में अकाली उम्मीदवार इन्द्रवीर सिंह बुलारिया कांग्रेस के जसबीर सिंह डिम्पा पर भारी पड़ रहे है। हालांकि गुरप्रताप टिक्का (अकाली बागी) उनका नुकसान कर रहे है। माझा में अकाली-भाजपा 15 सीटों पर तथा कांग्रेस 6 पर बढ़त बना पायी है जबकि 4 स्थानों पर कड़ा मुकाबला है।
दोआबा के कपूरथला जिला के कपूरथला हलका में कांग्रेस के गुरजीत राणा को अकाली दल के सर्वजीत मक्कड़ ने कड़ी टक्कर दी है। पीपीपी के रघुवीर सिंह ने मुकाबला तिकोना बनाने का प्रयास किया। कुल मिलाकर गुरजीत राणा की राह आसान नहीं है। तो भुुलत्थ में बीबी जागीर कौर पिछली हार का बदला चुकाती प्रतीत हो रही है। सुल्तानपुर लोधी में अकाली डॉ. उपीन्द्रजीत कौर की जीत तय है। वहीं फगवाड़ा से भाजपा के पूर्व आईएएस सोम प्रकाश विधानसभा में पहुंच जाएंगे। जालंधर जिला हैरानी जनक नतीजे दे सकता है। नकोदर से अमरजीत समरा (कांग्रेसी) की हालत पतली है। अकाली गुरप्रताप सिंह बडाला अपने पिता कुलदीप बडाला की हार का बदला लेने के बेहद नजदीक माने जा रहे है। शाहकोट में भी अकाली दिग्गज अजीत सिंह कोहाड़ कांग्रेस के कर्नल सीडी सिंह कम्बोज पर भारी पड़ रहे है। फिल्लोर (सु.) व करतारपुर (सु.) में कांग्रेसी संतोख सिंह व जगजीत सिंह मजबूत स्थिति में है लेकिन आदमपुर मं अकाली व कांग्रेस दोनों ही प्रत्याशी बसपा से जुडे रहे है। यहां बसपा के साथ इनका तिकोना मुकाबला है लेकिन अकाली पवन टिनू को बढ़त है। जालंधर पश्चमी में सांसद पत्नी सुमन केपी जीत के नजदीक है। वहीं जालंधर केंदी्रय में मनोरंजन कालिया भी सीट बचा ले जा रहे है लेकिन जालंधर उतरी में कांग्रेस दिग्गज अवतार हैनरी को बागी दिनेश ढल्ल ने झटका दिया है। यहां भाजपा के केडी भंडारी की लॉटरी खुल रही है। जालंधर केंट में जगवीर सिंह बराड़ का पीपीपी छोडऩा घातक साबित हुआ है तथा प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी प्रगट सिंह का स्कूप गोल में तबदील होने जा रहा है। होशियारपुर जिला के मुकेरियां हलके से कांग्रेस मुकाबले से बाहर है। यहां पूर्व विधानसभा स्पीकर केवल कृष्ण के पुत्र रजनीश बब्बी का भाजपा के अरूणेश शाकर से मुकाबला है। दसूहा में भाजपा के अमरजीत शाही व कांग्रेस के रमेश चंद्र डोगरा में कड़ी टक्कर है। शाम चौरासी (सु.)में कांग्रेस के चौधरी राम लुभाया की अकाली महेंद्र कौर जोश पर थोड़ी बढ़त हासिल है। होशियारपुर में भाजपा के तीक्षण सूद की प्रतिष्ठा दाव पर है। कांग्रेस के सुंदर शाम अरोड़ा उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे है। परंतु वे भीतरघात से नहीं बच पाए है। चब्बेवाल (सु.)में अकाली सोहन सिंह ठंडल जीत रहे है तो उड़मुड़ में मुकाबला सख्त है। यहां अकाली प्रत्याशी को थोड़ी बगावत झेलनी पड़ी है। गढशंकर में लव कुमार गोल्ड़ी के लिए चिंताजनक खबरे है यहां भाजपा से सीट बदलकर अकालीदल ने सुरेंद्र सिंह राठा को मैदान में उतारा था। यह दाव अकाली दल के लिए चलता दिखाई दे रहा है। नवांशहर में कांग्रेस की गुरइकबाल कौर की जीत भी तय मानी जा रही है। जबकि बंगा (सु.) में सोहन सिंह अकालीदल व तरलोचन सिंह कांग्रेसी में पलड़ा थोडा कांग्रेस का झुका हुआ लग रहा है। बलाचोर में अकाली दल के चौ. नंद लाल जीत की और है दोआबा में 23 सीटों में कांग्रेस 9 सीटों, अकाली भाजपा 8 सीटों पर जीत दर्ज कर रही है। जबकि एक पर आजाद व 5 सीटों पर नजदीकी मुकाबला है।
अब बारी मालवा की है। मालवा को दो भागों में चुनावी स्थिति मुताबिक बांटा गया है। पटियाला, फतेहगढ़ साहिब, रोपड़, मोहाली जिलों की कुल 31 सीटें है। यह इलाका मालवा के बाकि इलाके से अपेक्षाकृत रूप से हर क्षेत्र में आगे है। यहां कांग्रेस का प्रदर्शन प्रभावशाली रहने जा रहा है जबकि बठिंडा, मानसा, संगरूर आदि 8 जिलों की 38 सीटों पर अब की बार अकाली शानदार जीत दर्ज करने जा रहे है। रोपड़ जिला के आनंदपुर साहिब से भाजपा के मनमोहन मित्तल व चमकौर साहिब (सु.) से अकाली जगमीत कौर संधु को बढ़त है तो रूपनगर में कांग्रेस के रमेशदत्त शर्मा आगे है। मोहाली जिला के खरड़ में कांग्रेस की भीतरघात अकाली उजागर सिंह बड़ाली के लिए वरदान साबित हुई है। यहीं स्थिति मोहाली में कांग्रेस के बलबीर सिंह संधु की है। रामुवालिया पिछड़े हुए प्रतीत होते है। डेरा बस्सी में कांग्रेसी बागी दीपइंद्र ढिल्लों व अकाली एनके शर्मा में बेहद नजदीकी मुकाबला है। ै। बस्सी पठाना (सु.) में सांसद परमजीत कौर गुलशन के पति रिटायर्ड जस्टिस निर्मल सिंह जीत के करीब है। फतेहगढ़ साहिब में चौकोने मुकाबले में प्रेम सिंह चंदूमाजरा के राजनीतिक कौशल की परिक्षा है। यहां अकाली-कांग्रेस दोनों को बागियों से जूझना पड़ रहा है। लुधियाना जिला अकाली-भाजपा के लिए निराशाजनक नतीजे देने जा रहा है। खन्ना में स्व. बेअंत सिंह के पौत्र गुरकीरत सिंह कोटली की स्थिति अकाली दिग्गज जगदेव सिंह तलवंडी के पुत्र रणजीत सिंह तलवंडी के मुकाबले बेहतर है। यंहा पीपीपी ने मुकाबला तिकोना बना दिया।