
हमेशा खुद को फक्कड़ बताकर चंदा जुगाड़ने की फिराक में रहने वाली राजनीतिक पार्टियों की बातों में न आएं। न ही सादगी और बचत के इनके दिखावों पर जाएं। इन पार्टियों की अंटी में खूब माल है और शाहखर्ची में भी ये किसी कंपनी से पीछे नहीं। देश की सात राष्ट्रीय पार्टियों की कुल संपत्ति आठ सौ करोड़ से भी ज्यादा है। इसमें भी सिर्फ जमीन-जायदाद यानी अचल संपत्ति की बात की जाए तो 35 करोड़ के साथ साम्यवादी विचारधारा वाली माकपा ही सबसे आगे है। राष्ट्रीय पार्टियों की संपत्ति का जायजा लें तो इन दिनों सादगी अभियान चला रही कांग्रेस पार्टी के पास 340 करोड़ रुपये का माल-मत्ता है। सीटों और वोटों के मामले में नंबर दो भाजपा 177 करोड़ रुपये की मालिक है। इसी तरह मायावती की बसपा के पास 118 करोड़ रुपये की संपत्ति है। वर्ग संघर्ष की बात करने वाली माकपा भी पीछे नहीं है। बैलेंस शीट के मुताबिक इसकी परिसंपत्ति 157 करोड़ रुपये है। ये आंकड़े पार्टियों के सालाना आयकर रिटर्न पर आधारित हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर ये पार्टियां कागजों पर इतनी घोषणा करती है तो वाकई इनके पास कितना माल होगा। दैनिक जागरण ने आरटीआई के जरिये जो जानकारी जुटाई है उसके मुताबिक चुनाव आयोग में कांग्रेस, भाजपा, बसपा, माकपा, भाकपा, राजद और राकांपा ने साल 2008-09 के लिए अपने रिटर्न में अपनी जो परिसंपत्ति बताई है, वो कुल मिला कर 811 करोड़ है। अब यदि बात की जाए अचल संपत्ति यानी जमीन-जायदाद की तो हमेशा पूंजी के खिलाफ खड़ी दिखाई देने वाली माकपा गर्व के साथ नंबर एक पर खड़ी है। इसके बाद 31 करोड़ की अचल जायदाद के साथ भाजपा है और फिर 25 करोड़ रुपये के साथ कांग्रेस। पार्टी फंड का ब्योरा बताता है कि इसमें कार्यकर्ताओं का योगदान मामूली होता है। 2007-08 के दौरान इनकी कुल कमाई में कार्यकर्ताओं का योगदान सिर्फ पांच फीसदी रहा। इनमें सबसे समर्पित बसपा कार्यकर्ता दिखे। बाकी सभी पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने मिला कर जितना सदस्यता शुल्क दिया, उससे छह गुना अकेले बसपायों ने दे दिया। बसपा को सदस्यता शुल्क से 20 करोड़ 50 लाख रुपये मिले, जबकि कांग्रेस को सवा दो करोड़ और भाजपा को सिर्फ डेढ़ करोड़।
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