
हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए मतदान की तारीख ज्यों-ज्यों नजदीक आ रही है वैसे ही चुनावी माहौल में गर्मी बढ़ने लगी है। हरेक दल ने मतदाताओं को लुभाने के लिए घोषणापत्र के जरिए दाना तो फेंका है मगर मतदाता इन दलों के हरियाणा में अब तक किए शासन की कसौटी पर इन वादों को परखने के मूड में है। राज्य के मतदाताओं का रुझान देखें तो मतदाता की कसौटी पर केवल और केवल कांग्रेस ही खरी उतरती नजर आ रही है। किसान हरियाणा में सबसे बड़ा मतदाता वर्ग है और राज्य में किसी दल का सत्ता का खेल बनाने व बिगाड़ने में किसान वर्ग का बड़ा हाथ रहा है। चुनावी रैलियां हों या साल भर होनेवाली राजनीतिक रैलियां, किसानों ने रैलियों के जरिए राजनीति में अपनी सक्रियता जाहिर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। चाहे चौटाला रहे हों या भजनलाल अथवा स्व. चौधरी बंसीलाल, हरेक के मुख्यमंत्रित्वकाल में किसानों को सरकारी लाठी-गोली झेलनी पड़ी है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली सरकार ही अब तक ऐसी साबित हुई है जिससे किसान संतुष्ट नजर आया। पहले के दौर को निकट से देखनेवाले हुड्डा ने 2005 में सत्ता संभालने पर किसानों की ताकत को जाना और उनके कल्याण के लिए न केवल योजनाएं बनाई बल्कि उन्हें निजी दिलचस्पी लेकर हूबहू लागू भी कराया। हुड्डा ने जब हरियाणा की बागडोर संभाली थी तब किसान वर्ग सबसे ज्यादा समस्याओं से जूझ रहा था। उन्होंने साढ़े चार साल के थोड़े से अरसे में इन समस्याओं को एक-एक कर निपटा दिया और यही कारण है कि राज्य का किसान एक बार फिर उन्हें सत्तासीन देखना चाहता है। जिन समस्याओं का निदान हुड्डा ने किया उनमें से कई तो दशकों से लंबित पड़ी थीं और इस दौरान शासन करने वाली कथित किसान हितैषी पार्टियों ने भी इन समस्याओं को नजरअंदाज ही किया। मौजूदा सरकार की सबसे बड़ी खूबी यह भी रही कि उसने अफसरशाही के भरोसे रहने की बजाय इन समस्याओं के निपटारे के लिए किसानों को भागीदार बनाया और उनसे सलाह-मशविरा करके ही किसान वर्ग के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनाई। नेताओं द्वारा शोषित किसान वर्ग को इस भागीदारी का लाभ यह मिला कि ये योजनाएं शत-प्रतिशत फलदायक साबित हुई। किसान वर्ग को बरगलाने वाले दलों का राजनीतिक खेल समझ चुके किसान ने पिछले लोकसभा चुनाव में भी हुड्डा सरकार की नीतियों पर मुहर लगाई और अब विधानसभा चुनाव में भी उसी परंपरा को आगे बढ़ाता दिख रहा है। किसानों को भरोसा कांग्रेस ने कोई एक दिन में नहीं जीता है बल्कि हुड्डा की नेक नीयति, बेदाग छवि का इसमें बड़ा योगदान रहा है। अब तक सत्ता संभालने वाले मुख्यमंत्री जहां सत्ता सुख मिलते ही किसान को भूलने लगते थे वहीं हुड्डा ने जनता खासकर किसानों के बीच जाकर काम करना शुरू किया। साढ़े चार साल पहले मुख्यमंत्री का पद संभालने पर हुड्डा ने राज्य में भय, भ्रष्टाचार, अत्याचार व आतंक का राज खत्म करते हुए व्यवस्था परिवर्तन का वादा किया था। यह बदलाव अब प्रदेश के हर भाग में नजर आ रहा है। पहले किसानों ने सरकार और सरकार के करीब कुछ उद्योगपतियों-व्यापारियों द्वारा किसानों की जमीन को कौडि़यों के भाव पर हथियाने का दौर भी देख था लेकिन अब हालात बदल गए हैं। कांग्रेस सरकार भूमि अधिग्रहण करने संबंधी ऐसी नई नीति लेकर आई जिससे किसानों के दिन बदलने लगे क्योंकि इस नीति के तहत मुआवजा राशि न्यूनतम फ्लोर दर से तय की गई है। इस समय गुड़गांव विकास योजना के दायरे में आती भूमि के मुआवजे का न्यूनतम फ्लोर रेट 20 लाख रुपये प्रति एकड़, एनसीआर व पंचकूला में 16 लाख रुपये और बाकी पूरे हरियाणा में आठ लाख रुपये प्रति एकड़ तय है। इस मुआवजे में यदि सोलेशियम की राशि मिला दी जाए तो यह काफी ज्यादा बढ़ जाती है। हरियाणा में मार्केट रेट पर भूमि की फ्लोर दरें तय करने वाली यह पहली सरकार है। इस नीति में साथ भी यह भी जोड़ा गया है कि हरियाणा आधारभूत ढांचा विकास निगम के माध्यम से अधिग्रहीत की जाने वाली भूमि पर इन दरों के अलावा सालाना प्रति एकड़ 15,000 रुपये की रायल्टी 33 साल तक दी जाएगी जिसमें हर साल 500 रुपये प्रति एकड़ का इजाफा होगा।