

....और ताऊ तबीयत ठीक सै ना., ताऊ राम-राम, रै ताऊ नै कुर्सी दे। कुछ ऐसे ही वाक्य आजकल चुनाव मैदान में डटे प्रत्याशियों के कार्यालयों में खूब सुनने को मिल रहे हैं। गांव में तो कहानी इससे भी आगे बढ़कर है। ताऊ मेरी नैया पार लगा दे, आगे तो तेरी बल्ले-बल्ले कर दूंगा, चाय, बीड़ी और सिगरेट की कमी नहीं होने दूंगा। इस शब्द के साथ प्रत्याशी बुजुर्गो के पैर छूकर आशीर्वाद लेना नहीं भूल रहे हैं। बुजुर्गो को भी पता है कि चुनावी धुआं शांत होते ही, चुनावी चाय वाले चूल्हे बुझ जाएंगे, हाथ में माचिस तो होगी पर सुलगाने के लिए सिगरेट या बीड़ी नहीं होगी। चुनावी कार्यालयों में चाय, पानी से लेकर सिगरेट व बीड़ी का भी पूरा इंतजाम बुजुर्गो के लिए किया गया है। एक ऐसे ही चुनावी कार्यालय में बैठे बुजुर्ग, प्रत्याशी द्वारा किए गए इस चुनावी इंतजाम का मजा ले रहे थे कि जन संपर्क करने के बाद प्रत्याशी भी कुछ देर के लिए वहां पहुंचे। प्रत्याशी ने वहां बैठे बुजुर्गो से हाल चाल पूछने के बाद, चुनाव में अपनी स्थिति के बारे में भी पूछा। बुजुर्गो ने भी एक स्वर में जवाब दिया कि बेटा बस चारों तरफ तेरी ही बल्ले-बल्ले है। बुजुर्गो की इतनी बात सुन नेताजी गदगद हो गए और बोले तुम सारे ताऊ मेरी नैया पार लगा दो, मैं तुम्हारी बल्ले-बल्ले कर दूंगा। इसके बाद नेताजी बुजुर्गो का आशीर्वाद लेने के बाद आगे अपने चुनाव प्रचार की ओर बढ़ गए। लेकिन चुनावी कार्यालय में बैठे बुजुर्गो की चर्चा इसके बाद शुरू हो गई। एक बुजुर्ग ने कहा कि आज तक म्हारी बल्ले-बल्ले किसी ने भी नहीं की। यह नेता हमारा भला क्या करेंगे जो सिर्फ अपने भले के अलावा किसी और के बारे में नहीं सोचते। चुनाव में म्हारी वोटों की इन्हें जरूरत है। इस समय चाहे जितना सम्मान करालो, इसके बाद पांच साल तक नहीं दिखाई देंगे। फिर हमें अपने घर वालों से मिलने वाले सम्मान पर ही जीना होगा। तब इन नेताओं को हमारे चाय व बीड़ी का बिल्कुल भी ख्याल नहीं होगा। बुजुर्गो की इन चर्चाओं से साफ है कि जनता जिसको वोट देने जा रही है, उसकी असलियत से रूबरू है। किंतु फिर भी वोट उसकी को देंगे, क्योंकि उनका अनुभव पुराना है, ऐसे ही नेताओं की कतार है, यह तो उनके मोहल्ले व गांव का है, कुछ तो करेगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें