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शनिवार, 27 नवंबर 2010

पुरूषों के साथ महिलाओं के बढ़ते यौन संबंध

प्रियंका जैन
करुणा एक घरेलू महिला है। एक बार संयोगवश पास के फ्लैट में उसका जाना हुआ। वहां उसने अपना स्केच टंगा पाया। पूछने पर उसे पता चला कि फ्लैट में रहने वाले पुरुष ने ही वह स्केच बनाया था। करुणा उस पुरुष से प्रभावित हो गई और उसके घर आने-जाने लगी। दोनों की दोस्ती बढ़ती गई और कुछ हफ्ते बाद ही उनके बीच शारीरिक संबंध भी स्थापित हो गये। अब करुणा हफ्ते में कम से कम तीन बार उसके साथ शारीरिक संबंध बनाती है। यह बात करुणा के पति और बच्ची को मालूम नहीं है। करुणा को अपने पति से शिकायत रहती है कि उसका पति बहुत ही गुस्से वाला आदमी है और उससे या उसकी बेटी से हमेशा डांट-डपट करता है जबकि उसका प्रेमी बहुत ही शांत स्वभाव का नेक पुरुष है। हालांकि उसके प्रेमी के साथ करुणा का न कोई आर्थिक संबंध है और न ही वह अपने घर या बाल-बच्चे की समस्याएं उसके सामने रखती है। करुणा इस संबंध के लिए खुद को दोषी भी मानती है और अपने विवाह और दाम्पत्य संबंध को कायम रखना चाहती है। वह अपने पति को सब-कुछ बता देना चाहती है, लेकिन उसके गुस्सैल होने की वजह से कुछ कह नहीं पाती और चाहती है कि इसी तरह से जिंदगी चलती रहे। करुणा उन महिलाओं में से है जो विवाहेत्तर संबंध के साथ-साथ वैवाहिक संबंध को भी कायम रखना चाहती है।
सोमया एक प्राइवेट कंपनी में काम करती है। एक दिन सोमया की मुलाकात उसी की कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी अनिल से हुई। अनिल ने उसे तुरंत प्रोपोज किया और उसने स्वीकार कर लिया। उन दोनों की शादी हो गई, लेकिन उनके बीच बहुत जल्द दरार पड़ गई। अनिल बच्चा नहीं चाहता था, बहुत अधिक शराब पीता था और दूसरी शादीशुदा महिलाओं के साथ उसके शारीरिक संबंध थे। सोमया जब भी उसके साथ शारीरिक संबंध बनाना चाहती, वह उसे झिड़क देता था। छह वर्षों के बाद सोमया की मुलाकात कमलेश से हुई। वह बहुत ही आकर्षक व्यक्तित्व का पुरुष था। पहली ही मुलाकात में कमलेश ने सोमया को एक होटल चलने के लिए कहा। सोमया तुरंत तैयार हो गई। वहां उन्होंने शारीरिक संबंध स्थापित किया। हालांकि उसके बाद सोमया को थोड़ी ग्लानि अवश्य हुई, लेकिन उसने उस बात को भुला देना ही उचित समझा। कुछ महीने तक तो उन दोनों का संबंध बरकरार रहा, लेकिन उसके बाद सोमया को पता चला कि उसके और भी कई महिलाओं के साथ संबंध हैं तो उसने कमलेश से रिश्ता तोड़ लिया। लेकिन उसके बाद तो सोमया का प्यार का एक सिलसिला ही शुरू हो गया। उसने जितने मर्दों से प्यार किया, कुछ ही महीने में उस मर्द ने उसे धोखा दिया। लेकिन वह उस मर्द को छोड़कर दूसरे मर्द की आगोश में चली जाती है और अब इस सिलसिले का कोई अंत नहीं लगता।
हालांकि कुछ हिलाएं एक बार ठोकर खाने के बाद संभल जाती हैं। कल्पना जब 25 वर्ष की थी तो उसकी शादी उसके प्रेमी के साथ हुई। दो वर्ष के बाद उसके पति ने एक नया बिजनेस शुरू किया। वह ज्यादातर समय घर से बाहर रहने लगा और जब घर में भी होता तो अलग कमरे में पढ़ता-लिखता रहता। इस कारण से एक वर्ष में उन्होंने दो बार ही शारीरिक संबंध स्थापित किये। कल्पना जब अकेले घर में रहते-रहते बोर हो गई तो उसने कम्प्यूटर कोर्स में एडमीशन ले लिया। वह अपने क्लास में अकेली महिला थी। तीसरे दिन इंस्टीच्यूट में