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रविवार, 29 नवंबर 2009

शिल्पा को अब बेबी का इंतजार


29 नवंबर, 2009
मुंबई। बॉलीवुड अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी को शादी किए एक हफ्ता भी नहीं हुआ और अब वह अपने बेबी के बारे में प्लान कर रही हैं। वह जल्दी से जल्दी मम्मी बनना चाहती हैं। उनका ख्याल है कि वैसे भी उन्होंने शादी काफी लेट की हैं इसलिए बेबी के लिए अब वो और इंतजार नहीं करेंगी। खैर फिलहाल तो ये नव विवाहित जोडा बहामास की खूबसूरत वादियों में हनीमून मनाने जा रहा हैं। पर शेट्टी फैमिली और कुंद्रा फैमिली का वेडिंग सेलीब्रेशन यहीं खत्म नहीं हो रहा।
हनीमून से लौटते ही राज दोनों फैमिलीज को साथ लेकर मैडिटेरियन कू्रज पर क्रिसमस मनाने ले जा रहे हैं। शिल्पा मुस्कुराते हुए इतना थक गई है कि उनके जबडे में भयानक दर्द होने लगा हैं। उनका कहना है कि अब उन्हें समझ आ रहा है कि ज्यादातर सेलिब्रिटी रिसेप्शन को क्यों टाल देते हैं। शिल्पा के अनुसार गेस्ट को संभालने से ज्यादा मुश्किल काम मुस्कुराना हैं।

अश्लीलता से गीता जयंती उत्सव बदरंग


कुरुक्षेत्र विश्वविख्यात ब्रह्मसरोवर तट पर चल रहे कुरुक्षेत्र गीता जयंती उत्सव में पटियाला के नार्थ जोन कल्चरल सेंटर के कलाकारों ने अपने भोंडे प्रदर्शन से उत्सव की बदरंग कर दिया। विवाह-शादियों में नाचने वाले कलाकारों ने सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर अश्लीलता का ऐसा नंगा नाच किया कि वहां से गुजरने वाली महिलाओं की आंखें शर्म से झुक गई। यह सब पुलिस की आंखों के सामने होता रहा और किसी ने उन्हें टोकने की जहमत तक नहीं उठाई। कई सालों से पटियाला के उत्तर क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र (एनजेडसीसी) के कलाकार गीता जयंती उत्सव की शोभा बढ़ा रहे हैं, लेकिन साल-दर साल कलाकारों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ इसके स्तर में गिरावट आ रही है। इस वर्ष समारोह में विधाओं की संख्या बढ़ाने के लिए एनजेडसीसी ने विवाह समारोहों में लड़कियों के वेश में नृत्य करने वालों को ही बुला लिया। इन कलाकारों द्वारा प्रस्तुत भोंडे नृत्य ने समारोह की गरिमा को तार-तार कर दिया। अनुसुइया घाट पर शनिवार दोपहर कार्यक्रम पेश करने आई पटियाला के पांखर निवासी भोलादीन की नाचर टीम में शामिल लड़कियों की वेशभूषा में आए कलाकारों ने तरह-तरह की भावभंगिमाओं से मनचले लोगों को घाट किनारे एकत्रित कर लिया। उसके बाद तो दर्शकों से दस-बीस रुपये के नोट हासिल करने के लिए सभी सीमाएं लांघ दी। दर्शकों ने भी अपने पैसे की पूरी कीमत वसूल की। नोट देने के बदले उन्होंने कलाकारों से छेड़छाड़ की। यह सब वहां उपस्थित पुलिसकर्मी चुपचाप देखते रहे। कार्यक्रम पेश करने के बाद ये कलाकार कार्यक्रम अधिकारी महेंद्र सिंह के पास पहुंचे और पारिश्रमिक के लिए फार्म भरकर दिया। अश्लील कार्यक्रम पेश करने वाले दल के नेता भोलादीन ने बताया कि उनका दल शादियों में नृत्य पेश करता है। अभी वे और उनके कुछ साथी रोपड़ में एक शादी समारोह में भाग लेने जा रहे हैं, जबकि उनके साथ नृत्य पेश कर रही लवली व कुछ साथी घरौंडा में एक विवाह में कार्यक्रम पेश करेंगे।

पेड़ों का सफल ट्रांसप्लांट


हिसार- अब सड़क के आड़े आने वाले पेड़ों को काटने की जरूरत नहीं है। ट्रांसप्लांट तकनीक से उन्हें दूसरे स्थान पर सफलतापूर्वक लगाया जा सकता है। राजस्थान में खेजड़ी के पेड़ों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले बिश्नोई समाज के जनक गुरु जंभेश्वर महाराज के नाम से विख्यात गुरु जंभेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (गुजविप्रौवि) ने इस तकनीक का इस्तेमाल कर पेड़ों को ट्रांसप्लांट करने का करिश्मा कर दिखाया है। इस तकनीक से विश्वविद्यालय के हार्टीकल्चर विभाग ने दो चरणों में खजूर के 38 पेड़ सफलता से ट्रांसप्लांट किए हैं। इसके अलावा सड़क निर्माण के आड़े आ रहे करीब 25 अन्य पेड़ों को भी ट्रांसप्लांट करने का कार्य जारी है। दरअसल पर्यावरणवादी संत के नाम से जुड़े इस विश्वविद्यालय में आधुनिक पर्यावरण संरक्षण की शुरुआत गत अप्रैल माह में तब हुई, जब विश्वविद्यालय प्रशासन नेक (नेशनल एक्रिडीशन काउंसिल) की टीम के स्वागत की तैयारियों में जुटा हुआ था। विश्वविद्यालय को फिर से ए ग्रेड दिलाने के लिए हर क्षेत्र में सुधार किया गया लेकिन नए विश्वविद्यालय में
पेड़ों से ज्यादा संख्या पौधों की थी। इसी दौरान विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीडीएस संधू ने एक खबर पढ़ी की चीन में पेड़ों को ही ट्रांसप्लांट कर दिया जाता है। इस पर उन्होंने विश्वविद्यालय के कार्यकारी अभियंता एवं हार्टीकल्चर विभाग के अध्यक्ष अशोक अहलावत से बात की। इसके बाद अहलावत ने इस पर काम शुारू किया। उन्होंने विश्वविद्यालय के जंगल में खड़े 25 से 30 वर्ष पुराने खजूर के 18 पेड़ों को ट्रांसप्लांट करवाया। यह कार्य इस वर्ष 5 अप्रैल से शुरू हुआ और लगभग एक सप्ताह में पूरा कर लिया गया। पेड़ों का ट्रांसप्लांट पूरी सफल रहता है या नहीं, यह स्पष्ट होने में करीब छह माह का समय लग जाता है। ट्रांसप्लांट किए गए 18 पेड़ों में 15 हरे-भरे शान से खड़े हैं। इसके बाद सिंतबर माह में खजूर के 20 और पेड़ों को ट्रांसप्लांट किया गया। यह कार्य 20 सितंबर से शुरू हुआ और करीब 10 दिनों में पूरा कर लिया गया। इस चरण की सफलता के बारे में पूरी तरह जानकारी तो मार्च, 2010 में चल पाएगी लेकिन अभी इनमें से सारे पेड़ सुरक्षित व अच्छी हालत में हैं। इसके बाद जब विश्वविद्यालय के गेट नंबर तीन से प्रशासनिक भवन तक सड़क चौड़ी करने का काम शुरू हुआ तो इस काम के आड़े भी 25 पेड़ आ गए। चूंकि पेड़ों को काटना उचित नहीं होता, इसलिए इन पेड़ों को भी अब ट्रांसप्लांट किया जा रहा है। यह काम अक्टूबर के आखिरी सप्ताह में शुरू हुआ है और दिसंबर के अंत तक इसके पूरा हो जाने की उम्मीद है। नए विवि में पुराने पेड़ : संधू विवि कुलपति डा. डीडीएस संधू ने बताया कि गुजविप्रौवि प्रदेश का सबसे नए विश्वविद्यालयों में है, लेकिन पुराने पेड़ों के बिना अच्छा लुक नहीं आ सकता। दूसरी तरफ विश्वविद्यालय का नाम भी पर्यावरण के संरक्षक के नाम पर है, इसलिए यहां पर पेड़ काटना भी ठीक नहीं। इसी जद्दोजहद के दौरान उनकी नजर जब चीन में पेड़ ट्रांसप्लांट की खबर पर पड़ी तो उन्होंने हार्टीकल्चर विभाग से बात की और अशोक अहलावत ने वह काम करके दिखा दिया। इंटरनेट से सीखी तकनीक : अहलावत विश्वविद्यालय के हार्टीकल्चर विभाग के प्रधान एवं कार्यकारी अभियंता अशोक अहलावत ने बताया कि वह अब तक खजूर के 18 पेड़ ट्रांसप्लांट कर चुके हैं तथा अब अशोका, महानीम, नीम व बड़ के पेड़ों को ट्रांसप्लांट करने का काम चल रहा है। उन्होंने बताया कि यह सारा कार्य उन्होंने इंटरनेट की मदद से ट्रांसप्लांट की तकनीक पढ़कर किया है।

