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सोमवार, 2 नवंबर 2009
पिंडी फिर निशाने पर, धमाके में 30 मरे
पिछले हफ़्ते पेशावर में हुए हमले में सौ के लगभग लोग मारे गए थे.
पाकिस्तान के रावलपिंडी शहर में एक आत्मघाती हमले में कम से कम 30 लोग मारे गए और कई अन्य घायल हुए हैं.
पुलिस के अनुसार यह हमला शहर के केंद्र में स्थित मॉल रोड पर शालीमार होटल के पास नैशनल बैंक के अहाते में हुआ. जब हमला हुआ तो उस समय सरकारी कर्मंचारी बैंक से वेतन ले रहे थे.
एक वरिष्ट पुलिस अधिकारी राव इक़बाल ने बीबीसी को बताया कि यह एक आत्मघाती हमला था और मोटरसाईकल पर सवार हमलावर ने बैंक की पार्किंग में आ कर अपने आप को धमाके से उड़ा दिया.
पुलिस अधिकारी ने इस हमले में 30 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की है और कहा है कि कई अन्य लोग घायल भी हुए हैं. घायलों को करीबी अस्पतालों में भरती करवाया गया और कई लोगों की स्थिति गंभीर बताई जा रही है.
प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि धमाके से कई आस पास की इमारतों के शीशे टूट गए हैं और सुरक्षाकर्मियों ने इलाक़े को घेरे में ले लिया है.
ये शहर का भीड़भाड़ वाला इलाका है जहां कुछ बड़े होटल हैं और पाकिस्तान का फ़ौजी मुख्यालय भी वहां से ज़्यादा दूर नहीं है.
एक प्रत्यक्षदर्शी शाहिद रिज़वान ने बीबीसी को बताया कि हमलावर ने बैंक के बाहर क़तार में लगे लोगों के करीब आकर अपने आप को धमाके से उड़ा दिया. उन्हों ने कहा कि मरने वालों में एक महिला और बच्चे भी शामिल हैं जो पास ही एक कार में बैठे हुए थे.
पाकिस्तानी सेना की तरफ़ से दक्षिणी वज़ीरिस्तान में शुरू हुए अभियान के बाद से जो चरमपंथी हमलों का सिलसिला शुरू हुआ है उसमें अबतक तीन सौ के लगभग लोगों की मौत हो चुकी है.
पाकिस्तान में इन हमलों के मद्देनज़र संयुक्त राष्ट्र ने उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान से अपने अंतरराष्ट्रीय कर्मचारियों को हटाने की घोषणा की है.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान कि मून ने एक बयानी जारी कर कहा है कि यह फ़ैसला 'इलाक़े की ख़राब होती सुरक्षा को ध्यान में रखकर किया गया है.'
इस बीच पाकिस्तानी सरकार ने तहरीक ए तालिबान के प्रमुख हकीमुल्ला महसूद को पकड़वाने के लिए छह लाख डॉलर के इनाम का एलान किया है.
