डबवाली (यंग फ्लेम)उपमण्डल के गांव लखुआना में संदिग्ध परिस्थितियों में 25 वर्षीय किसान की मौत हो गई। मृतक की पहचान अनील कुमार पुत्र सूरजा राम निवासी लखुआना के रूप में हुई है। पुलिस को दिए ब्यान में गांव लखुआना निवासी मृतक के चचेरे भाई सुशील कुमार ने बताया कि मंगलवार शाम करीब 7 बजे उसकी ताई कलावती ने उसे जानकारी दी कि अनिल ने खांसी की दवा के भ्रम में स्प्रे पी ली है। जिससे उसकी तबीयत बिगड़ गई है। सूचना पाकर वह मौका पर पहुंचा। उस समय अनिल जमीन पर बेहोश पड़ा था और उसके मुंह से झाग निकल रही थी। वह उसे बेहोशी का हालत में तुरंत उपचार के लिए डबवाली के एक निजी अस्पताल में ले आया और इसकी जानकारी गांव के सरपंच रामजी लाल तथा ब्लाक समिति सदस्य वेदपाल डांगी को दी। वे लोग भी अस्पताल में पहुंच गए लेकिन जहर के प्रभाव के कारण कुछ देर बाद ही अनिल ने दम तोड़ दिया।
मृतक के चचेरे भाई सुशील ने बताया कि उसके ताया सूरजा राम के घर कोई संतान न होने से उसने अपनी बहन के बेटे अनिल को गोद लिया था और कुछ वर्ष पूर्व उसके ताया का देहांत होने पर सारे घर की जिम्मेदारी अनिल के कंधों पर आ गई थी और वह अपनी 4 एकड़ जमीन में खेतीबाड़ी कर अपना व अपने परिवार का गुजर बसर कर रहा था उसने बताया कि अभी दो साल पूर्व राजस्थान के गांव सात कैडी में अनील की शादी हुई थी। उसके पांच माह की एक बेटी रितू है। मामले की जांच कर रहे एएसआई आत्मा राम ने बताया कि मृतक के चचेरे भाई सुशील के उपरोक्त ब्यान के आधार पर दफा 174 सीआरपीसी के तहत इत्तफाकिया मौत की कार्रवाई करते हुए अनिल के शव का बुधवार को डबवाली के सरकारी अस्पताल से पोस्टमार्टम करवाने के बाद उसे उसके परिजनों को सौंप दिया गया।
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गुरुवार, 4 अगस्त 2011
बाजारों में धड़ल्ले से हो रहा है पॉलीथीन का प्रयोग
डबवाली (यंग फ्लेम)सरकार द्वारा प्रदेश में पॉलीथीन के प्रयोग पर पूर्ण रूप से पाबंदी लगाई गई है। लेकिन शहर के बाजारों में इसका प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। शायद इन दुकानदारों पर सरकार के आदेशों का कोई प्रभाव नहीं है। इसलिए ये दुकानदार इन आदेशों की धज्जिायां उड़ा रहे है। इस क्रम में पिछले दिनों न्ररपालिका द्वारा पॉलीथीन का प्रयोग रोकने को लेकर अभियान चलाया गया था और इस अभियान के तहत दर्जन भर दुकानदारों के चालान भी काटे गए थे और उन्हे चेतावनी भी थमाई गई थी और तो और जुर्माना भी किया गया था।
इन सब एहतिआतों के बावजूद बाजारों में पॉलीथिन का थोक में प्रयोग किया जा रहा है और सरकार के आदेशों की धज्जिायां उड़ाई जा रही हैं। पिछले दिनों शहर में नगरपालिका द्वारा तमाम दुकानदारों के चालान काटे जाने पर पॉलीथिन का प्रयोग कुछ थम सा गया था और दुकानदारों को रिसाइकिल पोलीथिन का प्रयोग करने का आदेश दिया गया था। लेकिन इसके बाद मार्केट में भले ही रिसाइकिल पोलीथिनों का प्रयोग कुछ दिन हुआ हो पर सब्जी मंडी व बाजारों में इनका प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है।इस बारे में शहर निवासी पवन कुमार ने बताया कि पॉलीथीन से उन्हें भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लोगों द्वारा पॉलीथीन का प्रयोग करने के बाद उन्हें गलियों में फैंक दिया जा है जो कि हवा के साथ उड़कर लोगों के घरों व सीवरेज आदि में चला जाता है जिस कारण लोगों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
