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शुक्रवार, 5 मार्च 2010

डबवाली (सुदेश आर्य) दि डबवाली टाइम्स के सम्पादक वासुदेव मैहता को स्थानीय प्रैस कल्ब का अध्यक्ष सर्वसाम्मति से चुन लिया गया। उनका कार्यकाल 1 अपै्रल 2010 से 31 मार्च 2011 तक रहेगा। आज शहर के पत्रकारों की बठिण्डा रोड़ पर स्थित पी. डब्ल्यू. डी. रैस्ट हाऊस में बैठक हुई जिसमें चुुनाव अधिकारी नियुक्त किए गए डॉ. एचएम ओसवाल की देख रेख में चुनाव समपन्न हुआ। अध्यक्ष पद के लिए वासदेव मैहता का ही आवेदन प्राप्त हुआ था। जिसके चलते सर्वसम्मति से उनको चुन लिया गया तथा कार्यकारिणी का गठन करने का अधिकार भी नवनिर्वाचित अध्यक्ष को प्रदान कर दिया गया। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार फतेह सिंह आजाद, निवर्तमान अध्यक्ष विजय वढेरा, जयमुनी गोयल, महावीर सहारण, नछत्तर सिंह बोस, राजीव वढेरा,डॉ. राज कपूर, डॉ. सुखपाल सिंह सांवतखेड़ा, पवन कौशिक, अमरजीत सिंह 'बिल्लु' मौजूद थे।

थाली-20 रुपये के लिए 63 जिंदगियां खत्म

मनगढ़ (प्रतापगढ़): कृपालु महाराज की ओर से एक थाली, एक रुमाल और बीस रुपये का एक नोट 37 बच्चों और 26 महिलाओं के लिए मौत का संदेश लेकर आया। सिर्फ इतना हासिल करने के लिए यहां सुबह से भीड़ जुटना शुरू हो गई थी। लगभग दस बजे तक यह आलम था कि लोगों को संभालना मुश्किल हो रहा था। मनगढ़ में भक्तिधाम मंदिर कुंडा तहसील मुख्यालय से सात किमी की दूरी पर है। यहां पिछले साल कृपालु महाराज की पत्‍‌नी पद्मा देवी की तेरहवींपर भी बड़ा जमावड़ा हुआ था। इस साल उनकी बरसी थी। इसकी सूचना पिछले एक पखवाड़े से दी जा रही थी। होली के अवसर पर कृपालु महाराज यहां हर साल रहते हैं। उनके दर्शन का लालच और साथ में कुछ पाने की इच्छा से भीड़ अनुमान से अधिक जुट गई। आसपास के गांवों से भक्तिधाम मंदिर में जुटे अधिकांश लोग दो जून की रोटी के लिए रोज जुगत भिड़ाते हैं। महिलाएं अपने साथ बच्चों को इसलिए लेकर आई थीं ताकि वे तीन-तीन, चार-चार थालियां हासिल कर सकें। यही लालच और अव्यवस्था उनके लिए काल बन गया।

