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रविवार, 18 अक्टूबर 2009

अपनों की हवस का शिकार


पीड़िता की पहचान गोपनीय रखने के लिए दोषियों के नाम भी सार्वजनिक नहीं किए जा सकते.--
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इंग्लैंड के कार्डिफ़ शहर में भारतीय मूल की एक महिला का लंबे अरसे से यौन शोषण करने के मामले में उनके ही कई सगे संबंधियों को लंबी क़ैद की सज़ा सुनाई गई है.

परिजनों के साथ ही शारीरिक संबंध बनाने को मजबूर हुई महिला गर्भवती हो गई और उसने अपनी माँ को इसकी जानकारी दी.

लेकिन माँ से अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने पर उसने आत्महत्या की कोशिश की.

ये मामला तब प्रकाश में आया जब अदालत में कार्रवाई शुरू हुई और दोनों पक्षों के बीच बहस हुई.

अदालत ने पीड़ित महिला के सौतेले पिता को 15 साल, चाचा को 20 साल और उसके जीजा को 12 साल की क़ैद की सज़ा सुनाई और कहा कि इन लोगों ने इस महिला को एक 'वेश्या' की तरह इस्तेमाल किया.

जज ने सज़ा पूरी करने के बाद पीड़िता के संबंधियों को वापस भारत भेजने के आदेश दिए हैं.

अदालत को बताया गया था कि इस महिला का यौन शोषण बचपन से ही पहले उसके चाचा ने, और फिर उसके सौतेले पिता और जीजा ने किया.

दोस्त ने दी हिम्मत
पीड़ित महिला का कहना है कि अगर उसके पुरुष मित्र ने उसका साथ नहीं दिया होता तो उससे जुड़ा ये सच कभी उजागर नहीं होता.
महिला ने कहा है, "मेरे दोस्त ने मुझे हिम्मत दी कि मै इन लोगों के खिलाफ पुलिस में शिकायत करूँ जो वर्षों से मेरा यौन शोषण करते आए हैं."

महिला ने कहा," मेरे लिए बाहर निकलना मुश्किल था. अब भी मैं अपने घर से ठीक तरह से निकल नहीं सकती क्योंकि मुझे लगता है कि लोग मेरे बारे में बातें कर रहे होंगे."

महिला का कहना था कि जब उसने अपनी माँ को बताया कि उसे सात महीने का गर्भ है और इसका ज़िम्मेदार घर का ही एक व्यक्ति है तो उसकी माँ ने उसका यकीन नहीं किया और डॉक्टर के पास जांच कराए जाने के बाद उसकी पिटाई की.

महिला के चाचा ने अदालत में ये माना है कि वो ही उस बच्चे का पिता है जो इस महिला के गर्भ में पल रहा था.

वकील ने बताया है कि इस महिला ने पिछले साल पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि पांच साल की उम्र से ही इसके परिवार के ही सदस्य उसका यौन शोषण कर रहे हैं.

घर वापसी के लिए जेल की यात्रा


जावेद रोज़गार की तलाश में सउदी अरब अमीरात गए थे लेकिन उनके पास वैध वर्क परमिट नहीं था-
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जेल शब्द अपने आप में डर का एहसास कराता है लेकिन जब सवाल पापी पेट का हो तो जेल जाने में बुराई क्या है. ये कहना है लखनऊ के चिकन कारीगर जावेद मक़सूद अहमद का जो जेद्दा (सऊदी अरब अमीरात) से भारत मुफ़्त में आने के लिए जानबूझ कर जेल गए.

रोज़गार की तलाश में भारत के बहुत से लोग खाड़ी देशों की ओर रुख़ करते हैं. वीज़ा संबंधी कड़े नियमों के कारण रोज़गार के लिए वीज़ा मिलना इतना आसान नहीं होता है. ऐसे में लोग वहाँ उमरा वीज़ा लेकर जाते हैं. यानी हज के समय के अतिरिक्त मक्का-मदीना की यात्रा के लिए लोग सऊदी अरब जाते हैं जिसकी अवधि 45 दिनों की होती है. उसके बाद वे लोग वहीं रह कर छोटे मोटे रोज़गार करने लग जाते हैं.

