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गुरुवार, 4 नवंबर 2010

उसी के सपने हकीकत का रूप लेते है जो अनुशासन में रह कर समय का सदुपयोग करते है-डा. गुलाटी

आज के सपने कल की हकीकत
डबवाली -सेंट जोसफ हाई स्कूल में वार्षिक उत्सव आयोजित किया गया। आज के सपने कल की हकीकत थीम को लेकर आयोजित इस भव्य समारोह में डबवाली के प्रसिद्ध डेंटल सर्जन डॉ. मनमीत गुलाटी मुख्यातिथि के तौर पर शामिल हुए। जबकि बंठिडा के डॉ. एस के बांसल ने विशिष्ट अतिथि के तौर पर शिरकत की। कार्यक्रम का आगाज स्वागत गीत के साथ हुआ। विद्यार्थियों ने सांस्कृतिक व रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत कर उपस्थित अतिथियों तथा अभिभावकों का मन मोह लिया। विद्यार्थियों द्वारा बेटियों के बढ़ते कदमों को लेकर मंचित किया गया पंजाबी नाटक सुपना होइयां, राजस्थानी, केरला और वैस्टन नृत्य खूब सराहा गया।
इस मौके पर मुख्यातिथि के तौर पर संबोधित करते हुए डा. मनमीत गुलाटी ने कहा कि उसी के सपने हकीकत का रूप लेते है जो अनुशासन में रह कर समय का सदुपयोग करते है और सही दिशा में आगे बढ़ते है। उन्होंने कहा कि व्यक्तित्व निर्माण में अध्यापकों, अभिभावकों और मित्रों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उन्होंने कहा कि वे आज गर्व के साथ जिस प्लेटफार्म पर खड़े है उसमें उनके माता पिता के साथ उनके अध्यापकों का भी उतना ही योगदान है। विद्यार्थियों को जीवन में सफलता की राह दिखाते हुए उन्होंने कहा कि सपने भी देखने चाहिए और उन्हें पूरा करने के लिए समर्पण भाव जोश से जुट जाना चाहिए। जीत उसकी की होती है जो आगे बढ़ते है।
युवाओं में बढ़ रहे नशे की लत पर चिंता जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि जिन युवाओं में आत्मविश्वास की कमी होती है और बुरी संगत का शिकार हो, वे इन तरह की बुरी लतों का शिकार हो जाते है जो उनके जीवन को तबाही की ओर मोड़ और तो ले ही जाती है उनके परिजनों की सामाजिक प्रतिष्ठा भी दाव पर लग जाती है। जो समाज और देश दोनों के लिए खतरनाक है। इस सामाजिक बुराई के खिलाफ के आंदोलन की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि इसे समाप्त करने के लिए विद्यालयों, महाविद्यालयों और अभिभावकों के साथ-साथ विद्यार्थियों के सहयोग की भी उतनी ही आवश्यकता है।
विद्यालय के प्राचार्य फादर पेक्सीकों गोलसेल्विस ने विद्यालय की प्रगति और भविष्य के कार्यक्रमों के बारे में विस्तार से जानकारी दी और शिक्षा तथा खेलों और विभिन्न प्रतिस्पर्धाओं में विद्यार्थियों की उपलब्धियों की जानकारी दी। डा. एस के बांसल ने भी विशिष्ट अतिथि के रूप में अपनी शुभ कामनाऐं विद्यार्थियों को दी। मुख्यातिथि और विशिष्ट अतिथि द्वारा विद्यालय की ओर से अव्वल आने वाले विद्यार्थियों को पुरस्कार प्रदाने किये गये। इस उत्सव में विद्यालय के एक हजार से ज्यादा विद्यार्थियों ने भाग लिया। इस मौके पर पीलार सोसायटी के हरियाणा पंजाब रीजन के प्रभार फादर ऐल्बट , डा. एस एस गुलाटी, डा. सुरेंद्र जस्सी, डा. मुकेश गोयल, संदीप चौधरी के अलावा शहर के गणमान्य उपस्थित थे।
चित्र-1- सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते हुए विद्यालय के बच्चे।
चित्र -2- मुख्यातिथि के पुरस्कार देते हुए फादर ऐल्बट।

