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गुरुवार, 24 सितंबर 2009

सेक्स से मिलेगा कप




( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)-


भारतीय क्रिकेट टीम के प्रदर्शन को प्रभावशाली बनाने के लिए खिलाडियों को सेक्स की सलाह दी गई है.

इस वक़्त भारतीय टीम दक्षिण अफ्रीका में चैम्पियंस ट्राफी में हिस्सा लेने के लिए गई हुई है.

भारतीय अखबार हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक खबर में कहा गया है कि टीम के कोच गैरी क्रिस्टन ने खिलाड़ियों को एक गुप्त दस्तावेज़ दिया है जिसकी हेडलाइन है “क्या सेक्स प्रदर्शन बेहतर बनाता है? ”

अखबार के मुताबिक इसके उत्तर में लिखा गया है “हाँ, सेक्स करने से प्रदर्शन बेहतर होता है और इसलिए बिना किसी झिझक आगे बढ़ें और आनंद लें”.

अखबार कहता है कि उस दस्तावेज़ में ये भी लिखा है कि सेक्स करने से टेस्टोस्टेरोन का स्तर बढ़ जाता है जिसकी वजह से ताकत, आक्रामकता और मुकाबला करने का हौसला भी बढ़ जाता है.

अखबार आगे लिखता है कि दस्तावेज़ में सेक्स न कर पाने की सूरत के बारे में कहा गया है कि कई महीने तक इससे वंचित रहने पर

टेस्टोस्टेरोन का स्तर पुरुषों और महिलाओं दोनों ही में गिर जाता है और आक्रामकता भी कम हो जाती है.

खिलाड़ियों को ये भी बताया गया है कि अगर सेक्स करने के लिए कोई साथी मौजूद न हो तो एक तरीका ये भी है कि अकेले ही अपने साथी के साथ होने की कल्पना करते हुए जो संभव हो वो करें.

अखबार में ये भी दावा किया गया कि सेक्स के अलावा इस दस्तावेज़ में खानपान, देश के सामाजिक ताने बाने और खुद पर विश्वास करने जैसे विषयों पर भी बात की गई है.

India chimney collapse kills 22

Dabwali,(Dr sukhpal)
At least 22 workers have been killed and scores are feared trapped after a building collapsed in the Indian state of Chhattisgarh, officials say.

Officials say that a chimney caved in on more than 100 workers during construction work at a thermal power plant.

The accident happened in the town of Korba, 250km (155 miles) from the state capital, Raipur.

The plant is being built by Bharat Aluminium Co Ltd (Balco).

Balco is a unit of London Stock Exchange-listed Vedanta Plc, whose business activities are mostly in India.

"It's a massive accident," Ratanlal Dangi, district superintendent of police, told Reuters news agency.

"We have retrieved 20 bodies so far. Still many more are trapped under the collapsed chimney's debris. Massive rescue and relief operations are under way."

Waiting for news

Rescue workers are expected to work through the night to try and reach those still trapped underneath the rubble.

They are being helped by other construction workers as well as local residents.

The families of many missing workers have gathered at the site waiting anxiously for word of their relatives.



It is still not clear what caused the accident. All the reports say the area has been experiencing heavy rain and storms.

Chhattisgarh Chief Minister Raman Singh said a judicial investigation had been ordered into the accident.

He also announced compensation for the victims

State officials said the management of the company building the plant are likely to face charges.

A recent report by the UN's International Labour Organisation said that nearly 50,000 Indians die from work-related accidents or illness every year.