चूँकि इनके पास कोई वैध 'वर्क परमिट' नहीं होता है ऐसे में उनके पकड़े जाने का ख़तरा बना रहता है.

सऊदी अरब अमीरात के कानूनों के मुताबिक ऐसे पकड़े गए किसी भी व्यक्ति को उसके देश वापस भेज दिया जाता है. पकडे जाने और अपने देश भेजे जाने के बीच का समय उसे जेल में बिताना पड़ता है.

उल्लेखनीय है कि अवैध रूप से रह रहे ऐसे लोगों को उनके देश भेजने का खर्चा सऊदी अरब अमीरात की सरकार उठाती है. यह एक ऐसा लालच है जो लोगों को जेल जाने के लिए प्रेरित करता है क्योंकि लौटने की यात्रा मुफ़्त हो जाती है भले ही कुछ दिन जेल में बिताने पड़ते हैं.

जावेद की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. वे अपने दोस्तों के साथ टूरिस्ट वीज़ा पर सऊदी अरब गए थे. लगभग सत्रह महीने रहने के बाद उन्होंने अपने आपको पुलिस के हवाले कर दिया जिससे उनकी भारत यात्रा मुफ़्त में हो सके. इसके पीछे वे तर्क देते हैं कि उन्होंने सऊदीअरब की जेलों की काफी तारीफ़ सुनी थी, खासकर खाने की और दूसरा मुफ्त में घर वापसी.

हवालात के दिन

जावेद ने भारत लौटने के लिए जेद्दा के नीम गाबा चौराहा पर अपने दोस्तों के साथ खाना खाया तभी पुलिस को देख कर भागने का नाटक किया. पुलिस ने उनको हिरासत में ले लिया. उनके टूरिस्ट वीज़ा की अवधि समाप्त हो चुकी थी इसलिए उन्हें जेल भेज दिया गया.

जावेद जेल पूरी तैयारी से गए थे. उन्हें पता था कि जेल में तलाशी के वक़्त कैदियों से पैसे छीन लिए जाते थे इसलिए उन्होंने अपने सारे डॉलर मोड़कर अपने रूमाल के किनारों में सिल लिए थे. तलाशी के वक्त उसी रूमाल से अपनी नाक पोंछते रहे जिससे किसी का ध्यान उस रूमाल की तरफ नहीं गया. बाद में इसी पैसों से उन्होंने जेल में कारोबार भी किया. वे जेल के कैदियों को सिगरेट और सिर दर्द की गोलियां बेचते थे. वे जेल के सफाई कर्मियों से थोक में सिगरेट और सिर दर्द की गोलियां मंगवा लिया करते थे.
जावेद और उनके साथी जिस जेल में थे वहां सारे क़ैदी अवैध रूप से रह रहे अप्रवासी ही थे, जिसमें ज्यादातर श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत से थे. वे कहते हैं कि इसलिए वहां का माहौल उतना ख़तरनाक नहीं था. सुबह आठ बजे नाश्ता, दो बजे दोपहर का खाना और रात नौ बजे फिर खाना मिलता था.

जावेद कहते हैं, "इतना पौष्टिक और समय से खाना तो घर पर भी नहीं मिल सकता."

उनके साथ 165 लोगों का दल एक कमरे में रहता था. वे कहते हैं कि जेल के नियम तोड़ने पर बहुत बुरी तरह पिटाई हुआ करती थी.

हालाँकि तेरह दिन की जेल यात्रा को जावेद आज भूलने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन अपने एक साथी क़ैदी की पिटाई और उसका चीखना आज भी उन्हें परेशान करता है.

इनका दिवाला, उनकी दीवाली !