दिवाली पर ऐसा कुछ करने का संकल्प ले जा ेराम राज की ओर ले जाये

अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व हैं दीपावली। अंधकार से आशय उस अंधेरे से नहीं हैं जो कि बिजली का बटन दबाते ही टयूब लाइट की रोशनी से समाप्त हो जाता हैं और ना ही उजाले का यह आशय हैं जो कि टयूब लाइट से निकलने वाला प्रकाश होता हैं। अंधकार से आशयसामाजिक बुराइयों से हैं और प्रकाश का आशय हैं सदगुण।
आज से 63 साल पहले हमारा देश गुलामी के अंधेरे से मुक्त हो गया हैं। ऐसा प्रतीत होता हैं कि इन सालों में अंधकार तो गहन होता गया हैं लेकिन प्रकाश की रोशनी कमजोर पड़ती जा रही हैं। आज सामाजिक बुराइयों को साधन बनाकर खुद को इतना अधिक प्रकाशवान कर लेते हैं कि वे समाज के आदर्श बन जाते हैं और उनका अनुसरण करने में लोगों को संकोच तक नहीं होता हैं। भ्रष्टाचार समाज में शिष्टाचार का रूप लेता जा रहा हैं। अत्याचार पर रोक लगाने का जिन कंधों पर दायित्व हैं वे परदे के पीछे उनके संरक्षक की भूमिका में दिखते हैं। अधिकार संपन्न लोग अपनी सनक में कुछ भी करते देखे जा सकते हैंं। इन अंधकारों में गुणव्यक्ति कहीं खो गयाहैं जिसे देश में कभी गुणों के कारण सम्मान मिला करता था।

रावण बुराइयों और अत्याचार का प्रतीक था जिसका सदगुणों के प्रतीक राम ने वध यिा था और ऋषि मुनियों तथा मानव मात्र को अत्याचार से छुटकारा दिलया था। यह विजय प्राप्त करके राम जब अयोध्या वापस आये थे तब अयोध्यावासियों ने घी के दिये जलाकर उनका स्वागत किया था जिसे हम आज भी दीपावली के त्यौहार के रूप में मनाते हैं। दीप जलाकर,फटाके फोड़ कर और मां लक्ष्मी की पूजन करने मात्र से दिवाली मनाने का उद्देश्य पूरा नहीं होता हैं। आज आवश्यकता इस बात की हैं कि जिन आर्दशों और सदगुणों के माध्यम से राम ने रावण का वध किया था उन आदशोZं को अंगीकार करें और सामाजिक बुराइयों के रूप स्थापित होते जा रहे रावण राज के अन्त की दिशा में अपने कदम बढ़ायें। अन्यथा हर साल रावण का पुतला तो हम जलाते रहेंगें लेकिन आसुरी शक्तियां देश में फलती फूलती रहेंगी और राम राज का सपनी देखने वाले इस भारत वर्ष में राम ना जाने कहां गुम हो जायेंगें।

इस दिवाली पर हम ऐसा कुछ कर गुजरने का संकल्प ले जो कि हमें राम राज की ओर ले जाये यही दीपावली पर हमारी शुभकामनायें हैं।

