IMPORTANT-------ATTENTION -- PLEASE

-----------------------------------"यंग फ्लेम" परिवार में आपका हार्दिक स्वागत है। "यंग फ्लेम" परिवार आपका अपना परिवार है इसमें आप अपनी गजलें, कविताएं, लेख, समाचार नि:शुल्क प्रकाशित करवा सकते है तथा विज्ञापन का प्रचार कम से कम शुल्क में संपूर्ण विश्व में करवा सकते है। हर प्रकार के लेख, गजलें, कविताएं, समाचार, विज्ञापन प्रकाशित करवाने हेतु आप 093154-82080 पर संपर्क करे सकते है।-----------------------------------------------------------------------------------------IF YOU WANT TO SHOW ANY KIND OF VIDEO/ADVT PROMOTION ON THIS WEBSITE THEN CONTACT US SOON.09315482080------

Young Flame Headline Animator

बुधवार, 18 नवंबर 2020

ऐलनाबाद के आढ़ती को लगाई 1.98 करोड़ की चपत, धान निर्यातक फर्म के डायरेक्टरों पर धोखाधड़ी का मामला दर्ज

डबवाली न्यूज़ डेस्क 
ऐलनाबाद पुलिस ने अनाज मंडी के आढ़ती की शिकायत पर धान निर्यातक फर्म के डायरेक्टरों के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया है।फर्म पर एक करोड़ 98 लाख रुपये के गबन का आरोप है। रानियां निवासी किरोड़ीमल पुत्र नंदलाल की ओर से पुलिस में दर्ज करवाई गई शिकायत में बताया कि वह ऐलनाबाद अनाज मंडी में दुकान नंबर 89-बी का संचालन करता है। उसने बताया कि मैराज अमीरा प्येर फूड्स की ओर से धान खरीद का लेनदेन किया गया। फर्मकी ओर से वर्ष 2013 से लेकर 2017 तक उससे धान की खरीद की गई। जब फर्म की ओर एक करोड़ 98 लाख रुपये बकाया रह गया तब फर्म संचालकों ने उसका भुगतान रोक दिया। उसने बार-बार बकाए का तकाजा किया, जिस पर उसे जान से मारने की धमकी दी। आरोपियों ने षड्यंत्र रचकर उसके साथ धोखाधड़ी की है। ऐलनाबाद पुलिस ने शिकायत के आधार पर फर्म के डायरेक्टर करण चानन, अनीता डांग, लाजपत राय, राजेश अरोड़ा, राहुल सुद, राधिक चानन, अर्पणा पुरी, श्याम पोद्दार, मुख्य प्रबंधक रामबाबू, हैड अकाऊंटेंट मृत्यंजय मिश्रा के खिलाफ भादंसं की धारा 420, 406, 506, 120बी के तहत मामला दर्ज किया है। मामले की जांच का जिम्मा उपनिरीक्षक जगदीश राय को सौंपा गया है।

एसआईटी के कंधों पर अहम जिम्मेवारी,खाद्य एवं आपूर्ति विभाग से काबू करना है भ्रष्टाचार का जिन्न!