उसकी मुलाकात क्लास के एक लड़के से हुई। उन दोनों में दोस्ती हो गई। एक रात क्लास खत्म होने के बाद उसने कल्पना को ड्रिंक के लिए आमंत्रित किया। दोनों ने होटल में ड्रिंक किया और उसने कल्पना को ‘किश’ भी किया। चूंकि कल्पना अपने पति से दूर थी, इसलिए उसे यह अनुभव अच्छा लगा। तीन सप्ताह के बाद उसने कल्पना को एक होटल में बुलाया और वहां शारीरिक संबंध स्थापित किया उसके बाद हर हफ्ते ऐसा होने लगा। करीब एक वर्ष बाद उसने कल्पना को होटल बुलाना छोड़ दिया। इससे कल्पना अंदर ही अंदर घुटने लगी। अंत में उसने सारी बात अपने पति को बता दिया। उसका पति एक नेक इंसान था, उसने कल्पना को समझाया और अपनी गलती भी मानी। आज कल्पना अपने पति के साथ खुश है, लेकिन अपने प्रेमी के साथ बितायी हुई रातें उसे बार-बार याद आती है।
वैष्णवी एक शादीशुदा महिला है, लेकिन शादी के कुछ ही वर्ष बाद उसकी दोस्ती एक शादीशुदा मर्द अजय के साथ हो गई। दोनों का परस्पर एक दूसरे के घर में टेलीफोन करना, अक्सर घर से बाहर मिलना और बाहर रातें बिताना- दोनों के घर वालों से छिपी नहीं रह सकी और दोनों को उसकी कीमत तलाक के रूप में चुकानी पड़ी।
आधुनिक समय में करुणा, सोमया, कल्पना और वैष्णवी जैसी महिलाओं की जिंदगी में आज कोई न कोई दूसरा पुरुष ‘वो’ के रूप में आने लगा है। हालांकि पति, पत्नी और ‘वो’ की धारणा समाज में वर्षों से रही है, लेकिन एक समय ‘वो’ आम तौर पर पति के जीवन का ही हिस्सा हुआ करती थी, परन्तु आज ‘वो’ पत्नी के जीवन का भी हिस्सा बनने लगा है। हालांकि ‘वो’ हमेशा से पति-पत्नी के दाम्पत्य जीवन में जहर घुलने का प्रमुख कारण रहा
है। इसके कारण अनगिनत परिवार बर्बाद हो चुके हैं, अनेक बच्चे अनाथ बन चुके हैं, अनेक पति-पत्नियां मौत की सूली पर चढ़ चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद ‘वो’ हमेशा पति और पत्नी के जबर्दस्त आकर्षण का केन्द्र रहा है।
‘वो’ के कारण होने वाली घटनाओं -दुर्घटनाओं की खबरें अखबारों की सुर्खियां बनती रही हैं, लेकिन आज ये घटनायें-दुर्घटनायें सामान्य बात हो गई हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ‘वो’ आज ज्यादा से ज्यादा महिलाओं के दाम्पत्येत्तर जीवन में प्रवेश करने लगा है।
यह बताना तो मुश्किल है कि कितनी महिलायें दाम्पत्येत्तर संबंध रखती हैं, फिर भी यह अनुमान लगाया गया है कि विश्व में 27 से 50 प्रतिशत महिलायें विवाहेत्तर संबंध रखती हैं, यह अलग-अलग देश, संस्कृति और परिवार के वातावरण पर निर्भर करता है। इनमें से कुछ महिलायें तो अपने ‘वो’ अथवा प्रेमी से सच्चा प्यार करती हैं जबकि कुछ मात्र मन बहलाव के लिए ही विवाहेत्तर संबंध रखती हैं।
आज अगर फिल्मों और टेलीविजन धारावाहिकों को समाज का दर्पण माना जाये तो ये फिल्में और टेलीविजन धारावाहिकें भी समाज में दाम्पत्येत्तर संबंधों के विकास को समझने में सहायक साबित हो सकती हैं। हालांकि भारत में दाम्पत्येत्तर संबंधों पर काफी समय पहले से फिल्में बनती रही हैं, लेकिन पहले की इन फिल्मों में ऐसे संबंधों को दाम्पत्य जीवन व परिवार के लिए घातक ही बताये जातेे रहे हैं और इन फिल्में में कभी भी ऐेसे संबंधों की वकालत नहीं की गई। साथ ही इन फिल्मों में मुख्य तौर पर पतियों के दाम्पत्येत्तर संबंध ही दिखाए गए।