पक्ष-विपक्ष की लामबंदी तेज

नई दिल्ली,-लोस व राज्य विधानसभाओं में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण देने संबंधी विधेयक पर संसद में लामबंदी तेज हो गई है। बिल के मौजूदा स्वरूप पर विपक्ष बंटा हुआ है। सपा, राजद व जद (यू) ने विधेयक के विरोध का ऐलान कर दिया है जबकि भाजपा व वामदलों ने इसका समर्थन करने की घोषणा की है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने महिला दिवस पर इसे देश की महिलाओं के लिए दिया जाने वाला तोहफा करार दिया है तो विधेयक विरोधियों की नाराजगी कम करने के लिए कानून मंत्री ने पिछड़ा वर्ग आरक्षण को अलग मुद्दा बताते हुए उसके लिए अलग पहल करने का सुझाव दिया है। वहीं, राज्यसभा की कार्यमंत्रणा समिति ने विधेयक को सोमवार को सदन में पेश करने और उस पर चर्चा व पारित कराने के लिए चार घंटे का समय आवंटित कर दिया है। विधेयक को पेश करने व उसे पारित कराने के लिए माहौल बनाने में जुटी सरकार की तरफ से कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने नई पहल करते हुए कहा है कि संविधान संशोधन के जरिए लोकसभा में अनुसूचित जाति जनजातियों को आरक्षण प्रदान किया गया है लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए ऐसा कोई आरक्षण नहीं है। जब तक यह नहीं होता, महिला आरक्षण के मामले में ऐसा नहीं कर सकते हैं। अगर विधेयक के विरोधी अन्य पिछड़ा वर्ग के प्रतिनिधित्व को लेकर बेहद इच्छुक है तो पहले उन्हें लोस और विस में अन्य पिछड़ा वर्ग की महिलाओं और पुरुषों के आरक्षित स्थान के लिए राष्ट्रीय आम सहमति कायम करनी चाहिए। यह पूरी तरह अलग मुद्दा है और यह काम इस विधेयक को पारित करने के बाद भी हो सकता है। विपक्षी दलों का मानना है कि इस समय बिना सहमति विधेयक लाने का सरकार का इरादा केवल विपक्षी एकता को तोड़ने का है। सूत्रों के अनुसार विपक्ष के सभी दल अपनी अपनी रणनीति के मुताबिक इस विधेयक का समर्थन व विरोध तो करेंगे, लेकिन अन्य मुद्दों पर उनकी एकता बरकरार रहेगी। संविधान संशोधन विधेयक होने के नाते सदन का व्यवस्थित होना और उसकी संख्या का बहुमत के सदन में होने और उसमें भी दो तिहाई का समर्थन जरूरी है। मौजूदा स्थिति में सदन का व्यवस्थित होना संभव नहीं दिखता है। पहले के विधेयक पेश होने के मौकों पर भी दोनों सदन भारी हंगामे के गवाह रह चुके हैं। सपा, राजद व जद (यू) ने साफ कर दिया है कि विधेयक का वे विरोध करेंगे। सपा की तरफ से लोकसभा में मुलायम सिंह यादव ने बुधवार को ही चेतावनी दे दी थी। गुरुवार को राज्यसभा में रामगोपाल यादव ने भी दो टूक कहा कि जद (यू) नेता नीतीश व शरद यादव, राजद नेता लालू यादव, सपा नेता मुलायम सिंह यादव और बसपा नेता मायावती इस मामले पर एकजुट हों। साथ ही वे संयुक्त बैठक कर विचार करें कि पिछड़ों के खिलाफ किस तरह की साजिश की जा रही है। इसके खिलाफ रणनीति भी बनायें ताकि यह साजिश सफल न होने पाये। लालू यादव ने कहा है कि हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे। उन्होंने विधेयक के मौजूदा स्वरूप का विरोध करते हुए कहा कि देश की राष्ट्रपति महिला हैं, लोकसभा की अध्यक्ष महिला हैं, कांग्रेस अध्यक्ष और संप्रग की अध्यक्ष भी महिला हैं और वे यहां महिला कोटे के कारण नहीं आईं हैं।

कांग्रेस को चंडीगढ़ में दफ्तर के लिए जगह नहीं

चंडीगढ़,:हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी को चंडीगढ़ में पार्टी दफ्तर के लिए जगह नहीं मिल पा रही है। दफ्तर के लिए जगह अलाट करने की मांग करते हुए हरियाणा कांग्रेस को 12 साल से अधिक समय हो गया। इस अवधि में चंडीगढ़ प्रशासन शिरोमणि अकाली दल, भाजपा और देवी लाल ट्रस्ट को पार्टी दफ्तरों के लिए सस्ती दरों पर जगह अलाट कर चुका है,, लेकिन चंडीगढ़ प्रशासन कांग्रेस नेताओं की मांग को तवज्जो नहीं दे रहा है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष फूलचंद मुलाना ने चंडीगढ़ के प्रशासक शिवराज पाटिल से मुलाकात कर न केवल प्रशासनिक अधिकारियों की शिकायत की है, बल्कि उनसे पार्टी दफ्तर के लिए चंडीगढ़ में रियायती दरों पर प्लाट आवंटित किए जाने की मांग दोहराई है। मुलाना ने पाटिल को वह तमाम दस्तावेज सौंपे, जिनके तहत हरियाणा कांग्रेस पिछले 12 साल से पार्टी दफ्तर के लिए प्लाट आवंटित किए जाने की मांग कर रही है।

