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गुरुवार, 15 अक्टूबर 2009

पीओके में पैर रखने से बाज आए चीन


नई दिल्ली( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)- प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर चीन की चिकचिक से चिढ़े भारत ने बुधवार को मौका पाते ही जोरदार पलटवार किया। वह भी उसी की जुबान में। गुलाम कश्मीर में कारोबारी सक्रियता बढ़ाने के लिए भारत ने चीन को उसी अंदाज में झिड़का, जिसमें बीजिंग ने मंगलवार को अरुणाचल पर टिप्पणी की थी। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विष्णु प्रकाश ने कहा, भारत के साथ दीर्घकालिक संबंधों का खयाल कर बीजिंग पाक के नाजायज कब्जे वाले क्षेत्र से अपनी गतिविधियां समेट ले। सन 1947 से ही इस क्षेत्र पर पाक ने कब्जा कर रखा है और इसे लेकर भारत के रुख से चीन अनजान भी नहीं है। गुलाम कश्मीर में बीजिंग की गतिविधियों को लेकर भारत की चिंता से भी चीनी सरकार वाकिफ है। चीनी राष्ट्रपति हू जिंताओ ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी से भेंट के दौरान मंगलवार को कहा था कि चीन गुलाम कश्मीर में चल रही अपनी परियोजनाओं में दिलचस्पी बनाए रखेगा। इस पर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की टिप्पणी का साफ मतलब था कि चीन ने पाकिस्तान को यह आश्वासन सोची- समझी नीति के तहत ही दिया था। अरुणाचल प्रदेश में पीएम की मौजूदगी पर अंगुली उठाने के बाद चीन के शीर्षस्थ नेतृत्व की इस टिप्पणी को भारत की अखंडता पर प्रहार के रूप में देखा गया। भारत ने इसे गुलाम कश्मीर को मान्यता देने की चीनी कोशिश के तौर पर भी देखा। कश्मीरियों को पासपोर्ट की जगह अलग पन्ने पर वीजा देकर चीन ने अपनी गलत मंशा का संकेत पहले ही दे दिया था। अब तो उस पर मुहर ही लगती जा रही है। अरुणाचल मामले में प्रतिक्रिया देते हुए चीन ने जिस तरह भारत को संबंधों की दुहाई दी थी, दिल्ली ने भी उसे उन्हीं संबंधों की याद ताजा कराई। संकेत दे दिया गया कि रिश्तों को लंबे समय तक चलाने के लिए ऐसी हरकतों से बाज आना होगा। दरअसल, विदेश मंत्रालय ने चीन की असलियत सामने लाने की कोशिश की है। बीजिंग को दोहरा गुनाह याद दिलाने के मकसद से विदेश मंत्रालय का बयान काफी अहम था। भारत के अखंड हिस्से पर हक जमाने का गुनाह तो चीन कर ही रहा है, वह गुलाम कश्मीर के उस विवाद को जटिल बनाने पर भी तुला हुआ है जो पूरी तरह से द्विपक्षीय है।

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