http://youngflamenews.blogspot.in/2012/03/65.html
डबवाली (यंग फ्लेम) चुनाव चाहे लोकसभा के हों, या विधानसभा के, या फिर स्थानीय निकाय के। हर बार चुनावों में राजनीतिक पंडित या विश्लेषक अपने-अपने अनुमान लगाते हैं। बड़े-बड़े मीडिया ग्रुप, टीवी चैनल आदि प्री-पोल अथवा एग्जिट पोल करवाते हैं। इस बहाने यह अनुमान लगाने की कोशिश की जाती है कि परिणाम क्या रहेगा। अनेक वर्षों से हम देखते आए हैं कि ऐसे एग्जिट पोल मुंह के बल गिरे हैं। मतदाता आजकल बेहद समझदार हो गया है। वह किसी को भी अपने दिल की थाह नहीं देता। ऐसे में यह अंदाजा लगाना बड़ा कठिन हो जाता है कि चुनाव में कौनसा दल विजयी होगा या फिर किसकी सरकार आएगी। हालिया पंजाब विधानसभा चुनाव की बात करें तो सब जानते हैं कि पूरे देश का मीडिया, सभी राजनीतिक जानकार, कांग्रेसी और यहां तक कि कुछ हद तक अकाली व भाजपाई भी अंदरखाने यही कह-सुन रहे थे कि इस बार तो कांग्रेस पार्टी की ही सरकार आएगी। असल में बहुत हद तक उनका अनुमान पंजाब के 46 साल के रिकार्ड पर टिका था। यह रिकार्ड चीख-चीखकर बोल रहा था कि पंजाब में आज तक कभी कोई सरकार दोबारा सत्ता में नहीं आई। यानी 5 साल कांग्रेस तो 5 साल अकाली-बीजेपी। लेकिन असलियत क्या है, वास्तविक परिणाम क्या रहने वाले हैं, उनके पीछे कारक क्या रहेंगे, क्या-क्या फैक्टर काम करेंगे और कौन-कौनसे नहीं करेंगे, इन सब बातों का गहन विश्लेषण किसी ने नहीं किया था। और, जिसने किया, वह आज पूरे पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के इस हिस्से में छा गया है। हालांकि विश्लेषण और भी बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों ने किए, मगर जैसे मां सरस्वती उनकी ही जुबान पर विराजमान होनी थीं। यह हैं, डबवाली निवासी तथा सहारण होटल के संचालक व वरिष्ठ पत्रकार महावीर सहारण। पिछली अनेक बार की तरह इस बार भी पंजाब विधानसभा 2012 चुनावों का परिणाम 6 मार्च को आने से लगभग 72 घंटे पहले श्री सहारण ने 'यंग फ्लेम' के माध्यम से जो राजनीतिक विश्लेषण किया था, वह लगभग अक्षरश: सत्य साबित हुआ है। बादल सरकार की वापिसी किसी करिश्मे से कम नहीं कहीं जा सकती है। तमाम मीडिया, ंजाब की नौकरशाही व प्रदेश की अधिकांश जनता द्वारा यह दावा किया जा रहा था कि कांग्रेस शत-प्रतिशत जीत रही है। लेकिन महावीर सहारण तथ्यों सहित अपनी बात पर अडिग थे कि किसी भी सूरत में कांग्रेस का सत्ता में आना मुमकिन नहीं है। अब चुनाव परिणामों के बाद श्री सहारण से एक विशेष बातचीत हमने 'यंग फ्लेम' के पाठकों के लिये की। प्रस्तुत हैं,
उक्त बातचीत के मुख्य अंश:
सहारण साहब, आपने जो पंजाब की 117 सीटों का आंकलन किया था, यह लगभग पूरी तरह सटीक रहा। यह कैसे संभव हुआ?
