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शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2009

अकालियों ने पंजाब के बाहर खोला खाता


अकाली दल ने पहली बार पंजाब के बाहर चुनाव जीतकर अपना आधार फैलने के सबूत दिए हैं। यूं तो पार्टी पहले भी दिल्ली आदि राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ती रही है मगर उसे जीत नसीब हुई इस बार हरियाणा के विधानसभा चुनाव में। अकाली प्रत्याशी चरणजीत सिंह ने कालियांवाली सीट जीतकर इनेलो के हाथ मजबूत किए हैं जिसने अकाली दल को राज्य में दो सीटें दी थी। हरियाणा में प्रतिशत के लिहाज से किसी दल का यह सबसे बढि़या प्रदर्शन है क्योंकि उसके दो में से एक उम्मीदवार ने जीतकर पार्टी का जीत का प्रतिशत 50 फीसदी रखा है। अन्य कोई दल उसके बराबर नहीं ठहरता। हरियाणा ही नहीं, पंजाब में भी कई राजनीतिक पार्टियां अकाली दल द्वारा राज्य से बाहर चुनाव लड़ने का मजाक उड़ाती रही हैं और किसी को भी यह उम्मीद नहीं थी कि अकाली दल हरियाणा में चुनाव जीतने की क्षमता रखता है। हालांकि पहले भी अकाली दल हरियाणा विधानसभा चुनाव में एक-दो बार जीत दर्ज कर चुका है मगर तब उसके प्रत्याशी पार्टी चुनाव चिन्ह पर चुनाव नहीं लड़े थे। इस बार तकड़ी के जरिए अकाली दल ने हरियाणा में खाता खोला है। इस जीत के जरिए सुखबीर सिंह बादल क्षेत्रीय राजनीति में अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे हैं। उन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे मगर तब अकाली दल कोई सीट नहीं जीत पाया था। दिल्ली का अनुभव हरियाणा में काम आया है। अकाली राजनीति में इस जीत को ऐतिहासिक जीत माना जा रहा है। यह जीत अकाली दल के लिए टानिक का काम करेगी। जीत से उत्साहित अकाली दल अब केवल पंजाब की सीमाओं तक ही बंध कर नहीं रहेगा बल्कि खुद को राष्ट्रीय स्तर तक स्थापित करने के सपने को पूरा करने के करीब पहुंचेगा। सुखबीर बादल ने इस जीत पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि हरियाणा के सिखों ने कांग्रेस द्वारा अलग गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी गठित करने का ऐलान करके सिखों में फूट डालकर उन्हें कमजोर करने की घटिया चाल का हुड्डा के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को ऐसा करारा जवाब दिया है कि वह साधारण बहुमत के लिए अन्य दलों की मिन्नत पर मजबूर है। सुखबीर बादल ने कहा कि हरियाणा के किसानों ने सरकार की किसान विरोधी नीतियों और भूमि अधिग्रहण करने की गलत नीति से दुखी होकर इस चुनाव में कांग्रेस को सजा दी है। उन्होंने कहा कि हालांकि कांग्रेस ने नरमे के एमएसपी में थोड़ी बढ़ोतरी करके हरियाणा के किसानों को प्रभावित करने का प्रयास किया था मगर हरियाणा के लोगों का फतवा कांग्रेस की तानाशाही नीतियों के खिलाफ राज्य के समूह नागरिकों के भारी रोष का प्रतीक है। बादल ने कहा कि अब कांग्रेस को जनमत को संजीदगी से स्वीकार करते हुए चुनावी राजनीति से किनारा कर लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह हरियाणा के लोगों द्वारा उनके प्रति दिखाए विश्वास पर बड़ा फº महसूस करते हैं क्योंकि वह हरियाणा में जहां भी चुनाव प्रचार के लिए गए, वहां इनेलो-अकाली दल के प्रत्याशियों को कामयाबी मिली।

कौन होगा काबिज हरियाणा के सिंहासन पर?

