
( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)- चौधरियों की दमदार टक्कर चुनाव रोचक दौर में पहुंच रहा है। पहले गठबंधन और अब कांग्रेस की टिकट का मसला सभी लोगों की निगाह में है। गठबंधन औंधे मुंह गिर चुके हैं और कांग्रेस की टिकट फाइनल नहीं हो पा रही हैं। भीतरी बनाम बाहरी का नारा बुलंद होने के बाद आलाकमान के सामने धर्मसंकट खड़ा हो रहा है कि क्या करें? लेकिन इन सभी बातों के बीच एक और मसला करो या मरो के दौर में पहुंच चुका है और वह है चौधरी ओम प्रकाश चौटाला तथा चौधरी बीरेंद्र सिंह के बीच की टक्कर का। इनेलो अध्यक्ष के ऐलान के बाद कि वह उचाना से चुनाव लड़ेंगे, सभी की निगाह जाटलैंड के इस इलाके की तरफ घूम चुकी है। चौटाला ने पिछली दफा उचाना के पड़ोस में बसे नरवाना और रोड़ी से किस्मत आजमाई थी। रोड़ी में वह जीत गए पर नरवाना से रणदीप सुरजेवाला के सामने उन्हें हार का सामना करना पड़ा। परीसीमन में दोनों क्षेत्र फंसने के बाद सभी देख रहे थे कि चौटाला कहां से चुनाव मैदान में उतरते हैं। उनके उचाना से मैदान में उतरने के ऐलान के बाद चौधरी बीरेंद्र के लिए मुश्किल बढ़ चुकी हैं। कोई और होता तो छोटू राम के नाती हरियाणा में घूम-घूमकर दूसरों की मदद भी कर सकते थे। अलबत्ता इस दफा उन्हें खुद को अपने हलके में सीमित करना पड़ेगा। उनके लिए मुश्किल इसलिए भी है कि कांग्रेस के ही बड़े नाम उनकी राह में रोड़ा अटका सकते हैं। लोकसभा चुनाव के बाद से ही पार्टी में दो धड़े स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं। बीरेंद्र के साथ शैलजा, किरण और राव इंद्रजीत हैं। बाकी जो बचे हैं वह सभी इस दोस्ताने के खिलाफ ही हैं। कहने वाले कहते हैं कि दोनों धड़े अपना जोर दिखाने का मौका जाया नहीं करने वाले, इस तथ्य को ध्यान में रखकर ही ओम प्रकाश चौटाला ने उचाना से उतरने का फैसला किया। उनके लिए इससे ज्यादा मुफीद सीट और कोई हो भी नहीं सकती थी। हुड्डा को चुनौती देने में खतरा है तो कांग्रेस में और कोई नेता ऐसा नहीं जिससे वह आमने-सामने की लड़ाई लड़ें। आज वह अपने जीवन की बेहद अहम लड़ाई लड़ रहे हैं और अपने वर्कर्स को इस बात का एहसास कराना उनके लिए बेहद जरूरी है कि वह पहले की तरह से ही मजबूत हैं। किसी दमदार को पछाड़कर असेंबली पहुंचते हैं तो पार्टी और उनके यानी दोनों के कद में इजाफा हो सकता है। उधर, बीरेंद्र के लिए भी चुनाव रोचक हो चला है। इस बार जीते तो सोनिया गांधी तक वह कह सकने की स्थिति में होंगे कि, मैं मजबूत हूं। लोकसभा की टिकट अदने से जितेंद्र मलिक से गंवाने के बाद वह लगभग चुप से बैठे थे। उचाना में मिली जीत दिल्ली दरबार में उनका कद काफी ऊंचा कर देगी। परदे के पीछे के लोग कहते हैं कि कद में उतार-चढ़ाव की संभावनाएं उचाना के चुनाव में अहम रोल अदा करेंगी। पिछली दफा चौटाला नरवाना में रणदीप से चुनाव केवल इसी वजह से हार गए थे क्योंकि लोगों को एहसास हो चला था कि छोटे सुरजेवाला सीएम बनने की रेस में काफी आगे हो चले हैं। उनकी जेड सिक्योरिटी ने इस बात को पुख्ता किया। कांग्रेस जीतने की स्थिति में थी और जनता ने एक और सीएम से मिलने वाले फायदे के लालच में चौटाला को हरा दिया। कांग्रेस फिर मजबूत स्थिति में दिखाई दे रही है और इसी वजह से उचाना का चुनाव रोचक हो चला है। बीरेंद्र के पक्ष में उनके गृह क्षेत्र की बात के अलावा कांग्रेस की पोजीशन भी है। उनकी छवि एक ऐसे राजनीतिज्ञ की रही है जो बीच के रास्ते में विश्वास रखता है। उधर, चौटाला के पक्ष में सबसे मजबूत चीज उनका अपना नाम है। कांग्रेस के नेता (बीरेंद्र के विरोधी) चुनाव में उनकी कुछ तो मदद करेंगे ही। लोकसभा में इनेलो यह सीट जीत चुकी है और इसके साथ बीरेंद्र का सीएम की रेस से लगातार दूर होते जाना उनके लिए फायदेमंद होगा। एक तथ्य यह भी है कि भिवानी लोकसभा सीट में कांग्रेस की भितरघात अजय को फायदा नहीं पहुंचा पाई लेकिन श्रुति चौैधरी को सबसे ज्यादा फायदा इस बात का मिला था कि वह चौधरी बंसी लाल की वंश बेल हैं जिसे हर कोई बढ़ने से पहले खत्म कर देना चाहता है। केवल इस बात से ही दोनों के बीच की लड़ाई में श्रुति को सहानुभूति मिली। लेकिन उचाना में ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा, ऐतिहासिक पुरुष सर छोटू राम के नाती व प्रदेश की राजनीति के सबसे एग्रेसिव जाट नेता के बीच की लड़ाई दमदार होगी? शैलेंद्र गौतम।