वंहीे समराला में कांग्रेसी अमरीक सिंह ढिल्लो, कृपाल सिंह खीरनियां (अकाली) पर भारी पड़ रहे है। साहनेवाल में जरूर अकाली पूर्व सांसद सरनजीत सिंह ढिल्लो जीत की राह पर है। गिल (सु.) में भी कांग्रेसी मलकीत सिंह दाखा भारी है। रायकोट (सु.) में अकाली विक्रमजीत सिंह खालसा व कांग्रेसी गुरचरण सिंह बोयारोय में मुकाबला कड़ा है। यह जत्थेदार तलवंडी का इलाका है। हलका दाखा में अकाली मनप्रीत अयाली ने कांग्रेस के मजबूत माने जा रहे जस्सी खंगूड़ा को पीछे धकेल दिया है। जगरांव (सु.) में भी नोकरशाह रहे एसआर कलेर कांग्रेस के ईशर सिंह मेहरबान पर भारी पड़ रहे है।। हलका पायल (सु.) में लोकसभा के पूर्व डिप्टी स्पीकर चरणजीत अटवाल (अकाली) की भी जीत तय है। लुधियाना शहर में बैंस बंधुओं ने अकाली-भाजपा के समीकरण बिगाड़ दिए है। लुधियाना पूर्व में कांग्रेसी गुरमेल सिंह पहलवान का अकाली दल के रणजीत सिंह ढिल्लो से सख्त मुकाबला है। यहां कांग्रेसी बागी जगमोहन शर्मा के आखिरी समय में चुनाव मैदान से हट जाने के कारण कांग्रेस को थोड़ी बढ़त है। आत्मनगर में बागी सिमरजीत बैंस जीत रहे है। लुधियाना दक्षिण में हाकम सिंह ग्यासपुरा को बढ़त है। लुधियाना केंद्रीय में भाजपा के सतपाल गोसाईं कांग्रेस के सुरेंद्र डावर को कड़ी टक्कर दे रहे है। यहीं स्थिति लुधियाना पश्चमी में है यंहा कांग्रेस के भारत कुमार आशु व भाजपा के सतपाल गोसाईं के बीच मुकाबला है। लेकिन लुधियाना उतरी में भाजपा के प्रवीण बांसल (उपमेयर)को कांग्रेस के राकेश पांडे पर बढ़त हासिल है। पटियाला जिला भी कांग्रेस के पक्ष में जा रहा है। नाभा रिर्जव में पुराने प्रतिद्वंदी साधु सिंह धरमसोत (कांग्रेस) व बलवंत सिंह शाहपुर (अकाली) में फिर कड़ी टक्कर है। कांग्रेस थोड़ी आगे है। पटियाला शहर में अमरेंद्र सिंह को जो बढ़त है वैसी स्थिति समाना में उनके युवराज रणइंद्र की नहीं है। यहां अकाली दल के सुरजीत रखड़ा उन्हें टक्कर दे रहे है। रणइंद्र चुनाव हार भी सकते है। पटियाला देहाती में स्व. गुरचरण सिंह टोहड़ा की बेटी कुलदीप कौर टोहड़ा को ब्रह्म महेंद्रा (कांगे्रस)पर बढ़त हासिल है। हालांकि बागी अकाली सतबीर खटड़ा ने उनका नुकसान किया है। शुतराना रिर्जव सीट पर अकाली दल प्रत्याशी विरेंद्र कौर लुम्बा को स्पष्ट बढ़त है। यहां वामपंथी उम्मीदवार ने कांग्रेस का बड़ा नुकसान किया है। राजपुरा में राज खुराना (भाजपा) अपनी बिरादरी की 42 हजार वोटों के समर्थन से एकबार फिर जीत की और बढ़ रहे है। कांग्रेस के हरदयाल कम्बोज यहां पिछड़ गए है। घनौर में अकाली बागी ने कांग्रेस के मदन लाल जलालपुर की राह सुगम कर दी है। तो सनोर में दिग्गज कांग्रेसी लाल सिंह को तेजिंद्र पाल संधु (अकालीदल)ने खतरे में डाल दिया है यंहा भी समाना की तरह हैरानी जनक नतीजा आ सकता है । इस प्रकार मालवा के इस हिस्से की 31 सीटों में 12 कांग्रेस व 12 अकाली-भाजपा जीत दर्ज कर सकते है। 2 स्थानों पर आजाद प्रत्याशियों को बढ़त है जबकि 5 स्थानों पर कड़ा मुकाबला है।
अब मालवा का वो इलाका जिस में 38 सीटे है तथा पिछले चुनाव में कांग्रेस की यहां बल्ले-बल्ले हो गई थी। परंतु यह इलाका ही अब अकाली-भाजपा को दोबारा सत्ता में लाने जा रहा है। डेरा सिरसा के समर्थकों ने पिछली बार एकतरफा मतदान कांग्रेस के पक्ष में ही किया था परंतु अब की बार हालात पूरी तरह से बदल गए तथा डेरा समर्थकों ने दोनों पक्षों को ही खुश रखा है। मोगा जिले में निहाल सिंहवाला में राजविंदर कौर (अकालीदल) व बाघपुराना में महेंशइंद्र सिंह (अकालीदल) आसान जीत दर्ज कर रहे है। तो धरमकोट में तोता सिंह (अकालीदल) ने अपने सियासी कौशल व परम्परागत रूप से मजबूत अकाली क्षेत्र का फायदा उठा कर बढ़त बना ही ली। अकाली दल से ऐन मौके पर कांग्रेस में जाकर उम्मीदवार बने सुखजीत सिंह लोहगढ़ को कांगे्रस समर्थकों (मालती थापर गुट) की अंदरूनी मार झैलनी पड़ी है। मोगा में मामला बेहद नजदीकी बना हुआ है। पूर्व डीजीपी परमजीत सिंह गिल (अकालीदल) ने वाकई मंझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह चुनाव लड़ा। यहां पीपीपी ने भी टक्कर दी है। जोगेद्रपाल जैन के लिए राह आसान नहीं है। फिरोजपुर जिले की कांग्रेस की सब से आसान मानी जा रही गुरूहरसहाय सीट पर भी जबरदस्त टक्कर हुई। राणा सोढी को पूर्व सांसद जोरा सिंह मान के लड़के बरदेव सिंह मान (अकाली दल) ने अहसास करवा दिया कि राजनीति में सब कुछ इतना आसान नहीं होता। जीरा भी अबकी बार कांग्रेस के हाथ से निकल रहा है। हरी सिंह जीरा ने नरेश कटारिया (कांग्रेस विधायक) पर बढ़त बना ली है। फिरोजपुर शहर में भाजपा के विधायक सुखपाल सिंह ननु की बढ़त है कांग्रेसी बागी रविंद्र बबल ने कांग्र्रेस उम्मीदवार परमिंदर पिंकी की जीत पर ब्रेकर लगा दिए है। फिरोजपुर देहाती रिर्जव में भी कांग्रेस-अकालीदल में बराबरी का मुकाबला है। फाजिल्का जिला की चारों सीटें कांगे्रस हार रही है। जिला बनाने का सबसे ज्यादा फायदा भाजपा के सुरजीत ज्याणी को हो रहा है। फाजिल्का में ज्याणी असानी से जीत रहे है। जलालाबाद से बागी होकर चुनाव लड़ रहे हंसराज जोसन कम्बोज बिरादरी के कद्दावर नेता है की टिकट काट कर कांग्रेस ने आत्मघाती कदम उठाया है। जोसन कई हलकों में कांग्रेस का नुकसान