बाहरियों को मुंबई आने से नहीं रोक सकते : राज्यपाल

मुंबई, महाराष्ट्र के राज्यपाल के. शंकर नारायणन का मानना है कि अन्य राज्यों से मुंबई की ओर आने वालों को रोका नहीं जा सकता। आजीवन केरल की राजनीति में सक्रिय रहे के. शंकर नारायणन से गुरुवार को पूछा गया कि मुंबई पर बढ़ते आबादी के बोझ के चलते क्या यहां बाहरियों पर अंकुश लगाया जाना चाहिए। इसके जवाब में राज्यपाल ने मुंबई को बांबे संबोधित करते हुए स्पष्ट किया कि मुंबई में बाहर से आने वालों को रोका नहीं जा सकता इसलिए इस बहस को तूल देने के बजाय हर क्षेत्र में बुनियादी ढांचा मजबूत करने के प्रयास किए जाने चाहिए। बांबे शब्द की ओर उनका ध्यान खींचे जाने पर उन्होंने कहा कि जिस तरह मेरा नाम अचानक बदल दिए जाने पर पुराना नाम एकदम से भुलाया नहीं जा सकता, उसी प्रकार बांबे को भी एकदम से भुलाया नहीं जा सकता। राज्यपाल ने अपने मूल राज्य केरल से महाराष्ट्र के विकास की तुलना करते हुए महाराष्ट्र के विकास पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि हालांकि केरल छोटा राज्य है, बावजूद इसके उसने औद्योगिक, सामाजिक एवं शैक्षणिक सभी क्षेत्रों में अच्छा विकास किया है। उसके मुकाबले महाराष्ट्र में अभी काफी विकास होने की गुंजाइश है। एक सवाल के जवाब में राज्यपाल ने महाराष्ट्र के विदर्भ एवं मराठवाड़ा क्षेत्रों के विकास के लिए बने विकास बोर्डो को कायम रखने के पक्ष में राय दी और कहा कि प्रचार माध्यमों को भी विकास एवं शिक्षा जैसे विषयों पर गंभीरता से उठाना चाहिए।

पाकिस्तान ने हाफिज सईद को दी क्लीन चिट

नई दिल्ली, मुंबई कांड के मास्टरमाइंड हाफिज सईद की गिरफ्तारी को समग्र वार्ता की मंजिल तक पहुंचने का एकमात्र रास्ता बता चुके भारत को पाक से गुरुवार को जवाब मिल गया। पाकिस्तानी शीर्षस्थ जांच एजेंसी (एफआईए) ने 26/11 मामले से सईद को साफ बचा लिया। गुनहगारों की फेहरिस्त में पाक की फेडरल जांच एजेंसी ने जमात प्रमुख का नाम कहीं भी शुमार नहीं किया है। वह भी मुंबई नरसंहार में उसकी संलिप्तता के सिलसिले में भारत के ताजा डोजियर के बावजूद। पाक जांच एजेंसी के इस रवैये पर भारतीय खेमा खासा गरम है। विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने तो कहना शुरू कर दिया है कि समग्र वार्ता की बात तो पाक सोचना ही बंद कर दे। अब तो भविष्य में होने वाली वार्ता में सिर्फ आतंकवाद का ही मुद्दा होगा। एक अधिकारी ने कहा कि समग्र वार्ता दोबारा शुरू करने की मांग कर रहे पाक को इसमें कोई रुचि हीं नहीं है वरना इसके लिए जरूरी कदम तो उठाता। 25 फरवरी की वार्ता के दौरान अपने पाक समकक्ष बशीर मलिक को विदेश सचिव निरुपमा राव ने साफ कहा था कि सईद को गिरफ्तार करना विश्वास के अभाव को दूर करने का एक अहम उपाय होगा। संकेत यही हैं कि मुंबई कांड के बाद खोया विश्वास दोबारा हासिल करने के लिए सईद की हिरासत जैसा जरूरी कदम उठाने में पाक की कोई दिलचस्पी नहीं है। सईद को इस्लामाबाद बचाना चाहता है यह तो बशीर मलिक ने दिल्ली में अपने भारतीय समकक्ष से बातचीत के बाद ही उजागर कर दिया था लेकिन अब गुरुवार के घटनाक्रम से इसकी पुष्टि होने में भी ज्यादा देर नहीं लगी। इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायुक्त ने यह सवाल दाग भी दिया है कि एफआईए की रेड बुक में मुंबई हमलों में शामिल कई आतंकियों के नाम तो हैं लेकिन सईद का नाम ही क्यों नदारद है। यह जानबूझकर उसे बचाने की कोशिश नहीं तो और क्या है। निरुपमा राव द्वारा सौंपे गए डोजियर में सईद को गिरफ्तार करने के लिए ठोस और पर्याप्त सबूत थे। वैसे, डोजियर मिलते ही हैदराबाद हाउस से निकलकर मलिक ने यह कहकर सईद का बचाव किया था कि इसमें कहानी-साहित्य ज्यादा व साक्ष्य कम हैं। भारतीय खेमे को इस निष्कर्ष में पहुंचने के लिए मलिक ने पर्याप्त आधार दे दिया था कि सईद के प्रति पाक की हमदर्दी किस कदर है। उधर, साउथ ब्लाक पाकिस्तान से आ रही मीडिया रिपोर्ट से और भी खफा है, जिनमें पाकिस्तानी अधिकारियों का हवाला देकर साफ कहा गया है कि भारत के डोजियर में कार्रवाई करने के लिए ठोस जानकारी नहीं है, बल्कि पाकिस्तान ने भारत को उसके डोजियर की धज्जियां उड़ाते हुए एक जवाब भेजने की भी तैयारी में है। पाक का कहना है कि जमात प्रमुख को ना तो गिरफ्तार किया जाएगा और ना ही उसे भारत को सौंपा जाएगा। किसी एक बयान के आधार पर उसके खिलाफ ऐसा कोई कदम उठाने का आधार बनता ही नहीं है। यह है कहना पाकिस्तानी खेमे के एक अधिकारी का जो साउथ ब्लाक में हाल में तलब किए गए थे।