मैं विगत 3 दशकों से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान के चुनावों के बारे में आंकलन कर रहा हूं और हर बार मैंने जो आंकलन किया है, उनके नतीजे लगभग उसके मुताबिक ही आये हैं। सबसे पहले मैंने 1980 में उत्तर भारत के जो 9 राज्यों में चुनाव हुए थे, तब चुनाव नतीजों के बारे में नवभारत टाइम्स ने एक प्रश्नावली देकर प्रतियोगिता करवाई थी, जिसमें पूरे देश में मुझे दूसरा स्थान प्राप्त हुआ था। उस समय मेरी उम्र मात्र 15 वर्ष थी तथा इसके बाद मैं लगातार जहां भी चुनाव हो रहे होते हैं, उन हल्कों में खड़े उम्मीदवारों की स्थिति, जातिगत समीकरण, भीतरघात, मुख्य पार्टी की करगुजारी, उम्मीदवारों द्वारा चलाया गया चुनाव अभियान आदि प्रत्येक पहलू का बारीकी से अध्ययन करने के बाद उस हल्के का संभावित नतीजा तैयार करता हूं तथा निष्पक्ष रूप से जब यह आंकलन करता हूं, तभी नतीजा सटीक आता है। यह हैरानी की बात है कि पंजाब प्रदेश की सभी सरकारी एजेंसियां, भारत सरकार की सरकारी एजेंसियां और यहां तक कि सभी न्यूज़ चैनल्स का ओपीनियन पोल, सभी समाचार पत्र और अकाली-भाजपा के अधिकांश समर्थक भी राज्य में कांग्रेस सरकार आने की बात कर रहे थे, परंतु हुआ इसके बिल्कुलल उलट। मैंने जो विश्लेषण किया, उसमें हरेक हल्के में कौन उम्मीदवार जीत रहा है और क्यूं जीत रहा है, विस्तार से बताया। अब आप 4 मार्च का 'यंग फ्लेम' पड़े http://youngflamenews.blogspot.in/2012/03/65.html चुनावी नतीजों के साथ मिलान करें, आपको पता लग जाएगा कि चुनावी सर्वेक्षण कितना सटीक रहा है। अगर जिला और माझा-मालवा क्षेत्रवार बात करें, तो इसमें 1 प्रतिशत भी फर्क नहीं है, 100 फीसदी वही बात हुई है।
क्या आपने सारे पंजाब में घूमकर ये विस्तृत आंकलन तैयार किया था या किसी और माध्यम से?
जी नहीं, मैं कहीं नहीं जाता हूं, लेकिन हल्कावाइज फीडबैक विभिन्न सूत्रों से ले लेता हूं तथा क्षेत्र विशेष की आम जनता अपने उम्मीदवारों के बारे में, प्रमुख पार्टी की कारगुजारी के बारे में क्या सोचती है, इसके बारे में मेरा आंकलन, मेरे नतीजे को सही करने में मदद करता है।
हमें याद है कि जब राजस्थान में 1993 में विधानसभा चुनाव हुए थे, तब आपने लिखा था कि गंगानगर विधानसभा सीट से तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत तीसरे नंबर पर रहेंगे, यह केवल आपने ही कहा था। कैसे संभव हो पाई यह सटीक भविष्यवाणी?
उस वक्त श्रीगंगानगर जिले की सभी सीटों का मेरे द्वारा किया गया सर्वेक्षण एक समाचार पत्र में छपा था तथा उस वक्त कोई कतरफा लहर नहीं थी। भादरा, टिब्बी, संगरिया से आज़ाद उम्मीदवार और हनुमानगढ़ से भाजपा दो सीटें पर जीती थी। किसी एक पार्टी की लहर वहां उस वक्त नज़र नहीं आ रही थी, कहीं कांग्रेस जीत रही थी, कहीं भाजपा। जिला श्रीगंगानगर की सभी सीटों का नतीजा मेरे आंकलन के मुताबिक ही रहा। उस वक्त संगरिया के बारे में मैंने लिखा था कि आजाद उम्मीदवार स. गुरजंटसिंह विजयी होंगे, भाजपा के शिवप्रकाश सहारण दो नंबर पर, तत्कालीन विधायक का. हेतराम तीन नंबर पर तथा कांग्रेस प्रत्याशी भजनलाल (तत्कालीन मुख्यमंत्री हरियाणा चौ. भजनलाल के रिश्तेदार) चौथे स्थान पर रहेंगे। जब नतीजा आया तो क्रम यही रहा। श्रीगंगानगर मे तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत के बारे मे आंकलन यही था कि वे तीसरे स्थान पर रहेंगे। कांग्रेस के राधेश्याम तथा जनता दल के सुरेंद्र राठौड़ में 2000 से कम वोटों का मार्जिन रहने का अनुमान लगाया था। नतीजा, राधेश्याम मात्र 1700 वोटों से जीते और भैरोंसिंह स्वत: ही तीसरे नंबर पर चले गये। हालांकि उस आंकलन में यह भी लिखा था कि भैरोंसिंह मौजूदा मुख्यमंत्री हैं और पुन: बनेंगे। लेकिन श्रीगंगानगर से वह पराजित होंगे और फिर से सीएम बने भी।
हमने यह भी सुना था कि पिछले विधानसभा चुनाव में भी आपने पंजाब की सीटों के बारे में अखबारों में छपवाया था और तब भी वही सीटें आई थीं, जो कि आपने पहले से भविष्यवाणी की थी?