डबवाली न्यूज़ डेस्क 
जिला खाद्य एवं आपूर्ति विभाग से भ्रष्टाचारी रूप जिन्न को पहचानना और उसे दबोचने की अहम जिम्मेवारी एसआईटी (विशेष जांच दल) के कंधों पर है। यह चुनौती भरा कार्य पुलिस उपाधीक्षक (मुख्यालय) आर्यन चौधरी की अगुवाई में गठित तीन सदस्यीय टीम को सौंपा गया है।जांच टीम द्वारा मामले को सिरे चढ़ाने पर पूरे महकमे का हिलना तय है, चूंकि 58 डिपू होल्डरों और विभाग के एक दर्जन अधिकारियों के खिलाफ दर्ज पुलिस एफआईआर के अनुसार कार्यवाही होनी है। लगभग तीन वर्ष पहले दर्ज हुए इस मामले में विभाग के तत्कालीन चार डीएफएससी, दो एएफएसओ और 6 इंस्पेक्टर नामजद है। लाखों रुपये के गेहूं घोटाले में सिरसा जिला के 58 डिपू होल्डरों की सप्लाई तत्काल बंद कर दी गई थी। 
दरअसल, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग में कंठ तक भ्रष्टाचार व्याप्त है। इसलिए विभाग पर सर्वाधिक आरोप लगते है। इस विभाग का सीधा संबंध आमजन से है। डिपू होल्डरों के माध्यम से राशन का घोटाला करने पर विभाग के अधिकारियों पर आरोप लगते रहें है। लगभग तीन वर्ष पूर्व एक डिपू होल्डर द्वारा ही मामले का भंडाफोड़ किया गया था। उसकी ओर से शिकायत दर्ज करवाई गई कि विभाग के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों ने अपने चहेते डिपू होल्डरों को अधिक मात्रा में गेहंू का आंवटन कर दिया, जिसे कार्डधारकों को वितरित नहीं किया गया। बल्कि उसे खुले बाजार में बेचकर कालाबाजरी की गई है। मामले में जांच हुई तो सामने आया कि लगभग 5000 क्विंटल गेहूं का घोटाला किया गया है। मामले में अक्टूबर-2017 में जिला के 58 डिपू होल्डरों के साथ-साथ विभाग के एक दर्जन अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ था। लेकिन मामले को दबा दिया गया था। पीडि़त पक्ष की ओर से कोर्ट का द्वार खटखटाया गया और मामले की निष्पक्ष जांच करवाने और दोषियों को दंडित करवाने का आग्रह किया गया। कोर्ट के आदेश पर ही एसआईटी का गठन किया गया। अब एसआईटी ने मामले में छानबीन शुरू कर दी है। उम्मीद है कि जल्द ही विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों को सलाखों के पीछे भेजने का सिलसिला शुरू होगा।
रिकार्ड लिया, जल्द जांच होगी : चौधरी
पुलिस उपाधीक्षक (मुख्यालय) आर्यन चौधरी ने बताया कि खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के मामले में जांच का कार्य तेज कर दिया गया है। अब तक विभाग से रिकार्ड जुटाया जा रहा था, कुछ रिकार्ड अभी भी बाकी है। एसआईटी ने खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अलावा डिपू होल्डरों से भी रिकार्ड ले लिया गया है। तमाम रिकार्ड की पड़ताल की जाएगी और इस बारे में जल्द ही रिपोर्ट दाखिल की जाएगी।
इन पर है मामला दर्ज
पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर में खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के तत्कालीन डीएफएससी सुभाष सिहाग, डीएफएससी राजेश आर्य, डीएफएससी दिवानचंद शर्मा, डीएफएससी हंसराज भादू, एएफएसओ नरेंद्र सरदाना, एएफएसओ जगतपाल के अलावा विभाग के 6 इंस्पेक्टर के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। हालांकि मामले में एक अन्य इंस्पेक्टर का नाम बाहर रखने का भी आरोप है।
बेगुनाह भी बनाए आरोपी!
खाद्य एवं आपूर्ति विभाग द्वारा जिन 58 डिपू होल्डरों को आरोपी बनाया गया है, बताया जाता है कि उनमें कुछ बेगुनाह है। दरअसल, जांच को भटकाने के लिए ऐसा किया गया है। बेगुनाह डिपू होल्डरों द्वारा अपनी बेगुनाही साबित की जाएगी, जिससे गुनहगारों को भी लाभ मिलेगा और वे भी बच पाएंगें। यही वजह है कि दर्जनभर से अधिक डिपू होल्डरों द्वारा मामले की त्वरित जांच की मांग को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया गया है। उनकी मांग पर ही एसआईटी का गठन हुआ है।
ये कैसा न्याय?
खाद्य एवं आपूर्ति विभाग में हुए गेहूं घोटाले के मामले में दोहरा रवैया अपनाया गया। विभाग द्वारा पुलिस में मामला दर्ज करवाते ही आरोपी डिपू होल्डरों की सप्लाई सस्पेंड कर दी गई। मगर, मामले में विभाग के जो अधिकारी आरोपी बनाए गए। उन पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। उन्हें न तो निलंबित किया गया और न ही उनका मुख्यालय ही बदला गया। यानि उन्हें तथ्यों से खेलने, रिकार्ड नष्ट करने की खुली छूट प्रदान कर दी गई। मामले में आरोपी अधिकारी आज भी पहले की भांति अपनी ड्यूटी बजा रहे है।
विभाग से रिकार्ड गायब!
घपले-घोटाले के मामले में खाद्य एवं आपूर्ति विभाग से रिकार्ड ही खुर्द बुर्द कर दिया गया। विभागीय अधिकारियों ने डेढ़ दर्जन फाइलों के गुम होने की बात राज्य सूचना आयोग में स्वीकार की गई। डिपू होल्डर प्रेम जैन की ओर से सूचना आयोग में अपील दाखिल की गई थी और सूचना प्रदान करने का आग्रह किया गया था। तब विभाग की ओर से बताया गया कि रिकार्ड से 17 फाइलें गुम है। आयोग ने विभाग को गुम हुई फाइलों के मामले में दर्ज करवाई गई एफआईआर तलब की गई। लेकिन आज तक न तो विभाग ने फाइलों की गुमशुदगी की एफआईआर दर्ज करवाई गई और न ही वांछित सूचना ही प्रदान की गई।

शनिवार, 7 नवंबर 2020

राशन डिपूओं पर सप्लाई वितरण का मामला,सूचना आयोग ने डीएफएसओ को जारी किया नोटिस,अगले वर्ष 28 जनवरी को आयुक्त भूपेंद्र धर्माणी करेंगे सुनवाई

डबवाली न्यूज़ डेस्क 
राशन डिपूओं पर राशन की सप्लाई वितरण के मामले को लेकर मांगी गई सूचना प्रदान न करने पर राज्य सूचना आयोग ने जिला खाद्य एवं आपूर्ति अधिकारी सिरसा को नोटिस जारी किया है। मामले में 28 जनवरी 2021 की तिथि तय की गई है। राज्य सूचना आयुक्त भूपेंद्र धर्माणी मामले की सुनवाई करेंगे। आरटीआई एक्टिविस्ट पवन पारिक एडवोकेट की ओर से सूचना आयोग में खाद्य एवं आपूर्ति विभाग की शिकायत की गई थी। आयोग ने शिकायत पर संज्ञान लेते हुए विभागीय अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। पवन पारिक ने खाद्य एवं आपूर्ति विभाग सिरसा से आरटीआई में एक सितंबर 2017 से 22 अगस्त 2020 की अवधि डिपू धारकों की सप्लाई सस्पेंड करने बारे जानकारी मांगी थी। यह भी पूछा गया था कि सप्लाई संस्पेंड किन कारणों से की गई। यह भी पूछा गया कि संस्पेंड किए गए डिपूओं की सप्लाई किन डिपूओं से अटैच की गई। आरटीआई में डिपूओं की सप्लाई सस्पेंड करने और उनकी बहाली के आदेशों की प्रतियां मांगी गई थी। यह भी पूछा गया कि सस्पेंड डिपूओं के राशन का राशन किन अधिकारियों की देखरेख में ट्रांसफर किया गया। उन अधिकारियों के नाम, पद, शासकीय आईडी, तैनाती तिथि के बारे में जानकारी मांगी गई थी। सूचना यह भी मांगी गई कि सस्पेंड किए डिपूओं से यदि राशन ट्रांसफर नहीं किया गया तो किस अधिकारी की कस्टडी में रहा। आरटीआई में यह भी पूछा गया कि गांव मीरपुर में इंद्राज डिपो धारक की सप्लाई तीन वर्ष पहले किस आधार पर सस्पेंड की गई और किस आधार पर उसे बहाल किया गया। डिपू सस्पेंड करने और उसकी बहाली बारे जारी किए गए आदेशों की प्रति की मांग की गई थी। 
जिला खाद्य एवं आपूर्ति विभाग की ओर से आरटीआई के जवाब में कहा गया कि आवेदक किसी भी कार्यदिवस को कार्यालय में आकर रिकार्ड का अवलोकन कर सकता है। संबंधित सूचना मौके पर उपलब्ध करवा दी जाएगी। आरटीआई एक्टिविस्ट पवन पारिक ने सूचना देने की अवधि पूरी होने के बाद भेजे गए जवाब को लेकर शिकायत आयोग में की। बताया कि किस प्रकार विभाग ने सूचना देने की बजाए उन्हें रिकार्ड का अवलोकन करने का फरमान सुनाया गया है। आयोग ने शिकायत पर संज्ञान लिया और मामले में 28 जनवरी का दिन तय किया गया है।


फर्जी फर्मों का मक्कडज़ाल,पग-पग पर सरगनाओं को मिलीं शह!