टूट नहीं रही जाति की बेडि़यां



( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)- : भले ही जातिवाद को असभ्य समाज की देन माना जाता है और चुनाव आयोग ने भी जातीय प्रतीक के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा रखी है मगर इसके बावजूद सच यह है कि आज भी भारतीय लोकतंत्र में चुनाव के वक्त जातीय समीकरणों का तिकड़म लगाया जाता है। हरियाणा में भी टिकट देने, मंत्री बनाने व मुख्यमंत्री बनाने तक में जातीय तालमेल व नुमाइंदगी को देखा जाता है। हरियाणा में आर्य समाज का आंदोलन भी क्रूर जाति व्यवस्था के सम्मुख बौना पड़ गया। पहली नवंबर 1966 को पंजाब से अलग होकर हरियाणा स्वतंत्र प्रदेश के रूप में अस्तित्व में आया। तबविधानसभा में कुल 54 सदस्य थे। सही मायने में दूसरी विधानसभा ही नवसर्जित हरियाणा की अपनी विधानसभा थी। इसके लिए 9 फरवरी 1967 को चुनाव हुए। तब से आज तक के परिणामों पर नजर डालें तो जातीय आधार पर प्रतिनिधित्व का आंकड़ा सिद्ध करता है कि ताकतवर जातियों में अपना वर्चस्व बढ़ाने की प्रवृति में लगातार इजाफा हो रहा है। दूसरी विधानसभा जो मुश्किल से 15 महीने चली, इसमें सर्वाधिक जनसंख्या वाली जाट जाति के 23 विधायक थे। इसके अलावा 13 बनिया, आठ पंजाबी, सात यादव, दो ब्राह्मण, दो रोड, एक सिख, एक बिश्नोई व 15 दलित विधायक थे। दूसरी विधानसभा में विधायकों की कुल संख्या 81 थी। तीसरी विधानसभा के लिए 12 व 14 मई, 1968 को मतदान हुआ। चुनाव के बाद जो तस्वीर सामने उभरी उसमें जाट 22, पंजाबी 8, बनिया 10, यादव 7, बिश्नोई दो, सैनी 2 व दलित पंद्रह की संख्या में विधायक बने। राज्य की चौथी विधानसभा के लिए 11 मार्च, 1972 को चुनाव हुए। इस बार जाट 23, बनिया 11, पंजाबी 8, यादव 6, ब्राह्मण 5, मुस्लिम 2, गुज्जर 2, राजपूत एक, रोड़ 2, सिख 2, बिश्नोई 2, सैनी एक, कंबोज एक तथा 15 दलित विधायक बने। 5वीं विधानसभा में विधायकों की संख्या नब्बे हुई तो जाट विधायकों की संख्या भी काफी बढ़ गई। इस बार 32 जाट, 8 बनिया, 8 पंजाबी, 5 यादव, 17 दलित विधायक चुने गए। इस चुनाव में आरक्षित सीटों की संख्या 17 हो गई थी। छठी विधानसभा के लिए मई 1982 में चुनाव हुए। इस बार भी जाट विधायकों की संख्या 32 ही थी जबकि बनिया समुदाय की संख्या 5वीं विधानसभा का आधा रह गई यानी कि महज चार विधायक। सातवीं विधानसभा में 26 जाट, 4 बनिया, 9 पंजाबी, 5 यादव, 8 ब्राह्मण व आरक्षित सीटों पर 17 दलित विधायक चुने गए। आठवीं विधानसभा जिसका कार्यकाल 1991 से 1996 तक रहा, में जाटों की संख्या बढ़कर 31 हो गई। इसमें 4 बनिया, 11 पंजाबी, 4 यादव, 4 ब्राह्मण, 5 मुस्लिम, 5 गुर्जर, 3 राजपूत, एक रोड़, 2 सिख व 17 दलित विधायक चुने गए। 9वीं विधानसभा जो 2000 तक चली में 28 जाट, 9 बनिया, 8 पंजाबी, 5 यादव, 6 ब्राह्मण, 3 मुस्लिम, 2 गुज्जर, 3 राजपूत, 2 सिख, 3 बिश्नोई, 2 सैनी, एक कंबोज, एक सुनार व 17 दलित विधायक थे। दसवीं विधानसभा में 32 जाट, 4 बनिया,11 पंजाबी, 6 यादव व 17 दलित विधायक विधानसभा पहुंचे। इस विधानसभा में 32 जाट विधायकों में से 21 इनेलो के खाते में तो 6 कांग्रेसी थे। दो निर्दलीय विधायक भी जाट समुदाय से चुने गए। ग्यारहवीं विधानसभा में जाटों की संख्या घटकर 26 हो गई। इस बार गुज्जर 6, ब्राह्मण 8, बनिया 4, यादव 5, बिश्नोई 3, पंजाबी 8, मुस्लिम 3, राजपूत 4, दलित 17 तथा अन्य से छह विधायक चुनकर विधानसभा पहुंचे।

