सितारे: प्रियंका चोपड़ा, उदय चोपड़ा, डीनो मोरिया, अनुपम खेर और बेबी साईदा
निर्माता: उदय चोपड़ा/यशराज फिल्म्स
निर्देशक: जुगल हंसराज
लेखक, पटकथा एवं संवाद: उदय चोपड़ा
गीत: अन्विता दत्त गुप्तान
संगीत: सलीम-सुलेमान
कहानी: सीधे-साधे अभय (उदय चोपड़ा) के सामने परेशानी यह है कि वह अलीशा (प्रियंका चोपड़ा) से अपने दिल की बात नहीं कह पाता। एक सॉफ्टवेयर डील के सिलसिले में अभय की मुलाकात सिद्दू (डीनो मोरिया) से होती है। एक दिन उसे पता चलता है कि उसका वही सॉफ्टवेयर सिंगापुर की एक कंपनी पिनैकल बाजार में लॉन्च करने जा रही है। अभय सिंगापुर जाता है तो उसकी मुलाकात अलीशा से होती है। अभय जब अलीशा से मिलता है तो उसे अलीशा के घर में आया की नौकरी करनी पड़ जाती है। यहीं अभय को पता चलता है कि जिसे वह सिद्दू समझ कर तलाश रहा है, दरअसल वह वरुण है और उसी ने उस कंपनी को वह सॉफ्टवेयर बेचा है।
निर्देशन: समझ नहीं आता कि निर्देशक क्या दिखाना चाहता है। कॉलेज की मस्ती, सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री के चोरी ट्रैंड या फिर एक भोले-भाले युवक की प्रेम कहानी के साथ आया की नौकरी करने वाले एक युवक की दास्तान। इन बातों के साथ जुगल का निर्देशन दिशाहीन सा लगता है।
अभिनय: फिल्म के ज्यादातर काम तो उदय चोपड़ा के हाथों में हैं। इनमें से एक अभिनय भी है, जिसमें वह मजबूर से नजर आते हैं। प्रियंका काफी हॉट लगी हैं। इस लिहाज से उनके लिए भी एक्टिंग का स्कोप कम ही रहा। डीनो कुछेक सीन्स में ठीक ठाक लगे हैं। अनुपम खेर को इतना छोटा रोल करने की क्या जरूरत थी, यह समझ से परे निकला।
लेखन-पटकथा: कॉन्सेप्ट अच्छा है, पर फ्रेश नहीं। उदय चोपड़ा ढेर सारी जिम्मेदारी उठाने के चलते किसी भी चीज पर ठीक से फोकस नहीं कर सके।
गीत-संगीत: इस फिल्म का प्लस प्वाइंट है। सलीम-सुलेमान की धुनें उनके फ्लेवर से हट कर हैं। ‘कैसे मैं किसी को’ और ‘प्यार इम्पॉसिबल’ अच्छे ट्रैक हैं।
क्या है खास: अभय का थाई डिनर सर्व करना और बेबी साईदा के स्कूल का गीत। फिल्म के गीत और उनका फिल्मांकन।
क्या है बकवास: सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री के फंडे, उदय चोपड़ा का अभिनय और फिल्म का क्लाईमैक्स।
पंचलाइन: प्यार को इतना जटिल बनाने की जरुरत ही क्या थी कि वह इम्पॉसिबल लगने लगे।
निर्माता: उदय चोपड़ा/यशराज फिल्म्स
निर्देशक: जुगल हंसराज
लेखक, पटकथा एवं संवाद: उदय चोपड़ा
गीत: अन्विता दत्त गुप्तान
संगीत: सलीम-सुलेमान
कहानी: सीधे-साधे अभय (उदय चोपड़ा) के सामने परेशानी यह है कि वह अलीशा (प्रियंका चोपड़ा) से अपने दिल की बात नहीं कह पाता। एक सॉफ्टवेयर डील के सिलसिले में अभय की मुलाकात सिद्दू (डीनो मोरिया) से होती है। एक दिन उसे पता चलता है कि उसका वही सॉफ्टवेयर सिंगापुर की एक कंपनी पिनैकल बाजार में लॉन्च करने जा रही है। अभय सिंगापुर जाता है तो उसकी मुलाकात अलीशा से होती है। अभय जब अलीशा से मिलता है तो उसे अलीशा के घर में आया की नौकरी करनी पड़ जाती है। यहीं अभय को पता चलता है कि जिसे वह सिद्दू समझ कर तलाश रहा है, दरअसल वह वरुण है और उसी ने उस कंपनी को वह सॉफ्टवेयर बेचा है।
निर्देशन: समझ नहीं आता कि निर्देशक क्या दिखाना चाहता है। कॉलेज की मस्ती, सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री के चोरी ट्रैंड या फिर एक भोले-भाले युवक की प्रेम कहानी के साथ आया की नौकरी करने वाले एक युवक की दास्तान। इन बातों के साथ जुगल का निर्देशन दिशाहीन सा लगता है।
अभिनय: फिल्म के ज्यादातर काम तो उदय चोपड़ा के हाथों में हैं। इनमें से एक अभिनय भी है, जिसमें वह मजबूर से नजर आते हैं। प्रियंका काफी हॉट लगी हैं। इस लिहाज से उनके लिए भी एक्टिंग का स्कोप कम ही रहा। डीनो कुछेक सीन्स में ठीक ठाक लगे हैं। अनुपम खेर को इतना छोटा रोल करने की क्या जरूरत थी, यह समझ से परे निकला।
लेखन-पटकथा: कॉन्सेप्ट अच्छा है, पर फ्रेश नहीं। उदय चोपड़ा ढेर सारी जिम्मेदारी उठाने के चलते किसी भी चीज पर ठीक से फोकस नहीं कर सके।
गीत-संगीत: इस फिल्म का प्लस प्वाइंट है। सलीम-सुलेमान की धुनें उनके फ्लेवर से हट कर हैं। ‘कैसे मैं किसी को’ और ‘प्यार इम्पॉसिबल’ अच्छे ट्रैक हैं।
क्या है खास: अभय का थाई डिनर सर्व करना और बेबी साईदा के स्कूल का गीत। फिल्म के गीत और उनका फिल्मांकन।
क्या है बकवास: सॉफ्टवेयर इंडस्ट्री के फंडे, उदय चोपड़ा का अभिनय और फिल्म का क्लाईमैक्स।
पंचलाइन: प्यार को इतना जटिल बनाने की जरुरत ही क्या थी कि वह इम्पॉसिबल लगने लगे।