
मिनी ल्हासा यानी मैक्लोडगंज। वही, जहां साठ के दशक में तिब्बती धर्मगुरु दलाईलामा बसे थे। जहां निर्वासित तिब्बत सरकार का मुख्यालय व दलाईलामा के होने के कारण असंख्य विदेशी-देशी श्रद्धालु आते हैं। इन्हें शांति भी चाहिए और ज्ञान भी। लेकिन उनकी इसी भूख को आर्थिक उत्थान का औजार बनाते हुए मैक्लोडगंज व भागसूनाग सहित आसपास के क्षेत्रों में ध्यान, योग, रेकी व मसाज सहित कई तरह की चिकित्सा से जुड़े केंद्र शुरू हो गए हैं। केंद्र कर रहे हैं कमाई : इन केंद्रों के जरिए विदेशियों की सत्य की खोज व ज्ञान की प्यास कम हो या न हो, लेकिन संचालकों की मोटी कमाई जरूर हो रही है। ये केंद्र पूरा साल नहीं, बल्कि पर्यटकों की बढ़ती संख्या के अनुसार खुलते हैं व पर्यटकों का ग्राफ कम होते ही बंद हो जाते हैं। विदेशी पर्यटकों को रिझाने के लिए इनके संचालक केवल पोस्टरों व इंटरनेट का सहारा ले रहे हैं। पोस्टरों से अटी दीवारें : मैक्लोडगंज व भागसूनाग में ऐसे केंद्रों के संचालकों ने पोस्टरों के जरिए पूरे मैक्लोडगंज को बदरंग कर दिया है। इन केंद्रों का सबसे अधिक संचालन भारत के दक्षिण राज्यों से आने वाले लोग कर रहे हैं। इसके अलावा कुछ विदेशी व तिब्बती भी इनका संचालन कर रहे हैं। लव मेडिटेशन, शिवा हीलिंग : ध्यान की अगर बात करें, तो ध्यान को इतने कोर्सो में बांट दिया गया है कि इसके बारे में शायद ध्यान का कोई बेहतरीन ज्ञाता भी न जानता हो। ध्यान की कुछ विद्याओं को शिवा हीलिंग तो कुछ विद्याओं को लव मेडिटेशन, ड्रीम मेडिटेशन सहित कई दर्जनों नाम दे दिए गए हैं। यही हाल योग का भी है। इसके अलावा इस धार्मिक नगरी में कुकिंग कोर्स व म्यूजिक क्लासों को भी पूरा जोर है। अगर इनके कोर्सो की फीस की बात करें, तो योग क्लासों की न्यूनतम फीस 18 सौ रुपये से शुरू होकर दस हजार रुपये तक है। इनमें सात दिन, पंद्रह दिन व एक माह के कोर्स है। ध्यान व रेकी (स्पर्श चिकित्सा) कोर्सो के लिए भी फीस इतनी ही है। कुकिंग कोर्स की कक्षा करीब एक माह तक चलती है व एक घंटे के यहां पांच सौ रुपये तक का दाम रहता है। फुल बॉडी मसाज का भी यहां दो घंटे का पांच सौ रुपये वसूला जाता है तथा इनमें अधिकतर विदेशी पर्यटकों को ही शामिल किया जाता हैं तथा उनसे फीस भी डालर के रूप में वसूली जाती है। इन केंद्रों का जाल मैक्लोडगंज शहर में कम है। भागसूनाग, धर्मकोट सहित आसपास के क्षेत्र में इस समय ही करीब सौ ऐसे केंद्र कार्य कर रहे हैं। संचालक इनको अधिकतर घरों या होटलों में कमरे लेकर चला रहे हैं। एक केंद्र कमा जाता है एक से दो लाख : एक माह की बात करें, तो एक केंद्र का संचालक एक से दो लाख रुपये कमाता है। इन केंद्रों के बीच कुछ बेहतरीन केंद्र भी है तथा इनमें फीस की जगह केवल डोनेशन का प्रावधान है लेकिन इनकी संख्या कम है। सरकार का नहीं ध्यान : पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोग मानते हैं कि हिमाचल अब विश्व में ध्यान व योग का हब बनने लगा है। इसका यहां कारोबार करोड़ों में पहुंच चुका है। हाथ देखने की कई विद्याओं व रेकी के सहारे भी यहां योग साहित्य व ध्यान सीडी की बिक्री भी अलग से हो रही है। ताज्जुब की बात है कि यहां यह कारोबार तो बढ़ रहा है, लेकिन इस पर प्रदेश सरकार या पर्यटन विभाग का कोई प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष नियंत्रण नहीं है। इससे यहां हिमाचल के लोगों की जगह बाहर के लोग ही सबसे अधिक चांदी कूट रहे हैं तथा सरकार को भी कुछ नहीं मिल रहा है।
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