मुख्यमंत्री ने रक्षात्मक रवैया अपनाया
करनाल, अनिल लाम्बा :पिछले तीन महीनों में जिस तरह से ठंडी पड़ी राजनी
ति में उफान आ रहा है, उसके चलते प्रदेश के सियासी माहौल में परिवर्तन के संकेत मिल रहे हैं। विपक्ष पहली बार सरकार पर हमला करने की स्थिति में आया है। जिस तरह से इनैलो, हजकां और भाजपा ने मिलकर कांग्रेस की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर दिए। मुख्यमंत्री की कार्यशैली को सवालों के कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया, उससे कांग्रेसी बौखला रहे हैं। महंगाई और जेपीसी के मुद्दों पर जिस तरह से कांग्रेस ने केंद्र में विपक्ष के आगे घुटने टेक दिए और रक्षात्मक स्थिति में आ गया, उसी तरह से प्रदेश में भी आने वाले समय में राज्य सरकार विपक्ष के आगे बचाव की मुद्रा में आ जाएगी। प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा को पार्टी के बाहर ही नहीं बल्कि पार्टी के भीतर भी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी के भीतर उनके परम्परागत विरोधी उन्हें राजनीतिक तौर पर परेशान कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस की सुप्रीमो सोनिया गांधी ने हुड्डा को तलब भी किया है। हुड्डा अपनी दूसरी पारी के दौरान कमजोर मुख्यमंत्री साबित हो रहे हैं। जिस तरह से पहली पारी में उन्होंने विपक्ष पर आक्रमण किए थे, उनके हाथों से मुद्दे छीन लिए थे। दूसरी पारी में वह पहली पारी जैसे तेवर नहीं दिखा पाए। हालात यह हैं कि दो साल बीतने को हैं लेकिन अभी तक न तो निगम के पदाधिकारियों की घोषणा की और न ही मुख्यमंत्री ने मंडी कमेटी और मार्कीट कमेटी के अध्यक्षों की घोषणा की। कांग्रेस के भीतर भी मुख्यमंत्री के प्रति असंतोष पनप रहा है। यही कारण है कि कांग्रेस के वरिष्ठ कार्यकत्र्ता घर बैठे हैं। उनकी सत्ता के गलियारों में पूछ नहीं है। कांग्रेस के कार्यकत्र्ताओं के काम नहीं हो रहे। इस संबंध में पार्टी के भीतर उनके विरोधियों ने सोनिया गांधी को वास्तविक स्थिति से अवगत करवा दिया। चर्चा यह भी है कि प्रदेश में बड़ा राजनीतिक फेरबदल हो सकता है। यहां पर कांग्रेस की सुप्रीमो सोनिया गांधी परिवर्तन का आगाज कर सकती हैं। जिस तरह से यू.पी. में आने वाले दिनों में चुनाव हैं, उसके चलते भी यहां पर परिवर्तन इस तरह से हो सकता है, जिससे कि यू.पी. के चुनावों में कांग्रेस को फायदा हो। राजधानी के गलियारों में इस तरह की चर्चाएं आमतौर पर की जा रही हैं। मुख्यमंत्री के तेवर जिस तरह से ढीले हैं, वहीं पर उनके चेहरे पर जो चमक पहली पारी के दौरान दिखाई देती थी, वह अब धूमिल होती जा रही है। इसका फायदा मनोवैज्ञानिक तौर पर विपक्ष को हो रहा है। जमीन के अधिग्रहण, भूमि घोटाले और निर्दलीय विधायकों को लेकर विपक्ष ने जिस तरह से दो-दो हाथ किए हैं, उससे भी कांग्रेस की छवि प्रभावित हुई है।
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