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शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

शिवसैनिकों की गुंडागर्दी, न्यूज चैनल पर हमला





मुंबई।। मुंबई में न्यूज़ चैनल आईबीएन लोकमत के कायार्लय पर हमले की खबर है। प्राथमिक जानकारी के अनुसार,
हमले के पीछे शिवसैनिकों का हाथ है।

न्यूज चैनल का कार्यालय विक्रोली में है। शिवसैनिकों ने कार्यालय में घुसकर न सिर्फ तोड़फोड़ की बल्कि कर्मचारियों को भी पीटा। सीसीटीवी फुटेज के अनुसार, शिवसैनिकों ने रिसेपशनिस्ट को पीटा और कई अन्य महिला पत्रकारों के साथ छेड़खानी की। सीसीटीवी की फुटेज में साफ दिखाया जा रहा है कि हमलावरों के हाथ में लाठियां हैं और वे तोड़फोड़ मचा रहे हैं। अब तक 7 हमलावर पुलिसवालों के हवाले किए जा चुके हैं।

हालिया जानकारी के अनुसार हमले में लोग घायल भी हुए हैं। अभी तक यह नहीं पता चल सका है कि आखिर किस वजह से यह हमला किया गया है। इधर एनसीपी के नेता आरआर पाटिल ने इसकी घोर निंदा की है। मुंबई में तोड़फोड़ के स्थल पर जेसीपी पहुंच गए हैं।

कुर्बान = न्यूयॉर्क + फना


फिल्म समीक्षा



बैनर : धर्मा प्रोडक्शन्स, यूटीवी मोशन पिक्चर्स
निर्माता : हीरू जौहर, करण जौहर
निर्देशक : रेंसिल डीसिल्वा
संगीत : सलीम-सुलैमान
कलाकार : सैफ अली खान, करीना कपूर, विवेक ओबेरॉय, ओम पुरी, दीया मिर्जा, किरण खेर
केवल वयस्कों के लिए * 17 रील * 2 घंटे 37 मिनट
रेटिंग : 2/5

आदित्य चोपड़ा और करण जौहर की दोस्ती जगजाहिर है। दोनों अक्सर मुलाकात करते रहते हैं और संभव है कि किसी दिन उन्होंने एक कहानी को लेकर गपशप की हो। इसके बाद दोनों उस कहानी पर फिल्म बनाने में जुट गए। लगभग एक सी कहानी पर थोड़े से फेरबदल के साथ ‘न्यूयॉर्क’ और ‘कुर्बान’ सामने आईं। करण ने ‘कुर्बान’ में ‘फना’ को भी जोड़ दिया है।

9/11 की घटना के बाद कई फिल्मों का निर्माण किया गया है और हर फिल्मकार ने आतंकवाद के बारे में अपना न‍जरिया पेश किया है। अमेरिका में जो हुआ, निंदनीय है और बदले में अमेरिका ने जो कार्रवाई की वह भी निंदनीय है क्योंकि मरने वालों में अधिकांश बेकसूर थे।

‘कुर्बान’ के जरिये भी आतंकवाद को अपने तरीके से विश्लेषित किया गया है। कुछ लोग अपने फायदे के लिए इस्लाम की गलत व्याख्या कर आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं, जो कि गलत है। वही दूसरी ओर आतंकवादियों को ढूँढने के नाम पर अमेरिका ने अफगानिस्तान और इराक में बेकसूर लोगों को मारा है वह भी आतंकवाद ही है। फिल्म की सोच भले ही सही हो, लेकिन अपनी बात कहने के लिए जो ड्रामा रचा गया है वह खामियों के साथ-साथ उबाऊ भी है।


एहसान (सैफ अली खान) और अवंतिका (करीना कपूर) दिल्ली के एक ही कॉलेज में पढ़ाते कम और रोमांस ज्यादा करते हैं। अवंतिका अमेरिका से कुछ दिनों के लिए दिल्ली आई है और अब वापस अमेरिका जाने वाली हैं। एहसान भी अपना करियर छोड़ उसके साथ अमेरिका चला जाता है और दोनों शादी कर लेते हैं।

अवंतिका के पैरो तले जमीन उस समय खिसक जाती है जब उसे पता चलता है कि एहसान एक आतंकवादी संगठन से जुड़ा हुआ है और उसके इरादे खतरनाक हैं। साथ ही उसने अमेरिका में प्रवेश के लिए अवंतिका का उपयोग किया है। अवंतिका को हिदायत दी जाती है कि वह चुप रहे वरना उसके पिता को मार दिया जाएगा।

रियाज़ (विवेक ओबेरॉय) आधुनिक सोच वाला युवा मुसलमान है,जो पेशे से पत्रकार है। रियाज़ इस बात से भी वाकिफ है कि अमेरिकियों ने इराक में ‍क्या किया है। उसकी गर्लफ्रेंड (दीया मिर्जा) उस विमान दुर्घटना में मारी गई, जिसकी साजिश एहसान और उसके साथियों ने रची थी।