व्यंग्य - बाल्टी भर पसीने की अमर कहानी

राज कुमार साहू, जांजगीर छत्तीसगढ़
बढ़ते तापमान और दिनों-दिन घटते जल स्तर से भले ही सरकार चिंतित न हो, मगर मुझ जैसे गरीब को जरूर चिंता में डाल दिया है। सरकार के बड़े-बड़े नुमाइंदें के लिए मिनरल वाटर है और कमरों में ठंडकता के लिए एयरकंडीषनर की सुविधा। ऐसे में उन जैसों के माथे पर पसीने की बूंद की क्या जरूरत है, इसके लिए गरीबों को कोटा जो मिला हुआ है। पसीने बहाने की जवाबदारी गरीबों के पास है, क्योंकि यही तो हैं, जिनके पास ऐसे संसाधन नहीं होते या फिर उन जैसे नुमाइंदों को फिक्र नहीं होती कि खुद की तरह तो नहीं, पर इतना जरूर सुविधा दे दे, जिससे गरीबों का खून ना सूखे। बड़े लोगों के लिए तमाम तरह की सुविधा किसी से छुपी नहीं है, लेकिन हम गरीबों को मिलने वाली सुविधा छिपाई तो नहीं जाती, वरन् हड़प जरूर ली जाती है। इन्हीं बातों को लेकर कुछ लिखने के लिए मैं बैठा था, इसी दौरान मुझे आंख लग गई और मैं गहरी सोच में डूब गया। मैं अपने गांव के मोहल्लों में तफरीह के लिए निकला, वहां मैंने देखा कि गांव के का एक व्यक्ति पसीने से तर-बतर है। हैण्डपंप से वह पानी लेने के लिए बहुत समय से नल के मुंह पर बाल्टी लगा रखा है और वह हैण्डपंप का, हैण्डल मार-मारकर थक गया है। उसके पहने हुए कपड़े पसीने से भीगे पड़े हैं और दूसरी ओर हैण्डल के पास रखी, दूसरी बाल्टी पसीने से भर रही है। वह हैण्डल पर हैण्डल, दिए जा रहा है, मगर हैण्डपंप है कि पानी ही नहीं उगल रहा है। मैंने पास जाकर उस व्यक्ति से पूछा, क्यों भाई, हैण्डपंप में तो पानी नहीं निकल रहा है, उल्टे तुम्हारे पसीने से दूसरी बाल्टी भर गई है। इस पर उस व्यक्ति ने कहा कि क्या करें भाई, गांव में गर्मी के कारण हैण्डपंप के हलक सूखे पड़े हैं। इसलिए कोषिष कर रहे हैं कि कैसे भी हैण्डपंप से पानी निकल आए, क्योंकि प्यास से कोई बड़ी चीज थोड़ी ना है। इसके बाद मैंने उससे पूछा कि हैण्डपंप से पानी के बजाय, बाल्टी पसीने से भर गई है, इसकी तुम्हें चिंता नहीं है ? इस पर उस व्यक्ति ने जवाब देते हुए जो कहा, उससे मेरे कान खड़े हो गए, हम तो गरीब हैं, भैया और गरीबों का सुनने वाला कौन है ? भला गरीबों का हमदर्द कोई होता है, क्या। उसने कहा कि यह कोई इसी साल की समस्या नहीं है, पिछले कई दषकों से हम तो ऐसे ही जी रहे हैं और हर बरस ऐसे ही हम जैसों का पसीना बहता है। गांव-गांव में कभी-कभार बड़े लोग आकर गर्मी मंे पानी की कोई कमी नहीं होने की तसल्ली दे जाते हैं, लेकिन हालात वही है, जैसे बरसों पहले थे। हमने भी इसे अपने कर्म का लेखा मान लिया है औेर जैसी बन पड़ रही है, वैसी जिंदगी जी रहे हैं। उसने कहा कि हम तो गंवार और गरीब हैं, भला हम जैसे लोगों को पानी की इतनी ज्यादा जरूरत, किस बात की है। जरूरत तो पानी पीने वाले उद्योगों को है, सरकार भी उन पर मेहरबान है। नदी-नालों में कल-कल कर बहता पानी पर, हम जैसे गरीबों का कोई हक हो सकता है ? हम तो इसी बात से मन को मसोसकर रख लेते हैं कि बड़े लोगों का जीना, जीना है और पानी पीने का हक भी उन्हें है, हम जैसे गरीबों के लिए हवा जो है, जिस पर ऐसे कारिंदों का कुछ नहीं चलता। हालांकि इस बात को लेकर भी हव चिंतित हैं कि जो हवा हमें मिली हुई है, उस पर भी अब उद्योगों के प्रदूषण का जहर घुल रहा है, उस पर भी अब उद्योगों के प्रदूषण का जहर घुल रहा है। इस तरह मैं तो सोच-सोचकर घबरा जा रहा हूं कि क्या हम जैसे गरीबों के बाल्टी-बाल्टी भर पसीने इसी तरह ऐसे ही बहते रहेंगे ? बाद में अचानक मैं जागा तो देखा कि मैं भी पसीने से तर-बतर हूं, क्योंकि बिजली जो चली गई थी। फिर मैं यही सोचकर मुस्कुराता रह गया कि बरसों से गरीबों के पसीने बहाने की अमर कहानी ऐसी ही चल रही है और यह तो गरीबों को होने वाली तकलीफों का एक छोटा सा हिस्सा ही है।

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