इकबाल सिंह शांत
क्या पानी के बिना जीवन संभव हैं इसका उत्तर नहीं होगा। लेकिन अगर धरती का जल ही जहरीला हो जाए फिर जीवन कैसे बचेगा। कम से कम पांच दरिया वाली धरती पंजाब में तो भू-जल की स्थिति बेहद ङ्क्षचताजनक है। सूबे के तीन जिलों मुक्तसर, बठिण्डा ओर लुधियाना में नार्ईट्रेट की मात्रा बेइंतहा बढ़ चुकी है। इस जहरीले पानी के इस्तेमाल से लोग कैंसर और अन्य घातक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। यह सनसनीखेज खुलासा किसी सरकारी ऐजन्सी से नहीं, बल्कि बेंगलूर के एक गैर सरकारी संगठन ग्रीन पीस इण्डिया ने किया है। पंजाब के तीनों जिलों के विभिन्न गांवों से पानी के नमूनों की जांच के आधार पर ग्रीन पीस द्वारा तैयार रिपोर्र्ट के मुताबिक यह बात भी सामने आई कि इन जिलों में धरती के पानी में नाईटे्रट की खतरनाक मात्रा किसी कुदरती प्रकोप से नहीं बढ़ी है, बल्कि इसके लिए धरती पुत्र किसान सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। जिन्होंने अपनी जमीनों की फसल की पैदावार बढ़ाने के लालच में रासायनिक खादों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया। नतीजतन नाईटे्रट ने मिट्टी को अपना निशाना बनाने के साथ धरती के पानी को भी अपनी चपेट में ले लिया है। उल्लेखनीय है कि पंजाब की धरती का पानी यूरेनियमयुक्त है। अब नाईट्रोजन की अधिकता ओर यूरेनियम के प्रभाव से प्रभावित जिलों में लोग कैंसर व अन्य गंभीर बीमारियों का शिकार बन रहे हैं। रिपोर्ट में लुधियाना, मुक्तसर व बठिण्डा जिलों के खेतों में रासायनिक खादों की सबसे अधिक खपत होने की तसदीक की गई है। यह परीक्षण करने के लिए लुधियाना और मुक्तसर में 18-18 और बठिण्डा में 14 धान एवं गेहूं के खेतों से भू-जल के नमूने लिए गए। इस सर्वेक्षण में तीनों जिलों के 9 ब्लॉक और 14 गांव कवर किए गए। जांच के बाद जो नतीजा सामने आया, वो काफी भयावह था। मुख्यमंत्री के गृह जिले मुक्तसर के ब्लॉक गिद्दड़बाहा के गांव दोदा के नमूने में पानी में नाईटे्रट की मात्रा बहुत अधिक, सुरक्षित-निर्धारित मानक पांच मिलीग्राम प्रति लीटर से कहीं ज्यादा 143 पाई गई। बठिण्डा जिले के सीमावर्ती गांव पथराला के भू-जल में भी नाईट्रेट की मात्रा 643 तक दर्ज की गई। जगरांव, लुधियाना व गिद्दड़बाहा के पानी के नमूनों में नाईट्रेट की उच्च उपस्थिति देखी गई। जबकि पायल, फल, रायकोट, मलोट के क्षेत्रों में पानी के नमूनों में नाईट्रेट पाई गई। इन नमूनों की जांच में बठिण्डा के गांव रायकेकलां से लिए गए 7 नमूनों में से तीन में नाईट्रेट की उच्च उपस्थिति 611, 516 व 532 दर्ज की गई। भू-जल के नमूने वाले कुल 14 गांवों में से 8 में नाईट्रेट की उपस्थिति उच्च मात्रा में पाई गई। ग्रीन पीस इण्डिया की कम्युनिकेशन अधिकारी प्रीति हरमन का कहना है कि किसानों द्वारा खेतों में रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग से भू-जल दूषित हुआ है। भू-जल को पीने के लिए उपयोग करने के कारण नाईट्रेट मनुष्य के शरीर में जा रहा है। किसानों द्वारा अपनी फसलों की अधिक मात्रा में नाईट्रेट की तय दर 223 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर से कहीं ज्यादा 322 किलो प्रति हैक्टेयर रासायनिक खादों का उपयोग किया गया। इतनी