नहीं चलेगा गुटखा-शैम्पू पाउच
केंद्र सरकार ने शैम्पू, गुटखा, पान मसाला, नमकीन और बिस्किट के प्लास्टिक व धातु से बने पाउचों पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव रखा है। इस संबंध में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने प्लास्टिक निर्माण, उपयोग और अपशिष्ट प्रबंधन अधिनियम 2009 के नियमों पर प्रभावित पक्षों से विचार मांगे हैं। इस अधिनियम के अनुसार कोई भी व्यक्ति प्लास्टिक या धातु के ऐसे पाउचों का प्रयोग नहीं कर सकता जिनका पुनर्चक्रण नहीं किया जा सकता। नियमों में यह भी कहा गया कि भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के मानदंडों को पूरा करने वाले बायो डिग्रेडेबल (दोबारा प्रयोग में लाए जा सकने वाले पदार्थ) प्लास्टिक फिल्म से बने पाउचों के ही इस्तेमाल की इजाजत दी जाएगी। जनता और उद्योग जगत के विचारों पर दिसंबर के अंत तक गौर किया जाएगा। अगर मौजूदा नियमों को ही स्वीकार किया गया तो रोजमर्रा के सामान बनाने वाली और खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों सहित विभिन्न उद्योगों को पर्यावरण के अनुकूल सामग्री का ही प्रयोग करना होगा। पर्यावरण मंत्रालय में संयुक्त सचिव राजीव गाबा ने कहा, ये प्रस्ताव गत वर्ष दिल्ली हाईकोर्ट की ओर से गठित चोपड़ा समिति के सुझावों के बाद आया है। दिल्ली हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश आरसी चोपड़ा की अध्यक्षता में गठित तीन सदस्यीय समिति ने स्वास्थ्य व पर्यावरण को होने वाले नुकसान का हवाला देते हुए धातु तत्वों से युक्त रंगीन थैलियों पर भी प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया था। इसके बाद दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश पर राज्य सरकार ने गत जनवरी में राजधानी में अधिसूचना जारी कर होटलों, अस्पतालों, शापिंग माल और बाजारों में प्लास्टिक थैलियों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया था। प्रतिबंध तोड़ने पर 15 हजार रुपये का जुर्माना लगाने का भी प्रावधान है।
कैमूर पहाड़ी पर कैद है सम्राट अशोक का शिलालेख
एलेन च अंतलेन जंबुदीपसि। यही वह प्रारंभिक पंक्ति है, जो कैमूर पहाड़ी पर मौजूद मौर्य सम्राट अशोक के लघु शिलालेख पर अंकित है। ब्राह्मी लिपि में लिखित इस पंक्ति का अर्थ है जम्बू द्वीप (भारत) में सभी धर्मो के लोग सहिष्णुता से रहें। आज यह शिलालेख पहाड़ी पर वर्षो से ताले में कैद है। इतिहासकार, पुरातत्वविद् व पर्यटक शिलालेख को पढ़ने की चाहत में थककर पहाड़ी पर पहुंचने के बाद वहां से निराश होकर लौटते हैं। खासकर बौद्ध पर्यटक ज्यादा निराश होते हैं। सासाराम से सटी चंदतन पीर नाम की पहाड़ी पर अशोक महान के इस शिलालेख को लोहे के दरवाजे में कैद कर दिया गया है। इसपर इतनी बार चूना पोता गया है कि इसका अस्तित्व ही मिटने को है। यह स्थल पुरातत्व विभाग के अधीन है, पर इसपर दावा स्थानीय मरकजी दरगाह कमेटी का है, कमेटी ने ही यह ताला जड़ा है। जिला प्रशासन से लेकर राज्य सरकार तक गुहार लगाकर थक चुके पुरातत्व विभाग ने अब इस विरासत से अपन हाथ खड़े कर लिए हैं। इतिहास गवाह है कि सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ई. पूर्व देशभर में आठ स्थानों पर लघु शिलालेख लगाये थे। इनमें से बिहार में एकमात्र शिलालेख सासाराम में है। शिलालेख उन्हीं स्थानों पर लगाए गए थे जहां से होकर व्यापारी या आमजन गुजरते थे। सम्राट अशोक ने यहां रात भी गुजारी थी। ृव्यूठेना सावने कटे 200506 सत विवासता। इस पंक्ति में कहा गया है कि अशोक ने कुल 256 रातें जनता के दु:खदर्द को जानने को महल से बाहर गुजारी थीं। पुरातत्व विभाग के सहायक नीरज कुमार बताते हैं कि चार वर्ष पूर्व आये कुछ बौद्ध पर्यटकों ने तत्कालीन डीएम विवेक कुमार सिंह से मिलकर बंद ताले पर विरोध जताया था। डीएम के स्थिति पर रिपोर्ट मांगने पर विभाग ने पूरी स्थिति स्पष्ट की थी। मई 2009 में पुरातत्व विभाग, पटना ने डीएम, एसपी, एसडीओ को पत्र लिख शिलालेख के संरक्षण की मांग की थी। अफसरों ने वस्तुस्थिति का जायजा लेकर हर पक्षों को सुना था, परंतु मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। फिलवक्त वहां पुरातत्व का एक बोर्ड तक नहीं है, जिससे आम आदमी जान सके कि महत्वपूर्ण शिलालेख यहां है। ... शेष पृष्ठ 17 पर
गुरु दे चरणां च..