मैंने कहा था कि वर्ष 2007 में हुए विधानसभा चुनावों में मालवा बैल्ट में अकाली दल को बुरी तरह से पराजित होना पड़ेगा। हालांकि तब कोई भी इस बात पर विश्वास नहीं कर रहा था तथा बठिंडा, मानसा, मोगा आदि जिलों की मालवा पट्टी में 33 में से शिअद-भाजपा को केवल 5 सीटें ही प्राप्त हुई थीं।
वर्ष 2009 में हरियाणा विधानसभा चुनावों में भी आपने जो भविष्यवाणी की थी, वह एकदम सही बैठी?
हरियाणा विधानसभा चुनाव में सभी सर्वेक्षण व अ$खबारी पंडित चौ. ओमप्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल (इनैलो) को केवल 10-12 सीटों पर ही जीता हुआ मान रहे थे। लेकिन मैंने 32 सीटों पर इनैलो के जीतने का आंकलन किया था तथा भाजपा की 4 सीटों पर विजय दिखाई थी। 10 सीटों पर नज़दीकी मुकाबला बताया था। नतीजा भी हूबहू यही आया।
सहारण साहब, जब आपने बठिंडा से हरमिंद्रसिंह जस्सी के हारने की बात कही तो हमे भी यकीन नहीं हुआ। इस बात पर तो कोई विश्वास कर ही नहीं सकता था कि खुद डेरा सच्चा सौदा मुखी कि समधी होने केबावजूद वो कैसे हार सकते हैं?
बठिंडा से सरूपचंद सिंगला, मानसा से प्रेम मित्तल, संगरूर से प्रकाश गर्ग तथा फरीदकोट से दीप मल्होत्रा, डेरा बस्सी से एन.के.शर्मा, आदमपुर से पवन टिन्नू को चुनाव मैदान में उतारने की रणनीति उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल की थी। उस वक्त इसे कोई भी समझ नहीं पाया था, लेकिन मंैने इसको बखूबी भांप लिया था तथा एक ऐसा वर्ग, जो आम तौर पर कांग्रेस के पक्ष में मतदान करता है, ने जातिगत समीकरणों को तरजीह देते हुए शिअद के पक्ष में भारी मतदान किया। इसलिये इन सभी सीटों पर कांग्रेस की बुरी तरह से पराजय हुई तथा कोई भी आदमी 6 मार्च से पहले इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं था। जहां तक बठिंडा की बात है, डेरा सच्चा सौदा प्रेमी फैक्टर वोट बैंक के खिला$फ गैर डेरा प्रेमी वोट बैंक लामबंद हो गया था तथा उन्होंने उत्साहजनक तरीके से मतदान किया, जोकि सरूप सिंगला की जीत का मुख्य कारण बना।
सहारण जी, आपने मनप्रीत बादल के गिदड़बाहा और मौड़ में तीसरे स्थान पर रहने की बात कही थी और यह बात भी शत-प्रतिशत सच साबित हुई है। इसके साथ ही पीपीपी द्वारा अकाली दल की बजाय कांग्रेस को नुकसान का आपका जो आंकलन था, वो वाकई बिल्कुल सही था और आज कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी द्वारा खुले तौर पर इसे स्वीकार भी किया जा रहा है।
मनप्रीत बादल ने सिर्फ विधानसभा हल्का गिदड़बाहा में ही कांगे्रेस का फायदा किया है, बाकी प्रदेश, खासकर मालवा में उनके द्वारा वामपंथियों से समझौता कांग्रेस की हार का बड़ा कारण बना है। क्योंकि वामपंथी परंपरागत रूप से कंग्रेस के पक्ष में मतदान करते रहे हैं, यह बात मतगणना यानी 6 मार्च से पहले कोई भी समझ नहीं पाया। जबकि मैंने पुरजोर तरीके से मुख्यमंत्री स. बादल साहब, उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल एवं सांसद हरसिमरत कौर बादल को कही कि मनप्रीत फैक्टर ही आपको सत्ता में वापसी करवा रहा है, जबकि आज तो यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी भी हार का ठीकरा पी.पी.पी. पर फोड़ रही हैं, लेकिन 6 मार्च से पहले उनके सलाहकार ये बात नहीं भांप पाये कि मनप्रीत से उन्हें कितना नुकसान होने जा रहा है। उल्टे कांग्रेस तो खुश थी कि मनप्रीत की वजह से शिअद-भाजपा गठबंधन हार रहा है।
भाजपा को कोई भी व्यक्ति 3-4 से अधिक सीटें नहीं दिखा रहा था, आपने ही उसके दहाई का आंकड़ा पार करने की बात कही थी। वो कैसे?