मात्रा में नाईट्रोजन सीधे तोर पर मनुष्य के स्वासथ्य को प्रभावित करने में सक्षम है। खेतों में रासायनिक खादों का अतयधिक उपयोग न केवल मिट्टी की उर्वरता को नष्ट कर खाद्य उत्पादन को प्रभावित करता है, बल्कि पेयजल को प्रदूषित कर लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डालता है। वैसे भी हरित क्रान्ति के बाद नाइरट्रोजन के बढ़ते प्रकोप से मनुष्य अदूता नहीं है। क्योंकि नाईटे्रटयुक्त फसलें ही मनुष्य के रोजाना खानपान का हिस्सा हैं। वहीं रही सही कसर नाईट्रोजन से दूषित भू-जल पूरी कर रहा है। इससे कैंसर व अन्य गंभीर बीमररियां फैल रही हैं। प्रीति हरमन का यह भी कहना है कि किसान तो अधिक फसल लेने के लालच में रासायनिक खाद का अधिक उपयोग करते हैं। जबकि सरकार इनके दुषपरिणामों से भलिभान्ति परिचित होने के बावजूद हर साल खाद पर सैंकड़ों करोड़ रूपए की सब्सिडी देकर बराबर की जिम्मेदार बनी हुई है। जिसके चलते रासायनिक खादें आम लोगों के लिए मौत का कारण बन रही हैं। उनका कहना है कि सरकार को चाहिए कि रासायनिक खादों पर सैंकड़ों करोड़ रूपए सबिसडी के तोर पर खर्च करने की बजाय वह किसानों को आर्गेनिक खेती के प्रति उत्साहित करें ताकि खेती के जरिए जीवन के साथ खिलवाड़ को बंद किया जा सके। खेती विरासत मिशन के कार्यकारी निदेशक व वरिष्ठ पर्यावरणविद् मदर दत्त भू-जल में नाईट्रोजन की अत्यधिक मात्रा को बड़ा संकट मानते हैं। उन्होंने कहा कि इन जिलों में दूषित भू-जल के कारण कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों ने अपना जाल बिछाया हुआ है। इस क्षेत्र के गांवों में एक-एक घर में कैंसर से पीडि़त एक से ज्यादा मरीज होना आम बात है। जबकि इससे पहले बड़ी संख्या में लोग कैंसर व अन्य नामुराद बीमारियों के कारण अपनी जिन्दगी से हाथ धो चुके हैं। उमिन्दर दत्त कहते हैं, वक्त रहते लोगों को भू-जल के दूषित प्रभाव से मुक्त करने के लिए सरकार को रासायनिक खादों की जगह आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना चाहिए। वह चेताते हैं कि अगर सरकार ने पानी में जहर व किसानों को फॢटलाईजर्स के नुक्सान के प्रति सचेत नहीं किया तो मालवा के घर-घर में अपनी जड़ें फैला रही कैंसर की नामुराद बीमारी एक दिन पूरे पंजाब को निगल जाऐगी। रिपोर्ट में बठिण्डा जिले के जज्जल व ग्याना कैंसर के पिन-प्वाईंट बताए गए हैं। जिसके चलते इन गांवों में बहुत से परिवार कैंसर से तबाह हो चुके हैं। हालात यह हैं कि राजस्थान के बीकानेर में कैंसर का इलाज कराने वाले मरीजों में ज्यादातर पंजाब मालवा क्षेत्र के बठिण्डा व मुक्तसर जिलों के हैं। यही नहीं, मालवा का कैंसर रेलवे पर भ दा गया है। अबोहर से बीकानेर वाया बठिण्डा जाने वाली रेलगाड़ी 339 अप केंसर ट्रेन के नाम से जानी जाने लगी है। एक अनुमान के मुताबिक एक महीने में सिर्फ बठिण्डा स्टेशन से बीकानेर जाने वाले यात्रियों की संख्या लगभग 200 है। जबकि क्षेत्र के दूसरे शहरों के रेलवे स्टेशनों से बीकानेर जाने वाले मरीजों की गिनती इससे जुदा है। यह भी एक जमीनी सच है कि माली हालत खराब होने के कारण कैंसर से पीडि़त बहुत सारे लोग अपना पूरा इलाज करवाने से भी महरूम हैं। कैंसर की रोकथाम के लिए पंजाब सरकार द्वारा साल भर पहले बठिण्डा