पश्चिम लाहौर के करीब फरूकाबाद में रविवार को गुरुद्वारा सच्चा सौदा में मत्था टेकने के बाद बाहर आते सिख श्रद्धालु।
बड़ा खतरा बनता जा रहा छोटा-सा मोबाइल
इलेक्ट्रानिक कचरा यानी ई-वेस्ट से पर्यावरण को होने वाले नुकसान की चर्चा जोरों पर है। इन चर्चाओं में मोबाइल फोन का नाम भी जुड़ गया है। बाजार में रोजाना आ रहे नए मोबाइल सेटों के चलते पुराने सेट बेकार होते जा रहे हैं। कूड़ा बन चुके इन सेटों से निकलने वाला जहर पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि 2012 तक धरती पर 8 हजार टन मोबाइल फोन का कचरा जमा हो जाएगा। ग्लोबल कंसलटेंसी डेलोइट के मुताबिक तेजी से बढ़ता सेलफोन कचरा पर्यावरण पर सबसे बड़ा खतरा है जिसका जल्द से जल्द प्रबंधन किए जाने की जरूरत है। एक आकलन के अनुसार तेजी से बदलती तकनीक के चलते हर साल ज्यादा से ज्यादा मोबाइल कूड़े के ढेर बनते जा रहे हैं। डेलोइट कंसलटिंग इंडिया के क्षेत्रीय प्रबंध निदेशक पराग साइगांवकर ने बताया, दोबारा प्रयोग में लाने की उपयुक्त विधि के अभाव में 2012 तक 8 हजार टन मोबाइल का जहरीला कचरा धरती पर जमा हो जाएगा। इसके पर्यावरण व इंसानों पर खासे दुष्प्रभाव पड़ेंगे। भारत में जहां मोबाइल फोन का तेजी से बढ़ता कारोबार है, मोबाइल कचरे पर नियंत्रण के लिए कोई नीति बनाए जाने की जरूरत है। ताकि पारिस्थितिकी पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को रोका जा सके। यह समस्या उस समय शुरू हुई जब अवैध रूप से मोबाइल कचरे को फेंका जाने लगा। मोबाइल फोन से विषैले पदार्थो का रिसाव भूमिगत जल में हो सकता है जो भविष्य में एक बड़ी समस्या बन सकता है। एक अनुमान के मुताबिक 2008-12 के बीच मोबाइल फोन कचरे में नौ फीसदी की बढ़ोत्तरी हो जाएगी। इसमें से 80 फीसदी कचरा पर्यावरण के लिहाज से घातक होगा। साइगांवकर के मुताबिक एशिया, यूरोप और अमेरिका के 65 फीसदी मोबाइल फोन उपभोक्ता दो साल में अपना सेट बदल लेते हैं। मतलब साफ है कि हर दो साल में लगभग 10 करोड़ मोबाइल कूड़े में फेंक दिए जाते हैं।
आप ही बताएं, स्विच दबाएं कैसे?
