
नई दिल्ली अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन की साजिश का ताजा प्रमाण मंगलवार को दुनिया के सामने आ गया। राज्य में विस चुनाव के मतदान वाले दिन ही उसने नाहक एक मुद्दा उठाया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सूबे के दौरे पर बीजिंग ने आंखें तरेर दीं। अरुणाचल पर अपना दावा ठोंकने वाले चीन को सूबे में चुनाव जैसी लोकतांत्रिक प्रक्रिया फूटी आंख नहीं सुहा रही थी। मजबूरी यह भी थी कि वह इसका सीधे- सीधे विरोध भी नहीं कर पा रहा था। लिहाजा अपने इस विरोध का इजहार करने के लिए उसने यह तरीका चुना। राज्य में प्रधानमंत्री की चुनावी रैली दस दिन पहले हुई थी, लेकिन चीन ने उस पर आपत्ति जताने के लिए मंगलवार को वोटिंग का दिन चुना। भारत के शीर्षस्थ नेतृत्व की अरुणाचल यात्रा पर अंगुली उठा कर चीन ने सीधे-सीधे यह संदेश दे दिया है कि अरुणाचल भारत का हिस्सा है ही नहीं। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बड़े तल्ख अंदाज में अपनी बात कही। उन्होंने कहा कि इस विवादास्पद क्षेत्र में भारतीय नेता की यात्रा पर उनके मुल्क को गहरी आपत्ति है। भारतीय पक्ष चीन की गंभीर चिंता पर ध्यान दे और विवादित क्षेत्र में अड़चन पैदा न करे ताकि दोनों मुल्कों के बीच रिश्ते मजबूत किए जा सकें। चीन की इस हरकत पर भारतीय खेमे ने भी काफी सटीक प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विष्णु प्रकाश ने पलटवार में कहा, इस तरह की टिप्पणी भी सीमा विवाद हल करने में कोई मदद करने वाली नहीं है। विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा और प्रकाश दोनों ने ही चीन को संदेश दे दिया कि अरुणाचल भारत का अभिन्न हिस्सा है। इसके लिए भारतीय खेमे ने मतदान का सहारा भी लिया। सूबे में सत्तर फीसदी लोग मतदान में हिस्सा ले रहे हैं, क्या यह चीन को सटीक जवाब नहीं है? चीन के बयान पर औपचारिक विरोध भी दर्ज कराया गया। भारत में चीन के राजदूत झांग यान को साउथ ब्लाक तलब कर विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (पूर्व एशिया) विजय गोखले ने उनके मुल्क से आई प्रतिक्रिया पर गहरी आपत्ति जताई। विदेश मंत्रालय प्रवक्ता ने चीन के कथन पर गहरी निराशा व्यक्त की और कहा, कहीं भी चुनाव में भारतीय नेता देश के दौरे इसी तरह करते हैं। उन्होंने कह दिया कि भारत और चीन संयुक्त तौर पर इस बात के लिए राजी हुए थे कि दोनों सरकारों द्वारा नियुक्त विशेष प्रतिनिधि सीमा के सवाल पर चर्चा करेंगे और बीजिंग का इस तरह का बयान प्रक्रिया में सहयोग नहीं करता। जाहिर है, यह चीन के प्रवक्ता को ही जवाब था जिन्होंने भारत को रिश्ते सुधारने के लिए सहयोग करने को कहा था। इससे पहले चीन ने राष्ट्रपति के अरुणाचल दौरे पर इसी तरह से आपत्ति जताई थी। हाल ही में चीनी दूतावास की ओर से जम्मू-कश्मीर के के नागरिकों को पासपोर्ट पर वीजा स्टांप लगाने की जगह अलग कागज पर वीजा जारी करने का मामला सामने आया था। वह अक्सर अलग-अलग तरीके से भारत की राह में रोड़े अटकाता रहा है।
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