अभी-अभी विशेष--


जैसे आसार थे नतीजे बिल्कुल वैसे ही सामने आए और सिंहासन का खेल उलझ गया। कौन बनेगा हरियाणा का मुख्यमंत्री, कौन सी पार्टी संभालेगी सत्ता और कौन किसके साथ जाएगा? नतीजे सामने आए तो स्वीप-स्वीप की दुहाई देने वाली कांग्रेस पूर्ण बहुमत भी प्राप्त करने की स्थिति में नहीं रही। पूरे चुनाव में शोर मचा रहा कि विपक्ष बिखरा है और किसी का किसी से गठबंधन नहीं। ऐसे में कांग्रेस कुछ ज्यादा ही आश्वस्त थी। दोपहर 12 बजे तक चुनाव नतीजे स्पष्ट कर गए थे कि सब कुछ अस्पष्ट सा होने जा रहा है। सत्ता की चाबी कहीं और ही घूमनी शुरू हो गई। कांग्रेस को मिली 40 सीटें, इनेलो-अकाली दल को मिली 32 सीटें, भाजपा चार पर आकर अटक गई तो हजकां छह सीटें हासिल कर ली। बसपा तो एक पर ही सिमट गई और रह गए निर्दलीय विधायक, जो तादाद में सात हैं। अब सरकार बनाने के समीकरण बैठें तो कैसे बैठें? शाम तक सभी कांग्रेसी दिग्गज और हजकां सुप्रीमो कुलदीप बिश्नोई दिल्ली जा पहुंचे। बातचीत सभी की सभी से चल रही है। कांग्रेसी तो पहले पहुंचे सोनिया दरबार में। स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो भूपेंद्र सिंह हुड्डा के लिए हाईकमान के सामने अपने ही कांग्रेसी साथियों ने परेशानी तो शुरू करनी ही थी। चर्चा है कि हाईकमान के सामने बहुत कुछ खुलकर बोला-कहा गया। हाईकमान खुश भी नहीं है। विपक्ष को इतना कम आंकना हुड्डा के लिए सुखद नहीं रहा। फिर कांग्रेस में दावेदारों की कमी भी कहां है। दावा भी ठोकते रहेंगे और अपने आपको दावेदार कहने से गुरेज भी करते रहेंगे। लेकिन बात तो फिर वहीं आकर अटक गई। हाईकमान के मानने से भी क्या होगा, बात तो आंकड़े की है। 40 को 46 बनाने के लिए चाबी तो किसी को देनी पड़ेगी। तो हजकां के कुलदीप बिश्नोई के छह विधायक कांग्रेस को भी चाहिए, और निर्दलियों को काबू में किए हुए इनेलो को भी क्योंकि आंकड़ा पूरा करने के लिए और विधायक चाहिए ही। कांग्रेस के सामने अब झारखंड के चुनाव भी हैं। यहां पिटती है तो असर तो दूसरे राज्यों के चुनाव पर पड़ेगा ही। ऐसे में शर्तो का खेल तो कांग्रेस को मानना ही पड़ेगा और जिसके पास चाबी है, वह पहले मांग भी तो बड़ी ही रखेगा। जो राजनीतिक हालात आज हरियाणा में बने हैं ऐसे में अपने राजनीतिक भविष्य के लिए हजकां सुप्रीमो को बहुत सोच-समझकर फैसला लेना होगा। कांग्रेस ने भजनलाल जैसे कद्दावर नेता को, जिसने कभी 67 सीटें लाकर कांग्रेस की झोली में सत्ता डाली थी, दरकिनार कर दिया था। भजनलाल ने उम्र के इस पड़ाव में हरियाणा जनहित कांग्रेस बनाई जिसे उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई ने अस्तित्व दिया। हालांकि हजकां केवल छह सीटें लाई है लेकिन हालात ऐसे हैं कि आज हजकां सत्ता पर काबिज होने के लिए दोनों बड़े दलों की जरूरत है। फिलहाल तो सत्ता का मामला दोनों दलों कांग्रेस व इनेलो में फंसा हुआ है। बात इनेलो की करें तो चुनाव में सबसे असरदार कारगुजारी रही है उसकी। जब हर कोई इनेलो को नजरअंदाज कर रहा था और उस पर दांव तक लगाने को तैयार नहीं था, तब इनेलो अंदरखाते अपनी तैयारी में जुटी थी। किसी राष्ट्रीय नेता को चुनाव प्रचार के लिए बुलाए बिना इनेलो ने अपनी साख के सहारे तिहाई से ज्यादा सीटें हथिया लीं। यह करिश्मा पार्टी ने ओमप्रकाश चौटाला, अजय व अभय चौटाला के नेतृत्व में किया है। खास बात यह भी है कि चौटाला दो सीटों से चुनाव लड़े और दोनों पर ही जीते। फिलहाल जोड़-तोड़ का दौर तेज है। विपक्ष के पास 50 सीटें तो हैं मगर वह बिखरी हुई हैं। मिलकर सरकार बनाने का तजुर्बा कामयाब रहेगा, इसमें संदेह है लेकिन इतना तय है कि सरकार बनाने के लिए पूरा मोल-भाव छोटे दल व निर्दलीय विधायक कर रहे हैं। सरकार किसी भी दल की बने मगर इतना तय है कि इस बार फिर सरकार में एक उपमुख्यमंत्री होगा।