वाह बिजली कभी-कभी, आह बिजली बार-बार। कभी अनापूर्ति की तबाही तो कभी बिलों की गफलत। काका हाथरसी की वह पंक्ति सटीक बैठती है - बिजली कड़क के बोली, मैं मार दूंगी गोली, अब आप ही बताएं स्विच को दबाएं कैसे..? पूरे उत्तर बिहार में बिजली बिल को लेकर कुछ ऐसा ही आलम बना है। यहां के किसी जिले में मीटर रीडिंग नहीं हो रही और मनमाने तरीके से बिल बनाकर भेजा जा रहा है। आप हैरान होइए, परेशान होइए, पर बिल तो भरना ही होगा। अधिकारी कहते हैं कि मीटर रीडरों की कमी है। मजबूरी है। क्या करें? मुजफ्फरपुर शहर में करीब 42 हजार उपभोक्ता है। इनमें से करीब 10-12 हजार को प्रतिमाह त्रुटिपूर्ण बिल मिलते हैं। कई बार तो रकम जमा करने के बावजूद नए बिल में एरियर के रूप में पुराने बिल को जोड़ दिया जाता है। पहले जब शहरी क्षेत्र में उपभोक्ताओं की संख्या 23 से 24 हजार थी, उस समय मीटर रीडरों की संख्या यहां 20 थी। अब जबकि उपभोक्ता 42 हजार से अधिक हैं तो मात्र 12 मीटर रीडरों से काम चल रहा है। बिहार राज्य विद्युत बोर्ड के प्रावधान के अनुसार एक रीडर प्रतिमाह 1200 मीटरों की रीडिंग करेगा, जबकि अभी एक रीडर को करीब साढ़े तीन हजार मीटर रीडिंग करनी पड़ रही है। गड़बड़ी और विलंब स्वाभाविक है। तिरहुत विद्युत आपूर्ति क्षेत्र के महाप्रबंधक अविनाश कुमार सिंह कहते हैं कि आउटसोर्सिग से मीटर रीडिंग कराने की योजना बनाई जा रही है। सीतामढ़ी में चौबीस घंटे में भले चार घंटे बिजली नसीब नहीं हो, लेकिन बिल के करंट से उपभोक्ता चित्त हैं। शहर तक में एक साल में एक बार भी मीटर की रीडिंग नहीं ली जाती। विभाग हमेशा अंदाजन ही बिल भेजता है। कार्यपालक अभियंता सुधीर कुमार कहते हैं कि सुधार के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा। बेतिया नगर मुख्यालय में मीटर की जांच होती ही नहीं। कारण, रीडर के कई पद खाली हैं। कार्यपालक अभियंता सुखलाल राम कहते हैं कि संबंधित पदाधिकारियों को सूचना दी गई है, लेकिन समाधान नहीं हो पाया है। यहां एक घर में चालीस यूनिट खपत की बात हुई थी, पर हर घर इससे ज्यादा बिजली खपत कर रहा है। मोतिहारी में विभागीय अधिकारी का दो टूक जवाब था, क्या करें, रीडर गिनती के रह गए हैंै। मजबूरी है दो-तीन महीने पर एक बार रीडिंग कराना और एकमुश्त बिल भेजना। मधुबनी विद्युत प्रमंडल के अंतर्गत करीब पचास हजार उपभोक्ता हैं। कुटीर ज्योति कार्यक्रम एवं डीएसआई (देहाती क्षेत्रों का घरेलू कनेक्शन) के तहत बने 37 हजार उपभोक्ताओं के पास मीटर ही नहीं है। ऐसे लोगों को को प्रतिमाह 84.80 रुपये बतौर बिल निर्धारित है। शेष बचे उपभोक्ताओं के घर लगे मीटरों की ही रीडिंग होती है। कार्यपालक अभियंता पीके झा स्वीकार करते हैं कि तीन मीटर रीडर हैं। इनसे प्रतिमाह रीडिंग कराना संभव नहीं है। उधर, झंझारपुर प्रमंडल में भी दो मीटर रीडर के सहारे ही काम चल रहा है। समस्तीपुर का तो जुदा ही आलम है। यहां तो बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन देने पर ही बिल आने शुरू हो जाते हैं। जितवारपुर के राजेन्द्र शर्मा, वारिसनगर के भोला पंडित, पूसा के राजेन्द्र पासवान आदि कुछ ऐसे ही भुक्तभोगी हैं। अधीक्षण अभियंता बताते हैं कि ऐसी शिकायतें अब तक उनके पास नहीं आई हैं। वैसे कभी-कभी लैक आफ इंफार्मेशन या कंप्यूटर की गड़बड़ी के कारण ऐसा हो सकता है। दरभंगा में मीटर रीडिंग होते कई सालों से नहीं देखा गया। उपभोक्ताओं को तीन-तीन साल से बिल नहीं भेजा गया है। अब बिल आना तो तय है, लेकिन लोगों के कलेजे कांप रहे हैं कि यह हजारों-हजार में आएगा और उसका भुगतान महंगा होगा। ढाई साल पहले ठेका पर सेवानिवृत जवानों को मीटर रीडिंग के लिए लगाया गया था, लेकिन उनकी रीडिंग पर आपत्तियां होने से उन्हें काम से रोक दिया गया। विभाग कर्मियों की कमी का रोना रोता है और निदान कुछ भी नहीं दिखता।
डांस पे
नई दिल्ली के वसंत कुंज स्थित रियान इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल में आयोजित डांस इंडिया डांस के ऑडिशन के लिए आई युवतियां।
खुलेआम बेचे जा रहे ऑटो के परमिट
राजधानी में चंद फाइनेंसरों ने ऑटो चालन पर कब्जा जमाया हुआ है। लेकिन परिवहन विभाग कुछ नहीं कर रहा है। विभाग को पता है कि किसी भी वाहन का परमिट निजी नहीं होता, उस पर सरकार का नियंत्रण होता है। इसकी खरीद-फरोख्त नहीं की जा सकती है। बावजूद इसके ऐसा हो रहा है। परिवहन विभाग ने इसको आरटीआई के जवाब में स्वीकार भी कर लिया है, पर कार्रवाई सिफर है। दूसरी ओर कुछ लोगों के पास 50-50 ऑटो रिक्शा हैं। आरटीआई के जवाब में यह जानकारी मिली है कि कृष्णानगर निवासी बल्लभ को। उन्होंने परिवहन विभाग से सूचना के अधिकार के तहत दी याचिका में कहा था कि अगस्त में समाचार पत्र दैनिक जागरण में प्रकाशित और टीवी चैनल में दिखाया गया था कि ऑटो डीलरों द्वारा ओपन स्कूटर मार्केट में एक ऑटो रिक्शा, जिसका कंपनी प्राइस लगभग 1,35,000 रुपए का ब्लैक में 4,70,000 में बेचा जा रहा है। उन्होंने पूछा था कि क्या परिवहन मंत्री, परिवहन मंत्री कार्यालय व परिवहन विभाग को इसकी जानकारी है। इसके साथ ही क्या जानकारी दी जाए कि क्या कार्रवाई की गई। परिवहन विभाग के उपायुक्त ने जवाब दिया कि चूंकि वाहनों की संख्या मांग से बहुत कम है इसलिए पुराने वाहन मालिक अपने ऑटो रिक्शा मनमानी कीमत पर बेच रहे हैं। इसमें परमिट की कीमत वाहन मालिकों द्वारा ली जा रही है। दिल्ली में ऑटो रिक्शाओं की संख्या बढ़ाने का मामला विचाराधीन हैं। कार्रवाई संबंधी सवाल को विभाग टाल गया। ध्यान देने वाली बात है कि कोई व्यक्ति खरीदी गई किसी गाड़ी को परमिट समेत बेच तो सकता है, लेकिन परमिट की खरीद-बिक्री नहीं कर सकता। राजधानी में 56,204 ऑटो रिक्शा पंजीकृत हैं। एक अन्य आरटीआई में याचिका दायर कर झील निवासी रमेश नागपाल ने पूछा था कि डीएल1आरके एवं डीएल1आरएल सिरीज के 0001 से 9999 तक ऐसे कितने ऑटो रिक्शा स्वामी