के सिविल हस्पताल कॉम्पलैक्स में एक कैंसर हस्पताल का शिलान्यास भी किया गया था लेकिन बात अभी तक उससे आगे नहीं बढ़ पाई। आदेश मेडिकल साइंसेज एण्ड रिसर्च (भुच्चो) निदेशक प्रसीपल (लेफ्टिनेट) डॉ. जीपीआई सिंह कहते हैं कि भू-जल नाईट्रेट ज्यादा होने से मनुष्य में कई तरह के कैंसर के अलावा बच्चों में ब्लू बेबी सड्रोम और गर्भवती महिलाओं में कई तरह की बीमारियां होने का खतरा रहता है। ग्रीन पीस इण्डिया के सहयोग से किए गए इस अभियान के तहत विदेशी वैज्ञानिक टोरांडो ने भू-जल जांच के बारे में सार्वजनिक जानकारी दे कर लोगों को सचेत किया। उन्होंने गांव पथराला के किसान गुरसेवक ङ्क्षसह के खेत में ट्यूबवैल से पानी लेकर विशेष मशीन से मौके पर ही परीक्षण किया। यहां जांच के दौरान भू-जल में नाईट्रेट की मात्रा 582 मिलीग्राम प्रति लीटर पाई गई। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों के अनुसार पानी में 5.2 मिलीग्राम प्रति लीटर तक नाईट्रेट की मौजूदगी स्वास्थ्य के अनुकूल मानी जाती है। उन्होंने बताया कि खेतों में किसानों द्वारा बेहिसाब रासायनिक खाद डालने के कारण नाईट्रेट अब भूमि को पार करके भू-जल में मिल गया है। उल्लेखनीय है कि जब इसी जगह मार्च में भू-जल परीक्षण किया गया था तो उस समय नाईटे्रट की मात्रा मात्र 643 के करीब दर्ज की गई थी। टोरांडों ने चिन्ता जताई कि भू-जल में नाईटे्रट की मात्रा अधिक होने से लागों में कई तरह के कैंसर पुलने के अलावा बच्चों में ब्लू बेबी सड्रोम के लक्षण और गर्भवती महिलाओं में भी चातरनाक बीमारियां पनपने की आशंका रहती है। इस मौके पर मौजूद उमरिन्दर दत्त ने बताया कि ग्रीन पीस से पहले पंजाब सरकार के सहयोग से पीजीआई चंडीगढ़ ने भी कैंसर को लेकर सर्वेक्षण किया था। उन्होंने राय जाहिर की कि टुकड़ों में बंटे अध्ययन से कुछ फायदा होने वाला नहीं। अब जरूरत है केन्द्र व पंजाब सरकार को योजना बनाने की कि वह बठिण्डा में विशेष केन्द्र स्थापित कर पर्यावरण में पैदा हुए असंतुलन से लोगों की सेहत पर पडऩे वाले प्रभाव का पता लगाऐं एवं शोध द्वारा उसका निराकरण करें। उधर सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही गांव पथराला में साल 2009 से लेकर अब तक 13 लोग कैंसर का शिकार हो चुके हैं। गांव की डिस्पैंसरी में तेनात फार्मासिस्ट सुरेश शाद ने बताया कि कैंसर पीडि़तों में से 6 रोगियों की मौत भी हो चुकी है। पीडि़तों में से 6 को पेट, तीन को गले और बाकी को बच्चेदानी का कैंसर था। रासायनिक खादों के नुक्सान से जागरूक हुए जैतों गांव के किसान गुरमेल सिंह ढिल्लों रासायनिक खाद को तैयार कर अपने चार एकउ़ में से दो एकड़ जमीन पर पिछले 6 साल से जैविक खेती कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि जैविक खेती से उत्पन्न फसलें मनुष्य की सुहत के लिजए हानिकारक भी नहीं और इसकी फसल का बाजार में अच्छा मूल्य भी हासिल होता है।
आठ साल में 1347 मौतें