डबवाली न्यूज़ डेस्क 
फर्जी फर्मों का जाल यूं ही देशभर में नहीं फैला। यूं ही हरियाणा टैक्स चोरी के मामले में देशभर में चौथे स्थान पर पहुंचा। इसके पीछे आबकारी एवं कराधान विभाग के कुछेक भ्रष्ट अधिकारियों का पूरा योगदान रहा। इन भ्रष्ट अधिकारियों ने वेतन भले ही सरकारी खजाने से हासिल किया, लेकिन फर्जी फर्मों के सरगनाओं के लिए कार्य किया। पग-पग पर इन्हें बचाने की कोशिश की। फर्जी फर्मों के मक्कडज़ाल को जितना तोडऩे की कोशिश की जाती है, उतने ही इसमें विभाग के अधिकारियों की संलिप्तता सामने आ रही है। जांच करने पर पता चलता है कि पग-पग पर विभागीय के कुछेक भ्रष्ट अधिकारियों ने फर्जी फर्मों के सरगनाओं का बचाव किया। सिरसा जिला में भले ही फर्जी फर्मों के मामले में कई दर्जन एफआईआर दर्ज हो चुकी है। लेकिन यह संख्या तो हकीकत में बेहद मामूली है। चूंकि जितने मामले प्रकाश में आए है, उससे कहीं अधिक मामले अभी भी फाइलों में दफन है। यदि अकेले सिरसा कार्यालय की ही विस्तृत जांच हों तो करोड़ों के खेल का पटाक्षेप हो सकता है। हकीकत तो यह है कि विभाग के ही अधिकारियों द्वारा जिन फर्मों का भंडाफोड़ किया जा चुका है, उनके खिलाफ भी मामले दर्ज नहीं करवाए गए। उन मामलों को भी आजतक दबाया-छिपाया गया है। जानकार बताते है कि कराधान विभाग में आज भी ऐसे अधिकारियों का बोलबाला है, जोकि मामले को दबाने में ही विश्वास करते है। चूंकि विभाग में फर्जी फर्मों के सरगनाओं की जड़े गहरे से जुड़ी हुई है। एक के फंसने पर दूसरेके फंसने का रास्ता साफ हो जाता है। वर्तमान में जिनके पास जांच का जिम्मा है, वे भी किसी न किसी मामले में आरोपी है। ऐसे में जांच करें कौन? कौन विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों को चिह्नित करें? जो ईमानदार अधिकारी प्रयास कर भी रहें है तो उन्हें उभरने नहीं दिया जाता? 

दिल्ली के वैट अधिकारियों के झूठे हस्ताक्षरों का किया इस्तेमाल

फर्जी फर्मों के सरगनाओं ने सरकारी खजाने को चपत लगाने के लिए किस शातिराना अंदाज से धोखाधड़ी की। इसका खुलासा कराधान विभाग सिरसा के अधिकारियों द्वारा दिल्ली के अधिकारियों से किए गए पत्राचार में हुआ। सिरसा में रिफंड लेने वाली फर्मों ने दिल्ली के वैट अधिकारियों द्वारा हस्ताक्षरित पत्र दिए हुए थे। कराधान विभाग के अधिकारियों ने दिल्ली की फर्मों द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज और अधिकारियों के हस्ताक्षरों की पुष्टि का आग्रह किया गया था। तब दिल्ली के अधिकारियों ने इस आश्य का खुलासा किया कि दस्तावेज बोगस है और उनके झूठे हस्ताक्षर किए गए है। सिरसा में इन फर्जी दस्तावेजों और दिल्ली के वैट अधिकारियों के फर्जी हस्ताक्षरों से लाखों रुपये का रिफंड हासिल कर लिया गया।

6 वर्ष पहले जांच में हुआ था खुलासा

वर्ष 2014 में जांच के दौरान इस आशय का खुलासा हुआ था कि सरकार से रिफंड लेने के लिए बोगस दस्तावेज और फर्जी हस्ताक्षरों का प्रयोग किया गया है। दिल्ली के वैट अधिकारियों ने विभागीय पत्राचार में बताया कि उनकी ओर से जो दस्तावेज दिए गए है वे नकली है। इसके साथ ही दिल्ली की जिन फर्मों से लेनदेन दर्शाया गया है, उन फर्मों का लाइसेंस पहले ही रद्द किया जा चुका है। तत्कालीन ईटीओ नीरज गर्ग द्वारा पूरे मामले की छानबीन की गई थी। दिल्ली के अधिकारियों से पत्राचार के साथ-साथ उन ट्रांसपोर्टरों से भी जवाब तलबी की गई थी, जिनकी ट्रांसपोर्ट पर माल की ढुलाई दर्शायी गई थी। ट्रांसपोर्टरों द्वारा अपने बयान में बताया कि वे ट्रांसपोर्ट का काम कई वर्ष पहले बंद कर चुके है। उनके नाम से फर्जी दस्तावेज दर्शाकर धोखाधड़ी की गई है।