इसके अलावा एसईजेड और टेक्नालाजी पार्को के लिए भूमि अधिग्रहण पर रायल्टी के रूप में 33 साल तक 30,000 रुपये प्रति एकड़ दिए जाने का फैसला किया गया है, इस रायल्टी में सालाना 1000 रुपये प्रति एकड़ की दर से वृद्धि होती रहेगी। हुड्डा सरकार के इस फैसले का असर यह रहा कि किसान के घर पैसा पहुंचने लगा है और उस पर साहूकारों व बैंकों का दबाव भी खत्म होने की कगार पर है। किसान अपने मौजूदा और चार साल पहले के दौर की तुलना करें तो खुशहाली का यह असर साफ नजर आता है क्योंकि किसान के घर आज जरूरत के हर सामान के अलावा महंगी गाडि़यां भी हैं और उस पर किसी तरह के कर्जे का बोझ भी नहीं है। पिछले दिनों आए एक सर्वे में कहा गया है कि समूचे भारत में सबसे ज्यादा करोड़पति किसान हरियाणा के हैं। हुड्डा ने किसान के दुख दर्द को कितना समझा इसका एक और प्रमाण हैं कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेस हाइवे योजना के दायरे में आते किसान। पूर्व इनेलो सरकार ने इस योजना के तहत आती भूमि के अधिग्रहण का कुल मुआवजा 150 करोड़ रुपये तय किया था। इससे स्थानीय किसान काफी असंतुष्ट था और खुद को अपनी कथित हितैषी सरकार के हाथों ठगा महसूस कर रहा था। किसानों ने गुहार भी लगाई मगर चौटाला सरकार में किसान की सुनवाई नहीं हुई। इस दौरान 2005 में हुआ सत्ता परिवर्तन। हुड्डा हालांकि पूर्व सरकार के फैसले को बदलने के लिए बाध्य नहीं थे मगर उन्होंने सत्ता संभालते ही इन किसानों को मुआवजे की दर में करीब पांच गुणा तक की बढ़ोतरी कर दी और यह मुआवजा डेढ़ सौ करोड़ से बढ़ कर 650 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। इसके साथ ही कांग्रेस सरकार ने एक और ऐतिहासिक फैसला किया जिसके तहत एक एकड़ जमीन का मालिक किसान भी बैंक से टै्रक्टर के लिए कर्ज ले सकता है। पूर्व सरकारों के शासनकाल में इसके लिए पांच एकड़ भूमि बैंक के पास गिरवी रखने की शर्त थी। किसान हुड्डा सरकार पर इसलिए भी भरोसा जता रहा है क्योंकि उसने न केवल उसका मान-सम्मान बहाल किया बल्कि उस पर से मानसिक दबाव भी कम कराया। पूर्व सरकारों के दौर में बैंकों का कर्जा चुकाने में नाकाम रहे किसानों को गांवों से हथकड़ी लगाकर गिरफ्तार किया जाता था और जेल में उसे दी जाने वाली रोटी का खर्च तक उसके ब्याज में जोड़ दिया जाता था। बैंक अपने कर्जे की वसूली के लिए उसकी जमीन को बहुत कम दाम में नीलाम करा देते थे। लेकिन हुड्डा ने किसानों की पगड़ी के सम्मान को बरकरार रखने के लिए छोटे किसानों व दस्तकारों के 830 करोड़ रुपये के कर्ज माफ कर दिए और केंद्र की कांग्रेस नेतृत्व वाली सरकार ने देशभर में 71,000 करोड़ रुपये के जो ऋण माफ किए थे उसमें भी 2136 करोड़ की कर्जा माफी का लाभ हरियाणा को मिला। सहकारी बैंकों की ब्याज दर भी हुड्डा ने 14 प्रतिशत से कम करके सात प्रतिशत कर दी। कई हलकों का दौरा करने पर यह बात सामने आई है कि किसान फिर कांग्रेस पर भरोसा जता रहा है। जो किसान गांवों में कांग्रेस को बैठक के लिए जगह तक मुहैया कराने में आनाकानी करता था आज खुद कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए सभाओं का आयोजन कर रहा है।