बठिण्डा जिले में कैंसर अब अपना विकराल रूप ले चुका है। जिसकी चपेट में बच्चे व नौजवान भी तेजी से आ रहे हैं। अगर सेहत विभाग के आंकड़ों पर नज़र डाली जाए तो जिले में 28 ऐसे कैंसर रोगियों का पता चला है। जिनकी आयु मात्र 2 वर्ष से लेकर 25 साल की है। इनमें से 2 साल तक की आयु के बच्चों को ब्लॅड कैंसर भी है। जबकि 7 से 14 साल तक की आयु के बच्चे कैंसर के चलते जिन्दा लाश में तबदील हो चुके हैं। कैंसर पीडि़तों के अभिभावक अपने बच्चों के इलाज करवाने के चक्कर में एक तरह से कंगाल हो चुके हैं। जो क्षमतावान है,वह अपने परिवार के कैंसर पीडि़त सदस्यों को राजस्थान के बीकानेर हस्पताल तक ले जाते हैं तथा शेष दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। जिले में कैंसर के मद्देनज़र करवाए गए सर्वेक्षण के अनुसार साल 2001 से 2009 के दौरान कुल 1347 लोग काल का ग्रास बन चुके हैं। जबकि 871 लोग अभी भी कैंसरा के चलते जिन्दगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। इस बददतर स्थिति के बावजूद बठिण्डा में अब राज्य सरकार को ध्यान आया कि यहां कैंसर हस्पताल खोला जाए। उधर जिला प्रशासन के माध्यम से राज्य सरकार ने एक साल के दौरान 166 कैंसर रोगियों को इलाज के लिए 25 लाख रूपए की आथक सहायाता दी। सेहत विभाग के आंकड़ों के अनुसार जिले में साल 2001 से लेकर 2009 के दौरान मरने वाले कैंसर पीडि़त रोगियों में से 623 पुरूष व 724 महिलाऐं थी फिलहाल 240 पुरूष और 631 महिलाओं का उपचार किया जा रहा है। महिला रोगियों में ब्रस्ट व यूराईटिस के मामले सबसे ज्यादा हैं। मुख्यमन्त्री प्रकाश सिंह बादल ने बठिण्डा के सिविल हस्पताल कॉम्लैक्स में मैक्स हैल्थ केयर द्वारा स्थापित कैंसर हस्पताल का शिलान्यास हाल ही में किया है। जिसमें कैंसर व दिल के रोगियों के उपचार के लिए आधुनिक सुविधाऐं होंगी। हालांकि इस हस्पताल में उपचार करवा पाना आम रोगियों के लिए कितना संभव होगा। यह भी जग जाहिर
क्या पानी के बिना जीवन संभव हैं इसका उत्तर नहीं होगा। लेकिन अगर धरती का जल ही जहरीला हो जाए फिर जीवन कैसे बचेगा। कम से कम पांच दरिया वाली धरती पंजाब में तो भू-जल की स्थिति बेहद ङ्क्षचताजनक है। सूबे के तीन जिलों मुक्तसर, बठिण्डा ओर लुधियाना में नार्ईट्रेट की मात्रा बेइंतहा बढ़ चुकी है। इस जहरीले पानी के इस्तेमाल से लोग कैंसर और अन्य घातक बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। यह सनसनीखेज खुलासा किसी सरकारी ऐजन्सी से नहीं, बल्कि बेंगलूर के एक गैर सरकारी संगठन ग्रीन पीस इण्डिया ने किया है। पंजाब के तीनों जिलों के विभिन्न गांवों से पानी के नमूनों की जांच के आधार पर ग्रीन पीस द्वारा तैयार रिपोर्र्ट के मुताबिक यह बात भी सामने आई कि इन जिलों में धरती के पानी में नाईटे्रट की खतरनाक मात्रा किसी कुदरती प्रकोप से नहीं बढ़ी है, बल्कि इसके लिए धरती पुत्र किसान सबसे ज्यादा जिम्मेदार हैं। जिन्होंने अपनी जमीनों की फसल की पैदावार बढ़ाने के लालच में रासायनिक खादों का अंधाधुंध इस्तेमाल किया। नतीजतन नाईटे्रट ने मिट्टी को अपना निशाना बनाने के साथ धरती के पानी को भी अपनी चपेट में ले लिया है। उल्लेखनीय है कि पंजाब की धरती का पानी यूरेनियमयुक्त है। अब नाईट्रोजन की अधिकता ओर यूरेनियम के प्रभाव से प्रभावित जिलों में लोग कैंसर व अन्य गंभीर बीमारियों का शिकार बन रहे हैं। रिपोर्ट में लुधियाना, मुक्तसर व बठिण्डा जिलों के खेतों में रासायनिक खादों की सबसे अधिक खपत होने की तसदीक की गई है। यह परीक्षण करने के लिए लुधियाना और मुक्तसर में 18-18 