अवंतिका को यह बात मालूम पड़ गई थी और उसने दीया के लिए टेलीफोन पर संदेश भी छोड़ा था, जो रियाज़ ने बाद में सुना। रियाज़ अपने तरीके से मामले को निपटाने के लिए एहसान की गैंग में शामिल हो जाता है। किस तरह एहसान को एहसास होता है कि वह गलत राह पर है, यह फिल्म का सार है।

निर्देशक रेंसिल डीसिल्वा ने कहानी को वास्तविकता के नजदीक रखने की कोशिश की है, लेकिन कहानी में कुछ ऐसी खामियाँ हैं, जो हजम नहीं होती। मिसाल के तौर पर विवेक ओबेरॉय बजाय पुलिस को बताने के मामले को अपने हाथ में लेता है, जबकि सारे अपराधी उसके सामने बेनकाब हो चुके थे।

अमेरिकी पुलिस को तो भारतीय पुलिस से भी कमजोर बताया गया है। एक आतंकवादी के रूप में सैफ के फोटो पुलिस के पास मौजूद रहते हैं, लेकिन सैफ एअरपोर्ट, रेलवे स्टेशन और यूनिवर्सिटी में बेखौफ घूमता रहता है। कई दृश्यों में फिल्म के नाम पर कुछ ज्यादा ही छूट ‍ले ली गई है।


सैफ का किरदार बीच फिल्म में अपनी धार खो देता है। न तो वह आतंकवादी लगता है और न ही ऐसा इंसान जिसकी सोच प्यार की वजह से बदल रही है। उनके किरदार को ठीक से पेश नहीं किया गया है।

फिल्म के प्रचार में इसे एक प्रेम कहानी बताया गया है, लेकिन सैफ और करीना के प्रेम में गर्माहट नजर नहीं आती। रोमांस और सैफ का असली चेहरा सामने आने वाली बात फिल्म के आरंभ में ही दिखा दी गई है, लेकिन उसके बाद कहानी बेहद धीमी गति से आगे बढ़ती है।

फिल्म के मुख्य कलाकारों सैफ, करीना और विवेक का अभिनय ठीक ही कहा जा सकता है। वे और बेहतर कर सकते थे। तकनीकी रूप से फिल्म बेहद सशक्त है, चाहे फोटोग्राफी हो, एक्शन सीन हो, बैकग्राउंड म्यूजिक हो। एक-दो गाने भी सुनने लायक हैं। संपादन में कसावट की कमी महसूस होती है।

कुल मिलाकर ‘कुर्बान’ न तो कुछ ठोस बात सामने रख पाती है और न ही मनोरंजन कर पाती है।

नीली वर्दी पर जवान लाल


हिमाचल प्रदेश में पुलिस जवानों की वर्दी बदलने को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। एक तरफ जहां पुलिस जवान खाकी वर्दी की बजाए नई प्रस्तावित नीली वर्दी पर विरोध जता रहे हैं, वहीं विभाग ने जवानों को नीली वर्दी मुहैया करवाने के लिए खरीद प्रक्रिया शुरू कर दी है। वर्दी न बदलने का प्रस्ताव कई जिलों से कर्मियों ने पुलिस मुख्यालय को भेजा है, लेकिन विभाग अपने निर्णय पर कायम है। गोवा को छोड़कर देश के दूसरे राज्यों में अब भी पुलिस की वर्दी खाकी ही है। अब हिमाचल में यह पहल की जा रही है। पुलिस की वर्दी में बदलाव के पीछे यही तर्क दिया जा रहा है कि आम लोगों में पुलिस की खाकी वर्दी को लेकर जो धारणा है उसे बदला जाए और आम जनता पुलिस को मित्रवत समझे। पुलिस और आम जनता के बीच दोस्ताना संबंध बनाने के मकसद से प्रदेश पुलिस के पूर्व डीजीपी व वर्तमान सीबीआई निदेशक अश्वनी कुमार ने जवानों की वर्दी नीली करने की योजना बनाई थी। जिसके बाद सरकार ने भी इस प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान कर दी। हालांकि पिछले एक साल से विभाग जवानों को नीली वर्दी मुहैया करवाने पर जुटा है। लेकिन अब तक विभाग को अच्छी क्वालिटी की वर्दी नहीं मिल पाई है। दूसरी ओर नई वर्दी को लेकर पुलिस जवानों का विरोध भी जारी है। प्रदेश पुलिस फोर्स में 16 हजार से अधिक जवान हैं। इन जवानों को इस साल अभी तक न तो खाकी वर्दी मिल पाई और न ही नीली वर्दी। पुलिस जवानों को वर्दी न मिलने की मुख्य वजह खाकी वर्दी का रेट कंटै्रक्ट रद करना और नीली वर्दी के सेंपल फेल होना है। शिमला सहित प्रदेशभर के पुलिस जवान नई वर्दी से हाय-तौबा कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश पुलिस महासंघ ने भी नीली वर्दी का विरोध किया है। महासंघ का आरोप है कि विभाग के आला अधिकारी छोटे कर्मचारियों में भिन्नता लाने के मकसद से ही वर्दी में बदलाव कर रहे हैं। उन्होंने चेताया कि अगर पुलिस की खाकी वर्दी में बदलाव किया गया तो महासंघ अदालत में इस मामले को ले जाने से नहीं हिचकेगा। पुलिस विभाग के प्रवक्ता विनोद कुमार धवन का कहना है कि नीली वर्दी को लेकर कोई विवाद नहीं है। सरकार ने पुलिस की वर्दी नीली करने के लिए मंजूरी प्रदान कर दी है और विभाग नई वर्दी की खरीद की प्रक्रिया में जुटा है। अच्छी क्वालिटी की नीली वर्दी आ जाने के बाद जवानों को आवंटित कर दी जाएगी।

शिल्पा की शादी में नवांशहर भी दीवाना


(नवांशहर) : अपना रूपी (राज कुंद्रा) कल तक नवांशहर की गलियों में खेलता था। अब उसकी शादी हो रही है। शादी भी कोई ऐसी-वैसी नहीं, बल्कि बालीवुड स्टार शिल्पा शेट्टी से। भला ऐसी सुपर-डुपर शादी पर नवांशहर क्यों न इतराए। यही वजह है कि आजकल नवांशहर की गलियों में राज-शिल्पा की शादी के चर्चे हैं और यहां से शादी में हिस्सा लेने के लिए राज की बुआ का परिवार खंडाला के लिए रवाना भी हो चुका है। शिल्पा शेट्टी के भावी पति प्रसिद्ध उद्योगपति राज कुंद्रा भले ही दुनिया की नजर में बड़े व्यवसायी हों, लेकिन बचपन में नवांशहर की गलियों में खेले राज कुंद्रा यहां के वासियों के लिए वहीं नटखट रूपी हैं जो बचपन में महीनों छुट्टियों में नवांशहर की गलियों में खेलते रहे हैं। यही कारण हैं कि राज कुंद्रा की 22 नवंबर को बालीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी से शादी को लेकर नवांशहर वासी काफी उत्साहित हैं। नवांशहर की भट्टी कालोनी में राज कुंद्रा की बुआ का भी परिवार रहता है। 22 नवंबर को खंडाला में हो रही इस शादी में राज की बुआ राम लुभाई व फूफा यशपाल मुरगई तथा उनके बेटे संदीप मुरगई, रमन मुरगई समेत परिवार के कुल 10 सदस्य बारात की शोभा बढ़ाएंगे। ध्यान रहे कि शिल्पा के भावी पति राज कुंद्रा का पैतृक घर लुधियाना में है। उनके पिता श्री बालकृष्ण कुंद्रा वर्ष 1966 में इंग्लैंड चले गए थे। वहां उन्होंने व्यवसाय शुरू किया और आज इंग्लैंड में वह डायमंड व गोल्ड के बिजनेस में मिलेनियर हैं। इसके अलावा कुंद्रा परिवार के यूके, पाकिस्तान व भारत में भी कई व्यवसाय हैं। राज कुंद्रा की दो बहनें रेनू व रीना हैं। रेनू इंग्लैंड में व रीना लुधियाना में ब्याही हैं। वीरवार को नवांशहर में राज की बुआ श्रीमती राम लुभाई फूफा यशपाल मुरगई व परिवार के 10 लोग शादी के लिए रवाना हो गए। वे खंडाला में 22 नवंबर को शादी में भाग लेने के बाद 24 नवंबर को मुंबई में ग्रैंड हयात होटल में रिसेप्शन पार्टी में भी वह भाग लेंगे। इसी बीच 21 नवंबर को खंडाला में ही संगीत की रात दलेर मेहंदी भी आए मेहमानों का मनोरंजन करेंगे। बारात में शामिल होने गए संदीप मुरगई व रमन मुरगई के बच्चे सारांश, आकांक्षा, रिदम, सरगम का कहना है कि वह शिल्पा शेट्टी के लिए एक सरप्राइज गिफ्ट लेकर जा रहे हैं जो शादी के समय ही खोला जाएगा। जबकि राज कुंद्रा के भाई संदीप मुरगई व उनकी पत्नी अंजू मुरगई, रमन मुरगई व उनकी पत्नी रंजू मुरगई का कहना है कि वह राज व शिल्पा शेट्टी की शादी में खूब धमाल मचाएंगे।

तेरह खरब रु. हुए तो साफ होगी गंगा


सरकार सारे संसाधन झोक दे और निजी क्षेत्र को भी शामिल कर ले फिर भी भागीरथी को दस साल से पहले मुक्ति नहीं मिलनी वाली। क्योंकि पिछले गंगा एक्शन प्लान की नाकामी के बाद अब लक्ष्य को बढ़ाकर 2020 कर दिया गया है। यह लक्ष्य भी उसी कीमत पर पूरा होगा जब कि पर्याप्त संसाधन जुट सकें। इस नये लक्ष्य को पाने के लिए जल शोधन संयंत्र व अन्य आधारभूत संसाधन जुटाने होंगे जिसमें कुल 1,32000 करोड़ रुपये का खर्च आयेगा। इसी बढ़ते आर्थिक बोझ को बांटने के लिए सरकार ने निजीक्षेत्र को शामिल करने का प्रस्ताव किया है। सुप्रीम कोर्ट में पेश अपनी रिपोर्ट में सरकार ने माना है कि अगर जवाहर लाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्युवल (जेएनएनयूआरएम) की सारी योजनायें पूरी क्षमता से लागू कर दी जायें (जो कि संभव नहीं दिखता)तो भी तो भी सिर्फ कानपुर और पटना में गंगा को मैला कर रहे सीवर साफ हो सकेंगे। ऋषिकेश, हरिद्वार, इलाहाबाद, वाराणसी और हावड़ा का सीवर फिर भी गंगा को अपवित्र करता रहेगा। वैसे गंगा को साफ करने का दारोमदार सिर्फ निजी क्षेत्र पर ही नहीं राज्य व स्थानीय निकाय टैक्स, यूजर चार्ज और म्युनिसपल बांड के जरिए धन एकत्र करेंगे जो कि गंगा की सफाई में काम आयेगा। सरकार मानती है कि गंगा अभी भी गंदी है और कई जगह इसका पानी पीने लायक तो दूर नहाने लायक भी नहीं है। सरकार को इस बात की भी बड़ी चिंता है कि राज्य अपने यहां बने सीवर शोधन संयंत्रों का रखरखाव ठीक ढंग से नहीं कर पा रहे हैं। देश का 26 फीसदी हिस्सा गंगा बेसिन में आता है। गंगा में रोजाना 12000 मिलियन लीटर (एमएलडी)घरेलू सीवर गिरता है। जिसमें सिर्फ 3,750 एमएलडी सीवर ही साफ हो पाता है। बाकी गंगा का मैला कर रहा है। यानि मौजूदा जरूरत को पूरा करने के लिए ही अभी 8,250 एमएलडी क्षमता के शोधन संयंत्रों की जरूरत है। जबकि 2020 का लक्ष्य पाने के लिए इसके अलावा 11,250 एमएलडी की और जरूरत होगी। घरेलू सीवर के अलावा उद्योग भी गंगा को मैला करते हैं। गंगा में बहाई जा रही गंदगी में इनका हिस्सा 20 फीसदी है।

संक्रमण के भय से कांपे लोग


स्वाइन फ्लू ने प्रदेश को अपनी चपेट में ले लिया है। बृहस्पतिवार को इस संक्रामक बीमारी के पांच नए केस मिले। रोज नए मामले सामने आने से खासकर पानीपत, सोनीपत, अंबाला व भिवानी जिले के लोगों में दहशत व्याप्त है। बृहस्पतिवार को पानीपत में दो नए पाजिटिव केस मिले तथा 16 नमूने जांच के लिए भेजे गए। जिले में अब तक 13 केस पाजिटिव मिल चुके हैं, जबकि 124 नमूने जांच के लिए भेजे जा चुके हैं। डिप्टी सीएमओ डा. अश्वनी गर्ग का कहना है कि जो केस पाजिटिव मिले हैं, उनका उपचार चल रहा है। सोनीपत में भी दो नए स्वाइन फ्लू केस की पुष्टि हुई। विभाग ने बीस से अधिक सैंपल दिल्ली एनआईसीडी जांच के लिए भेज दिया। स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों के मुताबिक दो नए मामलों में एक 12 साल का तथा दूसरा 16 साल का है। इसमें से 16 साल का मरीज सिक्का कालोनी का है। इस मरीज के परिजन भी विगत दिनों स्वाइन फ्लू की चपेट में आए थे। कार्यवाहक सिविल सर्जन डा. जसवंत सिंह पूनिया ने बताया कि विभाग के पास अब तक कुल 76 सैंपल की रिपोर्ट आ गई है तथा कुल स्वाइन फ्लू का आंकड़ा 16 पहंुच गया। अंबाला के नारायणगढ़ कस्बे से चंडीगढ़ इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने जाने वाले 18 साल के युवक में स्वाइन फ्लू की पुष्टि हुई है। अंबाला छावनी में कान्वेंट आफ जीसस मैरी, चमन वाटिका जैसे स्कूलों से एक-एक सैंपल लेकर जांच के लिए चंडीगढ़ भेजे गए हैं। इसी तरह छावनी में दो व्यस्क लोगों के सैंपल लिए गए। जिला नोडल आफिसर डा. सुरेंद्र मोहन ने 18 साल के इंजीनियरिंग के छात्र को स्वाइन फ्लू होने की पुष्टि की है। स्वास्थ्य विभाग के पास सैंपल की संख्या 62 तक पहुंच गई है। साथ ही जिले में पाजीटिव पाए जाने वाले मरीजों की संख्या 17 बताई गई है। उधर, भिवानी में बृहस्पतिवार को केएम पब्लिक व भिवानी पब्लिक स्कूल के आठ विद्यार्थियों के नमूने लिए गए। होम्योपैथी में स्वाइन फ्लू का उपचार : चंडीगढ़ : अब होम्योपैथी में स्वाइन फ्लू का उपचार संभव है। यह जानकारी डा. बतरा ग्रुप के चेयरमैन व एमडी डा. मुकेश बतरा ने दी। उन्होंने बताया कि सर्दियों में कई बीमारियां जकड़ लेती हैं। इनमें खांसी, दमा बुखार के अलावा सांस की बीमारियां प्रमुख हैं। अगर होम्योपैथी दवाओं से उपचार किया जाए तो फायदा हो सकता है।

पीजिए जनाब! डेग-डेग पर हाजिर है शराब


मुजफ्फरपुर - इसे राज्य सरकार की उत्पाद नीति का कमाल कहें या उपलब्धि! उत्तर बिहार के गांवों-कस्बों में जरूरत पड़ने पर भले ही दवा न मिले, देशी-विदेशी शराब ऑलटाइम उपलब्ध है। नशाखोरी की वजह से जिलों की विधि व्यवस्था लड़खड़ाए तो लड़खड़ाए, साल-दर-साल लक्ष्य से ज्यादा राजस्व वसूली से उत्पाद विभाग तो मस्ती में झूम रहा है। बगहा में आलम यह है कि होटलों व पान दुकानों पर खुलेआम शराब की बिक्री होती है। इस गोरखधंधे में विभागीय अफसरों और पुलिस की मिलीभगत भी है। बेतिया में देशी शराब का अवैध धंधा परवान पर है। उत्पाद निरीक्षक दिनबंधु की मानें तो पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष दुकानों की संख्या बढ़ी है। इस वर्ष देशी शराब की 8 दुकानें हैं, जबकि पिछले वर्ष 6 थीं। जिले में दुकानों की संख्या बढ़ने से लोगों की परेशानियां भी बढ़ी हैं। मोतिहारी में भी धड़ल्ले से शराब बेची जा रही है। चौक-चौराहों पर शाम होते ही जाम टकराने वालों की भीड़ उमड़ने लगती है। देशी व विदेशी शराब पिलाने के लिए उत्पाद विभाग ने 174 दुकानों की व्यवस्था कर रखी है। इस वर्ष अक्टूबर तक देशी शराब 11 लाख लीटर, विदेशी शराब चार लाख 25 हजार लीटर व बीयर दस लाख 30 हजार लीटर बिक चुकी है। सीतामढ़ी भी किसी से पीछे नहीं है। हर मोड़ पर शराब की दुकानें मिल जाएंगी। यहां शराबखोरों की जमात में युवाओं की संख्या बढ़ती जा रही है। हाल के दिनों में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनमें युवा शामिल थे। पुलिस भी स्वीकारती है कि शराबखोरी से अपराध बढ़ रहा है। जिले में कभी पंद्रह से बीस किमी की दूरी पर शराब की दुकानें होती थीं। मधुबनी भी पूरी तरह परेशान है। क्या गांव, क्या शहर, चहुंओर चौक-चौराहोंपर शराबियों का बोलबाला है। कोई भी दिन ऐसा नहीं होगा, जब शराबी राह चलते लोगों को तंग नहीं करते हों। युवा तो मानों शराब में डुबकी लगा रहे हैं। जिले में 220 देशी शराब की दुकानें पंचायत स्तर पर स्वीकृत हैं। इनमें 181 बंदोबस्त हैं, जबकि मिश्रित शराब की दुकानें नगर परिषद में 47 तथा पंचायतों में 133 हैं। शराब के कारण यहां क्राइम भी बढ़ रहा है। वहीं पंडौल, सकरी, रहिका के थानाध्यक्षों के मुताबिक शराब पीकर हो हल्ला के ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं होते हैं। समस्तीपुर में सरकारी शराब की दुकानों ने सामाजिक तानाबाना बिगाड़ कर रख दिया है। हर गांव, हर युवा चपेट में है। मारपीट व दंगा फसाद की वारदातें बढ़ गई हैं। यह दीगर बात है कि ये मामले पुलिस तक नहीं पहुंचते। शराबी नशा उतरते ही क्षमा मांग कर मामले निबटा लेते हैं। जिले की लगभग सभी पंचायतों में देसी शराब की दुकानें हैं। गत वित्तीय वर्ष में 2753. 75 करोड़ राजस्व की प्राप्ति हुई थी। इस वर्ष लक्ष्य का लगभग लगभग 60 फीसदी राजस्व प्राप्त हो चुका है। मछली और मखाना के लिए मशहूर दरभंगा भी शराबियों की जद में है। पान दुकानों पर खुलेआम शराब उपलब्ध है। शायद ही कोई चौराहा हो जहां शराब नहीं बिकती। मुनाफा कमाने की नीयत से कम्पोजिट शराब दुकान के मालिक ही अपने पोषक क्षेत्र की पान दुकानों व किराना दुकानों में शराब की सप्लाई करते हैं। हैरत की बात तो यह है कि इस गोरखधंधे से उत्पाद विभाग भी पूरी तरह वाकिफ है, पर कोई कार्रवाई नहीं होती।