सिंहासन से सभी दूर



हरियाणा विधानसभा चुनाव में मतदाता ने किसी भी राजनीतिक दल को बहुमत नहीं दिया, सभी को सत्ता के चौराहे पर छोड़ दिया है। सरकार बनाने के लिए आवश्यक जादुई आंकड़े 45 सीटों के करीब कोई भी दल नहीं पहुंच पाया। कांग्रेस में जीत का इतना जोश था कि चुनाव छह महीने पहले करवा दिए पर उसे केवल 40 सीटें ही मिलीं जबकि साल 2005 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 67 सीटों पर जीत दर्ज की थी। दूसरी तरफ, 2005 में केवल 9 सीटें जीतने वाली इनेलो ने 31 सीटें जीतीं। साथ ही उसके सहयोगी अकाली दल ने भी एक सीट जीत ली। इनेलो को इस चुनाव में जबरदस्त बढ़त मिली है। बीजेपी ने 4 सीटों पर जीत दर्ज करवाई है जबकि साल 2005 के चुनाव में केवल 2 ही सीटें बीजेपी ने जीती थी। हजकां को मतदाता ने छह सीटों पर ही जितवाया है। बेशक हजकां सुप्रीमो कुलदीप बिश्नोई सरकार बनाने का दावा कर रहे थे। पिछले कई चुनावों की तरह बीएसपी को इस बार भी केवल एक ही सीट पर जीत हासिल हुई है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा गढ़ी सांपला सीट पर सबसे अधिक अंतर 72100 वोटों जीते जबकि हजकां प्रत्याशी सतपाल सांगवान दादरी सीट पर सबसे कम अंतर केवल 145 वोटों से जीते हैं। टाप पांच सीटें कांग्रेस के हिस्से में ही आई हैं। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के बाद, किरण चौधरी, विनोद शर्मा, शकुंतला खटक व गीता मातेनहेल का नंबर आता है। रेवाड़ी से लगातार छठी बार जीतकर कैप्टन अजय यादव ने रिकार्ड बनाया है। विभिन्न दलों से कांग्रेस में आए लोगों को मतदाताओं ने पसंद नहीं किया। इनेलो छोड़कर कांग्रेस की टिकट पर संपत सिंह विजयी हुए हैं। संपत सिंह ने हजकां प्रत्याशी जसमा देवी को हराया है जो पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल की धर्मपत्नी हैं। प्रदेश की 17 आरक्षित सीटों में से इनेलो को 10 और कांग्रेस को 7 सीटें जीती हैं। इस बार केवल 9 महिलाएं विजयी हुई जबकि साल 2005 के चुनाव में 11 महिलाएं विधायक बनी थीं।