इस बारे में जब एसडीएम मुनीश नागपाल से बात की गई तो उन्होंने कहा कि पॉलीथीन के प्रयोग पर न्यायलय के आदेशानुसार प्रतिबंध लगाया गया है। इस बारे में नगरपालिका सचिव के निर्देश दिए गए है कि और जो दुकानदार पॉलीथीन का प्रयोग कर रहे है उनके चालान आदि काटे जाए। उन्होंने लोगों से भी पॉलीथीन का प्रयोग न करने की अपील की व कहा कि बाजार से सामान लाते समय वह अपना थैला साथ लेकर जाए।
जनता को गुमराह कर रहा है इनेलो: केवी सिंह
डबवाली (यंग फ्लेम)मुख्यमंत्री के पूर्व ओएसडी एवं वरिष्ठ कांग्रेस नेता डॉ् केवी सिंह ने कहा है कि विपक्षी पार्टी इनेलो मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा की बढती लोकप्रियता से बौखला गया है और इसी कारण मुख्यमंत्री पर अनाप-शनाप आरोप लगाए जा रहे हैं। आज जारी एक बयान में डॉ. केवी सिंह ने कहा कि गुडग़ांव की जिस जमीन के अधिग्रहण को इनेलो मुद्दा बना रहा है, वह जमीन किसानों की सहमति से अधिग्रहण की गई थी। कांग्रेस सरकार ने आज तक एक ईंच जमीन किसी बिल्डर को नहीं दी है। जमीन विकास के लिए अधिग्रहण की जाती है और इसकी एवज में किसानों को पूरा मूल्य तथा नौकरी दी जा रही है। इनेलो शासन में जरूर किसानों को धमकाकर जमीन ली जाती थी जो बाद में बिल्डर्स को बेच दी जाती थी, मगर कांग्रेस शासन में ऐसा नहीं है। मुख्यमंत्री हुड्डा की नीति पाक-साफ है और हरियाणा की भूमि अधिग्रहण नीति की प्रशंसना अन्य प्रदेशों में हो रही है। डॉ. सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री की सोच विकासपरक है। सिरसा जिला में अब तक बिना भेदभाव के रिकार्ड विकास कार्य हुए हैं। अबूबशहर में कीनू प्रसंस्करण प्लांट लगाया गया है जिससे अब सिरसा का कीनू विदेशों में जाने लगा है तथा किसानों को पूरा मूल्य मिल रहा है। इसी तरह सिरसा में ओवरब्रिज बनाया गया है। देवीलाल विश्वविद्यालय को करोड़ों की ग्रांट दी गई है जबकि इनेलो शासन में इतने काम नहीं हुए थे।
62676 विद्यार्थियों को मिला आरटीई से लाभ
डबवाली (यंग फ्लेम) राज्य सरकार के निर्णयानुसार प्रदेश के सभी सरकारी स्कूलों में आठवीं तक की कक्षाओं में पढऩे वाले सभी विद्यार्थियों को नि:शुल्क यूनीफॉर्म उपलब्ध करवाई जा रही है। सिरसा जिला में इस योजना के तहत 2 करोड़ 50 लाख 70 हजार रुपए की राशि खर्च करके 62678 सामान्य वर्ग के विद्यार्थियों को वर्दी उपलब्ध करवाई जा चुकी हैें जिसमें टाई एवं बैज भी शामिल है। शिक्षा के अधिकार (राइट टू एजुकेशन) की अनुपालना में राज्य सरकार द्वारा पहली बार शुरू की गई इस योजना से सिरसा जिला में पहली से आठवीं तक की कक्षाओं में पढऩे वाले 31650 छात्रों को और 31026 छात्राओं को लाभ हुआ है। उक्त जानकारी देते हुए डा. युद्धबीर सिंह ख्यालिया ने बताया कि उक्त योजना के तहत प्रत्येक विद्यार्थी को प्रतिवर्ष 400 रुपए तक की डे्रस उपलब्ध करवाई गई। स्कूल स्तर पर 300 विद्यार्थियों तक स्कूलों में 12 सदस्यीय स्कूल मैनेजमेंट कमेटी का गठन किया गया है और 300 से 500 तक की विद्यार्थियों की संख्या वाले स्कूलों में 1500 सदस्यीय कमेटियों का गठन किया गया है। जिला मौलिक अधिकारी मधु मित्तल ने बताया कि विभाग द्वारा सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले अनुसूचित जाति के बच्चों को पहले से ही नि:शुल्क वर्दी उपलब्ध करवाई जा रही है। चूंकि अनुसूचित जाति के बच्चों को पहले जिस कलर की वर्दी उपलब्ध करवाई गई है उसी कलर की वर्दी सामान्य वर्ग के छात्रों को उपलब्ध करवाई गई है। इस योजना के तहत वर्दी का कलर चेेंज करने का अधिकार स्कूल स्तर पर गठित स्कूल मैनेजमेंट कमेटी को दिया गया है। कमेटी आगे से जिस भी कलर की वर्दी छात्रों के लिए खरीदना चाहेगी वे खरीद सकती है। उन्होंने बताया कि राइट टू एजुकेशन के तहत अब पूरे देश में पहली से आठवीं तक की कक्षाओं को सर्वशिक्षा अभियान के तहत शामिल किया गया है।
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कांग्रेस में 'प्रजातांत्रिक राजशाही'
पिछले कुछ महीनों में यंगिस्तान को तवज्जो मिलने की उम्मीदें बंधी थीं। युवाओं को यह भाव इसलिए नहीं मिला है, कि देश का उमरदराज नेतृत्व उन पर दांव लगाना चाह रहा है, इसके पीछे सीधा कारण दिखाई पड़ रहा है कि देश में 18 से 30 साल तक के करोड़ों मतदाताओं को लुभाने की गरज से साठ की उमर पार कर चुके नेताओं ने यह प्रयोग किया है कि युवाओं को आगे कर युवा मतदाताओं को अपने से जोड़ा जाए। जब लाल बत्ती की बात आती है तो कमान युवाओं के हाथों से खिसलकर फिर साठ की उमर के कांधों पर चली जाती है।
कहने को तो सभी सियासी पार्टियों द्वारा युवाओं को आगे लाने और उनके हाथ में कमान देने की बातें जोरदार तरीके से की जाती हैं, किन्तु विडम्बना ही कही जाएगी कि सियासी दल युवाओं को आगे लाने में कतराती ही हैं। कांग्रेस में नेहरू गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी राहुल गांधी को आगे लाया जा रहा है, वह भी इसलिए कि उनके नाम को भुनाकर राजनेता सत्ता की मलाई काट सकें। वरना अन्य राजनैतिक दल तो इस मामले में लगभग मौन ही साधे हुए हैं।
जितने भी युवा चेहरे आज राजनैतिक परिदृश्य में दिखाई पड़ रहे हैं उनमें से अधिक को 'अनुकंपा नियुक्ति' मिली हुई है। अपने पिता की सींची राजनैतिक जमीन को 'सिंपेथी' वोट के जरिए ये युवा काट रहे हैं, वरना कम ही एसे युवा होंगे जिन पर पार्टी ने दांव लगाया हो और वे जीतकर संसद या विधानसभा पहुंचे हों। राजनीति में स्थापित 'घरानों' के वारिसान को ही पार्टी चुनाव में उतारती है और फिर आगे जाकर अपने पिताओं की उंगली पकड़कर ये देश की दशा और दिशा निर्धारित करते हैं। कांग्रेस में युवाओं को आगे लाने के हिमायती सबसे ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने तो मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों के दो साल पहले ही अपने पुत्र जयवर्धन को राघोगढ़ से कांग्रेस का प्रत्याशी तय कर दिया है। यह प्रजातांत्रिक राजशाही का नायाब उदहारण माना जाएगा।