कार्यवाही आज तक लंबित

कराधान विभाग के अधिकारी द्वारा की गई जांच में इस आशय का खुलासा होने के बाद की सुनियोजित ढंग से रिफंड हासिल किया गया है। सरकार के खजाने को चपत लगाई गई है। लेकिन वर्ष 2014 में हुए भंडाफोड़ के बावजूद आजतक उन फर्मों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, जिन्होंने फर्जी दस्तावेज और दिल्ली के वैट अधिकारियों के फर्जी हस्ताक्षर करके रिफंड हासिल किया था। आज तक इन फर्मों के खिलाफ पुलिस में शिकायत तक नहीं दी गई। फर्जी फर्मों के सरगनाओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई और न ही रिफंड देने वाले अधिकारियों पर ही कोई एक्शन लिया गया। ऐसे में सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि विभाग में भ्रष्ट अधिकारियों की जड़े कितनी गहरी है?




मंगलवार, 3 नवंबर 2020

 फर्जी फर्मों का मक्कडज़ाल,आयकर विभाग की चुप्पी से पनपे सरगनाओं के साम्राज्य!
डबवाली न्यूज़ डेस्क 
फर्जी फर्मों के माध्यम से सरकारी खजाने को चूना लगाने वाले फर्जी फर्मों के सरगनाओं पर आबकारी एवं कराधान विभाग के कुछेक भ्रष्ट अधिकारी तो मेहरबान रहें ही, आयकर विभाग ने भी चुप्पी साधे रखीं। आयकर विभाग की अनदेखी की वजह से फर्जी फर्मों के सरगनाओं ने अकूत संपत्ति जुटाई लेकिन एक बार भी आयकर विभाग ने यह जांचने की कोशिश नहीं की कि उनकी आय का स्त्रोत क्या है? उनके पास करोड़ों रुपये के बंगले-गाडिय़ां कहां से आई? फर्जी फर्मों के सरगनाओं ने करोड़ों का खेल खेला और आयकर विभाग अनभिज्ञ बना रहा, ऐसा नहीं था! ऐसा नहीं था कि फर्जी फर्मों के बारे में आयकर विभाग को कोई जानकारी नहीं थी। आयकर विभाग की ओर से 6 वर्ष पूर्व मामले में संज्ञान भी लिया गया था। लेकिन करा-धरा कुछ नहीं?
जानकारी के अनुसार आयकर विभाग सिरसा के डिप्टी कमीशनर की ओर से 21 नवंबर 2014 को उप आबकारी एवं कराधान आयुक्त (डीईटीसी) सिरसा को बकायदा पत्र लिखा गया। इस पत्र में इंकम टैक्स अधिनियम 1961 के सेक्शन 133(6) का हवाला देते हुए फर्जी फर्मों के बारे में जानकारी मांगी गई थी। आयकर विभाग ने डीईटीसी सिरसा से फर्जी फर्मों की सूची तलब की गई थी। उनकी ओर से इन फर्मों को बनाने व कामकाज के बारे में जानकारी मांगी गई थी। इन फर्मों के बैंक की स्टेटमेंट तथा फर्म के पार्टनर अथवा प्रोपराइटरों के खातों की जानकारी मांगी गई थी। 
आयकर विभाग द्वारा 6 वर्ष पूर्व मांगी गई जानकारी के बाद विभागीय अधिकारी कुंभकर्णी नींद में सो गए। परिणाम स्वरूप फर्जी फर्मों का कारोबार बदस्तूर जारी रहा और सरगनाओं की संपत्ति बढ़ती रहीं। आयकर विभाग द्वारा यदि मामले में संज्ञान लिया जाता, तब इस पर रोकथाम लगना तय माना जा रहा था। चूंकि कराधान विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से तो चोरी हो रही थी लेकिन आयकर विभाग के अधिकारी स्टेंड लेते, तब इस चोरी पर नकेल कसी जाती। टैक्स चोरी करके साम्राज्य खड़ा करने वाले आयकर के हत्थे चढ़ते तो उनका साम्राज्य हिल जाता। लेकिन क्या वजह रहीं कि आयकर विभाग डीईटीसी सिरसा से जानकारी मांगने के पत्र से आगे नहीं बढ़ा? आयकर विभाग द्वारा डीईटीसी सिरसा से जानकारी मांगने के मामले में अनेक सवाल खड़े होते है कि आखिर आयकर विभाग ने सूचना मांगी ही क्यों? यदि कार्यवाही करनी ही नहीं थी, तब इस पत्राचार का क्या अर्थ था? क्या वजह रहीं कि इंकम टैक्स विभाग टैक्स चोरों के मामले में मौन साध गया? क्या वजह रहीं कि सिरसा में फर्जी फर्मों के जनक अकूत संपत्ति जुटाते चले गए और विभाग सोया रहा? 