हैं, जिनके पास 50 से अधिक ऑटो रिक्शा रजिस्टर्ड हैं। इसके जवाब में बताया गया कि कंप्यूटर द्वारा प्राप्त वांछित सूचना के अनुसार ऐसे 3,269 स्वामी हैं। हालांकि इनके पिता का नाम व पता भिन्न हो सकता है। सूत्र बताते हैं कि ऐसे ऑटो स्वामियों की संख्या करीब 1000 है, जिनके पास 50 से ज्यादा ऑटो हैं। नागपाल के अनुसार एक ऑटो से एक दिन में न्यूनतम 300 रुपए की कमाई होती है। इस तरह अगर किसी के पास 50 ऑटो हैं तो वह साल में करीब 54 लाख रुपए कमा लेता है। लेकिन अधिकतर मालिक इन्कम टैक्स विभाग में सही कमाई के आधार पर टैक्स नहीं देते हैं। इस बारे में भी आरटीआई के माध्यम से परिवहन विभाग से पूछा गया था कि क्या विभाग ऐसे ऑटो मालिकों की जानकारी इन्कम टैक्स विभाग को देता है। इसके जवाब में विभाग ने कहा था कि हमारे यहां ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। विशेष बात यह है कि 50 से ज्यादा ऑटो रखने वालों में फाइनेंसरों की संख्या ही अधिक है।
पुलिस पर चला पुलिस का डंडा
यातायात नियम का उल्लंघन करने पर पुलिस वालों के सामने क्षमा याचना करते लोगों को आपने अक्सर देखा होगा। लेकिन रविवार का नजारा उलटा था। जिसे देख लोग भी आश्चर्य चकित थे। नियम का पालन कराने वाले ही नियमों के उल्लंघन में फंस गए। फिर वहीं हुआ जो वे करते हैं, लाख क्षमा याचना के बाद भी उनका चालान कट गया। 2500 पुलिस वालों का यातायात नियम के उल्लंघन पर चालान काटा गया। यातायात नियमों का उल्लंघन करने वाले पुलिस कर्मियों के खिलाफ रविवार को तीन घंटे का अभियान चलाया गया। इसमें अधिकारियों ने हिस्सा लिया। इन तीन घंटों ने नियम का पालन करने वालों की पोल खोल दी। इस दौरान 2500 पुलिस कर्मी यातायात नियम का उल्लंघन करते मिले। उनका चालान किया गया। इनमें नोएडा और बाहर तैनात पुलिस कर्मी भी थे। शहर भर में अभियान को छह जगहों पर चलाया गया। इसमें एसपी यातायात, एसपी सिटी, सीओ यातायात व इंस्पेक्टर यातायात ने हिस्सा लिया। एसएसपी अशोक कुमार सिंह ने बताया कि पुलिस कर्मचारियों के यातायात नियमों के उल्लंघन करने की शिकायत मिल रही है। इससे आम जनता भी यातायात नियमों का उल्लंघन करने को प्रेरित होती थी। इसी को ध्यान में रखकर नियमों का उल्लंघन करने वाले पुलिस कर्मियों के खिलाफ अभियान चलाया गया। अभियान रजनीगंधा, डीएनडी, गोलचक्कर, सेक्टर 14ए, सेक्टर 37 चौराहा, झुंडपुरा में चलाया गया। यातायात माह शुरू : यातायात पुलिस ने रविवार से यातायात माह प्रारंभ कर दिया है। इसमें एक माह तक लोगों को यातायात नियमों का पालन करने के फायदे बताए जाएंगे। यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ अभियान चलाया जाएगा। लोगों को यातायात नियमों के बारे में बताया जाएगा। जागरूकता अभियान के साथ यातायात माह प्रारंभ हुआ। जिसमें यातायात पुलिस ने पूरे शहर में 150 जगह यातायात नियमों से संबंधित बैनर लगाए।
बा अदब, बा मुलाहजा..नवाब साहब आ रहे हैं!