कांग्रेस में सोनिया गांधी (65), मनमोहन सिंह (79), प्रणव मुखर्जी (77), ए.के.अंटोनी (71) के साथ पार्टी में नेताओं की औसत उमर 74 साल है। भाजपा भी इससे पीछे नहीं है अटल बिहारी बाजपेयी (87), एल.के.आड़वाणी (84), राजनाथ सिंह (60), एम.एम.जोशी (77) तो सुषमा स्वराज (59) के साथ यहां औसत उमर 73 दर्ज की गई है। वामदलों में सीपीआईएम में प्रकाश करात (64), सीताराम येचुरी (59), बुद्धदेव भट्टाचार्य (67), अच्युतानंदन (88) के साथ यहां राजनेताओं की औसत उमर 72 तो समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव (71), अमर सिंह (55), जनेश्वर मिश्र (77), रामगोपाल यादव (65) के साथ यह सबसे यंग पार्टी अर्थात यहां औसत उमर 61 है।
सियासी पार्टियों में एक बात और गौरतलब होगी कि जितने भी युवाओं को पार्टियों ने तरजीह दी है, वे सभी जमीनी नहीं कहे जा सकते हैं। ये सभी पार्टियों में पैदा होने के स्थान पर अवतरित हुए हैं। इनमें से हर नेता किसी न किसी का 'केयर ऑफ' ही है, अर्थात यंगस्तान के नेताओं को उनके पहले वाली पीढ़ी के कारण ही जाना जाता है। ग्रास रूट लेबिल से उठकर कोई भी शीर्ष पर नहीं पहुंचा है।
पिछली बार संपन्न हुए आम चुनावों के पहले रायशुमारी के दौरान एक राजनेता ने जब अपने संसदीय क्षेत्र में अपने कार्यकर्ताओं के सामने युवाओं की हिमायत की तो एक प्रौढ़ कार्यकर्ता ने अपनी पीड़ा का इजहार करते हुए कहा कि जब मैं 29 साल पूर्व आपसे जुड़ा था तब युवा था, आज मेरा बच्चा 25 साल का हो गया है, वह पूछता है कि आप तब भी आम कार्यकर्ता थे, आज भी हैं, इन 29 सालों में आपको क्या मिला, आज मैं जवान हो गया हूं, तो किस आधार पर नेताजी युवाओं को आगे लाने की बात करते हैं।
दुनिया के चौधरी अमेरिका में युवाओं और बुजुर्गों के बीच अंतर की एक स्पष्ट फांक दिखाई पड़ती है। अमेरिका जैसे विकसित देश में जहां युवा पर्यावरण, जीवनशैली, रहन सहन और पारिवारिक मूल्यों के बारे में पुरानी पीढ़ी से अपने मत भिन्न रखती है, वहीं दूसरी ओर आधुनिक जीवनशैली के मामले में युवाओं द्वारा तेज गति से बदलाव चाहा जाता है। वैसे हमारी व्यक्तिगत राय में हर राजनैतिक दलों में युवाओं और बुजुर्गों के बीच संतुलन और तालमेल होना चाहिए। यह सच है कि उमर के साथ ही अनुभव का भंडार बढ़ता है, पर यह भी सच है कि उमर बढऩे के साथ ही साथ कार्य करने की क्षमता में भी कमी होती जाती है। जिस गति से युवाओं द्वारा कार्य को अंजाम दिया जाता है उसी तरह मार्गदर्शन के मामले में बुजुर्ग अच्छी भूमिका निभा सकते हैं।
कितने आश्चर्य की बात है कि जिस ब्यूरोक्रेसी (अफसरशाही) की बैसाखी पर चलकर राजनेता देश को चलता है, उसकी सेवानिवृत्ति की उम्र साठ या बासठ साल निर्धारित है, किन्तु जब बात राजनेताओं की आती है तो चलने, बोलने, हाथ पांव हिलाने में अक्षम नेता भी संसद या विधानसभा में पहुंचने की तमन्ना रखते हैं, यह कहां तक उचित माना जा सकता है। राजनैतिक क्षेत्र में युवा को अलग तरीके से परिभाषित किया जाता है। अघोषित तौर पर कहा जाता है कि राजनीति में युवा अर्थात 45 से 65 साल। इस हिसाब से राहुल गांधी को अगर 'अमूल बेबी' कहा जाता है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होना चाहिए। विडम्बना तो देखिए सरकार में काम करने वालों की सेवानिवृत्ति की उम्र निर्धारित है, किन्तु सरकार चलाने वालों की नहीं!