कर गए। जलालाबाद में सुखबीर बादल को बढ़त है। तो बल्लुआना में कांग्रेस बागी प्रकाश भटी एवं पीपीपी के रमेश मेघवाल ने गुरतेज सिंह घुडिय़ाना की लॉटरी खोल दी है। अबोहर में आजाद शिवलाल शौली ने जातिगत समीकरणों के सहारे ताकतवर सुनील जाखड़ पर बढ़त बना ली है। मुक्तसर जिला की लम्बी सीट पर मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल जीत रहे है। तो मुक्तसर में कांग्रेस की कर्ण बराड़ की राह आसान है। मलोट में अकाली दल के हरप्रीत सिंह अगर जीत रहे है तो उन्हें कांग्रेस के बागी बलदेव सिंह बलमगढ़ व हरबंस 'गरीबÓ का शुक्रगुजार होना चाहिए। गिदड़बाहा में मनप्रीत बादल तो यकीनन हार रहे है। कांग्रेस से आकर अकालीदल की टिकट पर चुनाव लड़ रहे संत सिंह बराड़ को कांग्रेस के एक धड़े का खुला समर्थन भी मिला। जिसके चलते कांग्रेसी राजा बडिंग़ पिछड़ गए है। फरीदकोट की जैतो रिर्जव से गुरदेव बादल आरामदायक स्थिति में है तो कोटकपुरा में बागी उपेंद्र शर्मा ने रिपजीत बराड़ की हार तय कर दी है। यहां अकाली दल के मनतार बराड़ की स्थिति बेहद मजबूत है। फरीदकोट में अकालीदल के दीप मलहोत्रा ने भी मुकाबला कांटे का बना दिया है। यहां शहर में अकाली दल को बढ़त है। भीतरघात यहां भी कांग्रेस की लुटिया डूबो सकता है। मानसा की बुढलाढा व मानसा से क्रमश: अचिंत सिंह समाओं व प्रेम मित्तल अकाली दल के लिए वरदान साबित हो रहे है। तो सरदुलगढ़ में भुंदड-मोफर में जबरदस्त टक्कर है। बठिंडा जिले की तलवंडी सीट से अमरजीत सिंह सिधु (अकालीदल) को बढ़त है तो भूच्चो मंडी से भी प्रीतम सिंह कोटभाई (अकालीदल) जीत रहे है। रामपुरा फूल में सिकंदर सिंह मलूका अबकी बार गुरप्रीत कांगड़ (कांग्रेस) से हार का बदला लेते हुए प्रतीत हो रहे है। यहां अमरजीत शर्मा (बागी कांग्रेस) ने कांगड का नुकसान किया है। यहीं स्थिति भठिंडा देहाती में दर्शन सिंह कोटफत्ता की है। यहां भी मक्खन सिंह (कांग्रेस) के वोट बैंक में सीपीआई प्रत्याशी सुरजीत सोही ने सेंध लगा दी है। मोड़ में भी मनप्रीत बादल की जीत यकीनी नहीं है। यहां अकाली दल के जनमेजा सिंह सेंखों शुरूआत में पिछड़े माने जा रहे थे ने कांग्रेस के मंगत राय बांसल को कड़ी टक्कर दी है। यहां भी नतीजा हैरानी जनक हो सकता है। बठिंडा शहरी सीट पर कांग्रेस की पक्की जीत भी सरूप सिंगला (अकाली दल) के चक्रव्यूह के चलते सशंय के घेरे में आ गई है। संगरूर जिले के लहरागागा में रजिदं्र कौर भळल को खतरा बना हुआ है। दिड़वा (सुरक्षित) में अकाली बलबीर घुन्नस जीत रहे है। सुनाम में सुखदेव सिंह ढीढ़ंसा की साख दाव पर है। यहां परमिंद्र ढीढंसा को अमन अरोड़ा से कड़ी टक्कर मिल रही है। मलेरकोटला में कांग्रेस की रजिया सुल्तान भी कड़े मुकाबले में निसारा आलम से जूझ रही है। यहां बसपा ने कांग्रेस का बड़ा नुकसान किया जो रजिया सुल्तान के लिए घातक सिद्ध हुआ है व अकाली दल की लॉटरी यहां निकल सकती है। धूरी में तिकोना मुकाबला है। पंरत ूकांग्रेस के अरविंद्र खन्ना का हाथ ऊपर है। अमरगढ़ (सु.) में सुरजीत सिंह धीमान (कांग्रेस) व इकबाल सिंह झूंदा (अकालीदल) को पीपीपी के अजीत सिंह चंदुराईयां जबरदस्त टक्कर दे रहे है। संगरूर में अकाली प्रकाश गर्ग की स्थिति सांझा मोर्चे के बलदेव मान व कांग्रेस के सुरेंद्र पाल सिबीया के मुकाबले थोड़ी बेहतर है। बरनाला में मलकीत कीतू (अकालीदल) व केवल सिंह ढिल्लो (कांग्रेस) में बड़ी टक्कर है। कीतू यहां पिछली हार का बदला चुकाने के करीब है। तो भदोड़ (सु.) में पूर्व नोकरशाह दरबारा सिंह गुरू गायक मोहम्मद सदीक पर भारी पड़ रहे है या सीपीआई के खुशियां सिंह कितनी सेंध कांग्रेस के मतों में लगा पाए इस पर हार-जीत निर्भर है। महलकलां (सु.) में कांग्रेस की हरचंद कौर घनोरी का हाथ ऊपर बताया जा रहा है। इस क्षेत्र की 38 सीटों में से अकाली भाजपा को 18 सीटों पर बढ़त है जबकि 8 सीटों पर कांग्रेस आगे है। पीपीपी 2 सीटों पर बढ़त बनाऐ हुए है व10 सीटों पर कड़ा मुकाबला है
इस प्रकार अकाली भाजपा को 117 में से 53 सीटों पर स्पष्ट बढ़त मिल रही है वही कांग्रेस 35 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है आजाद व अन्य 5 सीटों पर आगे है जबकि 24 सीटों पर कड़ा मुकाबला है कड़े मुकाबले वाली 24 सीटें अगर दोनो प्रमुख दलों में 12-12 बांट दे तो अकाली दल गठबंधन का 65 सीटों के साथ दोबारा सत्ता में लोटना तय माना जा रहा है।
9354862355