मेरे आंकलन में तो ये भी लिखा है कि भाजपा प्रत्याशी जहां चुनाव लड़ रहे हैं, ऐसी कम से कम 5-6 सीटें हैं, जिस पर कांग्रेस 3 नंबर पर है तथा वह भाजपा को 4-5 पर कैसे समेट सकती है? भाजपा को दर्जन सीटें मिलने के पीछे यही कारण मैंने भांपा। आमतौर पर सट्टा बाजार पर चुनावों के संबंध में लोग विश्वास करतेे हैं, लेकिन इस बार सट्टा बाजार के दावे भी धरे के धरे रह गये, ऐसे नतीजे सामने आये।
लोगों की स्मरण शक्ति बहुत कमजोर है, लोग जल्दी भूल जाते हैं। सट्टा बाजार का आंकलन मेरे मुताबिक कभी भी सही नहीं रहा। वर्ष 2009 में हरियाणा में सट्टा बाजार चौ. चौटाला को 12 सीटेें दर्शा रहा था, जबकि वस्तुत: 32 सीटें आईं। अब 5 मार्च तक सट्टा बाजार पंजाब में शिअद-भाजपा की सरकार बनाने वालों को 1 रू. के 5 रू. दे रहा था। क्या नतीजा आया? शिअद-भाजपा गठबंधन को 68 सीटें मिलीं, जोकि अपने आप में बड़ी जीत कही जा सकती है।
आपके मुताबिक शिरोमणी अकाली दल-भाजपा की हैरतअंगेज जीत के क्या कारण रहे?
मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल लगातार 5 साल तक जनता के बीच में रहे। विकास कार्यों की झड़ी उन्होंने लगाई। हालांकि कांग्रेस यही प्रचार करती रही कि हजारों करोड़ का कर्ज प्रदेश पर है। कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के दावेदार अमरेन्द्रसिंह कभी जनता के बीच नहीं गए तथा उन्हें चुनावी सभाओं में 'खुंडा' भेंट करके कांग्रेसी खुश होते रहे, लेकिन प्रदेश की जनता, जो कि आतंकवाद का दौर झेल चुकी है, ने इसे पसंद नहीं किया। मुख्यमंत्री बादल को सहयोगी के रूप में सुखबीर बादल व सांसद हरसिमरत बादल का भी बड़ा सहारा मिला। एक लाख युवाओं को मैरिट के आधार पर नौकरियां दिए जाने के कारण कांग्रेस द्वारा भ्रष्टाचार केआरोपों को लोगों ने स्वीकार नहीं किया। बाकी तमाम फैक्टर जो जीत का कारण रहे, वे हमने चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में ही दर्शा दिए थे। अब मीडिया उन कारणों के बारे में अपनी लकीर पीट रहा है।
नतीजे आने के बाद जब आप मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल से मिले तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?
मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल, उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल, सांसद हरसिमरत बादल से जब मैं मिला, तो उन्होंने बेहद हैरान होते हुए कहा कि कैसे आपने यह सब बता दिया, जबकि कोई भी इस बात के नजदीक तक नहीं था। मैंने कहा कि मेरे द्वारा किए जाने वाले तथ्यात्मक विश्लेषण की अबकी बार परीक्षा थी तथा परमात्मा ने इस परीक्षा में मुझे पास होने में मदद की है। परमात्मा की कृपा के अलावा कोई ऐसी चीज नहीं थी, जो अबकी बार मेरे द्वारा किए गए सर्वेक्षण को सही साबित कर सके।
डबवाली (यंग फ्लेम) चुनाव चाहे लोकसभा के हों, या विधानसभा के, या फिर स्थानीय निकाय के। हर बार चुनावों में राजनीतिक पंडित या विश्लेषक अपने-अपने अनुमान लगाते हैं। बड़े-बड़े मीडिया ग्रुप, टीवी चैनल आदि प्री-पोल अथवा एग्जिट पोल करवाते हैं। इस बहाने यह अनुमान लगाने की कोशिश की जाती है कि परिणाम क्या रहेगा। अनेक वर्षों से हम देखते आए हैं कि ऐसे एग्जिट पोल मुंह के बल गिरे हैं। मतदाता आजकल बेहद समझदार हो गया है। वह किसी को भी अपने दिल की थाह नहीं देता। ऐसे में यह अंदाजा लगाना बड़ा कठिन हो जाता है कि चुनाव में कौनसा दल विजयी होगा या फिर किसकी सरकार आएगी। हालिया पंजाब विधानसभा चुनाव की बात करें तो सब जानते हैं कि पूरे देश का मीडिया, सभी राजनीतिक जानकार, कांग्रेसी और यहां तक कि कुछ हद तक अकाली व भाजपाई भी अंदरखाने यही कह-सुन रहे थे कि इस बार तो कांग्रेस पार्टी की ही सरकार आएगी। असल में बहुत हद तक उनका अनुमान पंजाब के 46 साल के रिकार्ड पर टिका था। यह रिकार्ड चीख-चीखकर बोल रहा था कि पंजाब में आज तक कभी कोई सरकार दोबारा सत्ता में नहीं आई। यानी 5 साल कांग्रेस तो 5 साल अकाली-बीजेपी। लेकिन असलियत क्या है, वास्तविक परिणाम क्या रहने वाले हैं, उनके पीछे कारक क्या रहेंगे, क्या-क्या फैक्टर काम करेंगे और कौन-कौनसे नहीं करेंगे, इन सब बातों का गहन विश्लेषण किसी ने नहीं किया था। और, जिसने किया, वह आज पूरे पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के इस हिस्से में छा गया है। हालांकि विश्लेषण और भी बड़े-बड़े राजनीतिक पंडितों ने किए, मगर जैसे मां सरस्वती उनकी ही जुबान पर विराजमान होनी थीं। यह हैं, डबवाली निवासी तथा सहारण होटल के संचालक व वरिष्ठ पत्रकार महावीर सहारण। पिछली अनेक बार की तरह इस बार भी पंजाब विधानसभा 2012 चुनावों का परिणाम 6 मार्च को आने से लगभग 72 घंटे पहले श्री सहारण ने 'यंग फ्लेम' के माध्यम से जो राजनीतिक विश्लेषण किया था, वह लगभग अक्षरश: सत्य साबित हुआ है। बादल सरकार की वापिसी किसी करिश्मे से कम नहीं कहीं जा सकती है। तमाम मीडिया, ंजाब की नौकरशाही व प्रदेश की अधिकांश जनता द्वारा यह दावा किया जा रहा था कि कांग्रेस शत-प्रतिशत जीत रही है। लेकिन महावीर सहारण तथ्यों सहित अपनी बात पर अडिग थे कि किसी भी सूरत में कांग्रेस का सत्ता में आना मुमकिन नहीं है। अब चुनाव परिणामों के बाद श्री सहारण से एक विशेष बातचीत हमने 'यंग फ्लेम' के पाठकों के लिये की। प्रस्तुत हैं,
उक्त बातचीत के मुख्य अंश:
सहारण साहब, आपने जो पंजाब की 117 सीटों का आंकलन किया था, यह लगभग पूरी तरह सटीक रहा। यह कैसे संभव हुआ?