इनेलो केगढ़ में कांग्रेस को ताकत बढ़ाने की चुनौती


कांग्रेस की पहली सूची आने के बाद विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान ने एकाएक गति पकड़ ली है। इनेलो अपना गढ़ सुरक्षित रखने की कवायद में जुटी है तो कांग्रेस के समक्ष अपना प्रदर्शन बेहतर करने की चुनौती है। सिरसा जिले में इंडियन नेशनल लोकदल व कांग्रेस के बीच वर्चस्व बरकरार रखने व छीनने की लड़ाई बनी हुई है। आंकड़ों के आइने में जिला के सभी पांचों विधानसभा हलकों को उतारें तो वर्ष 1982 से लेकर अब तक जिले के चार हलकों में लोकदल या इंडियन नेशनल लोकदल का ही दबदबा बना रहा है। हां यह अलग बात है कि जिला मुख्यालय अर्थात सिरसा विधानसभा सीट पर इस दल की दाल कम गली है। इस विधानसभा सीट से राष्ट्रीय दल कांग्रेस ने अपना वर्चस्व कायम रखा है। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि कांग्रेस सरकार के उद्योग मंत्री लक्ष्मण दास अरोड़ा यहां 1982 से ही अपना सिक्का जमाते रहे हैं। हालांकि 1982 में उन्होंने बतौर आजाद उम्मीदवार 30.61 फीसदी वोट लेकर अपनी जीत दर्ज की लेकिन वर्ष 1991, 2000 तथा 2005 में तीन बार बतौर कांग्रेस प्रत्याशी अपनी जीत दर्ज की। एक अकेली सिरसा विधानसभा सीट को अगर अपवाद मानकर चलें तो शेष चार विधानसभा सीटों ऐलनाबाद, डबवाली, दड़बा व रोड़ी में इंडियन नेशनल लोकदल का ही दबदबा देखा गया है। ऐलनाबाद विधानसभा क्षेत्र में तो लोकदल या इंडियन नेशनल लोकदल के प्रत्याशियों ने वर्ष 1982 से अब तक पांच बार जीत हासिल की है। एक पहलू यह भी है कि इस विधानसभा सीट से भागीराम ने लोकदल या इनेलो के प्रत्याशी के रूप में चार बार चुनावी जीत का सेहरा अपने सिर बांधा है। उन्होंने 1982 व 1987 में लोकदल, 1996 में तत्कालीन समता पार्टी तथा वर्ष 2000 में इंडियन नेशनल लोकदल से विजय प्राप्त की। वर्ष 2005 में भी इनेलो की जीत का सिलसिला जारी रहा और यहां से डा. सुशील इंदौरा विजयी हुए। परिसीमन से पूर्व दड़बा कलां विधानसभा क्षेत्र से तो लोकदल या इंडियन नेशनल लोकदल ने चार बार विजयी पताका फहराई है जबकि कांग्रेस को महज दो बार जीत मिली है। यहां महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि इस हलके से इस दल की महिला प्रत्याशी विद्या बैनीवाल ने तीन बार जीत हासिल की है। वर्ष 1987 में उन्होंने बहादर सिंह को 30.06 फीसदी के मुकाबले 67.69 फीसदी मतों से पराजित किया। इसी तरह उन्होंने वर्ष 1996 तथा 2000 के विधानसभा चुनावों में क्रमश: प्रह्लाद सिंह व डा. केवी सिंह को पराजित कर वर्चस्व बरकरार रखा। डबवाली में भी लोकदल या इंडियन नेशनल लोकदल ने चार बार जबकि कांग्रेस ने दो बार विजय का वरण किया है। यहां से कांग्रेस की प्रत्याशी रही संतोष चौहान सारवान ने वर्ष 1991 में जनता पार्टी के ज्ञान चंद को पराजित किया। इंडियन नेशनल लोकदल ने यहां वर्ष 2000 तथा 2005 में लगातार जीत दर्ज की है। इससे पूर्व 1987 में लोकदल तथा 1996 में तत्कालीन समता पार्टी से मनीराम ने पार्टी को जीत दिलाई। जहां तक परिसीमन से पूर्व रोड़ी विधानसभा क्षेत्र के इतिहास का सवाल है तो यहां भी लोकदल, समता पार्टी या इनेलो के रूप में चार बार जीत हासिल हुई है। इनेलो सुप्रीमो ने 1996 से 2005 तक लगातार तीन बार जीत दर्ज की थी।