डबवाली- पंजाब प्रदेश में मतदाता अब की बार रिवायत वाकई बदलने जा रहे है। अकाली-भाजपा गठजोड़ हैरानीजनक तौर पर लगातार दूसरी बार सता सम्भालने के नजदीक पहुंच गया है। प्रदेश भर में कहीं भी सतारूढ़ गठबंधन को एन्टी-एनकम्बैंसी फैक्टर का बड़ा नुकसान होने की कोई सूचना नहीं है। हालांकि चुनावी घोषणा से पूर्व कांग्रेस की बढ़त मानी जा रही थी। मनप्रीत बादल द्वारा अकालीदल से बगावत कांग्रेसी खेमे के लिए वरदान समझी जा रही थी । मालवा के बड़े इलाके को प्रभावित करने वाला डेरा सच्चा सौदा का समर्थक वोट बैंक भी कांग्रेस के पक्ष में एकतरफा माना जा रहा था। परंतु टिकट बंटवारे से कांग्रेस में हुई बड़ी बगावत से हालात पलटने शुरू हुए तथा उसके बाद प्रदेश की राजनीति में घटा प्रत्येक घटनाक्रम अकाली-भाजपा गठबंधन के पक्ष में होता चला गया। जैसे कि मनप्रीत बादल द्वारा वामपंथियों से समझौता कांग्रेस के लिए बेहद नुकसान देह रहा। साथ ही सिरसा के सच्चा सौदा डेरा ने भी कांग्रेस के पक्ष में पिछले चुनाव की तरह स्पष्ट ऐलान करने से इंकार कर दिया। तथा एक दर्जन सीटों पर डेरा प्रेमियों द्वारा अकाली दल गठबंधन के पक्ष में मतदान करने की पुख्ता सूचनाऐं है। प्रदेश में मनप्रीत बादल के नेतृत्व में 115 सीटों पर सांझा मोर्चा चुनाव लड़ा, जिन में 22 सीटों पर वामपंथियों ने उम्मीदवार उतारे। गौरतलब है कि वामपंथियों ने पिछले चुनाव में कांग्रेस का समर्थन किया था। मनप्रीत के मोर्चे की तरफ सतापक्ष से नाराज होने वाले काफी मतदाताओं का रूझान देखा गया। यह भी कांग्रेस के लिए नुकसान देह माना जा रहा है। चूंकि सांझा मोर्चा न बनता तो इन मतों का झुकाव स्वाभाविक रूप से कांग्रेस के पक्ष में होना था। इसके अलावा चुनाव आयोग द्वारा शुरूआती दौर में की गई जबरदस्त सख्ती अंत में खोखली साबित हुई तथा कथित रूप से पैंसों का जो खुला खेल हुआ उसमें भी कांग्रेस पिछड़ती दिखाई दी। कुल मिलाकर वरिष्ठतम मुख्यमंत्री स. प्रकाश सिंह बादल ने राजनीतिक चार्तुय का जैसा सटीक प्रदर्शन चुनावी चक्रव्यूह के प्रत्येक क्षेत्र में किया यह बेमिसाल कहा जा सकता है। एक-दो नेताओं को छोड़कर सभी नामवर नेताओं या उनके प्रभावशाली संबंधियों को चुनाव मैदान में उतारा। जोकि अधिकांश स्थानों पर जीत की ओर अग्रसर है। प्रदेश में प्रभावी किसान जत्थेबंदी प्रधानो ं के साथ-साथ संत समाज प्रमुखों को भी गठबंधन के पक्ष में चुनावी मुहिम चलाने हेतु रजामंद किया साथ ही डेरा प्रेमियों का एक हिस्सा भी अपने पक्ष करने में सफल रहे है कांग्रेस के मुकाबले सतारूढ़ गठबंधन का घोषणापत्र भी मतदाताओं को आकर्षित करने में सफल रहा। वहीं सुखबीर बादल व हरसिमरत कौर बादल के जोशीले भाषणों से जनसभाओं में अकाली कार्यकर्ताओं को उत्साहित होते देखा गया। वहीं कैप्टन अमरेंद्र सिंह का जादू बड़ी बगावत के चलते ढलता सा प्रतीत होता रहा। तथा राजेंद्र कौर भ_ल व जगमीत बराड़ जैसे दूसरे नेता प्रदेश में अपना प्रभाव नही छोड़ पाए।
माझा, दोआबा में हालांकि सतारूढ़ गठबंधन पिछला प्रदर्शन नहीं दोहरा पा रहा है। वैसे भी जब किसी चुनाव में अगर बड़ी लहर न हो तो स्थानीय समीकरण ही जीत हार तय किया करते है। ऐसे ही हालातों में बागी उम्मीदवार या भीतरघात चुनावी नतीजों को पूरी तरह से बदलने में सफल हो जाते है। परिसिमन के चलते चुनाव क्षेत्रों में हुई फेरबदल चुनावी नतीजों को प्रभावित कर रही है तथा सुच्चा सिंह छोटेपुर व हंसराज जोसन जैसे कई बागी प्रत्याशी दो-दो हलकों के नतीजों को प्रभावित कर रहे है। कांग्रेस के बागी उम्मीदवारों या भीतरघात से पार्टी को जिन सीटों पर यकीनन हार का सामना करना पड़ रहा है उनमें सुजानपुर, पठानकोट, गुरदासपुर, कांदिया, डेरा बाबा नानक, मजीठा, अमृतसर (पूर्वी), बाबा बकाला, जालंधर (उतरी), जालंधर(केंट), मुकेरिया, चब्बेवाल, बलाचौर, आनंदपुर साहिब, चमकौर साहिब, खरड़, डेरा बस्सी, फतेहगढ़ साहिब, अमलोह, साहनेवाल, बाघापुराना, फिरोजपुर शहर, जलालाबाद, बल्लुआना, गिदढ़बाहा, मलोट, कोटकपुरा, रामपुरा फूल, भदोड़, शुतराना,जीरा शामिल है। अकाली-भाजपा गठजोड़ को बागियों के चलते निम्रलिखित स्थानों पर हार का सामना करना पड़ सकता है। तरनतारन, आत्म नगर, अबोहर, घनौर, महलकलां, नवां शहर। डेरा बस्सी व फतेहगढ़ साहिब ऐसी सीटे है जहां अकाली दल एवं कांग्रेस दोनों के ही बागी है। इसके अलावा ऐसे हलके हैं जहां कांग्रेस छोड़कर पीपीपी की टिकट पर चुनाव लड़ रहे व सीपीआई, सीपीएम के चिन्ह पर चुनावी किस्मत आजमा रहे मजबूत प्रत्याशी अकाली दल गठबंधन की जीत का कारण बन रहे ळै। इसमें बठिंडा देहाती, भूच्चो मंडी, तलवंडी साबो, बुडलाडा, होशियारपुर, मानसा आदि है। बसपा भी फाजिल्का, आदमपुर तथा मलेरकोटला जैसी सीटों पर भारी तादाद में कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगा रही है।
माझा में पिछली बार 21 सीटों पर सत्तारूढ़ गठबंधन को विजय प्राप्त हुई थी। अब थोड़ी कमजोरी यहां है। पठानकोट जिले की पठानकोट व सुजानपुर सीटों पर कांग्रेस की यकीनी हार है। भाजपा के अश्विनी शर्मा के लिए कांग्रेस के बागी अशोक शर्मा ने राह आसान कर दी है। जबकि सुजानपुर में भाजपा के दिनेश बब्बू, बागी कांग्रेसी नरेशपुरी पर भारी है। यहां कांग्रेस के विनय महाजन तीसरे स्थान पर है।