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रविवार, 9 अक्टूबर 2011

कांग्रेस की राह में इनैलो ने डाले रोड़े

क्या खुद इस्तीफा देंगे मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा?
हिसार के उपचुनाव में कांग्रेस के उल्ट बह रही है ब्यार
हार के बाद अन्ना का दुखड़ा रोएंगे हुड्डा हाईकमान के पास
पुरानी कहावत है कि बीज बोया बबूल का तो आम कहां से होत! काम किए दलाली के तो विकास कहां से होत। यह कहावत इस बार कम से कम प्रदेश की कांग्रेस सरकार को सबक सिखा कर ही दम लेगी। महंगाई के बीज से उपजे जिन्न ने जिस फसल को तैयार किया था। उसके कर्ता-धर्ता तिहाड़ जेल की सलाखों के पीछे आम कैदियों के साथ बंद कमरे की हवा खा रहे हैं। महंगाई ने आम लोगों को इस कदर झिंझ कौर कर रख दिया कि लोगों की समझ में नहीं आया कि आखिर महंगाई बड़ी कहां से? जब विकास के कार्यो में प्रयुक्त होने वाला धन देश के नेताओं की जेब में जाएगा तो निश्चित है कि महंगाई शेयर बाजार के सैसेक्स की तरह छलांग भी लगाएगी। महंगाई और भ्रष्टाचार का मुद्दा कांग्रेस पर कितना हावी हो रहा है। इसका परिणाम आने वाली 18 अक्टूबर को पता लगने वाला है। कहना नहीं चाहिए कि कांग्रेस की इस उपचुनाव में हार होने वाली है। लेकिन यह भी इतिहास रचा जाएगा जब प्रदेश की सत्ता में मौजूद सरकार खुद उपचुनाव हार जाएगी। अन्ना के अनशन और रामदेव पर पड़ी लाठियों ने देश की 121 करोड़ की आबादी को कम से कम यह तो बता ही दिया है कि जिस कुर्सी पर कांग्रेस विराजमान है वह सत्ता हासिल होने पर लोगों को किस तरह दौड़ादड़ कर पीटती है और किस तरह भूखे पेट रहने पर मजबूर कर देती है। हिसार के उपचुनाव में कांग्रेस के उल्ट ब्यार बह रही है। पहले तो भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई ने अपने ही गृह नगर में रोड़े बिखेर दिए है और अब कांग्रेस की प्रतिद्वंदी इंडियन नैशनल लोकदल हुड्डा के राजनीतिक भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लगाती नजर आ रही है। कांग्रेस की हार पहले से ही निश्चित लग रही थी। लेकिन जिस तरह हिसार की जनता ने एक दम से चुपकी साधी है उससे लगता है कि कांग्रेस नम्बर- 2 की बजाए कहीं इससे और पीछे न खिसक जाएं। सवाल अब यह उत्पन्न होता है कि कांग्रेस के लिए नाक का सवाल बनी हिसार सीट पर हार के बार क्या मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा आला हाईकमान के समक्ष खुद ही इस्तीफा दें देंगे या फिर हाईकमान उनसे इस्तीफा मांग लेगी? इस पर सवालिया निशान लगा है। यह तो तय है कि हिसार उपचुनाव में कांग्रेस की हार के बाद सत्ता की बागडौर सोनिया गांधी के भरोसेमंद बैट्समैन श्रीमान हुड्डा के हाथों में तो रहने वाली नहीं है। लेकिन सवाल यह उभरकर सामने आ रहा है कि इस जीत के बाद इनैलो का अगला राजनीतिक भविष्य क्या होगा। 33 विधायकों वाली इनैलो का मुकाबला इन उपचुनावों में हजकां-भाजपा के संयुक्त प्रत्याशी कुलदीप बिश्नोई से होने वाला है। हरियाणा में भाजपा बिना जनाधार की पार्टी कही जा सकती है। जिस तरह भाजपा ने पहले हविपा फिर इनैलो और अब हजकां से तालमेल किया है। उससे राजनीतिक गलियारों में भाजपा को बिकाऊ पार्टी के नाम से संज्ञा मिलने लगी है। वैसे भी देखा जाया तो भाजपा ने हमेशा विश्वासघात की रणनीति अपनाई है। भाजपा के रामबिलास शर्मा ने हविपा प्रमुख स्व: बंसीलाल की पीठ में छूरा घोंपकर उन्हें तो सत्ता से बाहर किया ही लेकिन यह लालच भाजपा के भी काम नहीं आया। 1999 से लेकर अब तक भाजपा 6 विधायक का आंकड़ा भी नहीं छू पाई। पहली बार अस्तित्व में आई हजकां ने ही 6 सीटें जीतकर 4 विधायक के साथ विधानसभा में पहुंचने वाली भाजपा को उसकी औकात हजकां ने ही दिखा दी थी। हजकां के कुलदीप बिश्नोई यदि यह सीट जीत भी गए तो 50-50 का मैच खेलने वाले हजकां प्रमुख कुलदीप बिश्नोई को आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा के चलने वाले ब्रह्मास्त्रों से बचाव करना ही मुश्किल हो जाएगा। जिससे यह गठबंधन टूट भी सकता है। इनैलो सत्ता के बाहर रहकर जिस तरह लगातार 8 सालों से जनता के लिए संघर्ष जारी रखा है उससे उसका भविष्य स्वर्णिम नजर आ रहा है। कहावत भी है कि जो जनता के लिए जंग जारी रखता है उसके परिणाम भी हमेशा साकारात्मक होते है। इनैलो के लिए हिसार संसदीय सीट पर जीत हासिल करना कोई खास मायने नहीं रखता क्योंकि इनैलो पहले से ही पूरे प्रदेश में हजकां, भाजपा तथा कांग्रेस के खिलाफ मजबूती से पकड़ बनाए हुए है। लेकिन हिसार का उपचुनाव कांग्रेस तथा हजकां-भाजपा के लिए गले की फांस बना हुआ है। यह देश की जनता भी जानती है और नेता भी। कांग्रेस की हार निश्चित है। देखना अब यह होगा कि अन्ना हजारे के बहाने का दुखड़ा तैयार करके बैठे प्रदेश के मुख्यमंत्री पर हाईकमान कितना रहम करेगा।

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