माधुरी को दगा दे गई बलुई माटी


इलाहाबाद- ये तो तय है कि ठंडी के बाद गर्मी आयेगी लेकिन माधुरी आयेगी कि नहीं इसमें संशय है। माधुरी गर्मी का वह फल है जिसको लोग बड़े ही चाव से खाना पसंद करते हैं। तरबूज की माधुरी नामक प्रजाति के बारे में जो लोग जानते हैं उनके मुंह में अगर अभी पानी आ गया हो तो बड़ी बात नहीं लेकिन इस फल के बारे में एक विडम्बना जुड़ गयी है। इलाहाबाद, कौशाम्बी और फतेहपुर जिलों में बड़े पैमाने पर पैदा होने वाले इस फसल पर सूखे की मार पड़ गयी है। अबकी तरबूज सोना जैसा हो जाये तो ताज्जुब नहीं। दरअसल तरबूज और खरबूज का उत्पादन नदियों के कछार में होता है। बारिश कम होने की वजह से इस वर्ष गंगा-यमुना में बाढ़ नहीं आयी। इसके कारण पुरानी रेत बह नहीं सकी और बाढ़ के साथ आने वाली उर्वरा बलुई मिट्टी रेत पर नहीं पहुंची। इसी वजह से यहां के तरबूज और खरबूज के उत्पादक किसान सहमे हुए हैं। उनका मानना है कि ऐसी स्थिति में उत्पादन तो प्रभावित होगा ही कहीं लागत भी न डूब जाये। इलाहाबाद, कौशाम्बी, फतेहपुर और मिर्जापुर आदि जिलों में गंगा-यमुना की रेती पर 15 हजार हेक्टेयर से ज्यादा क्षेत्रफल में तरबूज और खरबूज की अच्छी पैदावार है। हर साल नवंबर के अंतिम और दिसंबर के पहले सप्ताह से बुवाई शुरू हो जाती है और मार्च तक फल बाजार में पहुंच जाते हैं। दो महीने तक बाजार पर इनका कब्जा रहता है। अपनी मिठास और गुण के कारण यहां के तरबूज और खरबूज दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, बंगलुरू, भोपाल आदि शहरों के अलावा विदेशों में धूम मचाते हैं। खाड़ी देशों में तो इनकी खूब मांग रहती है। इलाहाबाद के फाफामऊ, गद्दोपुर, भोरहूं, सुमेरी का पूरा, मातादीन का पूरा, मलाक हरहर, रंगपुरा, जैतवार डीह, बहमलपुर सहित दर्जनों गांवों के किसान बताते हैं कि बिना उर्वरा बलुई मिट्टी के तरबूज का उत्पादन मुश्किल है। कई बार ऐसा हो भी चुका है। तरबूज किसान रामकैलाश, विजय बहादुर, रामजियावन, भुल्लर यादव का कहना है कि इस बार तो बालू के रेत भी नहीं डूब सके हैं। इस कारण रेत पर पुराना और नीरस बालू बचा है। इसीलिए हम लोग तरबूज की खेती से कतरा रहे हैं। स्थानीय स्तर पर तरबूज और खरबूज की पैदावार न होने अथवा कम होने पर एक तो इसके दाम तेजी से बढ़ेंगे और स्वाद भी बदल जाने की बात कही जा रही है। हालांकि यहां के मार्केट में उड़ीसा और कई अन्य जगहों से तरबूज की आमद होती है लेकिन उनमें वह बात नहीं होती जो यहां के तरबूज की प्रजाति हिरमंजी, कोहिनूर और माधुरी में होती है। हालांकि उड़ीसा से आने वाले टांडा नामक तरबूज की प्रजाति अच्छी मानी जाती है। कछार में उर्वरा शक्ति की कमी को कृषि वैज्ञानिक भी सही मान रहे हैं। इस बाबत डॉ.आनंद कहते हैं कि गंगा के पानी में हिमालय की पहाडि़यों से अब भी तमाम तरह की उर्वरा शक्तियां मिट्टी में आती हैं। बारिश के दौरान खेतों की उर्वर मिट्टी भी बह कर नदी में आती है जो रेत पर जम जाती है। तरबूज व्यापारी रमेश खन्ना, हेमंत सोनकर, बब्बू पंडित, ननकेश निषाद कहते हैं कि इस बार तरबूज के महंगे होने के आसार से धंधा भी प्रभावित होगा।

भारत और कनाडा के बीच परमाणु करार




भारत में अपार संभावनाएं.कनाडा के प्रधान मंत्री स्टीफ़ेन हार्पर ने घोषणा की है कि परमाणु उर्जा के क्षेत्र में सहयोग के लिए भारत के साथ बातचीत संपन्न हो चुकी है. अब इस सिलसिले में दोनों देशों के बीच एक समझौता किया जाएगा.

त्रिनिदाद व टोबैगो की राजधानी पोर्ट ऑफ़ स्पेन में राष्ट्रमंडल शिखर सम्मेलन के दौरान बातचीत संपन्न हुई है. कनाडा के प्रधान मंत्री के कार्यालय से जारी किए गए एक वक्तव्य में कहा गया है कि ऐसे समझौते के फलस्वरूप भारत के असैनिक परमाणु उर्जा बाज़ार के साथ साझेदारी बढ़ेगी और कनाडा की कंपनियों को तेज़ी से बढ़ते विश्व की इस अर्थनीति में और सक्रिय होने का मौका मिलेगा. इस समझौते के बाद कनाडा के उद्यम भारत के साथ नियंत्रित रूप से परमाणु सामग्रियों, उपकरणों व तकनीक का आयात व निर्यात कर सकेंगे. सरकारी सूचनाओं के अनुसार परमाणु उर्जा व तकनीक के क्षेत्र में कनाडा के वार्षिक निर्यात का परिणाम लगभग 1 अरब 13 करोड़ डालर के बराबर है. अब भारत का असैनिक परमाणु क्षेत्र इस विशाल बाज़ार के साथ जुड़ पाएगा.

इस वर्ष के आरंभ में कनाडा के व्यापार मंत्री स्टॉकवेल डे ने सूचित किया था कि देश के सरकार नियंत्रित संस्थान ऐटमिक एनर्जी ऑफ़ कनाडा ने भारत के साथ नए परमाणु रिएक्टर के निर्माण के एक प्राथमिक अनुबंध पर हस्ताक्षर किया है. दोनों देशों के बीच समझौते के बाद ऐसी परियोजनाओं को हरी झंडी मिल जाएगी.

कनाडा के रिएक्टर से प्राप्त प्लुटोनियम का परमाणु हथियार के लिए इस्तेमाल के बाद 1974 में कनाडा ने भारत के साथ परमाणु सहयोग ख़त्म कर दिया था. नए समझौते को इस क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग की दिशा में एक मोड़ के रूप में देखा जा रहा है.

कनाडा आठवां देश है जिसके साथ भारत ने असैन्य परमाणु करार किया है. अमेरिका, रूस, फ्रांस, मंगोलिया, कज़ाखस्तान, अर्जेंटीना और नामीबिया के साथ भारत पहले ही करार कर चुका है.

असर आंकने में जुटी दुनिया


नई दिल्ली: दुनिया भर की सरकारें दुबई के कर्ज संकट के आकलन में जुट गई हैं। अमेरिका, ब्रिटेन से लेकर भारत तक के शेयर बाजार और केंद्रीय बैंक दुबई के कारोबार से जुड़े कंपनियों के जोखिम का हिसाब-किताब निकालने लगे हैं। पर्यवेक्षकों का कहना है कि दुबई के कर्ज संकट की वास्तविक तस्वीर मौजूदा से काफी बड़ी हो सकती है और वैश्विक व खासतौर पर पूर्वी व दक्षिण एशिया बाजार में उम्मीद से ज्यादा हड़कंप मचाने की क्षमता रखती हैं। वैसे दुनिया की निगाहें अबूधाबी की दवा पर हैं जो दुबई को मिल सकती है। लेकिन इस दवा की मात्रा और असर को लेकर असमंजस है। अगला हफ्ता वित्तीय बाजारों के लिए उथल-पुथल भरा हो सकता है। यही कारण है दुनिया की सरकारें अपने वित्तीय बाजारों को ढांढस बंधाने में लगी हैं। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि दुबई संकट कोई बहुत बड़ा नहीं है और इसको लेकर ज्यादा बदहवासी नहीं फैलानी चाहिए। भारत पर भी इसका असर बहुत थोड़ा होगा। दूसरी तरफ प्रवासी भारतीय मामलों के मंत्री वायलार रवि ने कहा है कि दुबई संकट के बावजूद वहां काम करने वाले भारतीय पलायन नहीं करेंगे। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री गार्डन ब्राउन भी आशंकाओं पर पानी डालने आगे आए हैं। दुबई के संकट को लेकर जितनी मुंह उतनी बातें वाली स्थिति है। दुनिया के पर्यवेक्षक मान रहे हैं कि दुबई के बवंडर में तमाम बैंकों और निवेश कंपनियों के खरबों डालर फंस सकते हैं जिनका सीधा संबंध दुबई सरकार की कंपनियों से तो नहीं है मगर उनका दुबई में निवेश रहा है। इसलिए बैंक व वित्तीय निवेश अपनी रिस्क असेसमेंट प्रणाली को सक्रिय कर चुके हैं। माना जा रहा है कि अगले सप्ताह इस संदर्भ में कुछ और खुलासे हो सकते हैं। दुबई को इस संकट से बचाने की वैसे संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में और खासतौर पर इसके पड़ोसी अबूधाबी में जोरदार कोशिशें शुरू हो गई हैं। संकेत यह हैं कि अबूधाबी की अगुवाई में यूएई के कुछ प्रमुख बैंक दुबई को वित्तीय राहत पहुंचाने के लिए एक पैकेज का ऐलान कर सकते हैं। अबूधाबी ने इसी सप्ताह दुबई की प्रमुख निर्माण कंपनियों को 5 अरब डालर की मदद दी है। फरवरी में अबूधाबी का केंद्रीय बैंक 10 अरब डालर दे चुका है। खाड़ी के अन्य देशों ने भी यूएई सरकार पर दुबई को बचाने का दबाव बनाया हुआ है क्योंकि इस संकट का असर पूरे क्षेत्र पर पड़ने की संभावना व्यक्त की जा रही है। अबूधाबी के पास 900 अरब डालर का अतिरिक्त कोष पड़ा हुआ है। अबूधाबी जिन शर्तो पर दुबई को वित्तीय मदद देने को तैयार है उसे अपनाने के लिए दुबई को अपना ढांचा बदलना पड़ सकता है। अबूधाबी का कहना है कि दुबई को अपने रीयल एस्टेट, सेवा व पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था और उदारीकरण के प्रक्रिया को कुछ धीमा करना पड़ेगा। इसके अलावा अबूधाबी और दुबई के शाही परिवारों के बीच आपसी तालमेल पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा। पर्यवेक्षकों का कहना है कि दुबई की बीमारी का जो इलाज अबूधाबी बता रहा है वह इसे आंशिक तौर पर ही राहत देगा। क्योंकि इस संकट से दुबई का पूर ढांचा चरमरा सकता है, जिसके परोक्ष असर बहुत गहरे होंगे।

अभी भी झुक रही है कुतुबमीनार


नई दिल्ली : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के तमाम दावों के विपरीत विश्वविख्यात स्मारक कुतुबमीनार अभी भी झुक रही है। इसका खुलासा ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा पांच साल के बाद इस माह किए गए तकनीकी अध्ययन में हुआ है। मीनार में झुकाव प्रति वर्ष ढाई सेकेंड के आसपास है। ज्ञात हो कि सेकेंड, कोण या झुकाव मापने की डिग्री और मिनट के बाद सबसे छोटी इकाई है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) पिछले साल से कह रहा था कि कुतुब मीनार का झुकाव रुक गया है। एएसआई के अधिकारियों ने बताया था कि उन्होंने कुतुबमीनार के झुकने के कारण के बारे में पता लगा कर पूरा बंदोबस्त कर दिया है। बताया गया था कि बरसाती पानी से मीनार की जड़ में 45 फुट गहराई में लगे लाल पत्थर को नुकसान पहुंचने के कारण मीनार झुक रही थी। इसके बाद कुतुबमीनार के ड्रेन सिस्टम को दुरुस्त किया गया था। मगर ताजा अध्ययन से पता चला है कि कुतुबमीनार अभी भी दक्षिणी पश्चिमी दिशा में झुक रही है। ज्ञात हो कि कुछ माह पहले संसद में इस मामले को लेकर हंगामा हुआ था। इसके बाद केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने कुतुबमीनार के झुकाव का पता लगाने के लिए प्रति वर्ष भू-तलीय सर्वेक्षण कराने के निर्देश दिए थे। जिसके आधार पर आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की देहरादून स्थित भू-तलीय अनुसंधान शाखा ने 4 नवंबर से कुतुबमीनार का तकनीकी अध्ययन शुरू किया था, जो अब पूरा हो चुका है। सर्वे के लिए पिछले वर्षो के निर्धारित ईस्ट और वेस्ट बिंदुओं को लिया गया था। पूरे अध्ययन में एक सौ से भी अधिक बार एक ही प्वाइंट से कुतुबमीनार का सर्वेक्षण किया गया। यह सर्वेक्षण तापमान को ध्यान में रखते हुए सुबह, दोपहर, शाम व रात को किया गया। सूत्रों से पता चला है कि इस अध्ययन में इस बात के पुख्ता प्रमाण मिले हैं कि कुतुबमीनार दक्षिण पश्चिम की ओर झुक रही है। जिसके झुकाव की सालाना दर 0.5 से लेकर ढाई सेकेंड के बीच मिली है। इस हिसाब से यदि हम प्रति वर्ष का आकलन करें तो 2004 के बाद अब तक कुतुबमीनार इस दिशा में साढ़े 12 सेकेंड झुक चुकी है। इस मामले की रिपोर्ट संस्थान के देहरादून स्थित कार्यालय द्वारा आगामी कुछ महीनों में ही सरकार को सौंपी जाएगी। ज्ञात हो कि 12 वीं सदी में बनी कुतुबमीनार का 1952, 1972 और 1983 में भूगणितीय सर्वेक्षण किया जा चुका है। मगर इस दौरान कोई गड़बड़ी सामने नहीं आई। एएसआई द्वारा 2004 में कराए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि 1984-2004 के बीच कुतुबमीनार दक्षिण पश्चिम की दिशा में झुकी थी।

बाल ठाकरे की बहू को कांग्रेस ने दिखाई हरी झंडी मुंबई


मुंबई: शिवसेना सुप्रीमों बाल ठाकरे के परिवार में एक और राजनीतिक बगावत की जमीन तैयार हो गई है। बाल ठाकरे की बहू स्मिता ठाकरे के कांग्रेस में शामिल होने की इच्छा पर कांग्रेसजनों को कोई एतराज नहीं। कांग्रेस का कहना है कि स्मिता ठाकरे बहुत जल्द पार्टी में शामिल होने वाली हैं। कांग्रेस ने यह भी बताना शुरू कर दिया है कि शिवसेना में बाल ठाकरे के बाद किसी के नेतृत्व पर लोगों को भरोसा नहीं रह गया है। स्मिता ने मीडिया के जरिये खुले आम बताया है कि वह शिवसेना से क्षुब्ध हैं और विकल्प खुले रख कर चल रही हैं। उन्होंने सोनिया गांधी और राहुल गांधी की तारीफ करते हुए कांग्रेस में जाने के संकेत भी दिए। इससे जहां कांग्रेस में उत्साह है वहीं शिवसेना को कुछ कहते नहीं बन रहा। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने कहा कि जब स्मिता अपने किसी फैसले का ऐलान करेंगी तभी वह कोई टिप्पणी करेंगे। महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता और पूर्व मंत्री हुसैन दलवई ने स्मिता के कांग्रेस में आने की पुष्टि की। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि वह कब कांग्रेस में शामिल होने जा रही हैं। उन्होंने कहा कि इसकी प्रक्रिया चल रही है। नई दिल्ली में कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता शकील अहमद ने भी कहा कि यह अच्छी बात है कि स्मिता ने कांग्रेस और इसके नेतृत्व में भरोसा जताया है और पार्टी द्वारा किए जा रहे काम को सराहा है। स्मिता की बातों से उत्साहित कांग्रेस के एक और प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि शिवेसना अतीत की पार्टी बन कर रह गई है, जो वर्तमान की अनदेखी कर रही है और भविष्य को नुकसान पहुंचा रही है। सोमवार की सुबह जब मीडिया के जरिये स्मिता के मन की बात सार्वजनिक हुई तो उन्हें और टटोलने के लिए पत्रकारों ने उनके घर का रुख किया। वहां उनके बेटे राहुल पत्रकारों के सामने आए। उन्होंने बताया कि उनकी मां राजनीति में आगे बढ़ना चाहती हैं।

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