हमारे विचार से महज कुछ चेहरों के आधार पर नहीं, वरन् विचारों के आधार पर युवाओं को व्यापक स्तर पर राजनीति में आने प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। कब्र में पैर लटकाने वालों को अब राहुल गांधी से प्रेरणा लेना चाहिए। जब 41 बसंत देखने वाले राहुल गांधी कैबनेट में शामिल होने से खुद को दूर रखे हुए हैं तो फिर साठ पार कर चुके नेता आखिर लाल बत्ती के लिए जोड़तोड़ क्यों करते हैं। उन्हें भी चाहिए कि वे युवाओं को आगे लाने के हिमायती बनें पर राजा दिग्विजय सिंह जैसे नहीं जो खुद तो राजनीतिक मलाई चखने की कामना रखते हैं और अपने ही पुत्र को चुनाव में उतारने की घोषणा भी कर देते हैं, जबकि अभी न प्रत्याशी चुनाव के लिए समीति बनी है और न ही चुनावों की तारीखों की ही घोषणा हुई है। बुजुर्ग राजनैताओं का नैतिक दायित्व यह बनता है कि वे सक्रिय राजनीति से सन्यास लेकर अब मार्गदर्शक की भूमिका में आएं और युवाओं को ईमानदारी से जनसेवा का पाठ पढ़ाएं तभी गांधी के सपनों का भारत आकार ले सकेगा।
- कांग्रेस में भविष्यदृष्टा रहे तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इक्कीसवीं सदी को युवाओं की सदी घोषित किया था। उनका मानना था कि इक्कीसवीं सदी में युवाओं के मजबूत कांधों पर भारत गणराज्य उत्तरोत्तर प्रगति कर सकता है। आज सत्ता और शक्ति के शीर्ष केंद्र की बागडोर उनकी अर्धांग्नी श्रीमति सोनिया गांधी के हाथों में है। राजीव पुत्र राहुल भी चालीस को टच कर रहे हैं। इक्कीसवीं सदी का पहला दशक बीत चुका है, पर फिर भी युवा आज भी पार्श्व में ही रहने पर मजबूर हैं। कमोबेश यही आलम भाजपा सहित अन्य राजनैतिक दलों का है। भारत गणराज्य में प्रजातंत्र की सरेआम शवयात्रा निकाली जा रही है। आम जनता प्रजातंत्र के शव पर सर रखकर गगनभेदी करूण रूदन कर रहा है, किन्तु नीति निर्धारकों और विपक्ष में बैठे नेताओं को इसकी आवाज नहीं सुनाई दे रही है। कांग्रेस में युवाओं को आगे लाने के हिमायती सबसे ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने तो मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों के दो साल पहले ही अपने पुत्र जयवर्धन को राघोगढ़ से कांग्रेस का प्रत्याशी तय कर दिया है। अपने आप में यह ''प्रजातांत्रिक राजशाही'' का नायाब उदहारण माना जाएगा।
पिछले कुछ महीनों में यंगिस्तान को तवज्जो मिलने की उम्मीदें बंधी थीं। युवाओं को यह भाव इसलिए नहीं मिला है, कि देश का उमरदराज नेतृत्व उन पर दांव लगाना चाह रहा है, इसके पीछे सीधा कारण दिखाई पड़ रहा है कि देश में 18 से 30 साल तक के करोड़ों मतदाताओं को लुभाने की गरज से साठ की उमर पार कर चुके नेताओं ने यह प्रयोग किया है कि युवाओं को आगे कर युवा मतदाताओं को अपने से जोड़ा जाए। जब लाल बत्ती की बात आती है तो कमान युवाओं के हाथों से खिसलकर फिर साठ की उमर के कांधों पर चली जाती है।
कहने को तो सभी सियासी पार्टियों द्वारा युवाओं को आगे लाने और उनके हाथ में कमान देने की बातें जोरदार तरीके से की जाती हैं, किन्तु विडम्बना ही कही जाएगी कि सियासी दल युवाओं को आगे लाने में कतराती ही हैं। कांग्रेस में नेहरू गांधी परिवार की पांचवी पीढ़ी राहुल गांधी को आगे लाया जा रहा है, वह भी इसलिए कि उनके नाम को भुनाकर राजनेता सत्ता की मलाई काट सकें। वरना अन्य राजनैतिक दल तो इस मामले में लगभग मौन ही साधे हुए हैं।