और बठिण्डा में 14 धान एवं गेहूं के खेतों से भू-जल के नमूने लिए गए। इस सर्वेक्षण में तीनों जिलों के 9 ब्लॉक और 14 गांव कवर किए गए। जांच के बाद जो नतीजा सामने आया, वो काफी भयावह था। मुख्यमंत्री के गृह जिले मुक्तसर के ब्लॉक गिद्दड़बाहा के गांव दोदा के नमूने में पानी में नाईटे्रट की मात्रा बहुत अधिक, सुरक्षित-निर्धारित मानक पांच मिलीग्राम प्रति लीटर से कहीं ज्यादा 143 पाई गई। बठिण्डा जिले के सीमावर्ती गांव पथराला के भू-जल में भी नाईट्रेट की मात्रा 643 तक दर्ज की गई। जगरांव, लुधियाना व गिद्दड़बाहा के पानी के नमूनों में नाईट्रेट की उच्च उपस्थिति देखी गई। जबकि पायल, फल, रायकोट, मलोट के क्षेत्रों में पानी के नमूनों में नाईट्रेट पाई गई। इन नमूनों की जांच में बठिण्डा के गांव रायकेकलां से लिए गए 7 नमूनों में से तीन में नाईट्रेट की उच्च उपस्थिति 611, 516 व 532 दर्ज की गई। भू-जल के नमूने वाले कुल 14 गांवों में से 8 में नाईट्रेट की उपस्थिति उच्च मात्रा में पाई गई। ग्रीन पीस इण्डिया की कम्युनिकेशन अधिकारी प्रीति हरमन का कहना है कि किसानों द्वारा खेतों में रासायनिक खादों के अत्यधिक उपयोग से भू-जल दूषित हुआ है। भू-जल को पीने के लिए उपयोग करने के कारण नाईट्रेट मनुष्य के शरीर में जा रहा है। किसानों द्वारा अपनी फसलों की अधिक मात्रा में नाईट्रेट की तय दर 223 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर से कहीं ज्यादा 322 किलो प्रति हैक्टेयर रासायनिक खादों का उपयोग किया गया। इतनी मात्रा में नाईट्रोजन सीधे तोर पर मनुष्य के स्वासथ्य को प्रभावित करने में सक्षम है। खेतों में रासायनिक खादों का अतयधिक उपयोग न केवल मिट्टी की उर्वरता को नष्ट कर खाद्य उत्पादन को प्रभावित करता है, बल्कि पेयजल को प्रदूषित कर लोगों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डालता है। वैसे भी हरित क्रान्ति के बाद नाइरट्रोजन के बढ़ते प्रकोप से मनुष्य अदूता नहीं है। क्योंकि नाईटे्रटयुक्त फसलें ही मनुष्य के रोजाना खानपान का हिस्सा हैं। वहीं रही सही कसर नाईट्रोजन से दूषित भू-जल पूरी कर रहा है। इससे कैंसर व अन्य गंभीर बीमररियां फैल रही हैं। प्रीति हरमन का यह भी कहना है कि किसान तो अधिक फसल लेने के लालच में रासायनिक खाद का अधिक उपयोग करते हैं। जबकि सरकार इनके दुषपरिणामों से भलिभान्ति परिचित होने के बावजूद हर साल खाद पर सैंकड़ों करोड़ रूपए की सब्सिडी देकर बराबर की जिम्मेदार बनी हुई है। जिसके चलते रासायनिक खादें आम लोगों के लिए मौत का कारण बन रही हैं। उनका कहना है कि सरकार को चाहिए कि रासायनिक खादों पर सैंकड़ों करोड़ रूपए सबिसडी के तोर पर खर्च करने की बजाय वह किसानों को आर्गेनिक खेती के प्रति उत्साहित करें ताकि खेती के जरिए जीवन के साथ खिलवाड़ को बंद किया जा सके। खेती विरासत मिशन के कार्यकारी निदेशक व वरिष्ठ पर्यावरणविद् मदर दत्त भू-जल में नाईट्रोजन की अत्यधिक मात्रा को बड़ा संकट मानते हैं। उन्होंने कहा कि इन जिलों में दूषित भू-जल के कारण कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों ने अपना जाल बिछाया हुआ है। इस क्षेत्र के गांवों में एक-एक घर में कैंसर से पीडि़त एक से ज्यादा मरीज होना आम बात है। जबकि इससे