

ऐलेन ने तोहफा क्या मांगा..हिसार के तत्कालीन कमिश्नर राबर्ट हच ने अपनी पत्नी ऐलेन को ऐलनाबाद ही उपहार में दे दिया..पहले इस हलके का नाम खरियल हुआ करता था..ऐलेन को ऐलनाबाद से खासा लगाव हो गया..इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला को भी इस हलके से बेहद लगाव है। 1968 में जब यह सीट सामान्य हुआ करती थी, तब चौटाला ने ऐलनाबाद से पहला चुनाव लड़ा और पहली बार एमएलए बने। 1972 के बाद ऐलनाबाद रिजर्व सीट हो गई..तब भी चौटाला और यहां के लोगों के बीच यारी कम नहीं हुई..2005 के चुनाव तक ऐलनाबाद के लोगों ने इनेलो के भागी राम को पांच बार और सुशील इंदौरा को दो बार चुनाव जितवाया..इस बार हलका फिर ओपन हो गया..चौटाला को मौका मिला तो उन्होंने खुद ही यहां से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। जी हां..ऐलनाबाद हलके की राजनीतिक स्थितियां कुछ ऐसी ही हैं। यह हलका चौटाला परिवार का गढ़ माना जाता है। इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला करीब चार दशक बाद दूसरी बार ऐलनाबाद से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके भाई प्रताप चौटाला यहां से 1967 में चुनाव जीत चुके हैं..अभी तक हुए दस चुनाव में से आठ बार यहां इनेलो का कब्जा रहा है। इस बार कांग्रेस ने पूर्व विधायक भरत सिंह बैनीवाल को चुनावी समर में उतारा है। भाजपा ने अमीरचंद मेहता, हजकां ने देवीलाल दड़बा और बसपा ने प्रसन्न सिंह खोसा पर दांव खेला है। भरत सिंह दड़बा से कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं। इस बार दड़बा हलका खत्म हो गया है। इस हलके के कई गांव ऐलनाबाद में आ गए तो कांग्रेस ने बैनीवाल को चौटाला से मुकाबले खड़ा कर दिया है। लीकां गांव के कृष्णलाल और मसीतां के प्रहलाद की मानें तो बड़े चौटाला हलके में दो या तीन बार आए हैं..उन पर पूरे सूबे में पार्टी के प्रचार की जिम्मेदारी है..लोगों ने चौटाला को कह दिया, ऐलनाबाद का चुनाव यहां के लोग लड़ेंगे..आप तो सिर्फ सूबे में प्रचार पर निकल जाओ। मठदादू गांव के अजैब सिंह और मौजगढ़ सुंदर के अनुसार ऐलनाबाद का चुनाव एकतरफा है। नामधारी समुदाय के लोग थोड़ा बहुत इलेक्शन को प्रभावित कर सकते हैं। उनकी सोच कांग्रेस के प्रति है, मगर फैसला ऐन वक्त पर बदलता है। बेनीवाल की भी ठीक पोजीशन है। रिसालिया के कृष्णलाल, ऐलनाबाद के अश्विनी और किशनपुरा के सविंद्र की मानें तो यहां का चुनाव लोग खुद लड़ रहे हैं। उन्हें भरोसा है कि चौटाला और ऐलनाबाद के लोगों की यारी दूसरे प्रत्याशियों पर भारी पड़ सकती है।