मोबाइल पर लेते रहे नतीजों की जानकारी


उत्तरकाशी ब्रेक के नाम पर चंद दिनों के लिए सियासत से दूरी तो ठीक है, लेकिन जब तीन राज्यों में पार्टी के चुनावी प्रदर्शन का सवाल हो तो भला कांग्रेसी युवराज कैसे खुद को इससे अलग रख पाते। सो गुरुवार सुबह दयारा की मंद-मंद ठंडी हवाओं के बीच हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियों को निहारते राहुल गांधी अपने मोबाइल संग अपनी पार्टी के क्षत्रपों की परफार्मेस पर भी नजर रखते रहे। अब इसे तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजे आने से पहले ही पार्टी के प्रति आत्मविश्र्वास कहें या फिर खूबसूरत वादियों का असर, लेकिन गुरुवार को राहुल बेहद खुश नजर आए। शायद यह उनकी जिंदगी का पहला मौका था जब समुद्र तल से दस हजार फीट की ऊंचाई पर बैठकर उन्होंने सियासी बिसात पर शह-मात के खेल का लुत्फ लिया। राहुल ने अपनी दिनचर्या की शुरुआत योगाभ्यास से की। इसके बाद कुछ देर तक उन्होंने अपने भांजा-भांजी के साथ फुटबाल खेला। हालांकि, इस दौरान उनका मोबाइल फोन लगातार बजता रहा। इस दौरान राहुल ने सुरक्षा प्रमुख को भी योग के गुर सिखाए। इसके बाद राहुल मोबाइल फोन पर व्यस्त हो गए। लगातार फोन पर बात करने के साथ ही वह अपने साथियों को शुरुआती रुझानों की सूचना देते रहे। दोपहर बाद राहुल ट्रैकिंग करते हुए दयारा से करीब चार किमी ऊपर बकरियां टाप तक भी गए। सूत्रों के मुताबिक राहुल शुक्रवार को दयारा से ही हेलीकाप्टर के जरिए दिल्ली रवाना हो जाएंगे। उल्लेखनीय है कि बुग्याल में पेड़ों की झुरमुट के बीच राहुल गांधी का शिविर लगा है, जिसके चारों ओर विशेष सुरक्षा बल का पहरा है। शिविर के सौ मीटर की परिधि तक किसी को जाने की इजाजत नहीं है। बुधवार को राहुल से मिलने के लिए वार्सू व रैथल गांव के लोग बड़ी संख्या में दयारा पहुंचे थे, लेकिन सुरक्षा बलों ने उन्हें दो सौ मीटर की दूरी पर ही रोक दिया।

कलह से पस्त भाजपा और फिसली

विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद भाजपा में अब नेतृत्व को लेकर अंदरूनी संघर्ष गहराने के आसार बढ़ने लगे हैं। निराशा से हताशा की ओर बढ़ रही भाजपा मानने लगी है कि संघर्ष न थमा तो स्थिति गंभीर हो सकती है। दरअसल भाजपा में जल्द ही संगठन चुनाव होने हैं, वहीं कुछ ही दिनों में झारखंड का चुनावी शंखनाद भी होने वाला है। ऐसे में संघ का असर और बढ़े तो आश्चर्य नहीं। गुरुवार को हार स्वीकारते हुए पार्टी प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने साफ संकेत दिये कि हार के पीछे बड़ा कारण अंदरूनी कलह है। उन्होंने कहा, हमें कार्यकर्ताओं और समर्थकों के सामने एक सुर और स्वर में बात करनी चाहिए। तीन राज्यों मंें हार के बाद भाजपा के लिए चुनौती बढ़ गई है। महाराष्ट्र में जहां चुनाव के समय दूसरे मुद्दों के साथ-साथ नेताओं का भी संघर्ष दिखा, वहीं नतीजों के बाद गोपीनाथ मुंडे ने राष्ट्रीय नेतृत्व में युवाओं को लाने की बात कहकर संकेत दे दिया है कि संगठन चुनाव बहुत आसान नहीं होगा। कई राज्यों में भी संगठन चुनाव होने हैं। हरियाणा में पार्टी को कुछ उत्साहजनक नतीजे तो मिले हैं, लेकिन यह बहस भी छिड़ गई है कि वहां अकेले उतरने का फैसला कितना सही था। दबे छुपे इसके पीछे आपसी संघर्ष की बात सामने आने लगी है।