मैं विगत 3 दशकों से पंजाब, हरियाणा, राजस्थान के चुनावों के बारे में आंकलन कर रहा हूं और हर बार मैंने जो आंकलन किया है, उनके नतीजे लगभग उसके मुताबिक ही आये हैं। सबसे पहले मैंने 1980 में उत्तर भारत के जो 9 राज्यों में चुनाव हुए थे, तब चुनाव नतीजों के बारे में नवभारत टाइम्स ने एक प्रश्नावली देकर प्रतियोगिता करवाई थी, जिसमें पूरे देश में मुझे दूसरा स्थान प्राप्त हुआ था। उस समय मेरी उम्र मात्र 15 वर्ष थी तथा इसके बाद मैं लगातार जहां भी चुनाव हो रहे होते हैं, उन हल्कों में खड़े उम्मीदवारों की स्थिति, जातिगत समीकरण, भीतरघात, मुख्य पार्टी की करगुजारी, उम्मीदवारों द्वारा चलाया गया चुनाव अभियान आदि प्रत्येक पहलू का बारीकी से अध्ययन करने के बाद उस हल्के का संभावित नतीजा तैयार करता हूं तथा निष्पक्ष रूप से जब यह आंकलन करता हूं, तभी नतीजा सटीक आता है। यह हैरानी की बात है कि पंजाब प्रदेश की सभी सरकारी एजेंसियां, भारत सरकार की सरकारी एजेंसियां और यहां तक कि सभी न्यूज़ चैनल्स का ओपीनियन पोल, सभी समाचार पत्र और अकाली-भाजपा के अधिकांश समर्थक भी राज्य में कांग्रेस सरकार आने की बात कर रहे थे, परंतु हुआ इसके बिल्कुलल उलट। मैंने जो विश्लेषण किया, उसमें हरेक हल्के में कौन उम्मीदवार जीत रहा है और क्यूं जीत रहा है, विस्तार से बताया। अब आप 4 मार्च का 'यंग फ्लेम' पड़े http://youngflamenews.blogspot.in/2012/03/65.html चुनावी नतीजों के साथ मिलान करें, आपको पता लग जाएगा कि चुनावी सर्वेक्षण कितना सटीक रहा है। अगर जिला और माझा-मालवा क्षेत्रवार बात करें, तो इसमें 1 प्रतिशत भी फर्क नहीं है, 100 फीसदी वही बात हुई है।
क्या आपने सारे पंजाब में घूमकर ये विस्तृत आंकलन तैयार किया था या किसी और माध्यम से?
जी नहीं, मैं कहीं नहीं जाता हूं, लेकिन हल्कावाइज फीडबैक विभिन्न सूत्रों से ले लेता हूं तथा क्षेत्र विशेष की आम जनता अपने उम्मीदवारों के बारे में, प्रमुख पार्टी की कारगुजारी के बारे में क्या सोचती है, इसके बारे में मेरा आंकलन, मेरे नतीजे को सही करने में मदद करता है।
हमें याद है कि जब राजस्थान में 1993 में विधानसभा चुनाव हुए थे, तब आपने लिखा था कि गंगानगर विधानसभा सीट से तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोसिंह शेखावत तीसरे नंबर पर रहेंगे, यह केवल आपने ही कहा था। कैसे संभव हो पाई यह सटीक भविष्यवाणी?
उस वक्त श्रीगंगानगर जिले की सभी सीटों का मेरे द्वारा किया गया सर्वेक्षण एक समाचार पत्र में छपा था तथा उस वक्त कोई कतरफा लहर नहीं थी। भादरा, टिब्बी, संगरिया से आज़ाद उम्मीदवार और हनुमानगढ़ से भाजपा दो सीटें पर जीती थी। किसी एक पार्टी की लहर वहां उस वक्त नज़र नहीं आ रही थी, कहीं कांग्रेस जीत रही थी, कहीं भाजपा। जिला श्रीगंगानगर की सभी सीटों का नतीजा मेरे आंकलन के मुताबिक ही रहा। उस वक्त संगरिया के बारे में मैंने लिखा था कि आजाद उम्मीदवार स. गुरजंटसिंह विजयी होंगे, भाजपा के शिवप्रकाश सहारण दो नंबर पर, तत्कालीन विधायक का. हेतराम तीन नंबर पर तथा कांग्रेस प्रत्याशी भजनलाल (तत्कालीन मुख्यमंत्री हरियाणा चौ. भजनलाल के रिश्तेदार) चौथे स्थान पर रहेंगे। जब नतीजा आया तो क्रम यही रहा। श्रीगंगानगर मे तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत के बारे मे आंकलन यही था कि वे तीसरे स्थान पर रहेंगे। कांग्रेस के राधेश्याम तथा जनता दल के सुरेंद्र राठौड़ में 2000 से कम वोटों का मार्जिन रहने का अनुमान लगाया था। नतीजा, राधेश्याम मात्र 1700 वोटों से जीते और भैरोंसिंह स्वत: ही तीसरे नंबर पर चले गये। हालांकि उस आंकलन में यह भी लिखा था कि भैरोंसिंह मौजूदा मुख्यमंत्री हैं और पुन: बनेंगे। लेकिन श्रीगंगानगर से वह पराजित होंगे और फिर से सीएम बने भी।
हमने यह भी सुना था कि पिछले विधानसभा चुनाव में भी आपने पंजाब की सीटों के बारे में अखबारों में छपवाया था और तब भी वही सीटें आई थीं, जो कि आपने पहले से भविष्यवाणी की थी?