68 चेहरे खुश, सैकड़ों मायूस

( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)-
आखिर वह लम्हा आ ही गया जिसका सभी को इंतजार था। कांग्रेस ने टिकट की घोषणा कर अपने 68 नेताओं के चेहरों पर मुस्कान बिखेर दी। लेकिन इसके साथ ही सैकड़ों को मायूस भी कर दिया। इसके साथ ही कांग्रेस नेतृत्व के सामने कठिन हालात पैदा होने शुरू हो गए हैं जिन्हें टिकट नहीं मिला उनकी प्रतिक्रिया किस तरह की होती है, आने वाले दिनों में सभी के लिए रोचक मसला हो गया है। कुछ बागी दूसरे दलों की ओर रुख कर सकते हैं तो कुछ पार्टी के खिलाफ मैदान में निर्दलीय उतर सकते हैं। चुनाव में कांग्रेस ही सबसे ज्यादा हाट पार्टी है। हुड्डा के शपथ लेने के बाद से पार्टी का ग्राफ लगातार ऊंचा हुआ है। सरकार के बीच के कार्यकाल में कई बार लगा कि प्रदेश में नए, मजबूत समीकरण चुनाव के दौरान प्रभावी रहेंगे। इसमें बसपा व जनहित के बीच दोस्ती को लेकर पंडित सबसे ज्यादा कयासबाजी कर रहे थे। लेकिन चुनाव सिर पर खड़ा है और न तो बसपा मजबूत स्थिति में दिखाई दे रही है और न ही हरियाणा जनहित कांग्रेस। इनेलो और भाजपा भी अकेले ताल ठोंक रही हैं। दोनों ने चुनाव के लिए लंबी चौड़ी रणनीति भी बनाई है। इसका क्या असर रहता है यह चुनाव के बाद ही पता चलेगा। शक नहीं कि आज कांग्रेस सभी पर बढ़त बनाए हुए है। बाहर के नेताओं को तोड़ कांग्रेस में मिलाने की हुड्डा की रणनीति कामयाब रही है। दूसरे दलों की फिजा इससे बिगड़ी है। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। विपक्षी दलों की सोच है कि टिकट तय करना कांग्रेस के लिए वाटर लू सरीखा हो सकता है। नेता का ध्येय येन-केन-प्रकारेण विधायक बनना होता है। कांग्रेस की हवा देखकर ही बहुत सारे नाम इससे जुड़े थे। कांग्रेस हेड क्वार्टर में पांच हजार बायोडाटा टिकट के लिए आए थे। हजारों ने सीधे सीएम और कई दिग्गज नेताओं को अपना जीवन वृत थमाया था। पड़ताल करके नौ सौ के करीब दिल्ली रवाना किए गए थे। राजधानी में लिस्ट और छोटी की गई पर छोटी से छोटी लिस्ट का स्वरूप भी दूसरे दलों की अपेक्षा बहुत बड़ा था। माना जा रहा था कि कांग्रेस नेतृत्व टिकट तय करने में देर इस वजह से भी कर रहा है कि उनके यहां उठने वाले आक्रोश का फायदा विपक्षी को न मिले। नेता मायूस हो भी तो उनके लिए दूसरा चांस न के बराबर हो। नामांकन से दो दिन पहले लिस्ट आ ही गई तो आने वाले कुछ दिन राजनीति के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रहने वाले हैं। बाहर से आए नेताओं में से दो को ही टिकट मिली है। दूसरी लिस्ट आनी बाकी है। अगर बाहर से आए लोगों को अगले दौर में टिकट मिली तो कांग्रेस से जुड़े नेता मायूस हो सकते हैं। कांग्रेस नेतृत्व इन्हें किस तरह से नियंत्रित करता है। राजनीति के पंडित मानते हैं कि कांग्रेस में सेंध लगाने के लिए विपक्षी दलों ने अपनी कुछ टिकट अभी तक घोषित नहीं की हैं। कुछ नेता दूसरी पार्टियों की तरफ रुख भी कर सकते हैं। उधर, कुछ का मानना है कि जिन के पास जनाधार नहीं है, या फिर जिन्हें अपने बूते चुनाव लड़ने में खतरा है, ऐसे लोग पार्टी के भीतर रहने में ज्यादा दिलचस्पी लेंगे। कांग्रेस सत्ता में लौट आई तो वह नुकसान को दूसरे तरीके से पूरा करने का प्रयास करेंगे। जो नेता असेंबली में बैठने का ख्वाब लिए कांग्रेस में शामिल हुए थे और जिनके पास कुछ बेस है, वह यहां टिकट न मिलने पर दूसरों की तरफ रुख कर सकते हैं। माना जा रहा है कि मजबूत स्थिति का हवाला देकर कांग्रेस नेतृत्व तीखे तेवर वालों को शांत करेगा, उन्हें आश्वस्त करेगा कि सरकार बनने पर वह अच्छे से एडजस्ट किए जाएंगे?