भोआ में भाजपा एवं कांग्रेस के क्रमश: सीमा देवी व बलबीर राज दोनों को भीतरघात से जूझना पड़ रहा है। थोड़ी बढ़त कांग्रेस की यहां है। गुरदासपुर जिले में बटाला सीट पर अश्विनी सेखड़ी (कांग्रेस) की जीत तय है तो गुरदासपुर से अकालीदल के गुरबचन सिंह बब्बेहाली बढिय़ा काम एवं कांग्रेस के भीतरघात के सहयोग से आसान जीत दर्ज कर रहे है। दीना नगर में भाजपा कांग्रेस में नजदीकी मुकाबला है। कांग्रेस के बागी सुच्चा सिंह छोटेपुर ने कांदिया में जहां सेवा सिंह सेखवा (अकालीदल) की राह आसान कर दी। वहीं डेरा बाबा नानक से सूच्चा सिंह लंगाह (अकालीदल) को भी राहत दे रहे हैं। फतेहगढ़ चूडिय़ा में निर्मल सिंह काहलो (अकालीदल) कांग्रेस के तृप्त राजेंद्र सिंह बाजवां पर भारी पड़ रहे है। रिर्जव हलके हरगोबिंदपुर से भी अकालीदल के देशराज घुग्गा की कांग्रेस के बलविंद्र सिंह लाड़ी पर साफ बढ़त है। तरनतारन जिले में अकालीदल का दबदबा बरकरार है। तरनतारन हलका में अकाली बागी दविंद्र सिंह लाली का कांग्रेस के धर्मवीर अग्हिोत्री से मुकाबला है। यहां मौजूदा विधायक हरमीत सिंह संधु पिछे रह गए है। पट्टी से आदेश प्रताप केरो व खेमकरण से बिरसा सिंह बल्टोहा साफ जीत दर्ज कर रहे है। खडूर साहिब हलका से मांझे के दिग्गज अकाली नेता रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा कांग्रेसी रमनजीत सिंह पर भारी माने जा रहे है। अमृतसर जिला में सत्तारूढ़ गठबंधन को बढ़त हासिल हो रही है। अजनाला से अकाली अमरपाल बोनी कांग्रेस के हरप्रताप अजनाला से आगे है। सांसद डॉ. रतन सिंह अजनाला का यह क्षेत्र अकाली दल का परम्परागत गढ़ माना जाता है। मजीठा में विक्रम सिंह मजीठिया बड़ी जीत दर्ज कर रहे है। राजा सांसी में सुखविंद्र सिंह सरकारिया व अकाली वीर सिंह लोपोके में बड़ी टक्कर है। परंतु सरकारिया को थोड़ी बढ़त है। जंडियाला रिर्जव में भी इसी प्रकार का मामला है यहां भी सरदूल सिंह (कांग्रेस)व बलजीत सिंह जलाल (अकालीदल) में नजदीकी टक्कर है। अटारी रिर्जव में अकाली गुलजार सिंह राणिके आरामदायक स्थिति में है। तो बाबा बकाला रिजर्व में भी कांग्रेस की बगावत ने अकाली मनजीत सिंह मना को जीत के राह पर ला दिया है। अमृतसर (उतरी) में भाजपा के अनिल जोशी बेहद मजबूत है तो अमृतसर (पश्चिमी)में यहीं स्थिति कांग्रेस के राजकुमार वेरका की है। अमृतसर केंद्रीय में कांग्रेस के ओपी सोनी भाजपा के तरूण चुघ पर भारी पड़ रहे है। अमृतसर (पूर्वी) में डॉ. नवजोत कौर सिधु की राह कांग्रेस की लड़ाई ने आसान कर दी है। अमृतसर (दक्षिण) में अकाली उम्मीदवार इन्द्रवीर सिंह बुलारिया कांग्रेस के जसबीर सिंह डिम्पा पर भारी पड़ रहे है। हालांकि गुरप्रताप टिक्का (अकाली बागी) उनका नुकसान कर रहे है। माझा में अकाली-भाजपा 15 सीटों पर तथा कांग्रेस 6 पर बढ़त बना पायी है जबकि 4 स्थानों पर कड़ा मुकाबला है।
दोआबा के कपूरथला जिला के कपूरथला हलका में कांग्रेस के गुरजीत राणा को अकाली दल के सर्वजीत मक्कड़ ने कड़ी टक्कर दी है। पीपीपी के रघुवीर सिंह ने मुकाबला तिकोना बनाने का प्रयास किया। कुल मिलाकर गुरजीत राणा की राह आसान नहीं है। तो भुुलत्थ में बीबी जागीर कौर पिछली हार का बदला चुकाती प्रतीत हो रही है। सुल्तानपुर लोधी में अकाली डॉ. उपीन्द्रजीत कौर की जीत तय है। वहीं फगवाड़ा से भाजपा के पूर्व आईएएस सोम प्रकाश विधानसभा में पहुंच जाएंगे। जालंधर जिला हैरानी जनक नतीजे दे सकता है। नकोदर से अमरजीत समरा (कांग्रेसी) की हालत पतली है। अकाली गुरप्रताप सिंह बडाला अपने पिता कुलदीप बडाला की हार का बदला लेने के बेहद नजदीक माने जा रहे है। शाहकोट में भी अकाली दिग्गज अजीत सिंह कोहाड़ कांग्रेस के कर्नल सीडी सिंह कम्बोज पर भारी पड़ रहे है। फिल्लोर (सु.) व करतारपुर (सु.) में कांग्रेसी संतोख सिंह व जगजीत सिंह मजबूत स्थिति में है लेकिन आदमपुर मं अकाली व कांग्रेस दोनों ही प्रत्याशी बसपा से जुडे रहे है। यहां बसपा के साथ इनका तिकोना मुकाबला है लेकिन अकाली पवन टिनू को बढ़त है। जालंधर पश्चमी में सांसद पत्नी सुमन केपी जीत के नजदीक है। वहीं जालंधर केंदी्रय में मनोरंजन कालिया भी सीट बचा ले जा रहे है लेकिन जालंधर उतरी में कांग्रेस दिग्गज अवतार हैनरी को बागी दिनेश ढल्ल ने झटका दिया है। यहां भाजपा के केडी भंडारी की लॉटरी खुल रही है। जालंधर केंट में जगवीर सिंह बराड़ का पीपीपी छोडऩा घातक साबित हुआ है तथा प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी प्रगट सिंह का स्कूप गोल में तबदील होने जा रहा है। होशियारपुर जिला के मुकेरियां हलके से कांग्रेस मुकाबले से बाहर है। यहां पूर्व विधानसभा स्पीकर केवल कृष्ण के पुत्र रजनीश बब्बी का भाजपा के अरूणेश शाकर से मुकाबला है। दसूहा में भाजपा के अमरजीत शाही व कांग्रेस के रमेश चंद्र डोगरा में कड़ी टक्कर है। शाम चौरासी (सु.)में कांग्रेस के चौधरी राम लुभाया की अकाली महेंद्र कौर जोश पर थोड़ी बढ़त हासिल है। होशियारपुर में भाजपा के तीक्षण सूद की प्रतिष्ठा दाव पर है। कांग्रेस के सुंदर शाम अरोड़ा उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे है। परंतु वे भीतरघात से नहीं बच पाए है। चब्बेवाल (सु.)में अकाली सोहन सिंह ठंडल जीत रहे है तो उड़मुड़ में मुकाबला सख्त है। यहां अकाली प्रत्याशी को थोड़ी बगावत झेलनी पड़ी है। गढशंकर में लव कुमार गोल्ड़ी के लिए चिंताजनक खबरे है यहां भाजपा से सीट बदलकर अकालीदल ने सुरेंद्र सिंह राठा को मैदान में उतारा था। यह दाव अकाली दल के लिए चलता दिखाई दे रहा है। नवांशहर में कांग्रेस की गुरइकबाल कौर की जीत भी तय मानी जा रही है। जबकि बंगा (सु.) में सोहन सिंह अकालीदल व तरलोचन सिंह कांग्रेसी में पलड़ा थोडा कांग्रेस का झुका हुआ लग रहा है। बलाचोर में अकाली दल के चौ. नंद लाल जीत की और है दोआबा में 23 सीटों में कांग्रेस 9 सीटों, अकाली भाजपा 8 सीटों पर जीत दर्ज कर रही है। जबकि एक पर आजाद व 5 सीटों पर नजदीकी मुकाबला है।