सात निर्दलियों ने हासिल की जीत

हुड्डा अपनी माता जी से दुलार लेते हुए,
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हरियाणा राज्य की 12वीं विधानसभा में इस बार सात निर्दलीय विधायक जीतकर आए हैं। पिछली बार के चुनाव में 11 आजाद विधायकों ने जीत हासिल की थी, मगर इस बार निर्दलीय विधायकों की संख्या घटकर सात रह गई है। 67 में सिर्फ नौ महिलाएं ही चुनाव जीतीं चंडीगढ़ : हरियाणा की 12वीं विधानसभा चुनाव में 67 महिलाएं चुनावी समर में मैदान में उतरी थीं, जिनमें मात्र नौ ही चुनाव जीतने में सफल हुई हैं। इनमें कांग्रेस की छह, इनेलो की दो और एक भाजपा की है। हरियाणा में अकालियों का खाता खुला चंडीगढ़ : अकाली दल ने पहली बार पंजाब के बाहर चुनाव जीत कर अपना आधार फैलने के सबूत दिए हैं। यूं तो पार्टी पहले भी दिल्ली आदि राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ती रही है मगर उसे जीत नसीब हुई इस बार हरियाणा के विधानसभा चुनाव में। अकाली प्रत्याशी चरणजीत सिंह ने कालियांवाली सीट जीत कर इनेलो के हाथ मजबूत किए हैं जिसने अकाली दल को राज्य में दो सीटें दी थीं। जीत के बावजूद हजकां प्रत्याशी की जमानत जब्त करनाल : जीत हासिल करने के बावजूद असंध विधानसभा क्षेत्र से हजकां प्रत्याशी पंडित जिलेराम शर्मा अपनी जमानत नहीं बचा पाए। उन्हें जमानत बचाने के लिए निर्धारित वोट नहीं मिले। इस क्षेत्र में कुल एक लाख 28 हजार 218 मत पड़े। प्रत्येक प्रत्याशी को जमानत बचाने के लिए कुल मतों का 1/6 हासिल करना होता है। इस नियम पर जिलेराम शर्मा समेत कोई भी प्रत्याशी खरा नहीं उतरा। जिलेराम को 20 हजार 266 मत मिले हैं।

कुछ यूं दी गई बधाइयां ..



चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में जोश भर गया, लिहाजा उन्होंने कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी और पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को कुछ इस अंदाजा में बधाइयां दीं।

मेहमानों को सड़कें खूबसूरत दिखाने की तैयारी


विदेशी मेहमानों को सड़कें किस तरह की दिखें, इसके लिए लंबी माथापच्ची के बाद सौंदर्यीकरण की योजना पर जमीन पर उतारने की कवायद शुरू हो गई। खेलों के लिए सड़कों के सौंदर्यीकरण योजना का दिल्ली के पहले प्रोजक्ट का राष्ट्रीय राजमार्ग-24 पर सैंपल तैयार किया गया है। इसमें दस से अधिक प्रजाति के पौधे, बेल व पेड़ लगाए गए हैं। योजना इस प्रकार तैयार की गई है कि इस हरियाली के बाद पूरा इलाका बदला-बदला नजर आएगा। योजना के तहत जो पौधे लगाए गए हैं, वे सभी देशी हंै। लोक निर्माण विभाग के सचिव के.के. शर्मा ने बुधवार शाम दौरा कर गाजियाबाद से निजामुद्दीन की ओर आने वाले मार्ग पर बनाए गए सैंपल को ओके कर दिया है। इसे शीघ्र ही दिल्ली के मुख्य सचिव राकेश मेहता और मुख्यमंत्री शीला को भी दिखाया जाएगा। सरकार से स्वीकृति मिल जाती है तो इसी के अनुरूप इस मार्ग को सुंदर बनाने का काम शुरू कर दिया जाएगा। कामनवेल्थ गेम्स के चलते जो रूट खिलाडि़यों को लाने-ले जाने के निर्धारित किए गए हैं, उन्हें सुंदर बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसी के तहत यमुना खादर में स्थित खेल गांव से यमुना स्पो‌र्ट्स कांप्लैक्स तक के रूट के सौंदर्यीकरण करने के लिए एनएच-24 पर मदर डेयरी पुलिया के पास संजय झील के सामने दोनों मार्गो पर सौ-सौ मीटर के सैंपल बनाए गए हैं। इसके अलावा मार्ग के सेंट्रल वर्ज को विकसित किया जा रहा है। इस पर पिछले 10 दिन से काम चल रहा है। सैंपल दो प्रकार के बनाए गए हैं। इसमें से गाजियाबाद की ओर से निजामुद्दीन की ओर जाने वाले मार्ग पर बने सैंपल को लोक निर्माण विभाग ने स्वीकृति दे दी है। इसमें हाइकस बैंजामीना, हाइकस ब्लैक आई व हाईकस रिजलाल्ट आदि के पेड-पौधे लगाए गए हैं। वे पेड़ लगाए गए हैं, जो छह से सात फुट तक ऊंचे हो जाते हैं। बीच-बीच में लाल फूल देने वाला हिमेलिया तथा पीला बड़ा फूल देने वाला टिकोमा लगाया गया है। यूनीपैंसिस व बैंगू (बांस) के पेड़ लगाए गए हैं। बार्डर के लिए इनर्मी लगाई गई है। जमीन को सुंदर बनाने के लाल घास लगाई गई है। इस रोड से जुड़ने वाले दूसरे मार्ग रोड संख्या-56 को गाजीपुर लालबत्ती से आनंद विहार बस अड्डा जाने वाले मार्ग का भी सौंदर्यीकरण किया जाएगा। इसके लिए एक सप्ताह बाद प्रक्रिया शुरू की जाएगी। इस रोड के लिए अलग तरह के पौधे लगाए जाएंगे।