सब कुछ उजड़ने के बाद आखिर अब मिला न्याय


( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)- तेरह साल तक हत्या के आरोपी होने का कलंक और आठ साल की उम्रकैद की सजा काट चुके पांच लोगों को आखिर हाईकोर्ट से न्याय मिल गया है। जीवित व्यक्ति की हत्या के आरोप में झूठे सबूतों के सहारे उम्रकैद की सजा के निचली अदालत के आदेश को हाईकोर्ट ने रद करते हुए पांचों को रिहा करने और उनमें से प्रत्येक को बीस-बीस लाख का मुआवजा देने का पंजाब सरकार को आदेश दिया। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस एमएस गिल व जस्टिस जितेंद्र चौहान की खंडपीठ ने इस मामले पर बुधवार को अपना फैसला सुनाते हुए पंजाब सरकार के मुख्य सचिव को आदेश दिया कि वह हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार के पास एक करोड़ रुपये जमा करवाएं ताकि तीस दिन के भीतर पांचों पीडि़तों को मुआवजा दिया जा सके। हाईकोर्ट ने इस मामले के जांच अधिकारी एसआई सर्बजीत सिंह व एएसआई दर्शन सिंह के खिलाफ मामला दर्ज करके कार्रवाई के आदेश दिए। कोर्ट ने बरनाला के तत्कालीन एसपी व डीएसपी (जो इस समय सेवानिवृत हो चुके हैं) को भी दोषी माना है। इसके साथ ही कोर्ट ने मृतक घोषित जगसीर सिंह (जो वास्तव में जीवित है और भागकर अपने घर से दूर रह रहा था), उसके परिवार के सदस्यों (जिन्होंने किसी और शव की जगसीर सिंह के शव के रूप में शिनाख्त की थी) व इस मामले में झूठे गवाह बने लोगों के खिलाफ भी मामला दर्ज कर जांच करने के आदेश दिए हैं। मामला क्या है : पुलिस रिकार्ड के अनुसार बरनाला निवासी जगसीर सिंह की 1996 में नछत्तर सिंह, शेरा सिंह, अमरजीत सिंह, निक्का सिंह व सुरजीत सिंह ने हत्या कर दी थी। निचली अदालत ने 2001 में इन सभी को कसूरवार करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। याचिकाकर्ता के वकील के अनुसार पंजाब पुलिस ने इन निर्दोष लोगों को सजा दिलाने के लिए यह दावा पेश किया था कि पुलिस ने जो हथियार बरामद किए हैं, उन पर मृतक जगसीर सिंह का खून लगा हुआ है। बचाव पक्ष के वकील ने कोर्ट को बताया था कि इन पांच लोगों को पुलिस ने पांच दिन तक अवैध हिरासत में रखकर उनका लगातार टार्चर किया जिस कारण उनके शरीर से खून निकलने लगा। पुलिस ने वह खून एकत्र कर उन हथियारों पर लगाया और कहा कि यह खून जगसीर सिंह का है। वकील के अनुसार पुलिस इस खून का लैब में टेस्ट भी करवाया लेकिन पुलिस ने जगसीर सिंह के ब्लड ग्रुप से मिलाने की जहमत नहीं उठाई और न ही