डबवाली (यंग फ्लेम) पिछले 22 वर्षों से खड़ा एक हनुमान भगत गत दिवस डबवाली शहर को अलविदा कहकर अपनी आगे की यात्रा पर
निकल गए। डबवाली शहर की बठिंडा रोड पर स्थित बलदेव ट्रैक्टर वक्र्स शॉप के मालिक व उनके सेवक मिस्त्री बलदेव सिंह बताया कि यह हनुमान भक्त पिछले 22 वर्षों से चारपाई पर सोया नहीं है और न ही कभी बैठा है। उन्होंने बताया कि यह हनुमान भक्त अपने बीते समय में प्रोफेसर रह चुके है और इन्होंने एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की हुई है।
इस बारे में जब हनुमान भक्त से हमारे संवादाता ने पूछा तो उन्होंने बताया कि उनका पूरा नाम डॉ. हाकम अनमोलक दास है और उन्होंने एमबीबीएस की डिग्री के साथ डबल एमएससी पास डॉक्टर कम लैक्चरार है व साढे तीन वर्ष तक सीबीआई को भी अपनी सेवाएं दे चुके है। डॉक्टर से एक साधु का रूप धारण करने के पीछे क्या कारण था उसे बताते हुए कहा कि वह चितौडग़ढ (राजस्थान) शहर से 25 किलोमीटर दूरी पर उद्यपूर हाईवे पर स्थित गोरा जी का गांव निम्बाहेड़ा के समीप स्थित फैक्ट्री श्री गणपति फर्टीलाईजर्स के बाहर एक वह करीब 20 खड़े रहे। उन्होंने बताया कि श्री गणपति फर्टीलाईजर्स की स्थापना के समय फैक्ट्री के मालिक आरके जोशी ने इस हनुमान भक्त को हाथ में गंगा जल देकर संकल्प दिलवाया था कि वह फैक्ट्री के बाहर 108 फीट ऊंचा व 5 मंजिला हनुमान जी का मंदिर बनवाएगा। तब तक वह यहां खड़ा रहे। इस प्रकार संकल्प दिलवाने के वादे के बाद फैक्ट्री खुली और हानि उठाने के बाद उस फैक्ट्री का मालिक भी बदल गया। साथ ही वह संकल्प दिलवाने वाला आरके जोशी भी वहां से चला गया। लेकिन उस वक्त से उन्होंने अपने संकल्प की लाज रखी और आज भी अपने संकल्प पर अडिग़ है। उन्होंने बताया कि उनका जन्म 1933 में पटियाला में हुआ था। राजेंद्र मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करने के बाद सीबीआई में सैकिंड डायरैक्टर एचआर शर्मा के अधीन 3 वर्ष तक कार्य किया।

सेवादास का का कहना है की उनका सकंल्प अटूट है। तब तक उस स्थान पर हनुमान मंदिर नहीं बन जाता मैं खड़ा ही रहूंगा। अपने संकल्प को पूरा करने के कारण उनके पैर बुरी तरह से जख्मी हो चुके तथा घुटनों तक सड़ चुके है व पट्टीयां बंधी हुई है। पेशे से डाक्टर रह चुके सेवादास उर्फ अनमोलक दास ने बताया कि वह स्वयं ही एन्टीबायोटिक इंजेक्शन स्वयं ही लगा लगते है। इंजेक्शन लगाते समय भी वे खड़े ही रहते है।
उन्होंने बताया वह गत दिनों ही डबवाली शहर में अपने सेवक के यहां आए और उसकी वक्र्स शॉप के बाहर रखे तेल के ड्रम पर अपना सीना रखकर सोते है व अपना प्रत्येक कार्य स्वयं करते है। इस वक्त की स्थिती देखकर एक बारगी तो किसी का भी मन द्रवित हो जाता है और उसके मन में यहीं सवाल आता है कि इतना पढ़ा लिखा डॉक्टर आज अपना संकल्प निभाने के लिए इतनी पीड़ा उठा रहा है और संकल्प दिलवाने वाला आरके जोशी अपनी हवेली में आराम से जीवन बीता रहा है। क्या यहीं इंसानियत है कि वादा करके तोड़ दें?