अर्दली रखने पर अड़ी सरकार-सेना

नई दिल्ली फौज में अफसरों के साथ सहायक रखने की परंपरा खत्म करने का मन न तो सेना बना पा रही है और न सरकार। अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही इस परंपरा को बंद करने को लेकर रक्षा मंत्रालय ने संसदीय समिति की सिफारिशें मानने से भी इनकार कर दिया है। गुलामी की प्रतीक इस व्यवस्था के बचाव में सरकार का कहना है कि सहायकों की तैनाती किसी हीन-भावना वाले काम में नहीं की जाती। इतना ही नहीं रक्षा मामलों से संबंधित संसद की स्थायी समिति के आगे रक्षा मंत्रालय ने पेश अपनी सफाई में इस बात पर भी जोर दिया है कि सहायक के तौर पर तैनात जवान अपने अधिकृत अधिकारी को युद्ध और शांतिकाल में मिले दायित्व पूरा करने के लिए तैयार रहने में मदद देता है। सरकार ने खासा जोर देकर सहायक और अधिकारी के बीच रिश्ते को विश्वास, सम्मान, स्नेह का संबंध होता है। अक्टूबर 2008 में पेश संसदीय समिति की 31वीं रिपोर्ट में साफ कहा गया था कि सहायक के तौर पर तैनात जवानों को घरेलू नौकर की तरह इस्तेमाल किया जाता है। लिहाजा देश की सेवा के लिए सेना में भर्ती होने वाले जवानों के दुरुपयोग और अपमान की यह व्यवस्था तत्काल खत्म की जानी चाहिए। हालांकि समिति की सिफारिशों पर 15 दिसंबर 2009 के भेजे जवाब में रक्षा मंत्रालय का कहना था कि सहायकों का सम्मान सुनिश्चित करने के लिए सेना मुख्यालय ने न केवल विस्तृत दिशा निर्देश जारी किए हैं बल्कि समय-समय पर इस बारे में अधिकारियों को सजग भी किया जाता है। समिति के आगे सेना के एक प्रतिनिधि ने ही इस बात की गवाही दी थी कि फौज में सहायक के तौर पर तैनात जवान का काम अधिकारियों के घरेलू काम करना नहीं है, लेकिन उन्हें आज्ञा पालन के नाम पर ऐसा करना पड़ता है। सहायक परंपरा के बचाव को लेकर रक्षा मंत्रालय के तर्को से संसदीय समिति खासी खफा है। संसद में पेश समिति की ताजा रिपोर्ट इस परंपरा को जारी रखने को औचित्य पर ही सवाल उठाती है। समिति की सदस्य राजकुमारी रत्ना सिंह कहती हैं कि जब नौसेना और वायुसेना अपने यहां इस तरह की व्यवस्था खत्म कर चुके हैं तो यह समझना मुश्किल है कि फौज इसे क्यों जारी रखना चाहती है। मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि बदलते वक्त के साथ सेना के अधिकारियों को भी अपनी सोच बदलना चाहिए। समिति ने अपनी रिपोर्ट में नौसेना और वायुसेना से सीख लेते हुए फौज को उपनिवेश काल की याद दिलाने वाली इस परंपरा को फौरन बंद करने की मांग दोहराई है।

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