कोई अन्य रिपोर्ट तैयार करवाई। पुलिस का मकसद केवल हथियारों पर इंसान का खून लगाना था जिससे वह इन लोगों को कातिल साबित कर सके। पुलिस ने दो खून से सने फावड़े, कुल्हाड़ी, प्रापर्टी के फर्जी कागजात, एक ट्रैक्टर व दो फर्जी गवाह जगसीर की हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए सबूत के तौर पर प्रयोग किए थे। इतना ही नही, पुलिस ने अपने केस को पुख्ता करने के लिए इस केस में दो गवाह करनैल सिंह व जगीर सिंह को भी पेश किया जिन्होंने अपने ब्यान में यह स्वीकार किया था कि इन पांच लोगों ने ही जगसीर सिंह की हत्या की है। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने भी इस मामले पुलिस की कार्रवाई पर हैरानी जताते हुए कहा था कि यह बहुत ही दुखद कदम है। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने कहा था कि इस झूठी कहानी शामिल सभी पुलिस अधिकारियों, गवाह, जगसीर सिंह व उसके घरवालों के खिलाफ मामला आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए। खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में केवल जांच अधिकारी ही नहीं अपितु तत्कालीन एसपी, डीएसपी भी दोषी हैं। 18 सितंबर को हाईकोर्ट ने इस बहस के बाद कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला रिजर्व रख लिया था। उजड़ चुकी है पांचों की दुनिया : जब यह मामला सामने आया कि ये सभी निर्दोष हंै, कोर्ट ने सभी को पैरोल पर रिहा कर दिया था। लेकिन जब पैरोल के बाद बाद शेरा अपने घर गया तो उसकी मां व पत्नी की मौत हो चुकी थी। सुरजीत सिंह की दो बेटी व उसके माता-पिता की इलाज के अभाव में मौत हो चुकी थी। निक्का सिंह की पत्नी ने उसे छोड़कर दूसरा विवाह कर लिया था। अमरजीत सिंह के बच्चों ने रोटी कमाने के चक्कर में अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी। हाईकोर्ट से क्या मांग की थी : पांचों ने अपनी सजा व उन्हें दोषी करार देने के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए इस मामले में दोषी पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। इनके वकील ने हाईकोर्ट में याचिका में कोर्ट से मांग की थी कि इस मामले में पीडि़त प्रत्येक व्यक्ति को 20 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए व इस मामले की जांच करवाई जाए और दोषी लोगों की सजा दी जाए। इस याचिका के बाद ही पुलिस मृतक व्यक्ति का पता लगाने का आदेश दिया था जिस पर पुलिस ने मृतक व्यक्ति को कोर्ट में पेश किया था।