हुड्डा की राह में खड़ी हुई सैलजा और किरण चौधरी


हरियाणा में कांग्रेस भले ही बहुमत से कुछ पीछे रह गई हो, लेकिन पार्टी के कई नेता मुख्यमंत्री पद की दौड़ में आगे निकलने कोशिश में जुट गए हैं। चुनाव नतीजों की घोषणा के साथ ही गुरुवार शाम भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और किरण चौधरी ने अपने-अपने तर्को के साथ पार्टी हाईकमान के यहां हाजिरी लगाई। राज्य में पार्टी के खराब प्रदर्शन का ठीकरा केंद्रीय नेताओं ने प्रदेश नेतृत्व के सिर फोड़ा है। इसके लिए उसके अति उत्साह को जिम्मेदार बताया गया है। कांग्रेस को उम्मीद से कमजोर चुनाव नतीजों के चलते जहां निर्दलीय व दूसरी पार्टी के समर्थन की तलब है, वहीं उसे हुड्डा के नाम पर सहमति न बनने की भी आशंका है। खासकर हजकां से समर्थन की नौबत आने पर। केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा और बंसीलाल की बहू किरण चौधरी मुख्यमंत्री पद की दौड़ में हैं। सोनिया गांधी से मुलाकात करने गए भूपेंद्र सिंह हुड्डा जब10 जनपथ से बाहर निकले, ठीक उसी समय सैलजा सोनिया से मिलने गईं। उसके थोड़ी देर बाद किरण चौधरी भी पहुंच गईं। पार्टी महासचिव बीके हरिप्रसाद ने राज्य में वहां के नेतृत्व के अति उत्साह को कोसा। उनका कहना है कि हरियाणा के चुनाव नतीजे पार्टी की उम्मीदों पर खरे नहीं उतरते। हरिप्रसाद ने कहा कि निर्दलीय व हजकां जैसी पार्टियों के पास समर्थन के लिए जाना ही पड़ेगा। ऐसे में उनकी ओर से आई शर्त को नजरअंदाज करना भी संभव नहीं होगा। लोकसभा चुनाव में 10 में नौ सीटें जीतने के बाद मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने समय से छह महीने पहले चुनाव कराने के प्रस्ताव पर पार्टी हाईकमान से मुहर लगवा ली। टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रचार के तौर तरीके की पूरी छूट हुड्डा को मिली थी। चुनाव की कमान भी उनके हाथ में ही थी। प्रदेश कांग्रेस के दूसरे धड़े के नेताओं को नजरअंदाज किया गया। यही वजह थी कि पूरे चुनाव के दौरान ये नेता खिंचे-खिंचे रहे। जाहिर तौर पर अब हुड्डा चौतरफा निशाने पर हैं। प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेताओं में चौधरी विरेंद्र सिंह चुनाव हार गए हैं, जो मुख्यमंत्री पद की दावेदारी में सबसे आगे थे।

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