करोड़ों की नगदी जब्त हुई और आयकर विभाग सुन्न रहा!

आयकर विभाग की कार्यप्रणाली पर अनेक सवालिया निशान लगे है। चूंकि फर्जी फर्मों के सरगनाओं में शुमार पदम बांसल की वर्ष 2017 में एक करोड़ 72 लाख रुपये की नगदी पुलिस द्वारा जब्त की गई थी। जबकि वर्ष 2018 में महेश बांसल की गाड़ी से एक करोड़ 10 लाख रुपये बरामद हुए थे। इतनी बड़ी मात्रा में नगदी की बरामदगी के बावजूद इंकम टैक्स विभाग खामोशी धारण किए रहा, आखिर क्यों? यह जगजाहिर होने के बाद कि 'एमआरपी' द्वारा फर्जी फर्मों के माध्यम से अकूत संपत्ति जुटाई गई है, इसके बावजूद इंकम टैक्स विभाग ने उन्हें अपने राडार पर नहीं लिया? टैक्स चोरी के साथ-साथ इंकम टैक्स की चोरी भी होती रहीं और आयकर विभाग ने सुन्नापन धारण कर लिया?

आखिर किसका है दबाव?
आबकारी एवं कराधान विभाग में तो कुछेक भ्रष्ट अधिकारी ही खजाना लूटाने में शुमार थे। इन अधिकारियों के चेहरों से नकाब हटने का सिलसिला शुरू हो चुका है। उनके खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज होने लगी है। भ्रष्ट अधिकारियों ने तो अपनी तिजोरी भरने के लिए फर्जी फर्मों के सरगनाओं से हाथ मिलाए हुए थे। लेकिन इंकम टैक्स विभाग की आखिर क्या मजबूरी थी कि वह चुप्पी साधे रहा? उस पर आखिर किसका दबाव था कि उसने आजतक कोई कदम नहीं उठाया? आखिर इंकम टैक्स विभाग में ऐसे कौन लोग है जो फर्जी फर्मों के सरगनाओं को संरक्षण प्रदान कर रहे है? करोड़ों रुपये की नगदी की बरामदगी के बाद भी एमआरपी के चेहरों तक तनिक भी शिकन नहीं है? यह दर्शाता है कि उसे न तो कराधान विभाग की परवाह है और न ही इंकम टैक्स विभाग की?

SHARE ME

IMPORTANT -------- ATTENTION ---- PLEASE

-----------------------------------"यंग फ्लेम" परिवार में आपका हार्दिक स्वागत है। "यंग फ्लेम" परिवार आपका अपना परिवार है इसमें आप अपनी गजलें, कविताएं, लेख, समाचार नि:शुल्क प्रकाशित करवा सकते है तथा विज्ञापन का प्रचार कम से कम शुल्क में संपूर्ण विश्व में करवा सकते है। हर प्रकार के लेख, गजलें, कविताएं, समाचार, विज्ञापन प्रकाशित करवाने हेतु आप 093154-82080 पर संपर्क करे सकते है।-----------------------------------------------------------------------------------------IF YOU WANT TO SHOW ANY KIND OF VIDEO/ADVT PROMOTION ON THIS WEBSITE THEN CONTACT US SOON.09315482080------

SITE---TRACKER


web site statistics

ब्लॉग आर्काइव

  © template Web by thepressreporter.com 2009

Back to TOP