कई विधायक गए, कई दावेदार ढेर


: कांग्रेस प्रत्याशियों की पहली सूची में जहां कइयों के चेहरे पर मुस्कान आई है, वहीं कई विधायकों के टिकट कटे व कई दावेदार टिकट से वंचित रह गए। मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कई बैल (संघर्ष के साथी) भी टिकट से महरूम हुए। उपमुख्यमंत्री रहे पंचकूला के विधायक चंद्रमोहन फिजा से मोहब्बत के चलते टिकट नहीं पा सके। इसी प्रकार मुख्य संसदीय सचिव रमेश कौशिक की भी कांग्रेस ने राई विधानसभा क्षेत्र से छुट्टी कर दी। ब्राह्मण कोटा पूरा करने के लिए कांग्रेस ने प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष कुलदीप शर्मा को साथ लगती गन्नौर सीट से प्रत्याशी बनाया है पर कुलदीप को टिकट देने से इसी सीट के दो दावेदार सीआईडी के एडीजीपी की पत्नी पूनम राठी और सोनीपत के सांसद जितेंद्र मलिक के भाई हरिंद्र मलिक टिकट से वंचित रहे। हरियाणा विधानसभा के डिप्टी स्पीकर आजाद मुहम्मद को भी पार्टी ने टिकट नहीं दिया। इनकी सीट फिरोजपुर झिरका सीट से पार्टी ने मामन खान को प्रत्याशी बनाया है। समालखा से विधायक भरत सिंह छोक्कर का टिकट काटकर इनके स्थान पर युवा कांग्रेस के प्रदेश प्रधान संजय छोक्कर को प्रत्याशी बनाया है। नीलोखेड़ी सीट आरक्षित हो गई सो यहां से निवर्तमान विधायक जय सिंह राणा घरौंडा से टिकट चाहते थे पर पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। विधायक छत्तरपाल सिंह का क्षेत्र घिराय समाप्त हो गया वे बरवाला से टिकट चाहते थे। बरवाला से निवर्तमान विधायक रणधीर सिंह धारा हैं। पर पार्टी ने छत्तरपाल या रणधीर सिंह किसी को भी बरवाला से टिकट नहीं दिया। यह दीगर बात है कि रणधीर के भाई पूर्व सांसद जय प्रकाश को साथ लगती आदमपुर सीट दे दी गई और छतरपाल अभी हांसी या नलवा सीट पर नजर गढ़ाए हैं। तकनीकी शिक्षा मंत्री व फरीदाबाद के विधायक एसी चौधरी का अब नई बनी बड़खल पर दावा था। पर पार्टी ने वहां मेवला महाराज पुर के विधायक महेंद्र प्रताप सिंह को टिकट दे दिया है। अभी चौधरी को फरीदाबाद एनआईटी सीट से आशा है। गौरतलब है कि एसी चौधरी ने लोकसभा चुनाव के वक्त पार्टी से बगावत के सुर अपना लिए थे। उन्होंने फरीदाबाद से टिकट ना मिलने पर नाराज होकर कांग्रेस आला कमान सोनिया गांधी को अपना इस्तीफा तक भेज दिया था। कैथल से पार्टी ने शमशेर सिंह सुरजेवाला का टिकट काटा पर उनके साहबजादे बिजली मंत्री रणदीप सिंह सुरजेवाला को कैथल टिकट दे दिया है। गीता भुक्कल को झज्जर से पार्टी प्रत्याशी बनाने के कारण यहां के विधायक हरीराम बाल्मिकी को टिकट नहीं मिल पाया है। अटेली के निर्दलीय विधायक नरेश यादव का हरियाणा की कांग्रेस सरकार को समर्थन मिला हुआ था। यादव को उम्मीद थी कि अटेली से कांग्रेस इस बार उन्हें प्रत्याशी बनाएगी। पर पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। नरेश यादव ने अटेली से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया है। इसी तर्ज पर नूंह के निर्दलीय विधायक हबीबुर रहमान भी पांच साल सरकार के साथ रहने के कारण नूंह सीट पर कांग्रेस की टिकट का दावा कर रहे थे। निवर्तमान विधायकों के इलावा की दिग्गज दावेदार भी टिकट से महरूम रहे हैं। बसपा छोड़कर कांग्रेस में आए देवराज दीवान को कांग्रेस ने सोनीपत से प्रत्याशी नहीं बनाया। पूर्व मंत्री राजकुमार वाल्मिकी नीलोखेड़ी और कान्फैड के चेयरमैन बजरंग दास गर्ग पंचकूला सीट पर ताल ठोंक रहे थे। मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार प्रो.बीरेंद्र सिंह और पूर्व एचसीएस अधिकारी जेपीएस सांगवान बरौदा सीट से टिकट के दावेदार थे। पार्टी ने नई बनी सीट कालका से मजबूत दावेदार ओम प्रकाश गुज्जर को भी टिकट नहीं दिया। बादशाह पुर में प्रदीप जैलदार को पार्टी ने टिकट नहीं दिया। सिरसा में उद्योग मंत्री लक्ष्मण दास को टिकट देने से जिला कांग्रेस प्रधान होशियारी लाल शर्मा और प्रदेश संगठन सचिव नवीन केडिया नाराज चल रहे हैं। फतेहाबाद सीट पर दावा कर रहे प्रहलाद सिंह गिल्लाखेड़ा ने कांग्रेस से बगावत करके निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया है। गिल्ला खेड़ा हविपा से कांग्रेस में आए थे और उन्हें किरण चौधरी पर भरोसा था। पृथला सीट पर पलवल क्षेत्र के रघुबीर सिंह तेवतिया को टिकट देने से स्थानीय दावेदार नाराज हैं। इनमें सतबीर डागर और हेम डागर हैं।