आग का दरिया है ये नौकरी......


मिर्जा गालिब ने अपने एक शेर में इश्क को आग का दरिया बताते हुए इसमें डूब कर गुजरने की बात कही थी। वक्त गुजरा। इश्क के मायने बदल गए और गालिब साहब के शेर के भी। मौजूदा दौर कारपोरेट दौर है। अब आपको इश्क के लिए नहीं वरन नौकरी के लिए आग के दरिया से गुजरना होगा। जी हां। कारपोरेट दुनिया में नौकरी की चाहत है तो आपके लिए सलीके से कपड़े पहनना, नफासत से पेश आना और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलना ही काफी नहीं, वरन उससे आगे भी कई इम्तिहानों से गुजरना होगा। इम्तिहान भी कोई आसान नहीं, जलते अंगारे पर कूदना, पहाड़ को काट कर अपने लिए रास्ता बनाना वगैरह-वगैरह..। अमृतसर के कारपोरेट कंपनियों में कार्यरत मुलाजिम आज कुछ ऐसे ही कठिन इम्तिहानों से गुजरे और गुरु द्रोणाचार्य की भूमिका में रहे दिल्ली से आए स्पेशल ट्रेनर पीएस राठौर। देर शाम बेस्ट मैरियन होटल में कान्फेडरेशन आफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) द्वारा आयोजित कारपोरेट अधिकारियों व कर्मचारियों के ट्रेनिंग शिविर में राठौर ने काम करने के तरीके बताए। राठौर के नेतृत्व में 35 कारपोरेट प्रशिक्षुओं ने जलते व दहकते अंगारे से गुजर कर अपने डर को बाहर निकाला। इसके बाद गुब्बारे फुलाना, लोहे की रॉड को गले से जमीन के साथ लगा कर मोड़ने के हैरतअंगेज कारनामे करवाए उन्होंने कहा कि यह कोई जादू अथवा भ्रम नहीं है बल्कि व्यक्ति के भीतर ही इतना साम‌र्थ्य है कि वह हर काम को आसानी से कर सकता है।