इस बार बिहार में लालू ब्रांड पटाख़ों की काफ़ी बिक्री हुई है
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बिहार में धनतेरस और दीपावली के मौक़े पर बाज़ार में बहार आ गई. कार, टीवी, फ़्रिज, गहने, पटाख़े और मिठाइयों की रिकार्ड-तोड़ बिक्री हुई.

यह सब देख-सुन कर कुछ लोग बेहद चिढ़ गए हैं. वो कहते हैं, "बिहार के गांवों में विकास-योजनाओं का दिवाला निकाल देने वाले भ्रष्टाचारियों की दीवाली है ये."

कारोबारियों से जुड़ी एजेंसियों द्वारा मोटे तौर पर किए गए आंकलन के मुताबिक़ अकेले पटना शहर में पचीस करोड़ रूपए के पटाखे और दो करोड़ रूपए की मिठाइयां बिक जाने की पुष्टि हुई है.

कुछ स्थानीय कारोबारियों के ज़रिए बाज़ार में उतारे गए उन पटाखों की ख़ूब बिक्री हुई है, जिन के डब्बों या रैपरों पर लालू प्रसाद, राबड़ी देवी, नीतीश कुमार और राम विलास पासवान के चित्र छपे हुए हैं.

इस सिलसिले में लालू प्रसाद ने चुटकी ली है कि "लालू ब्रांड पटाखा-बम के आगे नीतीश ब्रांड फुलझड़ी की भला क्या औक़ात हो सकती है?"

राम विलास छाप चक्करघिन्नी पर व्यंग्य करते हुए यहाँ लोग कहते हैं कि 'ये छुर्छुरी वाली घिरनी पासवान जी की राजनीति से बड़ा मेल खाती है'

इनके अलावा लादेन और कसाब के नाम और तस्वीर छाप वाले पटाख़ा-बम भी यहाँ ख़ूब चर्चा में हैं.

आर्थिक मंदी या सूखे के संकट से बिलकुल बेपरवाह ख़रीदारों की भीड़ देख कर बाज़ार की बांछें खिली हुई हैं.

गांवों में भले ही महंगाई ने ग़रीब किसानों का दिवाला निकाल दिया हो, शहरों में तो धन-पशुओं की दीवाली उफान पर दिख रही है.

हर्ष-उल्लास से मनी दीवाली


इस बार दीवाली में बाज़ार में रौनक देखी जा रही है



पूरी दुनिया में प्रकाश पर्व दीवाली हर्ष और उल्लास के साथ मनाई गई.

लोगों ने नए कपड़े पहने, पटाखे फोड़े, मिठाइयाँ बाँटीं और समृद्धि के लिए प्रार्थनाएँ की गईं.

चरमपंथी हमलों के ख़तरों को देखते हुए सुख, समृद्धि और शांति का प्रतीक माने जाने वाले इस त्यौहार के लिए भारत में सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए थे.

इस अवसर पर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने लोगों के बीच शांति और सांप्रदायिक सौहार्द का संदेश दिया.

उपराष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी देशवासियों को दीवाली की शुभकामनाएँ दीं.

विदेशों में दीवाली
अपने घर और देश से दूर रह रहे लाखों भारतीयों ने शनिवार को धूम-धाम से दीवाली मनाई.

लोगों ने अपने घरों को सजाया और मित्रों के साथ मिलकर तरह-तरह से दीवाली मनाई. दुनिया भर में कई जगह भारतीय छुट्टी पर रहे.

अमरीका में राष्ट्रपति बराक ओबामा ने दो दिन पहले ही दीवाली मना ली थी, बाद में भारतीय दूतावास ने दीवाली पर कई आयोजन किए.

लंदन में प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन ने भी अपने सरकारी निवास, 10, डाउनिंग स्ट्रीट में दीवाली मनाई. बराक ओबामा की तरह उन्होंने भी वैदिक मंत्रोचार के साथ विश्व शांति के लिए प्रार्थना की.