मैंने कहा था कि वर्ष 2007 में हुए विधानसभा चुनावों में मालवा बैल्ट में अकाली दल को बुरी तरह से पराजित होना पड़ेगा। हालांकि तब कोई भी इस बात पर विश्वास नहीं कर रहा था तथा बठिंडा, मानसा, मोगा आदि जिलों की मालवा पट्टी में 33 में से शिअद-भाजपा को केवल 5 सीटें ही प्राप्त हुई थीं।
वर्ष 2009 में हरियाणा विधानसभा चुनावों में भी आपने जो भविष्यवाणी की थी, वह एकदम सही बैठी?
हरियाणा विधानसभा चुनाव में सभी सर्वेक्षण व अ$खबारी पंडित चौ. ओमप्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोकदल (इनैलो) को केवल 10-12 सीटों पर ही जीता हुआ मान रहे थे। लेकिन मैंने 32 सीटों पर इनैलो के जीतने का आंकलन किया था तथा भाजपा की 4 सीटों पर विजय दिखाई थी। 10 सीटों पर नज़दीकी मुकाबला बताया था। नतीजा भी हूबहू यही आया।
सहारण साहब, जब आपने बठिंडा से हरमिंद्रसिंह जस्सी के हारने की बात कही तो हमे भी यकीन नहीं हुआ। इस बात पर तो कोई विश्वास कर ही नहीं सकता था कि खुद डेरा सच्चा सौदा मुखी कि समधी होने केबावजूद वो कैसे हार सकते हैं?
बठिंडा से सरूपचंद सिंगला, मानसा से प्रेम मित्तल, संगरूर से प्रकाश गर्ग तथा फरीदकोट से दीप मल्होत्रा, डेरा बस्सी से एन.के.शर्मा, आदमपुर से पवन टिन्नू को चुनाव मैदान में उतारने की रणनीति उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल की थी। उस वक्त इसे कोई भी समझ नहीं पाया था, लेकिन मंैने इसको बखूबी भांप लिया था तथा एक ऐसा वर्ग, जो आम तौर पर कांग्रेस के पक्ष में मतदान करता है, ने जातिगत समीकरणों को तरजीह देते हुए शिअद के पक्ष में भारी मतदान किया। इसलिये इन सभी सीटों पर कांग्रेस की बुरी तरह से पराजय हुई तथा कोई भी आदमी 6 मार्च से पहले इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं था। जहां तक बठिंडा की बात है, डेरा सच्चा सौदा प्रेमी फैक्टर वोट बैंक के खिला$फ गैर डेरा प्रेमी वोट बैंक लामबंद हो गया था तथा उन्होंने उत्साहजनक तरीके से मतदान किया, जोकि सरूप सिंगला की जीत का मुख्य कारण बना।
सहारण जी, आपने मनप्रीत बादल के गिदड़बाहा और मौड़ में तीसरे स्थान पर रहने की बात कही थी और यह बात भी शत-प्रतिशत सच साबित हुई है। इसके साथ ही पीपीपी द्वारा अकाली दल की बजाय कांग्रेस को नुकसान का आपका जो आंकलन था, वो वाकई बिल्कुल सही था और आज कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी द्वारा खुले तौर पर इसे स्वीकार भी किया जा रहा है।
मनप्रीत बादल ने सिर्फ विधानसभा हल्का गिदड़बाहा में ही कांगे्रेस का फायदा किया है, बाकी प्रदेश, खासकर मालवा में उनके द्वारा वामपंथियों से समझौता कांग्रेस की हार का बड़ा कारण बना है। क्योंकि वामपंथी परंपरागत रूप से कंग्रेस के पक्ष में मतदान करते रहे हैं, यह बात मतगणना यानी 6 मार्च से पहले कोई भी समझ नहीं पाया। जबकि मैंने पुरजोर तरीके से मुख्यमंत्री स. बादल साहब, उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल एवं सांसद हरसिमरत कौर बादल को कही कि मनप्रीत फैक्टर ही आपको सत्ता में वापसी करवा रहा है, जबकि आज तो यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी भी हार का ठीकरा पी.पी.पी. पर फोड़ रही हैं, लेकिन 6 मार्च से पहले उनके सलाहकार ये बात नहीं भांप पाये कि मनप्रीत से उन्हें कितना नुकसान होने जा रहा है। उल्टे कांग्रेस तो खुश थी कि मनप्रीत की वजह से शिअद-भाजपा गठबंधन हार रहा है।
भाजपा को कोई भी व्यक्ति 3-4 से अधिक सीटें नहीं दिखा रहा था, आपने ही उसके दहाई का आंकड़ा पार करने की बात कही थी। वो कैसे?