अब बारी मालवा की है। मालवा को दो भागों में चुनावी स्थिति मुताबिक बांटा गया है। पटियाला, फतेहगढ़ साहिब, रोपड़, मोहाली जिलों की कुल 31 सीटें है। यह इलाका मालवा के बाकि इलाके से अपेक्षाकृत रूप से हर क्षेत्र में आगे है। यहां कांग्रेस का प्रदर्शन प्रभावशाली रहने जा रहा है जबकि बठिंडा, मानसा, संगरूर आदि 8 जिलों की 38 सीटों पर अब की बार अकाली शानदार जीत दर्ज करने जा रहे है। रोपड़ जिला के आनंदपुर साहिब से भाजपा के मनमोहन मित्तल व चमकौर साहिब (सु.) से अकाली जगमीत कौर संधु को बढ़त है तो रूपनगर में कांग्रेस के रमेशदत्त शर्मा आगे है। मोहाली जिला के खरड़ में कांग्रेस की भीतरघात अकाली उजागर सिंह बड़ाली के लिए वरदान साबित हुई है। यहीं स्थिति मोहाली में कांग्रेस के बलबीर सिंह संधु की है। रामुवालिया पिछड़े हुए प्रतीत होते है। डेरा बस्सी में कांग्रेसी बागी दीपइंद्र ढिल्लों व अकाली एनके शर्मा में बेहद नजदीकी मुकाबला है। ै। बस्सी पठाना (सु.) में सांसद परमजीत कौर गुलशन के पति रिटायर्ड जस्टिस निर्मल सिंह जीत के करीब है। फतेहगढ़ साहिब में चौकोने मुकाबले में प्रेम सिंह चंदूमाजरा के राजनीतिक कौशल की परिक्षा है। यहां अकाली-कांग्रेस दोनों को बागियों से जूझना पड़ रहा है। लुधियाना जिला अकाली-भाजपा के लिए निराशाजनक नतीजे देने जा रहा है। खन्ना में स्व. बेअंत सिंह के पौत्र गुरकीरत सिंह कोटली की स्थिति अकाली दिग्गज जगदेव सिंह तलवंडी के पुत्र रणजीत सिंह तलवंडी के मुकाबले बेहतर है। यंहा पीपीपी ने मुकाबला तिकोना बना दिया।वंहीे समराला में कांग्रेसी अमरीक सिंह ढिल्लो, कृपाल सिंह खीरनियां (अकाली) पर भारी पड़ रहे है। साहनेवाल में जरूर अकाली पूर्व सांसद सरनजीत सिंह ढिल्लो जीत की राह पर है। गिल (सु.) में भी कांग्रेसी मलकीत सिंह दाखा भारी है। रायकोट (सु.) में अकाली विक्रमजीत सिंह खालसा व कांग्रेसी गुरचरण सिंह बोयारोय में मुकाबला कड़ा है। यह जत्थेदार तलवंडी का इलाका है। हलका दाखा में अकाली मनप्रीत अयाली ने कांग्रेस के मजबूत माने जा रहे जस्सी खंगूड़ा को पीछे धकेल दिया है। जगरांव (सु.) में भी नोकरशाह रहे एसआर कलेर कांग्रेस के ईशर सिंह मेहरबान पर भारी पड़ रहे है।। हलका पायल (सु.) में लोकसभा के पूर्व डिप्टी स्पीकर चरणजीत अटवाल (अकाली) की भी जीत तय है। लुधियाना शहर में बैंस बंधुओं ने अकाली-भाजपा के समीकरण बिगाड़ दिए है। लुधियाना पूर्व में कांग्रेसी गुरमेल सिंह पहलवान का अकाली दल के रणजीत सिंह ढिल्लो से सख्त मुकाबला है। यहां कांग्रेसी बागी जगमोहन शर्मा के आखिरी समय में चुनाव मैदान से हट जाने के कारण कांग्रेस को थोड़ी बढ़त है। आत्मनगर में बागी सिमरजीत बैंस जीत रहे है। लुधियाना दक्षिण में हाकम सिंह ग्यासपुरा को बढ़त है। लुधियाना केंद्रीय में भाजपा के सतपाल गोसाईं कांग्रेस के सुरेंद्र डावर को कड़ी टक्कर दे रहे है। यहीं स्थिति लुधियाना पश्चमी में है यंहा कांग्रेस के भारत कुमार आशु व भाजपा के सतपाल गोसाईं के बीच मुकाबला है। लेकिन लुधियाना उतरी में भाजपा के प्रवीण बांसल (उपमेयर)को कांग्रेस के राकेश पांडे पर बढ़त हासिल है। पटियाला जिला भी कांग्रेस के पक्ष में जा रहा है। नाभा रिर्जव में पुराने प्रतिद्वंदी साधु सिंह धरमसोत (कांग्रेस) व बलवंत सिंह शाहपुर (अकाली) में फिर कड़ी टक्कर है। कांग्रेस थोड़ी आगे है। पटियाला शहर में अमरेंद्र सिंह को जो बढ़त है वैसी स्थिति समाना में उनके युवराज रणइंद्र की नहीं है। यहां अकाली दल के सुरजीत रखड़ा उन्हें टक्कर दे रहे है। रणइंद्र चुनाव हार भी सकते है। पटियाला देहाती में स्व. गुरचरण सिंह टोहड़ा की बेटी कुलदीप कौर टोहड़ा को ब्रह्म महेंद्रा (कांगे्रस)पर बढ़त हासिल है। हालांकि बागी अकाली सतबीर खटड़ा ने उनका नुकसान किया है। शुतराना रिर्जव सीट पर अकाली दल प्रत्याशी विरेंद्र कौर लुम्बा को स्पष्ट बढ़त है। यहां वामपंथी उम्मीदवार ने कांग्रेस का बड़ा नुकसान किया है। राजपुरा में राज खुराना (भाजपा) अपनी बिरादरी की 42 हजार वोटों के समर्थन से एकबार फिर जीत की और बढ़ रहे है। कांग्रेस के हरदयाल कम्बोज यहां पिछड़ गए है। घनौर में अकाली बागी ने कांग्रेस के मदन लाल जलालपुर की राह सुगम कर दी है। तो सनोर में दिग्गज कांग्रेसी लाल सिंह को तेजिंद्र पाल संधु (अकालीदल)ने खतरे में डाल दिया है यंहा भी समाना की तरह हैरानी जनक नतीजा आ सकता है । इस प्रकार मालवा के इस हिस्से की 31 सीटों में 12 कांग्रेस व 12 अकाली-भाजपा जीत दर्ज कर सकते है। 2 स्थानों पर आजाद प्रत्याशियों को बढ़त है जबकि 5 स्थानों पर कड़ा मुकाबला है।