जितने भी युवा चेहरे आज राजनैतिक परिदृश्य में दिखाई पड़ रहे हैं उनमें से अधिक को 'अनुकंपा नियुक्ति' मिली हुई है। अपने पिता की सींची राजनैतिक जमीन को 'सिंपेथी' वोट के जरिए ये युवा काट रहे हैं, वरना कम ही एसे युवा होंगे जिन पर पार्टी ने दांव लगाया हो और वे जीतकर संसद या विधानसभा पहुंचे हों। राजनीति में स्थापित 'घरानों' के वारिसान को ही पार्टी चुनाव में उतारती है और फिर आगे जाकर अपने पिताओं की उंगली पकड़कर ये देश की दशा और दिशा निर्धारित करते हैं। कांग्रेस में युवाओं को आगे लाने के हिमायती सबसे ताकतवर महासचिव राजा दिग्विजय सिंह ने तो मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों के दो साल पहले ही अपने पुत्र जयवर्धन को राघोगढ़ से कांग्रेस का प्रत्याशी तय कर दिया है। यह प्रजातांत्रिक राजशाही का नायाब उदहारण माना जाएगा।
कांग्रेस में सोनिया गांधी (65), मनमोहन सिंह (79), प्रणव मुखर्जी (77), ए.के.अंटोनी (71) के साथ पार्टी में नेताओं की औसत उमर 74 साल है। भाजपा भी इससे पीछे नहीं है अटल बिहारी बाजपेयी (87), एल.के.आड़वाणी (84), राजनाथ सिंह (60), एम.एम.जोशी (77) तो सुषमा स्वराज (59) के साथ यहां औसत उमर 73 दर्ज की गई है। वामदलों में सीपीआईएम में प्रकाश करात (64), सीताराम येचुरी (59), बुद्धदेव भट्टाचार्य (67), अच्युतानंदन (88) के साथ यहां राजनेताओं की औसत उमर 72 तो समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव (71), अमर सिंह (55), जनेश्वर मिश्र (77), रामगोपाल यादव (65) के साथ यह सबसे यंग पार्टी अर्थात यहां औसत उमर 61 है।
सियासी पार्टियों में एक बात और गौरतलब होगी कि जितने भी युवाओं को पार्टियों ने तरजीह दी है, वे सभी जमीनी नहीं कहे जा सकते हैं। ये सभी पार्टियों में पैदा होने के स्थान पर अवतरित हुए हैं। इनमें से हर नेता किसी न किसी का 'केयर ऑफ' ही है, अर्थात यंगस्तान के नेताओं को उनके पहले वाली पीढ़ी के कारण ही जाना जाता है। ग्रास रूट लेबिल से उठकर कोई भी शीर्ष पर नहीं पहुंचा है।
पिछली बार संपन्न हुए आम चुनावों के पहले रायशुमारी के दौरान एक राजनेता ने जब अपने संसदीय क्षेत्र में अपने कार्यकर्ताओं के सामने युवाओं की हिमायत की तो एक प्रौढ़ कार्यकर्ता ने अपनी पीड़ा का इजहार करते हुए कहा कि जब मैं 29 साल पूर्व आपसे जुड़ा था तब युवा था, आज मेरा बच्चा 25 साल का हो गया है, वह पूछता है कि आप तब भी आम कार्यकर्ता थे, आज भी हैं, इन 29 सालों में आपको क्या मिला, आज मैं जवान हो गया हूं, तो किस आधार पर नेताजी युवाओं को आगे लाने की बात करते हैं।
दुनिया के चौधरी अमेरिका में युवाओं और बुजुर्गों के बीच अंतर की एक स्पष्ट फांक दिखाई पड़ती है। अमेरिका जैसे विकसित देश में जहां युवा पर्यावरण, जीवनशैली, रहन सहन और पारिवारिक मूल्यों के बारे में पुरानी पीढ़ी से अपने मत भिन्न रखती है, वहीं दूसरी ओर आधुनिक जीवनशैली के मामले में युवाओं द्वारा तेज गति से बदलाव चाहा जाता है। वैसे हमारी व्यक्तिगत राय में हर राजनैतिक दलों में युवाओं और बुजुर्गों के बीच संतुलन और तालमेल होना चाहिए। यह सच है कि उमर के साथ ही अनुभव का भंडार बढ़ता है, पर यह भी सच है कि उमर बढऩे के साथ ही साथ कार्य करने की क्षमता में भी कमी होती जाती है। जिस गति से युवाओं द्वारा कार्य को अंजाम दिया जाता है उसी तरह मार्गदर्शन के मामले में बुजुर्ग अच्छी भूमिका निभा सकते हैं।
कितने आश्चर्य की बात है कि जिस ब्यूरोक्रेसी (अफसरशाही) की बैसाखी पर चलकर राजनेता देश को चलता है, उसकी सेवानिवृत्ति की उम्र साठ या बासठ साल निर्धारित है, किन्तु जब बात राजनेताओं की आती है तो चलने, बोलने, हाथ पांव हिलाने में अक्षम नेता भी संसद या विधानसभा में पहुंचने की तमन्ना रखते हैं, यह कहां तक उचित माना जा सकता है। राजनैतिक क्षेत्र में युवा को अलग तरीके से परिभाषित किया जाता है। अघोषित तौर पर कहा जाता है कि राजनीति में युवा अर्थात 45 से 65 साल। इस हिसाब से राहुल गांधी को अगर 'अमूल बेबी' कहा जाता है तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होना चाहिए। विडम्बना तो देखिए सरकार में काम करने वालों की सेवानिवृत्ति की उम्र निर्धारित है, किन्तु सरकार चलाने वालों की नहीं!
हमारे विचार से महज कुछ चेहरों के आधार पर नहीं, वरन् विचारों के आधार पर युवाओं को व्यापक स्तर पर राजनीति में आने प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। कब्र में पैर लटकाने वालों को अब राहुल गांधी से प्रेरणा लेना चाहिए। जब 41 बसंत देखने वाले राहुल गांधी कैबनेट में शामिल होने से खुद को दूर रखे हुए हैं तो फिर साठ पार कर चुके नेता आखिर लाल बत्ती के लिए जोड़तोड़ क्यों करते हैं। उन्हें भी चाहिए कि वे युवाओं को आगे लाने के हिमायती बनें पर राजा दिग्विजय सिंह जैसे नहीं जो खुद तो राजनीतिक मलाई चखने की कामना रखते हैं और अपने ही पुत्र को चुनाव में उतारने की घोषणा भी कर देते हैं, जबकि अभी न प्रत्याशी चुनाव के लिए समीति बनी है और न ही चुनावों की तारीखों की ही घोषणा हुई है। बुजुर्ग राजनैताओं का नैतिक दायित्व यह बनता है कि वे सक्रिय राजनीति से सन्यास लेकर अब मार्गदर्शक की भूमिका में आएं और युवाओं को ईमानदारी से जनसेवा का पाठ पढ़ाएं तभी गांधी के सपनों का भारत आकार ले सकेगा।
एसजीपीसी चुनावों में उम्मीदवार के लिए बैठक
डबवाली (यंग फ्लेम) आगामी 18 सितम्बर को होने वाले शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुनावों को लेकर इंडियन बहुजन संदेश पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष करैनल सिंह ने आवास पर बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें क्षेत्र से सिख धर्म में आस्था रखने वाले अनेक लोगों ने भाग लिया। बैठक में होने वाले चुनावों में प्रतिनिधि उतारने के बारे विचार विमर्श किया गया। बैठक में लोगों ने भोला सिंह आरे वाला को उम्मीदवार के तौर सहमति पेश की। इस मौके पर प्रदेशाध्यक्ष करनैल सिंह ने कहा कि जल्द बैठ का आयोजन कर शिरोमणि प्रबंधक कमेटी के चुनावों में उम्मीदवार का नाम घोषित किया जाएगा। इस बारे लोगों के सुझाव लिए जा रहे हैं। इस मौके पर भोला सिंह आरे वाला, बक्शीश पटवारी, अवजीत सिंह, भोला सिंह, हरिन्द्र सिंह, बग्गा सिंह, संतोख सिंह, सुरजीत सिंह, गुरदत्त सिंह सहित अनेक लोग मौजूद थे।
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सास व ननद से मारपीट
डबवाली (यंग फ्लेम)स्थानीय रविदास नगर निवासी कांता देवी ने अपनी बहू सुनीता पर उसके व उसकी बेटी तारो के साथ मारपीट करने का आरोप लगाया है। दोनों को राजकीय अस्पताल में उपचार के लिए दाखिल करवाया गया है। यह जानकारी देते हुए कांता के बेटे नानक ने बताया कि उसकी भाभी सुनीता पत्नी देसराज ने उसकी मां कांता व उसकी बहन तारो के साथ बिजली के बिल को लेकर पिछले तीन दिनों से झगड़ा कर रही है उसकी भाभी सुनीता ने उसकी मां कांता व बहन तारो के साथ दो बार मारपीट की। जिस कारण उन्हें उपचार के लिए डबवाली के राजकीय अस्पताल में दाखिल करवाया गया है। मामले की सूचना पुलिस को दे दी गई है।
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सामाजिक संस्थाओं ने जताया शोक
डबवाली(यंग फ्लेम)दैनिक समाचार पत्र यंग फ्लेम के मुख्य सम्पादक व पाल होम्यो अस्पताल के संचालक डॉ। सुखपाल सिंह के मौसेरे भाई हरजीन्दर सिंह के निधन पर डबवाली युवा कांग्रेस के अध्यक्ष अमन भारद्वाज व गांव बिज्जूवाली व क्षेत्र के गांवों की सामाजिक संस्थानों व राजनितिक लोगों ने एक शोक सभा कर शोक व्यक्त किया। शोक व्यक्त करने वालों में शहीद भगत सिंह युवा कल्ब के प्रधान हेमराज बिरट, आदर्श युवा कल्ब के प्रधान राणा बिरट, सरपंच बिज्जूवाली राजाराम बिरट, सरपंच गोदीकां गिरधारी लाल बिस्सू, सरपंच दारेवाला बलविन्द्र सिंह गिल, सरपंच कालुआना जगदेव सहारण, सरपंच रामगढ़ सतपाल सुथार, पंच देवपाल सोनी, युवा कांग्रेस नेता रोहित मेहता, अनिल कुमार नंदन, विनोद जांगड़ा सहित अनेक लोग मौजूद थे।
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सब्जी मंडी क्षेत्र में फैली गंदगी लोगों के लिए बनी परेशानी
डबवाली (यंग फ्लेम)वैसे तो देखा जाए तो शहर के चारों तरफ गंदगी का साम्राज्य फैला है लेकिन सब्जी मंडी क्षेत्र में गंदगी का बहुत ही बोल-बाला है जहां शायद प्रशासन का ध्यान नहीं जा रहा। सब्जी मंडी में आज कल रेहड्डियों वालों ने अपना कब्जा जमाया हुआ है और सीवरेज भी खुले पड़े है। जिससे कभी भी कोई अनहोनी घटना घट सकती है। बरसात के दि
नों में तो सब्जी मंडी के आसपास खड़ा होना भी मुश्किल हो जाता है क्योंकि वहां पर बरसाती पानी की निकासी न होने के कारण गंदगी का अम्बार लग जाता है और कई दिनों तक बरसाती पानी खड़ा रहता है। जिससे खड़े पानी में मच्छर आदि भिन्नभिनाते रहते है और सब्जी खरीददारी करने आए लोगों को भारी
परेशानी का सामना करना पड़ता है। शहरवासियों ने प्रशासन से मांग की है कि सब्जी मंडी में खुले पड़े सीवरेज को रिपेयर करके ढक्कन लगाया जाए और अंदर लगी रेहड्डियों को सब्जी मंडी से बाहर निकाला जाए ताकि खरीददारी करने वाले लोगों को परेशानी का सामना न करना पड़े।


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