मेरे आंकलन में तो ये भी लिखा है कि भाजपा प्रत्याशी जहां चुनाव लड़ रहे हैं, ऐसी कम से कम 5-6 सीटें हैं, जिस पर कांग्रेस 3 नंबर पर है तथा वह भाजपा को 4-5 पर कैसे समेट सकती है? भाजपा को दर्जन सीटें मिलने के पीछे यही कारण मैंने भांपा। आमतौर पर सट्टा बाजार पर चुनावों के संबंध में लोग विश्वास करतेे हैं, लेकिन इस बार सट्टा बाजार के दावे भी धरे के धरे रह गये, ऐसे नतीजे सामने आये।
लोगों की स्मरण शक्ति बहुत कमजोर है, लोग जल्दी भूल जाते हैं। सट्टा बाजार का आंकलन मेरे मुताबिक कभी भी सही नहीं रहा। वर्ष 2009 में हरियाणा में सट्टा बाजार चौ. चौटाला को 12 सीटेें दर्शा रहा था, जबकि वस्तुत: 32 सीटें आईं। अब 5 मार्च तक सट्टा बाजार पंजाब में शिअद-भाजपा की सरकार बनाने वालों को 1 रू. के 5 रू. दे रहा था। क्या नतीजा आया? शिअद-भाजपा गठबंधन को 68 सीटें मिलीं, जोकि अपने आप में बड़ी जीत कही जा सकती है।
आपके मुताबिक शिरोमणी अकाली दल-भाजपा की हैरतअंगेज जीत के क्या कारण रहे?
मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल लगातार 5 साल तक जनता के बीच में रहे। विकास कार्यों की झड़ी उन्होंने लगाई। हालांकि कांग्रेस यही प्रचार करती रही कि हजारों करोड़ का कर्ज प्रदेश पर है। कांग्रेस के मुख्यमंत्री पद के दावेदार अमरेन्द्रसिंह कभी जनता के बीच नहीं गए तथा उन्हें चुनावी सभाओं में 'खुंडा' भेंट करके कांग्रेसी खुश होते रहे, लेकिन प्रदेश की जनता, जो कि आतंकवाद का दौर झेल चुकी है, ने इसे पसंद नहीं किया। मुख्यमंत्री बादल को सहयोगी के रूप में सुखबीर बादल व सांसद हरसिमरत बादल का भी बड़ा सहारा मिला। एक लाख युवाओं को मैरिट के आधार पर नौकरियां दिए जाने के कारण कांग्रेस द्वारा भ्रष्टाचार केआरोपों को लोगों ने स्वीकार नहीं किया। बाकी तमाम फैक्टर जो जीत का कारण रहे, वे हमने चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में ही दर्शा दिए थे। अब मीडिया उन कारणों के बारे में अपनी लकीर पीट रहा है।
नतीजे आने के बाद जब आप मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल से मिले तो उनकी क्या प्रतिक्रिया थी?
मुख्यमंत्री प्रकाशसिंह बादल, उपमुख्यमंत्री सुखबीर बादल, सांसद हरसिमरत बादल से जब मैं मिला, तो उन्होंने बेहद हैरान होते हुए कहा कि कैसे आपने यह सब बता दिया, जबकि कोई भी इस बात के नजदीक तक नहीं था। मैंने कहा कि मेरे द्वारा किए जाने वाले तथ्यात्मक विश्लेषण की अबकी बार परीक्षा थी तथा परमात्मा ने इस परीक्षा में मुझे पास होने में मदद की है। परमात्मा की कृपा के अलावा कोई ऐसी चीज नहीं थी, जो अबकी बार मेरे द्वारा किए गए सर्वेक्षण को सही साबित कर सके।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें