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सोमवार, 19 अक्टूबर 2009

भारत को ईरान का अल्टीमेटम


भारत में ईरान के राजदूत ने संकेत दिए हैं कि अगर भारत तय समयसीमा के अंदर गैस पाइपलाइन पर बातचीत नहीं करता है तो वो चीन के सामने ये पेशकश रख सकता है.

नई दिल्ली में जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि क्या चीन ने पाइपलाइन योजना में रुचि दिखाई है तो उन्होंने हाँ में जवाब दिया.

उनका कहना था, हमने पाकिस्तान के साथ मिलकर पाइपलाइन संधि पर हस्ताक्षर कर लिए. लेकिन भारत चाहे तो अब भी इस संधि का हिस्सा बन सकता है. लेकिन ये पेशकश असीमित समय के लिए नहीं है.

ईरानी राजदूत ने उम्मीद जताई कि त्रिपक्षीय समझौते पर सहमति हो जाएगी ताकि ईरान को किसी और देश से बातचीत न करनी पड़े.

भारत ईरान-पाकिस्तान के साथ मिलकर गैस पाइपलाइन योजना से जुड़ा रहा है लेकिन वो पिछले कुछ समय से बातचीत से दूर है. भारत 2007 में इस बातचीत से अलग हो गया था.

असहमति

भारत का कहना है कि बातचीत से पहले इस बात पर सहमति हो कि पाकिस्तान से गुज़रने वाली पाइपलाइन की ट्राज़िट से जुड़ी कीमत द्विपक्षीय स्तर पर तय की जाए.

मई 2009 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी ईरान के दौरे पर गए थे और उसी दौरान दोनों देशों ने गैस पाइपलाइन पर समझौता कर लिया था.

लेकिन ये नहीं बताया गया था कि योजना से जुड़े सारे मुद्दे सुलझा लिए गए हैं या नहीं.

इस गैस पाइपलाइन को शुरू में 2.2 अरब क्यूबिक फ़ीट गैस भारत और पाकिस्तान को पहुँचाना था (दोनों देशों का आधी-आधी गैस).

भारत और पाकिस्तान के बीच आर्थिक मुद्दों पर सहयोग ज़्यादा नहीं है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि व्यवसायिक रिश्तों को मज़बूत करने से आपसी रिश्ते सुधारने में मदद मिलेगी. रूस के बाद ईरान में गैस का सबसे बड़ा भंडार है.

तुम जियो 100 साल...




एक शोध के मुताबिक ब्रिटेन और अन्य धनी देशों में अब जन्म लेने वाले आधे से ज़्यादा बच्चे 100 वर्ष तक जीवित रहेंगे.

लेंसेट जर्नल में प्रकाशित इस शोध में कहा गया है कि उम्र के अंतिम पड़ाव में लोगों को कम गंभीर बीमारियों से जूझना पड़ेगा.

इस शोध में 30 से ज़्यादा विकसित देशों से मिले आंकड़ों के विश्लेषण के बाद पाया गया कि 80 वर्ष से ज़्यादा की उम्र तक जीवित रहने की संभावना, स्त्री और पुरुष दोनों के लिए, वर्ष 1950 के बाद से दोगुनी हो गई है.

इस शोध के प्रमुख दक्षिणी डेनमार्क विश्वविद्यालय के डैनिश एजिंग रिसर्च सेंटर में काम करने वाले प्रोफ़ेसर कारे क्रिस्टेनसेन ने बताया कि वर्ष 1840 से औसत आयु में वृद्धि हो रही है और इसमें किसी भी तरह की कमी का कोई संकेत नहीं दिख रहा है.

औसत आयु में वृद्धि

वर्ष 1950 में 80 से 90 वर्ष के बीच जीवित रहने वालों की संभावना स्त्रियों के लिए औसतन 15 से 16 प्रतिशत और पुरुषों के लिए 12 प्रतिशत थी. वर्ष 2002 में यह आंकड़ा स्त्रियों के लिए 37 प्रतिशत और पुरुषों के लिए 25 प्रतिशत हो गया

शोध के मुताबिक वर्ष 1920 तक बच्चों की जन्मदर में सुधार से औसत आयु में वृद्धि देखी गई जबकि वर्ष 1970 के बाद विशेष रूप से बुज़ुर्ग लोगों की उम्र में बढ़ोत्तरी से औसत आयु में वृद्धि देखी जा रही है.

प्रोफेसर क्रिस्टेनसेन ने बताया कि वृद्ध और अति वृद्ध लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी से स्वास्थ्य सुविधाओं के सामने परेशानी बढ़ सकती है. हालांकि उनका कहना था, "वर्तमान में जो तथ्य सामने हैं उससे पता चलता है कि न सिर्फ़ लोगों की आयु में बढ़ोत्तरी हुई है, बल्कि गंभीर बीमारियाँ और बुढ़ापे की अन्य शारीरिक परेशानियाँ भी कम हो रही है."

शोधार्थियों का कहना है कि अब जीवन को उम्र के हिसाब से चार चरणों में देखा जा सकता है- बचपन, युवावस्था, युवा बुढ़ापा और वृ्द्ध बुढ़ापा.

अब छलावा मुश्किल


अगर आप उच्च शिक्षा पाने के लिए विदेश जाने के इच्छुक हैं तो बेहतर होगा कि पहले आप यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक व सांस्कृतिक संगठन) की वेबसाइट चेक कर लें। इससे आपको उस संस्थान के बारे में पुख्ता जानकारी मिल पाएगी जहां आप अध्ययन करना चाहते हैं। फर्जी शिक्षण संस्थानों की दिनों-दिन बढ़ती संख्या पर रोक लगाने के लिए यूनेस्को ने यह अहम कदम उठाया है।संस्था से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि यूनेस्को की वेब साइट पर करीब 30 देशों में स्थित मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं की सूची उपलब्ध है। इनमें से अधिकांश यूरोपीय देशों के संस्थान हैं। यूनेस्को के इस अधिकारी ने बताया कि अगले कुछ महीनों में ऐसे देशों की संख्या 60 हो जाएगी, जहां के शिक्षण संस्थानों के बारे में वेब साइट पर जानकारी उपलब्ध होगी। भारत में मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थानों की सूची अगले माह तक इस साइट पर उपलब्ध हो जाएगी। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने एजुकेशन कंसल्टेंसी इंडिया लिमिटेड (ईडीसीआईएल) को यह जिम्मेदारी सौंपी है। यूनेस्को इन संस्थानों के बारे में मानदंड तैयार कर रहा है, ताकि छात्र इन संस्थानों के बारे में पुख्ता जानकारी पा सकें। यूनेस्को के एक अधिकारी के मुताबिक अभी तक ऐसा कोई डाटा मौजूद नहीं है, जिससे दुनिया में फर्जी शिक्षण संस्थाओं का पता चल सके।

16 साल की बेटी को जुए में हार गया बाप


महाभारत काल में युधिष्ठिर जुए में अपनी पत्नी द्रौपदी को हार गये थे। पिछले दिनों पश्चिम बंगाल के मालदा में एक व्यक्ति ने अपनी पत्नी को दांव पर लगा दिया था। और, इसी दीवाली के दिन अत्याधुनिक शहर जमशेदपुर से बिल्कुल सटे घाटशिला में एक बाप ने अपनी 16 साल की बिटिया को दांव पर लगा दिया और हार भी गया। हालांकि इलाकाई पुलिस इससे अनजान थी। जब इस संवाददाता को जानकारी मिली की शहर के ठीक बीच में स्थित एक इलाके में जुआ खेला जा रहा है तो इसका लाइव देखने वह कैमरा लेकर पहुंच गया। जुआ स्थल पर रोशनी मद्धिम थी। कुछ लोग फ्लस, कटपत्ती, रमी आदि से अपनी किस्मत आजमा रहे थे। जब कोई जीतता तो जोर की आवाज होती। हारता तो भी कुछ वैसी ही आवाज। माहौल को मादक बनाने का भी पूरा इंतजाम था। खेल के दौरान शराब भी परोसी जा रही थी। शायद इसीलिए कि हार के गम का अहसास न हो सके और खिलाड़ी अंतिम स्थिति तक दांव लगाते रहें। ज्यों-ज्यों रात चढ़ती गयी नशे के खुमार में लोग लीन होते गये। पंजाब से कुछ कमाकर लौटे एक व्यक्ति (बदला नाम राम प्रकाश) भी पूरे दमखम के साथ खेलने बैठा था। वैसे तो वह लगातार हार रहा था। लेकिन पैग के साथ हौसला भी बढ़ रहा था। पहले नकद राशि हारी। फिर पत्नी के गहने हार गया। इतना होने के बाद गम बर्दाश्त करने को उसने पटियाला पैग लगा लिया। नशा कुछ और चढ़ा तो पहले तो पत्नी को दांव पर लगाने को सोची। संयोगवश पत्नी भाई फोटा (भैयादूज) मनाने अपने मायके गयी थी। तब बेटी का ख्याल आया। वह तुरंत घर गया। तब तक किसी को भान भी नहीं हुआ था कि वह ऐसा करने जा रहा है जिससे पूरी सामाजिक व्यवस्था शर्मशार हो जाएगी। वह नींद में पड़ी 16 साल की बेटी को उठाकर जुआ स्थल तक ले आया। बेटी नींद में थी। वह कुछ समझ नहीं पायी। जुआ स्थल पर बेटी को खड़ाकर पत्ती बांटने को कहा। उस समय सभी बेहद नशे में थे। लड़की पर भी दांव खेला गया। जब पत्ती दिखायी गयी तो उसके होश ठिकाने लग गये। क्योंकि बेटी को भी वह हार चुका था। यह दांव 12 हजार रुपये का लगा था। इसके बाद तो सबके होश ही उड़ गये। जुआ खेल रहे लोगों का तो मानो नशा ही फट गया। दांव में लड़की को जीतने वाला सामाजिक लोकलाज या फिर पुलिसिया डर से बाप को माफ करने की बात कहते हुये जुआ स्थल से ही फरार हो गया। वहां मौजूद सभी लोग भी भागने लगे। मुंह छिपाकर। अंधेरे का लाभ मिला। यह संवाददाता भी तस्वीर नहीं ले सका। सबसे बड़ी बात यह कि शहर के बीच में जुआ खेला जा रहा था। घंटों जुआ चला। शराब का दौर भी चलता रहा। पर पुलिस को कोई जानकारी ही नहीं हुई। न तो जुआ के समय और न ही जुआ के बाद। क्योंकि जब घाटशिला थाना प्रभारी रतिभान सिंह से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि उन्हें इस घटना के बारे में कोई जानकारी नहीं है।

बोले सो निहाल..


बंदी छोड़ दिवस पर रविवार को अमृतसर में घुड़सवारी के करतब दिखाते हुए निहंग सिंह।
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मीरी-पीरी के संस्थापक छठे गुरु श्री हरगोबिंद राय की लाडली फौज ने सिख मर्यादाओं व परंपराओं के अनुसार बी ब्लाक के खुले मैदान में कला के जौहर दिखाए। निहंगों के विभिन्न संगठनों के मुखिया अपने अनुयायियों के साथ घी मंडी स्थित गुरुद्वारा फूला सिंह बुर्ज में रविवार सुबह से ही इक"ा होने शुरू हो गए थे। परंपरागत पोशाक के साथ परंपरागत शस्त्र उठाए निहंग सिंहों ने बी ब्लाक में होने वाली खेलों से पहले पूर्वाभ्यास किया। निहंग बलबीर ंिसह 300 मीटर की पगड़ी बांधकर गुरुद्वारा फूला सिंह बुर्ज में पहुंचा। निहंग सिंहों के साथ उनके छोटे बच्चे भी निहंग बाणे में सजे हुए थे। बी ब्लाक के खुले मैदान में निहंग सिंहों ने दो घोडि़यों पर सवार होकर नेजे से जमीन पर से एक टुकड़ा उठाने का करतब दिखाया। बोले सो निहाल, सतश्री अकाल के जयकारों के साथ निहंग बोलो के साथ शुरू हुई इस प्रतियोगिता में पक्का निहंग सिंह खिताब जीतने के लिए युवा निहंगों ने कड़ी मशक्कत की। निहंग सिंह प्यारा सिंह ने बताया कि निहंग सिंह बनना आसान नहीं है। अमृतपान करवाने के बाद किसी भी निहंग सिंह को गुरुद्वारा दमदमा साहिब के नजदीक गुरुद्वारा बेर साहिब में एक महीने का कड़ा अभ्यास करवाया जाता है। जहां उसे प्राचीन शस्त्रों को चलाने की ट्रेनिंग दी जाती है।

पटाखे=सौ स्कूल या दस लाख हैंडपंप


शनिवार रात दीवाली पर जब पटाखे छोड़कर वातावरण में ध्वनि और वायु प्रदूषण को बढ़ावा दिया जा रहा था, तब गुजरात के मेहसाणा जिले के एक छोटे से गांव कंसा का आसमान शांत था। वहां पर्यावरण को बचाने के लिए पटाखों का बहिष्कार कर शांत दीवाली मनाई। पटाखों का शोर तो शांत हो गया लेकिन इन गांववासियों के अनूठे कदम की धमक पूरी दुनिया में गूंज उठी। हो सकता है कि देश में कंसा जैसे और कई गांव हों जहां लोग पर्यावरण प्रेमी हो, लेकिन कितने? मान्यता है कि लंका के राजा रावण को युद्ध में हराकर भगवान राम के वापस लौटने पर अयोध्यावासियों ने घी के दीप जलाकर अपनी प्रसन्नता का इजहार किया। तभी से यह परंपरा महापर्व की तरह भारतवर्ष सहित कई देशों में मनाई जा रही है। दीवाली मनाने का तौर-तरीका बदलता रहा और पता नहीं कब पटाखे छोड़ने का चलन शुरू हो गया। जबकि किसी भी ग्रंथ में पटाखे चलाने की बात नहीं लिखी गई है। इसके बावजूद दीवाली पर देश में 20 से 30 अरब के पटाखे धुंआ कर दिए गए। न्यूनतम 20 अरब रुपये भी पटाखों पर खर्च हुए होंगे तो यह इतनी बड़ी रकम है कि इसके सार्थक प्रयोग से सौ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र या सौ प्राइमरी पाठशालाएं या दस लाख इंडिया मार्का हैंडपंप लगाए जा सकते थे। जिससे देश की एक बड़ी आबादी को लाभ मिलता। धुएं और शोर में यह रकम उस देश में बर्बाद की जा रही है जहां अब भी एक बड़ा तबका भूखे पेट सोने को मजबूर है। 20 करोड़ से ज्यादा लोग आज भी रोजाना पचास रुपये से कम पर आजीविका चला रहे हैं। सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद साक्षरता शत-प्रतिशत नहीं हो पा रही है। बच्चों को शुरूआती कक्षाओं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ जाती है। आम बीमारियों से हर साल लाखों बच्चे मारे जाते हैं। ऐसे में 20 अरब यानी 2000 करोड़ के पटाखे धुंआ कर देना कहीं से भी जायज लगता है। बीस अरब की रकम छोटी मोटी रकम नहीं होती। अगर बीस करोड़ की लागत से ब्लाकवार एक-एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनवाया जाए तो इस रकम से 100 ब्लाकों की जनता अपनी बीमारियों का इलाज करा सकेगी। इस धनराशि से 100 प्राइमरी स्कूल बनवाए जा सकते हैं। अगर प्रति स्कूल के औसत से 500 बच्चे भी अपना भविष्य निर्माण करते तो हमारे मानव संसाधन में हर साल पचास हजार की बढ़ोतरी होती। यही नहीं, देश के कई इलाके ऐसे हैं जहां पीने के पानी के लिए हर दिन लोगों को जिद्दोजहद करनी पड़ती है। इस रकम से दस लाख इंडिया मार्का हैंडपंप लगाए जा सकते हैं जिससे कम से कम इतने ही गांव के लोग अपना गला तर कर सकते हैं। पटाखे छोड़ना पर्यावरण के लिए भी नुकसानदेह है। आज दुनिया का सबसे बड़ा एजेंडा जलवायु परिवर्तन से निपटना है। इस संकट के परिणाम दिखने शुरू हो गए हैं। दिनों दिन इनकी भयावहता बढ़ती जाएगी। लेकिन इस महापर्व के दिन पटाखे फोड़कर हवा और ध्वनि प्रदूषण पैदा करने से कहीं से भी नहीं लगता कि हम अपने उज्ज्वल और स्वच्छ भविष्य के प्रति संजीदा है। हम अपने अपने वाली पीढि़यों के साथ नाइंसाफी तो नहीं कर रहे हैं? क्या भविष्य के लिए यही अनुकरणीय आदर्श स्थापित किया जा रहा है?

ग्रामीणों ने बर्बादी में ढूंढ़ा खुशहाली का रास्ता


उन्होंने अपनी बर्बादी के बाद खुद को संभाला..कारण को समझा..फिर बर्बादी के उस कारण में अपनी खुशहाली का रास्ता ढूंढ़ निकाला। उन्होंने इस बार वह गल्ती नहीं दोहराई जो हर बार उनकी खुशियों को राख के ढेर में बदलने का काम करती थी। उन्होंने एक ऐसी रीत चलाई जो न केवल उनके वर्तमान को बचा गई बल्कि उनके भविष्य को भी संवारने की नींव रख गई। साथ ही हम सबके लिए भी सबक बन गई। जिला कांगड़ा के छोटा भंगाल में हर साल खासकर दीवाली पर एक किसी न किसी परिवार को खुशियां आग की भेंट चढ़ जाती थी। यहां के लोगों ने इस बर्बादी से सबक लिया और मूल कारण को समझा। आग लगने का मुख्य कारण थे पटाखे। लकड़ी से बने यहां के घरों के लिए एक चिंगारी भी बारूद का काम कर जाती है। इस कारण पर मंथन करते हुए छोटा भंगाल के लोगों ने इसे पर्यावरण के लिए भी खतरनाक पाया। इस दीवाली उन्होंने सबक लेते हुए पटाखे चलाने से तौबा कर ली। हर साल किसी न किसी परिवार की खुशियों पर वज्रपात करने वाली दीवाली छोटा भंगाल में इस बार वैदिक रीति-रिवाज से ही मनाई गई। दीवाली की रात घरों की दहलीज पर जहां घी के दीपक जले वहीं फूलमालाओं से घरों को साज-सज्जा की गई। पर्यावरण संरक्षण की कसम उठाते हुए गांववासियों ने इस बार दीवाली पर अपने घरों में पटाखे नहीं फोड़े। लोगों ने पटाखे फोड़ने के बजाए मीठे पकवान बनाए और कुल देवता सहित मां लक्ष्मी की पूजा कर दीवाली मनाई। छोटा भंगाल के लोगों ने इस दीवाली पर्यावरण संरक्षण की कसम खाई। वह इसमें पूरे प्रदेश की खुशहाली देखते हैं। साथ ही कामना करते हैं कि इस पहल को हम सब मिलकर आगे बढ़ाएं। पर्यावरण के प्रति अपनी समझ का परिचय देते हुए यहां के लोगों ने दुनिया को संदेश भी दिया है कि अगर हम अब भी नहीं चेते तो सब खत्म हो जाएगा। इस पहल के पीछे स्वच्छता अभियान के समन्वयक व समाज सेवक रामशरण चौहान का बड़ा हाथ बताया जा रहा है। बरोट क्षेत्र के रामशरण ने पर्यावरण संरक्षण का बीड़ा बहुत पहले से उठा रखा है, जिसके परिणाम अब सामने आने लगे हैं।

नानकशाही कैलेंडर पर फिर शुरू हुआ बवाल


सिख धर्म में कई विवादों को जन्म देने वाला नानकशाही कैलेंडर पर फिर बवाल होने लगा है। श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार नानकशाही कैलेंडर को रद करने की तैयारी में जुट गए हैं। दिवाली पर जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह ने अन्य कुछ सिंह साहिबान के साथ नानकशाही कैलेंडर को रद करने का निर्णय लगभग ले लिया था, लेकिन तख्त श्री दमदमा साहिब के जत्थेदार बलवंत सिंह नंदगढ़ के विरोध के कारण कैलेंडर रद होने से बाल-बाल बच गया। नानकशाही कैलेंडर को रद करने के लिए अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ने पांच सिंह साहिबान की आपातकालीन बैठक दीपावली के दिन आमंत्रित की। बैठक का कोई भी एजेंडा सिंह साहिबान को नहीं भेजा गया। मगर 17 अक्टूबर सुबह नानकशाही कैलेंडर के मुद्दे पर आमराय बनाने के लिए श्री दरबार साहिब के सूचना केंद्र कार्यालय में ज्ञानी गुरबचन सिंह की अध्यक्षता में पांच सिंह साहिबान की बैठक हुई। बैठक में एसजीपीसी के अध्यक्ष जत्थेदार अवतार सिंह मक्कड़ भी शामिल हुए। मक्कड़ ने नानकशाही कैलेंडर का विरोध कर रहे विभिन्न संप्रदायों, संत पुरुषों, सिख धर्म के प्रचार के साथ जुड़े हुए डेरों व दो तख्त साहिबान का उल्लेख करते हुए कैलेंडर को रद करने की सिफारिश की। कैलेंडर रद करने का प्रस्ताव जैसे ही ज्ञानी गुरबचन सिंह ने रखा, तत्काल उसका विरोध बलवंत सिंह नंदगढ़ ने किया। ज्ञानी गुरबचन सिंह का साथ देने में पटना साहिब व हुजूर साहिब के जत्थेदार भी थे। मगर नंदगढ़ अपनी बात पर अड़े रहे। चूंकि ज्ञानी गुरबचन सिंह ने अकाल तख्त साहिब से कौम को संदेश देना था। इसलिए बैठक स्थगित कर दी गई। कौम के नाम संदेश देने के बाद सूचना केंद्र कार्यालय में फिर बैठक शुरू हुई, लेकिन कैलेंडर के मुद्दे पर नंदगढ़ ने अपना कड़ा रुख अपनाए रखा। रविवार सुबह फिर पांच सिंह साहिबान कैलेंडर पर विचार विमर्श करने के लिए बैठे, लेकिन नंदगढ़ के विरोध के बाद श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ने प्रेस के नाम एक वक्तव्य जारी करते हुए कहा कि समूह खालसा पंथ की एकता के लिए, कुछ पंथक संगठनों व संप्रदाय द्वारा नानकशाही कैलेंडर में संशोधित करने के सुझाव दिए हैं। यह सुझाव एसजीपीसी को भेज दिए गए हैं। एसजीपीसी इन सुझावों पर विद्वानों, पंथक संगठनों व कैलेंडर विशेषज्ञों के साथ बातचीत करने के बाद एक रिपोर्ट श्री अकाल तख्त साहिब को सौंप देगी। उसके बाद संशोधित नानकशाही कैलेंडर दशम पिता गुरु गोबिंद सिंह के प्रकाश पर्व पर जारी किया जाएगा। नानकशाही कैलेंडर 14 अपै्रल 2003 को एसजीपीसी के तत्कालीन अध्यक्ष जत्थेदार किरपाल सिंह बंडूगर व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने तख्त श्री दमदमा साहिब से लागू किया था। इससे पूर्व कैलेंडर को लेकर अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी पूरन सिंह व एसजीपीसी की पूर्व अध्यक्ष बीबी जागीर कौर के विरुद्ध राजनीतिक व धार्मिक घमासान छिड़ा था।

श्रद्धा का सैलाब


मथुरा में गोवर्धन पूजा के अवसर पर रविवार को भगवान श्री कृष्ण के लिए दूध व दही ले जातीं विदेशी महिलाएं। पूरेब्रज क्षेत्र में गोवर्धन पूजा महोत्सव बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस महोत्सव में भाग लेने के लिए देसी-विदेशी सैलानियां का सैलाब उमड़ पड़ा।

अनपढ़ भी पढ़ सकेंगे किताब


किताब पढ़ने का अनुभव अब वे लोग भी कर सकेंगे, जो अब तक पढ़ना-लिखना सीख नहीं सके। हाथ में किताब थामे, पन्नों पर बने चित्र देखते हुए, हर पन्ने के लिए अलग से बनाई गई एक आडियो क्लिप को सुनना.. यह अनुभव किताब को पढ़ने से कमतर नहीं होगा। स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े विभिन्न संगठनों ने क्लीनिकल ट्रायल में भाग लेने वालों के लिए एक ऐसी ही किताब तैयार की है। 16 पन्नों की यह बोलती किताब भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) और कुछ दूसरे संगठनों की मदद से तैयार की है। आम किताब से थोड़ी अलग दिखने वाली इस किताब में दाईं ओर एक पैनल बना हुआ है। हर पन्ने पर बड़े-बड़े चित्र हैं और पैनल पर हर पन्ने के चित्र बने हुए हैं। जो पन्ना आप सुनना चाहते हैं, पैनल पर उस पन्ने के ऊपर दबाएं। इस किताब में हिंदी और अंग्रेजी दो भाषाओं का विकल्प उपलब्ध है। बोलती किताब के सिलसिले की शुरुआत की गई है क्लीनिकल ट्रायल में भाग लेने वाले मरीजों से। आईसीएमआर के महानिदेशक वीएम कटोच कहते हैं, हिंदुस्तान में पिछले कुछ वर्षो के दौरान नई दवाओं के परीक्षण का उद्योग काफी तेजी से बढ़ा है। लेकिन कई बार आरोप लगता रहता है कि ये कंपनियां परीक्षण में गरीब और अनपढ़ मरीजों को शामिल कर लेती हैं और उन्हें पूरी जानकारी नहीं दी जाती। यह किताब ऐसे मरीजों के लिए बेहद मददगार साबित होगी। किताब परीक्षण के विभिन्न पहलुओं पर बहुत सरल भाषा में बात करती है। किताब को माला नाम की एक पात्र पढ़ती है। और दस मिनट से भी कम समय में पूरी किताब सुन कर पढ़ी जा सकती है।

तसलीमा की कोलकाता वापसी पर ममता भी मौन



पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ वाम मोर्चा सरकार द्वारा मशहूर बांग्ला लेखिका तसलीमा नसरीन को प्रदेश बदर किए जाने का मामला भले ही राष्ट्रीय स्तर पर खूब उठा मगर उसकी गूंज दब कर रह गई है। यहां तक कि प्रदेश में बदलाव का नारा देने वाली ममता बनर्जी भी वोटों की राजनीति के चलते इस बारे में कुछ भी बोलने से कतरा रही हैं। हाल ही में तसलीमा ने केंद्रीय रेल मंत्री और तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो को अपनी घर वापसी के बावत पत्र लिखा लेकिन इस पर मंत्री मौन हो गईं। हिन्दी के प्रख्यात कवि गजानन माधव मुक्तिबोध ने कभी कहा था- अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाने होंगे, तोड़ने होंगे मठ और गढ़ सब, लेकिन आज इन पंक्तियों पर धूल जम गई है। अभिव्यक्ति के खतरे उठाने पर लेखनी बंद कर दी जाती है वह भी लोकतांत्रिक देश में। ऐसे लेखकों को पसंदीदा शहर से दूर अन्य शहर और देश में रहने के लिए जगह तलाशनी पड़ रही है। बांग्लादेश की निर्वासित एवं विवादित लेखिका तसलीमा नसरीन की भी जिंदगी भी कुछ ऐसे ही राहों से फिलहाल गुजर रही है। तसलीमा लगभग दो वर्षो से शहर का मुंह नहीं देख पाई हैं। अल्पसंख्यक वर्ग से जुड़े कुछ नेताओं के दबाव में आकर राज्य सरकार भी तसलीमा को शहर में पनाह देने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है। लेखिका ने बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य व रेलमंत्री एवं तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी को पत्र भेजा लेकिन कहीं से कोई जवाब नहीं मिला। वजह साफ है कि वोट बैंक की राजनीति में अभिव्यक्ति दरबदर हो रही है। यह भी स्पष्ट हो गया है कि तसलीमा की लेखनी के ममता व कद्रदान नहीं हैं। वैसे दोनों की साहित्य में बेहद रुचि है। ममता पंद्रह से अधिक पुस्तकें लिख चुकी हैं और बुद्धदेव द्वारा लिखित नाटक दु:समय चर्चित रहा है। लेखक होकर भी दोनों तसलीमा की कोलकाता वापसी के पक्ष में नहीं हैं। डेढ़ दशक पहले तसलीमा विवादित उपन्यास लज्जा से सुर्खियों में आईं। वह कई बार कह चुकी हैं कि कोलकाता में उनकी लेखनी और जान बसती है। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखिका महाश्र्वेता देवी कहती हैं कि तसलीमा के साथ लगातार अन्याय हो रहा है। पीडि़त महिलाओं के लिए अपनी लेखनी में आवाज उठाने वाली तसलीमा आज खुद पीडि़ता बन गई हैं। बुद्धिजीवियों का कहना है कि तसलीमा की कोलकाता वापसी के लिए प्रयासरत है पर दोनों प्रमुख पार्टियां कान बंद किए हुए हैं।

वायुसीमा में अमेरिकी विमान की फिर सेंध


नई दिल्ली(डॉ सुखपाल)-अमेरिकी कमांडो के साथ एक विमान बिना अनुमति भारतीय वायुसीमा में घुसा। फिर मामूली जांच के बाद उसे रवाना करने की मंजूरी मिल गई। हालांकि यह सोमवार को कूच करेगा। पिछले चार महीनों के दौरान भारत की वायुसीमा में सेंधमारी की यह चौथी घटना है। वायुसीमा में सेंधमारी की हालिया तीन में से दो घटनाओं में खलनायक अमेरिकी वायुसेना रही। रविवार को वायुसीमा उल्लंघन करने वाले अमेरिकी विमान को मुंबई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया गया। उत्तरी अमेरिकन एयरलाइंस का बोइंग 767 विमान संयुक्त अरब अमीरात के फुजीरिया से बैंकाक के उतापाओ हवाई अड्डे जा रहा था। विमान में सवार 205 यात्रियों में कई अमेरिकी नौसैनिक भी थे। विमान को प्राथमिक जांच-पड़ताल के बाद गंभीर न मानते हुए छोड़ दिया। वायुसीमा के उल्लंघन को लेकर इस तथ्य की अनदेखी नहीं की जा सकती कि जब से अफगानिस्तान और इराक सहित मध्यपूर्व के देशों में अमेरिकी सैन्य बल बढ़ा है तब से भारतीय वायुसीमा के उल्लंघन के मामले भी बढ़े हैं। साथ ही हमें नब्बे के दशक में वायुसीमा का उल्लंघन कर भारतीय सरजमीं पर हथियार गिराने के पुरुलिया कांड को भी नहीं भूलना चाहिए। सुरक्षा को लेकर देश की सतर्कता और तैयारी के तमाम दावों के बीच पिछले चार महीने में सीमा उल्लंघन की घटनाएं बढ़ी हैं। इसी वर्ष जून में अमेरिकी एएन-32 कार्गो विमान ने वायुसीमा का उल्लंघन किया था। उसमें भी अमेरिकी सैनिक मौजूद थे। बताया गया कि सैनिक अफगानिस्तान जा रहे थे। उस विमान को भी मुंबई में उतरने को बाध्य किया गया था। सितंबर की घटना ज्यादा गंभीर थी। उस समय हथियारों से लदे सउदी अरब के एक सैन्य विमान ने चीन जाते हुए भारतीय वायुसीमा में प्रवेश किया था। भारत को यह जानकारी नहीं दी गई थी कि उसमें हथियार हैं। पूछताछ के बाद सउदी अधिकारियों ने खेद जताकर छुटटी पा ली। रविवार की घटना में भी भारतीय एजेंसियों को यह जानकारी नहीं दी गई थी कि उनके विमान में नौसेनिक कमांडो यात्रा कर रहे हैं। मुंबई की घटना के बाद समुद्री चौकसी का दावा भी ढीला साबित हुआ। करीब एक पखवाड़े पहले तूतीकोरिन के पास एक विदेशी जहाज पकड़ा गया था। इस पर सिंगापुर का झंडा लगा था। सुरक्षा एजेंसियों की आंख से चूकता हुआ वह जहाज कोडईकनाल के संवेदनशील न्यूक्लियर संयंत्र के दस किलोमीटर दायरे में पहुंच गया था। यह तो संयोग ही था कि मछुआरों ने उसे देख लिया और जहाज में कोई आपत्तिजनक वस्तु भी नहीं थी। साफ है कि चाहे सिंगापुर जहाज के न्यूक्लियर प्लांट के निकट पहुंचने का मामला हो या अमेरिकी सैन्य विमान के वायुसीमा में सेंध लगाने का, दोनों हमारे सुरक्षा दावों पर सवालिया निशान तो लगाते ही हैं।

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