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रविवार, 1 मई 2011

भूसा जलाने वालों की अब खैर नहीं

डबवाली (यंग फ्लेम)जिला में गेहूं कटाई के बाद बचे हुए अवशेषों भूसा जलाने वालों की अब खैर नहीं, क्योंकि भूसा जलाने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने के लिए उपायुक्त युद्धवीर सिंह ख्यालिया सभी पटवारियों और कृषि विभाग के क्षेत्रीय अधिकारियों कर्मचारियों को निर्देश दिए हैं कि वे संबंधित गांव में अपने मुख्यालयों पर रहें और भूसा जलाने वाले व्यक्तियों पर नजर रखें। यदि कोई व्यक्ति भूसा जलाता हुआ पाया जाए तो उसकी रिपोर्ट तुरंत जिला मुख्यालय स्थित बनाए गए कंट्रोल रूम में दें। ऐसे लोगों के खिलाफ पुलिस में मुकद्दमें दर्ज किए जाएंगे। उन्होंने पटवारियों और कृषि विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे जिला मुख्यालय पर बनाए गए कंट्रोल रूम में लिखित रिपोर्ट करें और उसी रिपोर्ट की एक कॉपी संबंधित थाना में दें ताकि उस रिपोर्ट के आधार पर भूसा जलाने वाले व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज किया जा सके। उन्होंने कहा कि यदि कोई पटवारी या कर्मचारी भूसा जलाए जाने की रिपोर्ट विलंब से करता है या नहीं करता तो उसके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने प्रदूषण विभाग के अधिकारियों को भी निर्देश दिए कि वे भूसा जलाने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करें। उन्होंने कहा कि यदि कोई किसान भूसा जलाते हुए पाया जाता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा-188 सपठित वायु बचाव एवं प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम 1981 के तहत कानूनी कार्यवाही की जाएगी जिसमें सजा जुर्माना दोनो हो सकते हैं। इसलिए किसान गेहूं के बचे हुए अवशेष भूसे को जलाएं। उपायुक्त ने किसानों से अपील करते हुए कहा कि वे गेहूं कटाई उपरान्त बचे हुए अवशेष भूसे आदि का सदुपयोग करें। उन्होंने कहा कि अवशेष तूड़ी आदि जलाने से कई बार नुकसान होता है जैसे पर्यावरण दूषित होना, तापमान का बढऩा, विभिन्न प्रकार की बीमारियों का होना, आस पड़ौस के खेतों में पड़ी अन्य चीजों के जलने का खतरा बना रहना, वातावरण में आक्सीजन गैस की कमी होना, तूड़े के रूप में आर्थिक हानि होना, किसान के जो मित्र कीट होते हैं उनका नष्ट होना, सबसे महत्वपूर्ण जमीन की उर्वरा शक्ति का कम होना शामिल हैं। उपायुक्त ने कहा कि किसान भाई अपने बचे हुए भूसे का तूड़ा बनाकर अपने पशुओं को डाल सकते हैं। तूड़े को बेचने से किसान को अतिरिक्त आमदनी होती है विभाग द्वारा विभिन्न प्रकार अनुदानित कृषि यत्रों का उपयोग करके गेहंू धान के भूसे को अपने ही खेत की मिट्टी में मिला दे तो उससे जीवांश की मात्रा बढ़ती है और भूमि की उर्वराशक्ति में सुधार होता है। किसान की पैदावार में बढ़ोतरी होती है। उसकी आय में भी वृद्धि होती है।

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