ए.बी.सी.डी. से नाता नहीं और नाम है इंगलिश गांव

चौकिए नहीं, यह इंगलिश गांव है। सरकारी दस्तावेजों में भी इसका यही नाम है। जिला मुख्यालय से तकरीबन 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस गांव की ख्याति महज नाम के चलते ही है। यहां पहुंचते ही इसकी काली तस्वीर खुद सामने आ जाती है। लगभग बारह सौ की आबादी वाले इस गांव में महज दो ग्रेजुएट हैं, वह भी इत्तफाकन। तीस फीसदी लोग ही अक्षर से परिचित हैं। अमरपुर प्रखंड के इंगलिश गांव की जीवन शैली भी देहाती ही नहीं ठेठ देहाती है। नाम के विपरीत यहां की दशा शैक्षिक विकास की पोल भी खोल रही है। जिला शिक्षा पदाधिकारी के अनुसार शैक्षिक विकास के लिए हर आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं। इसका प्रतिफल भी सामने आया है और अब इस गांव के शत प्रतिशत बच्चे स्कूल जा रहे हैं। परंतु यहां शिक्षा केन्द्र के नाम पर महज एक प्राथमिक विद्यालय है। इसके बाद की शिक्षा के लिए बच्चों को तीन किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। गरीबी की मार से बेहाल यहां के लोग बच्चों को मैट्रिक तक की शिक्षा देने के बजाय दिल्ली व पंजाब सहित अन्य शहरों में काम के लिए भेजना ज्यादा मुनासिब समझते हैं। फलाफल यहां मैट्रिक पास छात्रों की संख्या भी अंगुलियों पर गिनी जा सकती है। गांव के प्रथम ग्रेजुएट अरुण कुमार राय भी मानते हैं कि नाम के अनुरूप यहां शिक्षा की स्थिति बदतर है। गौरतलब है कि इस गांव में मंडल, राय के साथ महादलित समुदाय के लोग रहते हैं। अधिकांश लोगों के जीने का जरिया मजदूरी अथवा कृषि है। पेट की भूख ने लोगों को शिक्षा से विमुख कर रखा है। यह स्थिति कहीं न कहीं कल्याणकारी योजनाओं में गड्डमड्ड का भी खुला संकेत है। हालांकि इस गांव के लोगों को यह गर्व जरूर है कि पूरे जिले में ही नहीं पूरे अंग क्षेत्र में उनके गांव का नाम चर्चित है। गांववासी परशुराम राय, जवाहर राय, दिलीप राय आदि बताते हैं कि इस गांव के नाम के पीछे बड़ी कहानी है। स्वतंत्रता संग्राम के समय यह क्षेत्र सेनानियों का मुख्य केन्द्र था। यहां से फिरंगियों के खिलाफ जंग की योजनाएं बनतीं थीं। जब इसकी भनक लगी तो फिरंगियों ने यहां एक कैम्प ही स्थापित कर दिया। बसेरा बन जाने के बाद अंग्रेजों ने क्षेत्र के लोगों पर जमकर कहर बरपाया। उसी समय से इस गांव को लोग इंगलिश गांव के नाम से पुकारने लगे। स्वतंत्रता प्राप्ति तक यह गांव खौफ का पर्याय बना रहा। हालांकि अब यहां निवास कर रहे लोग अपने मधुर व्यवहार व निश्चछलता के लिए जाने जाते हैं, जिन्हें ठगने में किसी ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। गांव तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क तो है, लेकिन अन्य बुनियादी सुविधाएं कहीं नहीं दिखतीं। ग्रामीणों के मुताबिक गांव में मध्य व उच्च विद्यालयों के लिए वे कई बार जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों के दरवाजे खटखटा चुके हैं, लेकिन उनकी आवाज हर जगह अनसुनी ही रही है। उन्हें भी यह बात साल रही है कि उनके इंगलिश गांव के सत्तर फीसदी लोग हिन्दी भी नहीं पढ़ पाते हैं।

राजधानी में गन्ने की सियासत


गन्ना मूल्य पर नए अध्यादेश के विरोध में सड़क से लेकर संसद तक जारी जबरदस्त उबाल के दबाव में केंद्र सरकार ने अध्यादेश में जरूरी बदलाव के संकेत दिए हैं। राजधानी में गन्ने की सियासत पर उबाल का आलम यह रहा कि शीत सत्र के पहले ही दिन संसद ठप हो गई और नई लोकसभा सबसे हंगामाखेज दिन से रूबरू हुई। विपक्ष ही नहीं संप्रग के सहयोगियों द्रमुक और तृणमूल कांग्रेस ने भी गन्ना मूल्य पर सरकार को कठघरे में खड़ा किया। गन्ना मूल्य के सियासी उबाल की आंच का ही असर था कि लोकसभा ठप होने के तत्काल बाद प्रधानमंत्री ने संसद भवन में ही वरिष्ठ मंत्रियों की बैठक बुलाई। वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी, कृषि मंत्री शरद पवार, गृहमंत्री चिदंबरम, कानून मंत्री वीरप्पा मोइली के अलावा कानून मंत्रालय के कुछ शीर्ष अधिकारी भी इस बैठक में शरीक हुए। गन्ने की सियासत का रथ विपक्षी खेमे में जाते देख कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने भी प्रधानमंत्री से मुलाकात की। प्रधानमंत्री की बैठक में ही गन्ने के उचित व लाभकारी मूल्य (एफआरपी) अध्यादेश पर पुनर्विचार करने का निर्णय लिया गया। सूत्रों के अनुसार किसानों और विपक्षी दलों के जबरदस्त विरोध को देखते हुए सरकार अध्यादेश में अब उचित गन्ना मूल्य देने के लिए चीनी मिलों को उत्तरदायी बनाने का कदम उठा सकती है। बताया जाता है कि कानून मंत्रालय को तत्काल जरूरी सुझाव देने को कहा गया है। शरद पवार ने बैठक के बाद कहा कि सरकार गन्ना मूल्य अध्यादेश पर संसद में चर्चा करने को तैयार है। इस मुद्दे पर घिरी सरकार की बेचैनी का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि गन्ना अध्यादेश पर सुलह की राह निकालने के लिए सोमवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई है। अध्यादेश को लेकर कांग्रेस में भी अंदरूनी तौर पर विरोध के स्वर साफ सुनाई दे रहे हैं। चूंकि पार्टी सरकार की अगुवा है इसलिए नेता खुले तौर पर बोलने से जरूर बच रहे हैं, मगर उनका साफ कहना है कि गन्ना मूल्य की कीमतों का मसला चीनी मिलों पर छोड़ना किसानों को शेर के आगे डालने जैसा है। गन्ने पर सियासत को लेकर मिले इस मौके को न गंवाते हुए सपा और रालोद सहित तमाम विपक्षी दलों ने लोकसभा में पहले ही दिन हंगामाखेज विरोध के जरिये सरकार की घेरेबंदी की। पहले प्रश्नकाल नहीं चलने दिया और फिर पूरे दिन के लिए सदन की बैठक स्थगित करा दी। सदन की बैठक शुरू होते ही मुलायम सिंह और अजित सिंह ने गन्ना अध्यादेश को किसानों के पेट पर लात मारने वाला कदम बताते हुए विरोध की आवाज बुलंद की। इन दोनों की अगुवाई में सपा-रालोद के सांसद आसन के सामने जाकर किसानों की लूट बंद करने के नारे लगाने लगे। भाजपा सहित अन्य विपक्षी दलों के सांसद भी अध्यादेश के विरोध में सरकार के खिलाफ उठ खड़े हुए। सरकार की हालात तब विचित्र दिखी जब तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक के सदस्यों ने भी अध्यादेश को लेकर सवाल खड़े किए। लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने दोबारा12 बजे सदन चलाने की पूरी कोशिश की, मगर हंगामा थमता न देख सदन पूरे दिन के लिए स्थगित कर दिया। विपक्ष के तेवरों को देखते हुए शुक्रवार को भी संसद चलने के आसार कम ही हैं।

