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शनिवार, 27 नवंबर 2010

भजनों पर झूमे श्रद्धालु

डबवाली- स्थानीय रामलीला ग्राऊण्ड में सतगुरू सेवा समिति के तत्त्वाधान विगत 24 तारीख से जारी संगीतमयी सत्संग ''पाँच शाम कन्हैया के नाम कार्यक्रम में बीती रात्रि परम पूज्य साध्वी सुश्री भुवनेश्वरी देवी बटौत कटड़ा वालों ने अपने प्रवचनों में मनुष्य को गौसेवा की महिमा बताते हुए बाबा गौरख नाथ के जन्म का वृतांत सुनाते हुए बताया कि एक दिन की बात है कि एक साधू भिक्षा मांगते हुए एक गृहणी के द्वार पर जा पहुंचा। जब गृहणी ने उदास हृदय से उन्हें भिक्षा देनी चाही तो साधू ने उसकी उदासी का कारण पूछा। गृहणी ने उन्हें अपनी दु:खभरी दास्तां बताते हुए कहा कि मेरे कोई सन्तान नहीं है तथा मेरी उदासी का बस यही एक कारण है। तत्पश्चात साधू ने उसे विभूति देकर सन्तान प्राप्ति का आशीर्वाद दिया तथा वहां से चले गए। जब साधू वहां से चले गए तो वह असमंजस में पड़ गई तथा उसने अपनी व्यथा अपनी सखी सहेलियों को बताई कि कल सायं एक साधू ने उसे विभूति देते हुए सन्तान प्राप्ति का आशीर्वाद दिया है परन्तु अगर वह विधवा होते हुए ऐसा करती हैं तो वह समाज में कलंकित हो जाऐगी। यह सब सुनकर उसकी सखियों ने उसे मशवरा दिया कि यह विभूति गौबर में डालकर कर रख दे, उसने ऐसा ही किया। समय व्यतीत होता गया। 12 वर्ष गुजर जाने के बाद वही साधू उसके द्वार पर भिक्षा लेने पहुंचा। जब उसने भिक्षाम देही की आवाज़ लगाई तो वही स्त्री बाहर आई तो साधू ने आश्चर्य से पूछा कि मैंने तुम्हें विभूति देकर सन्तान प्राप्ति का आशीर्वाद दिया था तथा मैंने सोचा था कि मुझे भिक्षा देने के लिए घर से तुम्हारा बालक आएगा। यह सब सुनकर उसने सारी कहानी अक्षरश: साधू को सुना दी। कहानी सुनने के पश्चात साधू ने कहा कि वह मुझे वहां ले चले जहां उसने गौबर में विभूति रखी है। वहां पहुंचकर साधू ने जब अलख जगाई तो उस गौबर में से एक सुन्दर बालक बाहर आया। यहीं से वह बालक बाबा गौरखनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इससे पूर्व उन्होंने भजनों द्वारा भी उपस्थिति का मार्गदर्शन किया यथा 'सज-धज कर जब मौत की शहजादी आऐगी न सोना साथ जाऐगा न चाँदी साथ जाऐगी।

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