
( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)- : सिखों के लिए हरियाणा में अलग गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का मसला चुनाव बाद नए गुल खिलाएगा। झिंडा गुट की तरफ से कुरुक्षेत्र में किए गए शक्ति प्रदर्शन के बाद यह बात आम हो चली है कि नई सरकार के गठन के बाद यह मुद्दा फिर से रफ्तार पकड़ सकता है। एसजीपीसी और पंजाब अलग कमेटी के मसले पर पहले ही अपना विरोध जता चुके हैं। इसलिए तय माना जा रहा है कि जो भी सरकार बनी उसके लिए दोनों तरफ से मुश्किल पैदा होंगी। सिखों को अलग कमेटी देने की कोशिश की गई तो पंजाब और एसजीपीसी से टकराव करना पड़ेगा और नहीं की तो हरियाणा के सिख नेताओं के उग्र तेवरों का सामना करना पड़ सकता है। हरियाणा के गुरुद्वारों के रखरखाव के लिए अलग कमेटी बनाने का जिक्र 2005 में कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में किया था। अन्य पार्टियों ने भी इस मसले पर अपने अपने तरह से वायदे किए थे। सिखों ने इस वायदे को सिर आंखों पर लिया और कांग्रेस को चुनाव में समर्थन दिया। हुड्डा सरकार ने कामकाज संभालने के तुरंत बाद चट्ठा कमेटी बनाकर इस ओर कदम भी बढ़ाया लेकिन उसके बाद काम ज्यादा तेज रफ्तार से नहीं हो सका। लोकसभा चुनाव से ऐन पहले कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दी और अलग कमेटी की मांग को काफी हद तक जायज भी ठहराया परंतु उसके बाद से ही नित नए विवाद खड़े होने शुरू हो गए। पहले सिख नेता शुकराना (धन्यवादी) यात्रा को लेकर आपस में उलझ गए। उसके बाद जगदीश झिंडा ने कुरुक्षेत्र में अपने तेवर तीखे किए। उन्हें अभी तक दिल्ली और अकाल तख्त के समक्ष जाकर सफाई देनी पड़ रही है। दूसरा गुट अभी तक शांत है। लेकिन जानकार कहते हैं कि यह विवाद थमने वाला नहीं लगता। उनका कहना है कि चुनाव बाद यह मसला जोर पकड़ेगा। उधर, मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा इसके लिए एक नवंबर 2009 की तारीख तय कर चुके हैं। उनका कहना है कि कई चीजों को ध्यान में रखकर यह किया गया। विरोधी हालांकि इस मसले पर कह रहे हैं कि सरकार चुनाव में राजनीति खेल रही है। सिखों को फुसलाने के लिए एक नवंबर की तारीख रखी गई है। इस संदर्भ में इनेलो का कहना है कि अलग कमेटी सिखों का अपना अलग मसला है। वह मानते हैं कि राजनीतिक दलों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।