अब मालवा का वो इलाका जिस में 38 सीटे है तथा पिछले चुनाव में कांग्रेस की यहां बल्ले-बल्ले हो गई थी। परंतु यह इलाका ही अब अकाली-भाजपा को दोबारा सत्ता में लाने जा रहा है। डेरा सिरसा के समर्थकों ने पिछली बार एकतरफा मतदान कांग्रेस के पक्ष में ही किया था परंतु अब की बार हालात पूरी तरह से बदल गए तथा डेरा समर्थकों ने दोनों पक्षों को ही खुश रखा है। मोगा जिले में निहाल सिंहवाला में राजविंदर कौर (अकालीदल) व बाघपुराना में महेंशइंद्र सिंह (अकालीदल) आसान जीत दर्ज कर रहे है। तो धरमकोट में तोता सिंह (अकालीदल) ने अपने सियासी कौशल व परम्परागत रूप से मजबूत अकाली क्षेत्र का फायदा उठा कर बढ़त बना ही ली। अकाली दल से ऐन मौके पर कांग्रेस में जाकर उम्मीदवार बने सुखजीत सिंह लोहगढ़ को कांगे्रस समर्थकों (मालती थापर गुट) की अंदरूनी मार झैलनी पड़ी है। मोगा में मामला बेहद नजदीकी बना हुआ है। पूर्व डीजीपी परमजीत सिंह गिल (अकालीदल) ने वाकई मंझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह चुनाव लड़ा। यहां पीपीपी ने भी टक्कर दी है। जोगेद्रपाल जैन के लिए राह आसान नहीं है। फिरोजपुर जिले की कांग्रेस की सब से आसान मानी जा रही गुरूहरसहाय सीट पर भी जबरदस्त टक्कर हुई। राणा सोढी को पूर्व सांसद जोरा सिंह मान के लड़के बरदेव सिंह मान (अकाली दल) ने अहसास करवा दिया कि राजनीति में सब कुछ इतना आसान नहीं होता। जीरा भी अबकी बार कांग्रेस के हाथ से निकल रहा है। हरी सिंह जीरा ने नरेश कटारिया (कांग्रेस विधायक) पर बढ़त बना ली है। फिरोजपुर शहर में भाजपा के विधायक सुखपाल सिंह ननु की बढ़त है कांग्रेसी बागी रविंद्र बबल ने कांग्र्रेस उम्मीदवार परमिंदर पिंकी की जीत पर ब्रेकर लगा दिए है। फिरोजपुर देहाती रिर्जव में भी कांग्रेस-अकालीदल में बराबरी का मुकाबला है। फाजिल्का जिला की चारों सीटें कांगे्रस हार रही है। जिला बनाने का सबसे ज्यादा फायदा भाजपा के सुरजीत ज्याणी को हो रहा है। फाजिल्का में ज्याणी असानी से जीत रहे है। जलालाबाद से बागी होकर चुनाव लड़ रहे हंसराज जोसन कम्बोज बिरादरी के कद्दावर नेता है की टिकट काट कर कांग्रेस ने आत्मघाती कदम उठाया है। जोसन कई हलकों में कांग्रेस का नुकसान कर गए। जलालाबाद में सुखबीर बादल को बढ़त है। तो बल्लुआना में कांग्रेस बागी प्रकाश भटी एवं पीपीपी के रमेश मेघवाल ने गुरतेज सिंह घुडिय़ाना की लॉटरी खोल दी है। अबोहर में आजाद शिवलाल शौली ने जातिगत समीकरणों के सहारे ताकतवर सुनील जाखड़ पर बढ़त बना ली है। मुक्तसर जिला की लम्बी सीट पर मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल जीत रहे है। तो मुक्तसर में कांग्रेस की कर्ण बराड़ की राह आसान है। मलोट में अकाली दल के हरप्रीत सिंह अगर जीत रहे है तो उन्हें कांग्रेस के बागी बलदेव सिंह बलमगढ़ व हरबंस 'गरीबÓ का शुक्रगुजार होना चाहिए। गिदड़बाहा में मनप्रीत बादल तो यकीनन हार रहे है। कांग्रेस से आकर अकालीदल की टिकट पर चुनाव लड़ रहे संत सिंह बराड़ को कांग्रेस के एक धड़े का खुला समर्थन भी मिला। जिसके चलते कांग्रेसी राजा बडिंग़ पिछड़ गए है। फरीदकोट की जैतो रिर्जव से गुरदेव बादल आरामदायक स्थिति में है तो कोटकपुरा में बागी उपेंद्र शर्मा ने रिपजीत बराड़ की हार तय कर दी है। यहां अकाली दल के मनतार बराड़ की स्थिति बेहद मजबूत है। फरीदकोट में अकालीदल के दीप मलहोत्रा ने भी मुकाबला कांटे का बना दिया है। यहां शहर में अकाली दल को बढ़त है। भीतरघात यहां भी कांग्रेस की लुटिया डूबो सकता है। मानसा की बुढलाढा व मानसा से क्रमश: अचिंत सिंह समाओं व प्रेम मित्तल अकाली दल के लिए वरदान साबित हो रहे है। तो सरदुलगढ़ में भुंदड-मोफर में जबरदस्त टक्कर है। बठिंडा जिले की तलवंडी सीट से अमरजीत सिंह सिधु (अकालीदल) को बढ़त है तो भूच्चो मंडी से भी प्रीतम सिंह कोटभाई (अकालीदल) जीत रहे है। रामपुरा फूल में सिकंदर सिंह मलूका अबकी बार गुरप्रीत कांगड़ (कांग्रेस) से हार का बदला लेते हुए प्रतीत हो रहे है। यहां अमरजीत शर्मा (बागी कांग्रेस) ने कांगड का नुकसान किया है। यहीं स्थिति भठिंडा देहाती में दर्शन सिंह कोटफत्ता की है। यहां भी मक्खन सिंह (कांग्रेस) के वोट बैंक में सीपीआई प्रत्याशी सुरजीत सोही ने सेंध लगा दी है। मोड़ में भी मनप्रीत बादल की जीत यकीनी नहीं है। यहां अकाली दल के जनमेजा सिंह सेंखों शुरूआत में पिछड़े माने जा रहे थे ने कांग्रेस के मंगत राय बांसल को कड़ी टक्कर दी है। यहां भी नतीजा हैरानी जनक हो सकता है। बठिंडा शहरी सीट पर कांग्रेस की पक्की जीत भी सरूप सिंगला (अकाली दल) के चक्रव्यूह के चलते सशंय के घेरे में आ गई है। संगरूर जिले के लहरागागा में रजिदं्र कौर भळल को खतरा बना हुआ है। दिड़वा (सुरक्षित) में अकाली बलबीर घुन्नस जीत रहे है। सुनाम में सुखदेव सिंह ढीढ़ंसा की साख दाव पर है। यहां परमिंद्र ढीढंसा को अमन अरोड़ा से कड़ी टक्कर मिल रही है। मलेरकोटला में कांग्रेस की रजिया सुल्तान भी कड़े मुकाबले में निसारा आलम से जूझ रही है। यहां बसपा ने कांग्रेस का बड़ा नुकसान किया जो रजिया सुल्तान के लिए घातक सिद्ध हुआ है व अकाली दल की लॉटरी यहां निकल सकती है। धूरी में तिकोना मुकाबला है। पंरत ूकांग्रेस के अरविंद्र खन्ना का हाथ ऊपर है। अमरगढ़ (सु.) में सुरजीत सिंह धीमान (कांग्रेस) व