डबवाली न्यूज़ डेस्क
पीले-गुलाबी व हरे राशनकार्ड बनाने की एवज में वसूली गई राशि को डकारने वाले खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अधिकारियों को आज भी बचाने की कोशिशें की जा रही है।लगभग दो साल से वसूली जा रही राशि को सरकारी खजाने में जमा नहीं करवाया गया। आरटीआई में मामले का खुलासा होने के बाद विभागीय अधिकारियों ने राशि गबन करने वालों को नोटिस देने की नौटंकी की। जिन लोगों ने सरकारी धन का गबन किया, उनके खिलाफ पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाने की बजाए उन्हें गबन की राशि जमा करवाने का नोटिस दिया गया। नोटिस के बावजूद राशि जमा नहीं हुई। ऐसे में फिर से नया नोटिस जारी कर दिया गया। अंतिम नोटिस की अवधि भी 5 अक्टूबर को बीत चुकी है। लेकिन विभाग के अधिकारी आज भी पूरे मामले में दोषियों को बचाने की हरसंभव कोशिश कर रहे है।शुक्रवार को विभाग की ओर से ब्यान जारी कर कहा गया कि सिरसा केंद्र के अधिकारी द्वारा हरे कार्ड बनाने की फीस के रूप में चार लाख रुपये जमा करवा दिए गए है। ऐलनाबाद केंद्र के इंचार्ज द्वारा पहले ही 80,500 रुपये की राशि जमा करवा दी गई थी, जिसकी रसीद उन्होंने परिमंडल कार्यालय में जमा करवा दी है। यानि 16 लाख में से महज 4 लाख 80 हजार 500 रुपये की राशि ही जमा हुई है। शेष राशि की वसूली आज भी बाकी है। मगर, विभागीय अधिकारियों द्वारा गबन करने वालों के खिलाफ कोई कदम उठाने की बजाए उन्हें बचाने की अधिक कोशिश की जा रही है। विभाग की ओर से जारी बयान इस आशय की पुष्टि करता है कि गबनकत्र्ताओं को मोहलत प्रदान की जा रही है?
गबन हुआ सिद्ध तो पुलिस कार्रवाई क्यों नहीं?
राशनकार्ड बनाने की एवज में जो राशि वसूली गई, उसे सरकारी खजाने में जमा करवाया जाना चाहिए था। अधिकारियों ने 13 लाख 65 हजार 85 रुपये जमा करवाए भी लेकिन 16 लाख 11 हजार 395 रुपये डकार गए। लगभग 9 माह पहले इस आशय का खुलासा भी हो चुका था कि अधिकारी राशि डकार रहे है। मगर, विभागीय अधिकारियों ने मामले पर पर्दा डालने की कोशिश की। डकारी गई राशि जमा करवाने से गबनकत्र्ता पाकसाफ नहीं हो जाते? पकड़े जाने पर यदि चोर माल वापस कर देता है तो उसका गुनाह माफ नहीं हो जाता? ऐसे में जिन अधिकारियों की ओर से गबन राशि को जमा करवाया गया है, उनके खिलाफ गबन सिद्ध होता है और उनके खिलाफ विभाग की ओर से पुलिस में एफआईआर दर्ज करवाई जानी चाहिए। इसमें बरती गई ढील गबनकत्र्ताओं के हौंसले बढ़ाएगी, चूंकि पकड़े जाने पर ही पैसा जमा करवाना है। न पकड़े जाने पर पैसा हजम!
आरटीआई ने खोली पोल
खाद्य एवं आपूर्ति विभाग द्वारा पीले, गुलाबी व हरे राशनकार्ड बनाने की एवज में उपभोक्ताओं से राशि वसूली गई थी। भीम कालोनी निवासी प्रेम जैन ने इस संबंध में आरटीआई मांगी और विभाग द्वारा आरटीआई में ही यह जानकारी दी गई कि पीले-गुलाबी व हरे राशनकार्ड बनाने की एवज में उपभोक्ताओं से 29 लाख 76 हजार 480 की राशि वसूली गई है। यह भी बताया कि इसमें से 13 लाख 65 हजार 85 रुपये जमा करवाई है और 16 लाख 11 हजार 395 रुपये की राशि
सरकारी खजाने में जमा नहीं करवाई। इसी गबन राशि की वसूली के लिए विभाग की ओर से नोटिस भेजने की नौटंकी की गई।
3.40 लाख डूबाने की तैयारी!
खाद्य एवं आपूर्ति विभाग की ओर से शुक्रवार को जो बयान जारी किया गया, उसके अनुसार तीन लाख 40 हजार रुपये तो डूबाने की खुद ही तैयारी की गई है। विभाग की ओर से बताया गया कि 13 हजार पीले, 4700 गुलाबी और 12700 हरे राशनकार्ड विभाग से गलत प्रिंट होकर आए थे, जोकि वितरित ही नहीं किए गए। इन कार्डों की राशि तीन लाख 40 हजार रुपये बनती है। ऐसे में 3.40 लाख रुपये का गबन नहीं हुआ।विभाग के दावे को सच माना जाए तो विभागीय अधिकारी यह बताए कि 30 हजार 400 उपभोक्ता पिछले तीन सालों से किस आधार पर डिपूओं से राशन प्राप्त कर रहे है? जबकि उनके राशनकार्ड गलत प्रिंट होने के कारण स्टोर में पड़े है। हकीकत यह है कि इन 30 हजार 400 उपभोक्ताओं को पीले, गुलाबी व हरे राशनकार्ड की एवज में प्रिंट दिया जा चुका है, जिसके आधार पर ही उन्हें राशन प्राप्त हो रहा है। इन उपभोक्ताओं से राशनकार्ड की एवज में शुल्क भी वसूला जा चुका है। विभागीय अधिकारी भले ही 3 लाख 40 हजार रुपये की राशि को डकारने का मंसूबा पाल रहे हों, लेकिन यह कभी कामयाब नहीं होने वाला? चूंकि चोरबाजारी के खिलाफ न केवल 30 हजार 400 उपभोक्ता अपनी गवाही देंगे बल्कि इनसे संबंधित डिपू होल्डर भी सच्चाई बयान करेंगे। तब, गबनकत्र्ताओं को शह देने वालों की खाल भी नहीं बच पाएगी?
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