पहले बड़ी संख्या में लोग कैंसर व अन्य नामुराद बीमारियों के कारण अपनी जिन्दगी से हाथ धो चुके हैं। उमिन्दर दत्त कहते हैं, वक्त रहते लोगों को भू-जल के दूषित प्रभाव से मुक्त करने के लिए सरकार को रासायनिक खादों की जगह आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देना चाहिए। वह चेताते हैं कि अगर सरकार ने पानी में जहर व किसानों को फॢटलाईजर्स के नुक्सान के प्रति सचेत नहीं किया तो मालवा के घर-घर में अपनी जड़ें फैला रही कैंसर की नामुराद बीमारी एक दिन पूरे पंजाब को निगल जाऐगी। रिपोर्ट में बठिण्डा जिले के जज्जल व ग्याना कैंसर के पिन-प्वाईंट बताए गए हैं। जिसके चलते इन गांवों में बहुत से परिवार कैंसर से तबाह हो चुके हैं। हालात यह हैं कि राजस्थान के बीकानेर में कैंसर का इलाज कराने वाले मरीजों में ज्यादातर पंजाब मालवा क्षेत्र के बठिण्डा व मुक्तसर जिलों के हैं। यही नहीं, मालवा का कैंसर रेलवे पर भ दा गया है। अबोहर से बीकानेर वाया बठिण्डा जाने वाली रेलगाड़ी 339 अप केंसर ट्रेन के नाम से जानी जाने लगी है। एक अनुमान के मुताबिक एक महीने में सिर्फ बठिण्डा स्टेशन से बीकानेर जाने वाले यात्रियों की संख्या लगभग 200 है। जबकि क्षेत्र के दूसरे शहरों के रेलवे स्टेशनों से बीकानेर जाने वाले मरीजों की गिनती इससे जुदा है। यह भी एक जमीनी सच है कि माली हालत खराब होने के कारण कैंसर से पीडि़त बहुत सारे लोग अपना पूरा इलाज करवाने से भी महरूम हैं। कैंसर की रोकथाम के लिए पंजाब सरकार द्वारा साल भर पहले बठिण्डा के सिविल हस्पताल कॉम्पलैक्स में एक कैंसर हस्पताल का शिलान्यास भी किया गया था लेकिन बात अभी तक उससे आगे नहीं बढ़ पाई। आदेश मेडिकल साइंसेज एण्ड रिसर्च (भुच्चो) निदेशक प्रसीपल (लेफ्टिनेट) डॉ. जीपीआई सिंह कहते हैं कि भू-जल नाईट्रेट ज्यादा होने से मनुष्य में कई तरह के कैंसर के अलावा बच्चों में ब्लू बेबी सड्रोम और गर्भवती महिलाओं में कई तरह की बीमारियां होने का खतरा रहता है। ग्रीन पीस इण्डिया के सहयोग से किए गए इस अभियान के तहत विदेशी वैज्ञानिक टोरांडो ने भू-जल जांच के बारे में सार्वजनिक जानकारी दे कर लोगों को सचेत किया। उन्होंने गांव पथराला के किसान गुरसेवक ङ्क्षसह के खेत में ट्यूबवैल से पानी लेकर विशेष मशीन से मौके पर ही परीक्षण किया। यहां जांच के दौरान भू-जल में नाईट्रेट की मात्रा 582 मिलीग्राम प्रति लीटर पाई गई। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों के अनुसार पानी में 5.2 मिलीग्राम प्रति लीटर तक नाईट्रेट की मौजूदगी स्वास्थ्य के अनुकूल मानी जाती है। उन्होंने बताया कि खेतों में किसानों द्वारा बेहिसाब रासायनिक खाद डालने के कारण नाईट्रेट अब भूमि को पार करके भू-जल में मिल गया है। उल्लेखनीय है कि जब इसी जगह मार्च में भू-जल परीक्षण किया गया था तो उस समय नाईटे्रट की मात्रा मात्र 643 के करीब दर्ज की गई थी। टोरांडों ने चिन्ता जताई कि भू-जल में नाईटे्रट की मात्रा अधिक होने से लागों में कई तरह के कैंसर पुलने के अलावा बच्चों में ब्लू बेबी सड्रोम के लक्षण और गर्भवती महिलाओं में भी चातरनाक बीमारियां पनपने की आशंका रहती है। इस मौके पर मौजूद उमरिन्दर दत्त ने बताया कि ग्रीन पीस से पहले पंजाब सरकार के सहयोग से पीजीआई चंडीगढ़ ने भी कैंसर को लेकर सर्वेक्षण किया था। उन्होंने राय जाहिर की कि टुकड़ों में बंटे अध्ययन से कुछ फायदा होने वाला नहीं। अब जरूरत है केन्द्र व पंजाब सरकार को योजना बनाने की कि वह बठिण्डा में विशेष केन्द्र स्थापित कर पर्यावरण में पैदा हुए असंतुलन से लोगों की सेहत पर पडऩे वाले प्रभाव का पता लगाऐं एवं शोध द्वारा उसका निराकरण करें। उधर सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही गांव पथराला में साल 2009 से लेकर अब तक 13 लोग कैंसर का शिकार हो चुके हैं। गांव की डिस्पैंसरी में तेनात फार्मासिस्ट सुरेश शाद ने बताया कि कैंसर पीडि़तों में से 6 रोगियों की मौत भी हो चुकी है। पीडि़तों में से 6 को पेट, तीन को गले और बाकी को बच्चेदानी का कैंसर था। रासायनिक खादों के नुक्सान से जागरूक हुए जैतों गांव के किसान गुरमेल सिंह ढिल्लों रासायनिक खाद को तैयार कर अपने चार एकउ़ में से दो एकड़ जमीन पर पिछले 6 साल से जैविक खेती कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि जैविक खेती से उत्पन्न फसलें मनुष्य की सुहत के लिजए हानिकारक भी नहीं और इसकी फसल का बाजार में अच्छा मूल्य भी हासिल होता है।
आठ साल में 1347 मौतें
बठिण्डा जिले में कैंसर अब अपना विकराल रूप ले चुका है। जिसकी चपेट में बच्चे व नौजवान भी तेजी से आ रहे हैं। अगर सेहत विभाग के आंकड़ों पर नज़र डाली जाए तो जिले में 28 ऐसे कैंसर रोगियों का पता चला है। जिनकी आयु मात्र 2 वर्ष से लेकर 25 साल की है। इनमें से 2 साल तक की आयु के बच्चों को ब्लॅड कैंसर भी है। जबकि 7 से 14 साल तक की आयु के बच्चे कैंसर के चलते जिन्दा लाश में तबदील हो चुके हैं। कैंसर पीडि़तों के अभिभावक अपने बच्चों के इलाज करवाने के चक्कर में एक तरह से कंगाल हो चुके हैं। जो क्षमतावान है,वह अपने परिवार के कैंसर पीडि़त सदस्यों को राजस्थान के बीकानेर हस्पताल तक ले जाते हैं तथा शेष दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। जिले में कैंसर के मद्देनज़र करवाए गए सर्वेक्षण के अनुसार साल 2001 से 2009 के दौरान कुल 1347 लोग काल का ग्रास बन चुके हैं। जबकि 871 लोग अभी भी कैंसरा के चलते जिन्दगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। इस बददतर स्थिति के बावजूद बठिण्डा में अब राज्य सरकार को ध्यान आया कि यहां कैंसर हस्पताल खोला जाए। उधर जिला प्रशासन के माध्यम से राज्य सरकार ने एक साल के दौरान 166 कैंसर रोगियों को इलाज के लिए 25 लाख रूपए की आथक सहायाता दी। सेहत विभाग के आंकड़ों के अनुसार जिले में साल 2001 से लेकर 2009 के दौरान मरने वाले कैंसर पीडि़त रोगियों में से 623 पुरूष व 724 महिलाऐं थी फिलहाल 240 पुरूष और 631 महिलाओं का उपचार किया जा रहा है। महिला रोगियों में ब्रस्ट व यूराईटिस के मामले सबसे ज्यादा हैं। मुख्यमन्त्री प्रकाश सिंह बादल ने बठिण्डा के सिविल हस्पताल कॉम्लैक्स में मैक्स हैल्थ केयर द्वारा स्थापित कैंसर हस्पताल का शिलान्यास हाल ही में किया है। जिसमें कैंसर व दिल के रोगियों के उपचार के लिए आधुनिक सुविधाऐं होंगी। हालांकि इस हस्पताल में उपचार करवा पाना आम रोगियों के लिए कितना संभव होगा। यह भी जग जाहिर
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