भारत में पहली बार संभवतः प्रसिद्ध निर्देशिका अपर्णा सेन की चर्चित फिल्म ‘परोमा’ में किसी शादीशुदा महिला के दाम्पत्येत्तर संबंध को न केवल दिखाया गया, बल्कि दाम्पत्येत्तर संबंध रखने वाली महिला ‘परोमा’ और उसके फोटोग्राफर प्रेमी के प्रति सहानुभूति प्रदर्शित की गई। अपर्णा सेन कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ी थीं और कम्युनिस्ट पार्टी में भी इस फिल्म को लेकर काफी बहस हुई और इस पार्टी में इस फिल्म की आलोचना की गई।
आज ऐसी फिल्में और धारावाहिकें बड़ी संख्या में बनने लगी हैं जो पत्नियों के दाम्पत्येत्तर संबंधों पर आधारित होती हैं। यही नहीं इन फिल्में में ऐसे दाम्पत्येत्तर संबंधों को औरतों के अधिकार से जोड़ कर इनकी वकालत करने की भी कोशिश की जाती है। टेलीविजन धारवाहिकें तो इस मामले में भारतीय फिल्मों से काफी आगे हैं।
आम तौर पर देखा गया है अधिकतर महिलाएं 30 से 40 वर्ष की उम्र के बाद ही दाम्पत्येत्तर संबंध बनाती हैं। इसके कई कारण हैं। इस उम्र तक वे बच्चे का पालन-पोषण की जिम्मेदारियों से निबट चुकी होती हैं। बच्चे बड़े हो जाते हैं। वे स्कूल -कालेज जाने लगते हैं। पति भी दफ्तर या काम-काज में व्यस्त होते हैं। ऐसे में इन औरतों के पास ऐसे संबंध बनाने के लिये वक्त होता है। पति काम-काज एवं उम्र के दवाब के कारण पत्नी में पहले जैसी रूचि नहीं दिखाता है। वे भावनात्मक तौर पर उपेक्षित महसूस करने लगती हैं। ऐसे में वे समय काटने तथा भावनात्मक एवं शारीरिक सुख और सहारा पाने के लिये किसी पुरुष से संबंध बना लेती हैं। अगर कोई महिला घर से बाहर काम करती हैं तो उनका प्रेमी दफ्तर का ही होता है। लेकिन अगर कोई महिला नौकरी नहीं करती और ज्यादा समय घर में ही रहती है तो उनका प्रेमी पड़ोस का या रिश्ते का कोई व्यक्ति होता है।
अब सवाल यह उठता है कि ये महिलाएं ऐसा क्यों करती हैं? वे अपने दाम्पत्य संबंध को खतरे में डालकर पति और बच्चों का विश्वास तोड़कर अवैध संबंध क्यों बनाती हैं? क्या वे अपने तनाव को दूर करने के लिए या अपनी आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ऐसा करती हैं या वे फिल्मों, उपन्यासों और धारावाहिकों से प्रेरित होकर ऐसा करती हैं या मात्र मनबहलाव के लिए ऐसा करती हैं?
जब किसी पुरुष को यह पता चलता है कि उसकी पत्नी उसे धोखा दे रही है, उसके किसी दूसरे पुरुष के साथ संबंध हैं तो वह इसे सहन नहीं कर पाता और किसी भी कीमत पर अपने वैवाहिक रिश्ते को खत्म कर देना चाहता है। बहुत कम पुरुष ही ऐसे होते हैं जो समझौता करते हैं या पत्नी को समझा-बुझाकर सही रास्ते पर लाने की कोशिश करते हैं। दूसरी तरफ महिलाएं समाज की खातिर या बच्चों की खातिर वैवाहिक संबंध को समाप्त करना नहीं चाहतीं। वे अपनी समस्याओं पर खुलकर पति से बात नहीं करतीं, इस कारण उनकी समस्या दिनोंदिन बढ़ती जाती है। वे पति के सामने अपने अवैध संबंधों को स्वीकार कर पश्चाताप भी नहीं करतीं। ऐसे संबंधों में 50 प्रतिशत प्रेमी-प्रेमिकाओं को या तो अपने पति-पत्नी से अलग होना पड़ता है या तलाक लेना पड़ता है।
हालांकि ऐसे मामलों में तलाक ले लेना कुछ हद तक सही है, क्योंकि एक ही साथ दोनों रिश्तों को कायम रखना मुश्किल है। लेकिन सिर्फ दूसरे
मर्दों के प्रति आकर्षण और अपने क्षणिक शारीरिक सुख के कारण पति और परिवार को धोखा देना तथा अपने बच्चों के भविष्य को दांव पर लगा देना कहां तक उचित है?

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