
करवटें बदलते रहे सारी रात हम.. इस खूबसूरत गाने की गुनगुनाहट कान में आते ही हर उम्र का व्यक्ति गुनगुना उठता है, तथा उस प्रेमी की तड़प का एहसास करता है जो अपनी पे्रमिका की याद में बड़ी मुश्किल से रात गुजारता है। आजकल कुछ ऐसा ही हाल कांग्रेस के कुछ उन टिकटार्थियों का है जो टिकट की दौड़ में काफी पीछे हैं तथा दिल्ली और चंडीगढ़ जैसे महंगे शहर के होटलों में ठहरे हैं। रात सुबह होने के इंतजार में काट रहे हैं। सुबह होते ही पार्टी के आला नेताओं से मिलने और टिकट की बात पक्की करने की जुगत में जुट जाते हैं, होटलों में रुके इन नेताओं की अपने ही क्षेत्र में कोई खास पहचान नहीं हैं, फिर भी उन्हें टिकट चाहिए। टिकट नहीं मिला तो वे टिकट की घोषणा के साथ ही होटल ही नहीं बल्कि अपने क्षेत्र से भी गायब हो जाएंगे। कांग्रेस में टिकट के लिए मारामारी साफ दिख रही है। कुछ नेता तो बेवजह ही अपने आप को इस मारामारी में शामिल कर रहे हैं। राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक, किसी भी रूप में अभी तक उनकी सक्रियता नहीं देखी गई है जोकि वर्तमान परिवेश में चुनाव लड़ने के लिए महत्वपूर्ण है। फिर भी उन्हें टिकट चाहिए। यमुनानगर जिले की विधानसभा सीटों से ऐसे ही कुछ नेताओं ने कांग्रेस से उम्मीदवारी ठोंकी है और पिछले दो सप्ताह से दिल्ली और चंडीगढ़ के होटलों में अपने कुछ समर्थकों के साथ डेरा जमाए हुए हैं। पार्टी के बड़े नेताओं की कोठियों के चक्कर काट रहे हैं। चर्चा यह भी है कि ऐसे नेताओं की जेबें भी होटलों के किराये व सहयोगियों पर होने वाले खर्च में खाली होने लगी है। अब वे अपने रिश्तेदारों व दोस्तों से पैसे का जुगाड़ करने को कह रहे हैं। जहां पार्टी के बड़े-बड़े धुरंधरों को अपनी टिकट बचानी मुश्किल हो रही है, वहां ऐसे नेताओं की क्या औकात है, फिर भी वे अपने जानकारों व रिश्तेदारों को गुमराह कर रहे हैं कि बस नेताजी से बात हो गई है, उनकी टिकट फाइनल है। उनके नाम की घोषणा होते ही पैसे की कमी भी नहीं होगी, चंदे के रूप में बहुत पैसा इकट्ठा हो जाएगा, लेकिन उन्हें पता होना चाहिए कि चंदे में टिकट नहीं मिलता भाई।
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