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शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2009

अब कहां रहा वह उत्साह!.....


अब कहां रहा वह उत्साह! एक समय था जब चुनाव होते ही चारों ओर रौनक छा जाती थी लोकतंत्र का यह महापर्व नेताओं, उनके कार्यकर्ताओं ही नहीं मतदाताओं में भी उत्साह भर देता था। समय के साथ चुनाव का ढंग भी बदला और रंग भी। इसके साथ ही इसकी रौनक भी गायब होती गई और जनसंपर्क व प्रचार के तौर-तरीके भी बदल गए। एक वक्त था जब गली मोहल्ले में नेता के पहंुचने से पहले ढोल-नगाड़ों से उनका स्वागत होता था, लोग उनकी बातें सुनते थे। आज तिकड़मों से भीड़ जुटानी पड़ती है। अप्रैल-मई में हुए लोकसभा चुनावों में कई राष्ट्रीय स्तर के नेताओं ने सोशल नेटवर्किग साइट्स के जरिए मतदाताओं से संपर्क साधा, वहीं विधानसभा चुनाव में भी नेता इस तरीके का इस्तेमाल कर रहे हैं। सीनियर सिटीजन क्लब के प्रधान ओपी मिगलानी कहते हैं कि पहले लोगों में चुनाव के समय शादी सा उत्साह होता था। शहर पार्टी कार्यालयों में मेला सा लगता था और गांवों से लोगों का हुजूम उमड़ता था। संचार के साधनों के अभाव में दूसरे क्षेत्रों में चुनावी माहौल जानने की बड़ी उत्सुकता रहती थी। आजकल पार्टियों के कट्टर समर्थक ही नेताओं को समय देते हैं। आम आदमी में बहुत दिलचस्पी नहीं दिखती। वरिष्ठ साहित्यकार दर्शनलाल आजाद का कहना है कि भले ही चुनाव प्रचार के तौर तरीके बदल गए हों, चाहे चौपाल की चुनावी सभा के विचार-विमर्श की जगह ब्लाग या एसएमएस ने ले ली हो, लेकिन न तो नेताओं का मिजाज बदला है और न ही समाज के प्रति उनकी भावना। चुनाव प्रचार में प्रयुक्त किए जाने वाले विभिन्न संसाधनों पर पानी की तरह पैसा बहाया जाता है और जनता के पैसे का दुरुपयोग होता है।

जे मुंडिया वे साढी टौर तूं बेखनी ............


भले ही गायक इंद्रजीत हसनपुरी वीरवार को हमें छोड़ कर चले गए, लेकिन उनके अमर गीत जे मुंडिया वे साढी टौर तूं बेखनी गड़बा ले दे चांदी दा., ढाई दिन न जवानी नाल चलदी कुरती मलमल दी., चरखा मेरा रंगला विच सोने दिया मेखां, वे मैं तैनूं याद करां जदों चरखे वल वेखां. तथा जदों-जदों वी बनेरे बोले कां. हमेशा सर्वत्र गूंजते रहेंगे। बेशक, हसनपुरी का नाम बतौर गीतकार चमकता रहा है, लेकिन उनकी पुख्ता पहचान साहित्यकार, फिल्मकार, चित्रकार व शायर के तौर पर भी है। वे कला को सिर्फ मनोरंजन का साधन ही नहीं अपितु संदेश संप्रेषण व सुधार का सशक्त माध्यम भी मानते थे। रफी, मन्ना डे व शमशाद ने दी उनके गीतों को आवाज : उनके लिखे गीतों की यही विशेषता है कि शमशाद बेगम, मुहम्मद रफी, मन्ना डे, जगजीत सिंह, सुरिंदर कौर, आशा भोंसले, गुरदास मान तथा हंसराज हंस जैसे गायकों को उन्हें सुरों से सजाने में कोई हिचक नहीं हुई। हसनपुरी के लिखे गीत करीब छह दशकों से लोगों की जुबां पर है। कौन पंजाबी भूल सकता है हसनपुरी रचित गीतों को। करीब दो दर्जन पंजाबी व आधा दर्जन हिंदी फिल्मों में उनके गीतों का फिल्मांकन हो चुका है। पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री को भी दिया योगदान : पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री को हसनपुरी ने तीन बेहतरीन फिल्में भी दी हैं। इनमें तेरी-मेरी इक जिंदड़ी, दाज तथा सुखी परिवार शामिल हैं। टेलीफिल्म व धारावाहिक के निर्माण में भी हसनपुरी ने अपनी छाप छोड़ी है। साडा पिंड, उजाड़ दी सफर, मस्यां दी रात को लोग शायद भी भूले होंगे। उनकी फिल्में या धारावाहिक सीधे तौर पर सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती हैं या फिर देशभक्ति की भावना प्रोत्साहित करते हैं। यही वजह रही है कि फिल्म तेरी-मेरी इक जिंदड़ी में धरम भाजी ने मुफ्त काम किया था। ये नए कलाकारों के मसीहा भी रहे हैं। कम से कम दर्जन नाम ऐसे हैं, जिन्हें इन्होंने कला के क्षेत्र में परिचित करवाया। रिक्शा चालक चांदीराम से 1950 में अपना पहला गीत रिकार्ड करवा कर उन्हें गायन व अभिनय के क्षेत्र में स्थापित किया। गजल गायक जगजीत सिंह ने इनके गीत तेरी-मेरी इक जिंदड़ी से पा‌र्श्वगायन की शुरुआत की थी। इनके अतिरिक्त के.दीप, नरिंदर बाबा, वरिंदर, मेहर मित्तल, धीरज कुमार जैसे लोगों को भी स्थापित करने का श्रेय इन्हें प्राप्त है। इनकी निजी जिंदगी उतार-चढ़ाव से भरी रही है। सन 1933 में पैदा हुए हसनपुरी को पिता की मौत के बाद 15 वर्ष की आयु में परिवार से दूर 15 रुपये माह की नौकरी करनी पड़ी थी। वे बताते थे कि उनके पिता स्वर्गीय जसवंत सिंह दिल्ली के तत्कालीन प्रमुख ठेकेदार शोभा सिंह (लेखक व पत्रकार खुशवंत सिंह के पिता) के सहयोगी ठेकेदार थे। गूंजते रहेंगे जे मुंडेया वे साडी टोर तूं वेखणी.. जैसे अमर गीत फिल्म स्टार धमें्रद के साथ इंद्रजीत सिंह हसनपुरी।

