"जब कोई देश को गाली देता है तो वस्तुतः उसके लोगों को ही गाली देता है। देश का अर्थ उस से लोगों से जुदा कुछ नहीं होता। जिस तरह अगर कोई किसी अन्य के ईश्वर को गाली देता है तो वस्तुतः उसे ही गाली देता है क्योंकि उसका ईश्वर उसकी भीतर के सबसे शुभ, सबसे शक्तिमान, और सबसे सुन्दर तत्व की अभिव्यक्ति है।"
अरुंधति उस देश पर तरस खा रही हैं जो लेखकों की आत्मा की आवाज़ को खामोश करता है। उन्हे तरस आता है उस देश पर जो इंसाफ की मांग करनेवालों को जेल भेजना चाहता है जबकि सांप्रदायिक हत्यारे, जनसंहारों के अपराधी, कार्पोरेट घोटालेबाज, लुटेरे, बलात्कारी और गरीबों के शिकारी खुले घूम रहे हैं। यह पूरा सच नहीं है। बहुत सारे साम्प्रदायिक अपराधी, जनसंहारों के अपराधी, कारपोरेट घोटालेबाज़, लुटेरे, बलात्कारी और ग़रीबों के शिकारी पकड़े गए हैं, उन पर मुक़दमें चलाए गए हैं और तमाम को सज़ा भी हुई है और कई मामले प्रक्रिया में है। लेकिन बहुत से ऐसे अपराधी हैं जो खुले घूम रहे हैं, यह भी सच है। लेकिन एक अधूरे सच को एक सम्पूर्ण सत्य की तरह पेश करने वाली अरुंधति की नीयत क्या है, मैं ठीक-ठीक नहीं जानता।
मुझे उनके इस बयान पर वाक़ई ऐतराज़ है। ये सच है कि हमारा देश कोई हमारे सपनों का भारत नहीं है, भारत में तमाम सारी समस्याएं है, भ्रष्टाचार है, विषमताएं हैं, बहुत सारा कूड़ा-करकट है। जिसको लेकर सभी सचेत नागरिक समय-समय पर चिंतित होते रहते हैं। हमारा देश, हमारा समाज कैसे और बेहतर हो, इसकी चिंता करना स्वाभाविक है मगर जो अरुंधति करती हैं उसे अंग्रेज़ी में ‘इण्डिया-बैशिंग’ (यानी भारत की पिटाई) कहते हैं। और अरुंधति ने इस ‘इण्डिया-बैशिंग’ में महारत सी हासिल कर ली है। हम सब अपने देश को कभी-कभी गरियाते हैं मगर अरुंधति का गरियाना एक्स्ट्राशक्ति और एक्स्ट्राआनन्द के साथ होता है। आज तक उनके इस गरियाने पर लोगबाग दुखी भले हुए हों मगर उन पर राज्य या सरकार ने कभी निगाहें टेढ़ी नहीं की। तो वो किस आधार पर उस देश पर तरस खा रही हैं जो लेखकों की आत्मा की आवाज़ को खामोश करता है? उनके इस अनजानेपन को मूर्खता कहा जाय या मक्कारी?
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