अज्ञात पुरूष का शव बरामद

डबवाली (सुखपाल)- स्थानीय बठिण्डा चौंक के निकट लगभग 50 वर्षीय अज्ञात पुरूष का शव बरामद होने से आस-पास के क्षेत्र में सनसनी फैल गई। मौके पर पहुंची शहर थाना पुलिस ने शव को अपने कब्जे में लेते हुए पुलिस ऐम्बूलैंस द्वारा स्थानीय सिविल अस्पताल में लाया गया है। समाचार लिखे जाने तक शव की पहचान नहीं हो पाई है तथा पुलिस ने अपनी प्रारम्भिक जांच के पश्चात शव को शनाख्त हेतु मुर्दाघर में रखा है।

अचानक चलती स्कूल वैन की खिड़की खुलने से छात्र की दर्दनाक मोत


डबवाली (सुखपाल)- स्थानीय चेतक रोड स्थित हैफड गोदाम के समीप उस समय एक मासूम को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। जब एक निजी स्कूल का तृतीय कक्षा का छात्र अचानक चलती स्कूल वैन की खिड़की खुलने से सड़क पर जा गिरा। जिसके फलस्वरूप उसकी घटनसस्थल पर ही दर्दनाक मोत हो गई। मिली जानकारी के अनुसार 8 वर्षीय मृतक गगनदीप पुत्र मानविन्दर ङ्क्षसह अपने गांव शेरगढ़ से स्कूल की वैन में सवार होकर डबवाली के एक निजी स्कूल के लिए आ रहा था कि जैसे ही यह स्कूल वैन स्थानीय हैफड गोदाम के समीप पहुंची तो आकस्मात स्कूल वैन की खिड़की खुल गई। जिससे अपने माता-पिता का इकलौता गगनदीप सड़क पर गिरते ही दम तोड़ गया। प्रत्यक्षदॢशयों के अनुसार स्कूल वैन में ज्यादा बच्चे बैठे होने व खिड़की के पास हैल्पर न रहने से यह हादसा हुआ है। अगर स्कूल वैन में हैल्पर मोजूद होता तो यह दर्दनाक हादसा टल सकता था। घटनास्थल पर उपस्थित लोगों ने बताया कि स्कूल वैन के चालक-परिचालक नन्हें-मुन्ने बच्चों को स्कूल वैन में अक्सर ही कैपेसिटी से ज्यादा बैठा लेते हैं। जिन्हें देखकर प्रशासन भी अपनी आंखें मून्दे हुए है। उल्लेखनीय है कि उपमण्डल के गांव शेरगढ़ का यह उपरोक्त परिवार संयुक्त रूप से रहता है तथा इसमेें लगभग एक माह पूर्व मानविन्द्र के बड़े भाई यादविन्द्र ङ्क्षसह का इकलौता बेटा आकाशदीप भी एक दुर्घटना में अपनी जान गंवा चुका है। अब इस दर्दनाक हादसे से परिवार गहरे सदमें में है तथा शायद ही यह परिवार इस दर्दनाक हादसे को भुला पाए।

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