भिखारियों का कुंभ जुटेगा महाकुंभ में

हरिद्वार महाकुंभ की तैयारियों में लगे मेला प्रशासन के लिए भिखारी मुसीबत बने हुए हैं। पुलिस प्रशासन जहां महाकुंभ मेला क्षेत्र को भिखारी मुक्त करने की योजना बना रहा है वहीं सेक्टर व जोन में बंटने वाले इस क्षेत्र की तर्ज पर भिखारी भी व्यवस्थित होने की तैयारी में हैं। इनमें बांग्लादेशी भिखारी भी प्रशासन के लिए चिंता का सबब बने हुए हैं। इन भिखारियों में किसी के हिस्से में हरकी पैड़ी है, तो कोई पंतद्वीप, मंसा देवी, चंडी देवी मंदिरों के बाहर कटोरे पकड़े हुए है। मेला क्षेत्र के लिए भिखारियों की भी व्यवस्थाओं में बड़े बदलाव होने तय हैं। दिल्ली, यूपी, बिहार, प. बंगाल व उड़ीसा से इन दिनों पहुंचे भिखारी इसके लिए बाकायदा कार्ययोजना तैयार कर रहे हैं। महाकंुभ शुरू होने से कुछ दिन पहले इनके कुनबे व संगी साथी भी यहां पहुंचेंगे। वे अपने-अपने इलाकों में बंट जाएंगे। भिखारियों के इन जत्थों में पांच वर्ष के बच्चों से लेकर 70 साल के बूढ़े तक शामिल रहते हैं। ये सभी अपनी उम्र व शारीरिक बनावट आदि के अनुसार भीख मांगने के तरीके अपनाते हैं। पिछली बार अ‌र्द्धकुंभ में भी भिखारियों को मेला क्षेत्र से हटाने की योजना धरी की धरी रह गई थी। श्रद्धालुओं को डरा धमकाकर दान पुण्य करने को मजबूर करना भी भीख मांगने का एक तरीका है। चार-पांच साल से हरिद्वार में बांग्लादेशी भिखारियों की तादाद बढ़ती जा रही है। हालांकि पुलिस के पास इनका कोई रिकार्ड नहीं है। कनखल, पंतद्वीप, गंगनहर पटरी पर अनेक जगहों पर बांग्लादेश भिखारी झुग्गी झोपडि़यां डालकर रह रहे हैं। डीआईजी कुंभ मेला आलोक कुमार के मुताबिक एक जनवरी, 2010 से भिखारियों को मेला क्षेत्र से हटाकर रोशनाबाद स्थित भिक्षुकगृह में रखा जाएगा।

..लेकिन चोरों ने नहीं बख्शा


टायलेट में जन्म लेते ही ट्रेन से गिरे बच्चे को तो भगवान ने बचा लिया, लेकिन उसकी मां अपने सामान को चोरों से नहीं बचा पाई। चोरों ने पुरुलिया सदर अस्पताल में भर्ती रिंकू देवी की नकदी के साथ मोबाइल चोरी कर लिया। उड़ीसा के सुंदरगढ़ के लालिम पाड़ा निवासी इस दंपत्ति के पास अब न घर लौटने के लिए ट्रेन किराया है और न ही खाने के पैसे। अस्पताल में चोरी की घटना की जानकारी मिलते ही दक्षिण-पूर्व रेलवे मेंस यूनियन के ज्वाइंट सेक्रेटरी मलय बनर्जी ने अपने साथियों के साथ चंदा कर महिला के पति भोला राय को तीन हजार रुपये दिए। मलय बनर्जी ने जागरण को बताया कि पूरे घटना क्रम से आद्रा डिवीजन के डीआरएम एके गारेकर को अवगत करा दिया गया है। डीआरएम ने बताया कि मां व बच्चे के इलाज व खाने की उचित व्यवस्था की जाएगी। नवजात शिशु का वजन दो किलो चार सौ ग्राम है। अस्पताल की नर्सो ने बच्चे का नाम मृत्युंजय रखा है, जबकि पुरुलिया स्टेशन के रेलकर्मी प्यार से बच्चे को दुरंत नाम से पुकार रहे हैं। सदर अस्पताल के डीएमओ डा. स्वपन सरकार ने बताया कि बच्चा व मां को दोनों चिकित्सकों के देखरेख में रखा गया है।

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