मौजूदा विधायकों व नए चेहरों पर भरोसा


( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)-: कांग्रेस ने प्रत्याशी घोषित करने में मौजूदा विधायकों और नए चेहरों पर विश्वास जताया है। आज बुधवार को घोषित किए गए 68 विधायकों में से 45 निवर्तमान विधायक और 15 एकदम नए चेहरे हैं जो पहली बार विधानसभा चुनाव के मैदान में हैं। प्रमुख उम्मीदवारों में मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा गढ़ी सांपला किल्लोई, वित्तमंत्री बीरेंद्र सिंह उचाना, खेल मंत्री किरण चौधरी तोशाम, सिंचाई मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव रेवाड़ी, विधानसभा अध्यक्ष रघुबीर सिंह कादियान बेरी, शिक्षामंत्री मांगे राम गुप्ता जींद, कृषिमंत्री हरमोहिंदर सिंह चट्ठा पेहवा, प्रदेश कांग्रेस प्रधान फूलचंद मुलाना मुलाना और प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी प्रधान कुलदीप शर्मा गन्नौर से चुनाव लड़ रहे हैं। वैसे पहली सूची में 8 मंत्री 5 संसदीय सचिव और 5 पूर्व सांसद हैं। 45 निवर्तमान विधायकों में दो निर्दलीय विधायक हैं। पहली सूची में कांग्रेस ने 21 जाट, 3 राजपूत, ब्राह्मण 6, वैश्य 4, पंजाबी 7, कांबोज 1, गुज्जर 3, 11 दलित, अहीर 4, सैणी 1, कुम्हार 1 और 1 बिश्नोई हैं। अभी कांग्रेस ने तीन मुस्लिम और दो सिखों को टिकट दिया है। मुस्लिम प्रत्याशियों में पूर्व मंत्री खुर्शीद अहमद के बेटे आफताब अहमद, मामन खान और अख्तर हुसैन है जबकि सिख में हरमोहिंद्र सिंह चट्ठा और परमजीत सिंह हैं। चट्ठा सरकार में कृषि मंत्री हैं और परमजीत सिंह संसदीय मंत्री थे। पार्टी ने अब तक दस महिलाओं को प्रत्याशी बनाया है। इनमें किरण चौधरी, सावित्री जिंदल, मीना मंडल, कैलाशो सैनी, गीता भुक्कल, शारदा राठौड़, सुमिता सिंह, अनिता यादव, प्रसन्नी देवी और शकुंतला खटक हैं। नई हदबंदी में जिन विधायकों की सीटें इधर उधर हो गई थी उनमें से कुछ को कांग्रेस ने एडजेस्ट भी किया है। बिजली मंत्री रणदीप सुरजेवाला की नरवाना सीट आरक्षित हो गई थी, सो उन्हें कैथल से टिकट दी गई है। मीना मंडल की असंध सामान्य सीट हो गई तो मीना को नीलोखेड़ी से चुनाव मैदान में उतार दिया। गीता भुक्कल की कलायत सामान्य सीट हो गई तो उन्हें झज्जर से प्रत्याशी बना दिया गया। सतविंद्र सिंह राणा की राजौंद सीट समाप्त हो गई तो उन्हें कालका से प्रत्याशी बना दिया गया। कुछ विधायकों या दावेदारों का टिकट भी इधर-उधर किया गया है। कलायत सामान्य होने के बाद गीता भुक्कल नरवाना सीट चाहती थी पर उन्हें झज्जर भेजा है, अंबाला कैंट के निर्वतमान विधायक डीके बंसल को पंचकूला से टिकट दिया है, साल्हावास सीट समाप्त होने के बाद कोसली पर दावा कर रही निर्वतमान विधायक अनिता यादव को अटेली भेज दिया गया, श्रीकृष्ण हुड्डा को किल्लोई से बरौदा भेज दिया गया है। युवा कांग्रेस के खाते से चार को टिकट दिया गया है। इनमें समालखा से संजय छोक्कर, शाहबाद से अनिल ढंढौरी, रादौर से सुरेश ढांडा और घरौंडा से वीरेंद्र राठौड़ हैं। संजय छोक्कर प्रदेश कांग्रेस के प्रधान, वीरेंद्र राठौड़ युवक कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव, सुरेश ढांडा जिला यमुनानगर यूथ कांग्रेस ग्रामीण के अध्यक्ष और ढंढौरी प्रदेश सचिव हैं। दिनेश कौशिक और नरेश शर्मा उन खुशकिस्मत निर्दलीय विधायकों में से हैं जिन्होंने हरियाणा की कांग्रेस सरकार को समर्थन दिया था और अब टिकट मिल गया। कौशिक को पुंडरी जबकि नरेश शर्मा बादली से टिकट दिया है। दोनों अपनी-अपनी सीटों पर निवर्तमान विधायक हैं। वैसे कांग्रेस को 11 निर्दलीय विधायकों ने समर्थन दिया था।

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