इकबाल सिंह झूंदा (अकालीदल) को पीपीपी के अजीत सिंह चंदुराईयां जबरदस्त टक्कर दे रहे है। संगरूर में अकाली प्रकाश गर्ग की स्थिति सांझा मोर्चे के बलदेव मान व कांग्रेस के सुरेंद्र पाल सिबीया के मुकाबले थोड़ी बेहतर है। बरनाला में मलकीत कीतू (अकालीदल) व केवल सिंह ढिल्लो (कांग्रेस) में बड़ी टक्कर है। कीतू यहां पिछली हार का बदला चुकाने के करीब है। तो भदोड़ (सु.) में पूर्व नोकरशाह दरबारा सिंह गुरू गायक मोहम्मद सदीक पर भारी पड़ रहे है या सीपीआई के खुशियां सिंह कितनी सेंध कांग्रेस के मतों में लगा पाए इस पर हार-जीत निर्भर है। महलकलां (सु.) में कांग्रेस की हरचंद कौर घनोरी का हाथ ऊपर बताया जा रहा है। इस क्षेत्र की 38 सीटों में से अकाली भाजपा को 18 सीटों पर बढ़त है जबकि 8 सीटों पर कांग्रेस आगे है। पीपीपी 2 सीटों पर बढ़त बनाऐ हुए है व10 सीटों पर कड़ा मुकाबला है
इस प्रकार अकाली भाजपा को 117 में से 53 सीटों पर स्पष्ट बढ़त मिल रही है वही कांग्रेस 35 सीटों पर बढ़त बनाए हुए है आजाद व अन्य 5 सीटों पर आगे है जबकि 24 सीटों पर कड़ा मुकाबला है कड़े मुकाबले वाली 24 सीटें अगर दोनो प्रमुख दलों में 12-12 बांट दे तो अकाली दल गठबंधन का 65 सीटों के साथ दोबारा सत्ता में लोटना तय माना जा रहा है।
कांग्रेस के अधिकांश दिग्गज हार के कगार पर
डबवाली-पंजाब में सत्ता पर काबिज होने का दावा कर रही कांग्रेस शायद इस जमीनी सच्चाई से मुंह मोड़ रही है कि उस के अधिकांश दिग्गज नेताओं को बड़े मुकाबले का सामना करना पड़ा है। लाल सिंह (सनोर), राजेंद्र कौर भ_ल(लहरा गागा), राणा गुरमीत सोढ़ी (गुरूहरसहाय), राणा गुरजीत सिंह (कपूरथला), अमरजीत समरा (नकोदर), जीत महेंद्र (तलवंड़ी साबो), हरमिंदर सिंह जस्सी (बठिंडा), रजिया सुल्तान (मलेरकोटला), सुनील जाखड़ (अबोहर), अवतार हैनरी (जालंधर उत्तरी), सुखपाल खेहरा (भुलत्थ) जोकि कांग्रेस सरकार आने पर मंत्री पद के गंभीर दावोदार थे। इनमें से अधिकांश को हार का सामना करना पड़ सकता है। उधर, दिग्गज नेताओं के करीबी संबंधी रणइंद्र सिंह (समाना)कैप्टन अमरेंद्र सिंह के पुत्र, विक्रम सिंह बांजवा (साहनेवाल)राजेंद्र कौर भ_ल के दामाद, रिपजीत बराड़ (कोटकपुरा) जगमीत बराड़ के भाई, हरबंस कौर (बस्सी पठाना) पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शमशेर सिंह दूलो की पत्नी, कांदिया से सांसद प्रताप सिंह बाजवा की पत्नी चरणजीत कौर बाजवा के हालात बेहद नाजुक बताजे जा रहे है। राहुल गांधी द्वारा अलाट किए गए यूथ कोटे के प्रत्याशी कुलजीत सिंह नागरा (फतेहगढ़ साहिब), शैलिंद्र शैली (मजीठा), अमरिंन्द्र राजा वडिंग (गिदड़बाहा) तथा राजविंद्र सिंह लकी (बलाचोर) भी चुनावी जीत से कोसों दूर बताये जा रहे है। इन हालातों के चलते ही कांग्रेस अब 70+ सीटें जीतने का दावा करने से पीछे हट गई है।
भाजपा पार करेगी दहाई का आंकड़ा
2002 में कांग्रेस को सत्ता प्राप्त करने में इसलिए आसानी हो गई थी कि भाजपा केवल 3 सीटें ही जीत पाई थी। अब की बार भी चुनाव के शुरूआती चरण में ऐसी ही क्यासबाजिया लगाई जा रही थी लेकिन भाजपा ने कुछ टिकटे बदली तो कुछ जिताऊ उम्मीदवार भी उतारे। परंतु सही मायनों में तो कांग्रेस के बागियों ने ही भाजपा की राह आसान की है। अनिल जोशी (अमृतसर उत्तरी), मनोरंजन कालिया (जालंधर केंद्रीय), सुरजीत ज्याणी (फाजिल्का), सोमप्रकाश (फगवाड़ा), प्रवीण कुमार बांसल (लुधियाना उत्तरी) तथा राज खुराना (राजपुरा) सीधे मुकाबले में विरोधियों पर भारी पड़ रहे है तथा इनमें अधिकांश सीटे भाजपा जीत सकती है। लेकिन कांग्रेस के बागियों ने दिनेश बब्बू (सुजानपुर), अश्विनी शर्मा (पठानकोट), डॉ. नवजोत कौर सिधु (अमृतसर पूर्वी), केडी भंडारी (जालंधर उत्तरी), अरूणेश शाकर (मुकेरिया), तीक्षण सूद (होशियारपुर), मदन मोहन मित्तल (आनंदपुर साहिब), सुखपाल सिंह ननु (फिरोजपुर शहर), की स्थिति को मजबूत कर दिया है तथा उपरोक्त सीटों में अधिकांश पर भाजपा विजय पताका फहरा सकती है व कुल मिलाकर भाजपा का आंकड़ा दहाई को पार कर सकता है।
मनप्रीत के लिए विधानसभा का दरवाजा दूर
मनप्रीत बादल के नेतृत्व में बने सांझे मोर्चे ने अकाली-भाजपा का कम और कांग्रेस का ज्यादा नुकसान किया है तथा यह मोर्चा 2-3 स्थानों को छोड़कर जीतने की स्थिति में नहीं है। मनप्रीत बादल अपनी परम्परागत सीट गिदड़बाहा से तो तीसरे स्थान पर फिसल सकते है तथा मौड़ में भी कुछ पाकेट में ही उन्हें वोट मिले है तथा उनकी जीत की बात हलके में नहीं कही जा रही है। वामपंथियों के टकसाली वोट ले जाकर कांग्रेस का नुकसान तो मोर्चे ने किया ही है साथ ही एन्टी-एनकम्बैंसी वोटों का बड़ा हिस्सा भी उन्होंने ले जाकर कांग्रेस की बढ़त को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यूथ वोट भी मनप्रीत के प्रत्याशियों को अच्छी तादाद में मिला है। लेकिन जैसे कि उम्मीद जताई जा रही थी कि मनप्रीत बादल अकाली दल को तगड़ा झटका देगा। ऐसा नही हो पाया। बल्कि इस मोर्चे के चलते कांग्रेस को ही कुछ हद तक नुकसान झैलना पड़ा है।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)