नेपाल में भारत की तरह ही ज़ोरशोर से दीवाली मनाई गई, तो श्रीलंका में राष्ट्रपति ने तमिलों को बेहतर भविष्य का आश्वासन देते हुए उम्मीद जताई कि तमिल जल्द ही शरणार्थी शिविरों से अपने घरों को वापस लौट सकेंगे.

संयुक्त अरब अमीरात और मलेशिया में भी दीवाली उत्साह से मनाए जाने की ख़बरें हैं.

जगमग दीवाली और शुभकामनाएँ
भारत में शुक्रवार की शाम पटाखों की एक फ़ैक्ट्री में आग लग जाने से 32 लोगों की मौत हो गई. लेकिन शेष भारत में दीवाली के शांतिपूर्ण माहौल के बीच उत्साह से मनाए जाने की ख़बरें हैं.

लोगों ने अपने घरों को लाइटों और दीयों से सजाया और पटाख़े फोड़े.

हर वर्ष की तरह लोगों ने एक दूसरे के घर मिठाइयाँ भी पहुँचाईं.

परंपरा के अनुसार अभी दीवाली दो दिन और चलती रहेगी.

दिल्ली सहित देश के सभी शहरों में सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम किए गए थे.

इस बीच राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उपराष्ट्रपति ने लोगों को शुभकामनाएँ दीं.

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने संदेश में कहा कि दीवाली लोगों के बीच दोस्ती और भाईचारे को मजबूत करने का पर्व है.

जहाँ पिछले वर्ष दीवाली में दुनिया भर में आर्थिक मंदी की वजह से बाज़ार में सुस्ती छाई थी वहीं इस वर्ष बाज़ार में चहल-पहल रही.

For candidates, no Diwali celebrations until Oct 22


Chandigarh, October 18(Dr SUKHPAL)-For the 1,221 candidates in fray for 90 seats of the Haryana Vidhan Sabha, Diwali celebrations are on hold till October 22 when the counting takes place.

Though only one in 14 of these candidates will make it to the 12th Vidhan Sabha of the state, yet all will be fingers crossed till the final count.

How many sitting legislators will make it to the next House and will the number of successful women candidates cross the unlucky number of 13 are some of the questions that await answers.

Elections to the 12th Vidhan Sabha have been unique for more reasons than one. Not only they were these held six months in advance, but also recorded the highest-ever voting percentage of 72.71 in 42 years.Another interesting aspect has been the voting pattern.

For example three of the state’s showcase cities, Gurgaon, Faridabad and Panchkula, went the Mumbai way, recording a low turnout. Mumbai saw a poor turnout despite the fact that Mumbaikers have been venting their anger after the 26/11 terrorist attack.

While 14 of the assembly segments polled more than 80 per cent votes, these three constituencies did not touch the 60 per cent mark and were the lowest in the list.

This is all the more intriguing since these are the three constituencies that have witnessed either maximum investment or the highest expenditure in infrastructure development.Thirtysix assembly segments witnessed a polling of 75 per cent or more. Only six constituencies polled less than 60 per cent, the other three being Kharkauda (57.17), Ballabgarh (59.63) and Badkhal (55.73).

Another unique feature of the 12th Vidhan Sabha elections is that it saw five major parties, national and regional, contesting on their own without alliances.

The only alliance, a minor one, was between the SAD and the INLD.

The BJP, the BSP and the HJC, the Congress and the INLD virtually contested every seat. Also, the SAD made its debut in electoral politics in Haryana by contesting Ambala City and Kallanwali seats under its own election symbol.

And when the results are declared on October 22, one of the Lals that dominated the state political scenario ever since it came into being in 1962, would be there in the House.

Last of the Lals - Bhajan Lal - is now a member of the Lok Sabha. His wife, Jasma Devi and son, Kuldip Bishnoi, have their political fortunes locked in the EVMs of the Nalwa and Adampur constituencies.

His other son, Chand Mohammad, alias Chander Mohan, could not contest with the Congress denying him the ticket.The other two Lals, Devi Lal and Bansi Lal, are no more but their progenies are in the race to make it to the 12th Vidhan Sabha.

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