नवाब मियां सैयद नकी रजा। उम्र करीब 70 बरस। पता-कश्मीरी मोहल्ला, लखनऊ, लेकिन यह उनकी पूरी पहचान नहीं है। असल पहचान को जिंदा रखने के लिए इस बुजुर्ग को कितने पापड़ बेलने पड़ रहे हैं, जरा गौर फरमाइये। नवाब साहब अवध की बहू बेगम के वंशज हैं। उन्हें वसीका (अंग्रेजों के जमाने से नवाबों की संपत्तियों के बदले उनके वंशजों को मिलने वाली पेंशन) मिलता है। नवाब साहब के घर से वसीका दफ्तर तक रिक्शे का किराया 25 रुपये है। यानि वसीका लेने के लिए उन्हें किराये के 50 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। इस उम्र में आने-जाने और दफ्तर में लगने वाले दो-तीन घंटे का वक्त भी कितना तकलीफदेह होता होगा, उसे भी आसानी से समझा जा सकता है। नवाब साहब को वसीका कितना मिलता है, यह सुनकर आप चौक जाएंगे। सिर्फ दो रुपये 98 पैसे महीने! इस बावत सवाल करने पर नवाब साहब नाराज हो जाते हैं, कहते हैं, तो क्या मैं अपनी पहचान को भी खत्म कर दूं? यही तो एक दस्तावेजी सबूत है, वर्ना एक अरब की आबादी में कौन यकीन करेगा कि यह बूढ़ा बहू बेगम का वंशज है। मैं अपनी तकलीफ, आराम के लिए अपनी आने वाली नस्लों से नइंसाफी नहीं कर सकता। अपने जीते जी, मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। अपनी पहचान जिंदा बनाए रखने के लिए जद्दोजहद करने वाले नवाब मियां सैयद नकी रजा अकेले नहीं है। अवध के शासकों के करीब 1700 वशंज इस तरह की जद्दोजहद में शामिल हैं। सभी को वसीका मिल रहा है, लेकिन यह रकम एक रुपये, दो रुपये, पांच रुपये, दस रुपये बीस रुपये है। कुछ ही खुशकिस्मत हैं, जिन्हें चार सौ या पांच सौ रुपये मिलते हैं। इनके लिए रकम उतनी महत्वपूर्ण नहीं है, जितना अपनी पहचान को जिंदा रखना। यही वजह है कि जो रकम सुनने में बहुत मामूली लगती है, उसे हासिल करने के लिए होने वाली जहमत उनके लिए कोई मायने नहीं रखती। वाजिद अली शाह के खानदानी शाह आलम से ही मिलिए। सवा पांच रुपये महीने वसीका मिलता है। वह खुद सवाल करते हैं, सवा पांच रुपये इस दौर में क्या मायने रखते हैं? पर इसे लेने में उनके सौ रुपये खर्च हो जाते हैं। इसके लिए इतनी जिद्दोजहद क्यों? जवाब लगभग वही, बात सवा पांच रुपये की नहीं है। बात अपनी जड़ों को सींचते रहने की है। हम जिस रोज सवा पांच रुपये लेना छोड़ देंगे, उस दिन हम अपनी जड़ काट देंगे। ऊपर से जो नस्ल चली आ रही है, वह कहां तक पहुंची यह पहचान खत्म। हम कौन हैं, हमारे बच्चे किस खानदान से ताल्लुक रखते हैं, यह पहचान भी खत्म। शाह आलम कहते हैं, सवा पांच रुपये के लिए सवा पांच हजार रुपये खर्च करने पड़ेंगे तो भी मैं तैयार रहूंगा। एक और वसीकेदार हैं काजिम अली खां। वह मोहम्मद अली शाह के वजीर रफीकउददौला बहादुर के वंशज हैं। इन्हें 26 रुपये वसीका मिलता है। कबूतरबाजी के शौकीन खां साहब कहते हैं कि उनके कबूतर ही महीने में तीन सौ रुपये का दाना खा जाते हैं। साढ़े पांच रुपये पाने वाली मलका बेगम भी पहचान के लिए जूझ रही हैं।
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