
आखिर वह लम्हा आ ही गया जिसका सभी को इंतजार था। कांग्रेस ने टिकट की घोषणा कर अपने 68 नेताओं के चेहरों पर मुस्कान बिखेर दी। लेकिन इसके साथ ही सैकड़ों को मायूस भी कर दिया। इसके साथ ही कांग्रेस नेतृत्व के सामने कठिन हालात पैदा होने शुरू हो गए हैं जिन्हें टिकट नहीं मिला उनकी प्रतिक्रिया किस तरह की होती है, आने वाले दिनों में सभी के लिए रोचक मसला हो गया है। कुछ बागी दूसरे दलों की ओर रुख कर सकते हैं तो कुछ पार्टी के खिलाफ मैदान में निर्दलीय उतर सकते हैं। चुनाव में कांग्रेस ही सबसे ज्यादा हाट पार्टी है। हुड्डा के शपथ लेने के बाद से पार्टी का ग्राफ लगातार ऊंचा हुआ है। सरकार के बीच के कार्यकाल में कई बार लगा कि प्रदेश में नए, मजबूत समीकरण चुनाव के दौरान प्रभावी रहेंगे। इसमें बसपा व जनहित के बीच दोस्ती को लेकर पंडित सबसे ज्यादा कयासबाजी कर रहे थे। लेकिन चुनाव सिर पर खड़ा है और न तो बसपा मजबूत स्थिति में दिखाई दे रही है और न ही हरियाणा जनहित कांग्रेस। इनेलो और भाजपा भी अकेले ताल ठोंक रही हैं। दोनों ने चुनाव के लिए लंबी चौड़ी रणनीति भी बनाई है। इसका क्या असर रहता है यह चुनाव के बाद ही पता चलेगा। शक नहीं कि आज कांग्रेस सभी पर बढ़त बनाए हुए है। बाहर के नेताओं को तोड़ कांग्रेस में मिलाने की हुड्डा की रणनीति कामयाब रही है। दूसरे दलों की फिजा इससे बिगड़ी है। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। विपक्षी दलों की सोच है कि टिकट तय करना कांग्रेस के लिए वाटर लू सरीखा हो सकता है। नेता का ध्येय येन-केन-प्रकारेण विधायक बनना होता है। कांग्रेस की हवा देखकर ही बहुत सारे नाम इससे जुड़े थे। कांग्रेस हेड क्वार्टर में पांच हजार बायोडाटा टिकट के लिए आए थे। हजारों ने सीधे सीएम और कई दिग्गज नेताओं को अपना जीवन वृत थमाया था। पड़ताल करके नौ सौ के करीब दिल्ली रवाना किए गए थे। राजधानी में लिस्ट और छोटी की गई पर छोटी से छोटी लिस्ट का स्वरूप भी दूसरे दलों की अपेक्षा बहुत बड़ा था। माना जा रहा था कि कांग्रेस नेतृत्व टिकट तय करने में देर इस वजह से भी कर रहा है कि उनके यहां उठने वाले आक्रोश का फायदा विपक्षी को न मिले। नेता मायूस हो भी तो उनके लिए दूसरा चांस न के बराबर हो। नामांकन से दो दिन पहले लिस्ट आ ही गई तो आने वाले कुछ दिन राजनीति के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण रहने वाले हैं। बाहर से आए नेताओं में से दो को ही टिकट मिली है। दूसरी लिस्ट आनी बाकी है। अगर बाहर से आए लोगों को अगले दौर में टिकट मिली तो कांग्रेस से जुड़े नेता मायूस हो सकते हैं। कांग्रेस नेतृत्व इन्हें किस तरह से नियंत्रित करता है। राजनीति के पंडित मानते हैं कि कांग्रेस में सेंध लगाने के लिए विपक्षी दलों ने अपनी कुछ टिकट अभी तक घोषित नहीं की हैं। कुछ नेता दूसरी पार्टियों की तरफ रुख भी कर सकते हैं। उधर, कुछ का मानना है कि जिन के पास जनाधार नहीं है, या फिर जिन्हें अपने बूते चुनाव लड़ने में खतरा है, ऐसे लोग पार्टी के भीतर रहने में ज्यादा दिलचस्पी लेंगे। कांग्रेस सत्ता में लौट आई तो वह नुकसान को दूसरे तरीके से पूरा करने का प्रयास करेंगे। जो नेता असेंबली में बैठने का ख्वाब लिए कांग्रेस में शामिल हुए थे और जिनके पास कुछ बेस है, वह यहां टिकट न मिलने पर दूसरों की तरफ रुख कर सकते हैं। माना जा रहा है कि मजबूत स्थिति का हवाला देकर कांग्रेस नेतृत्व तीखे तेवर वालों को शांत करेगा, उन्हें आश्वस्त करेगा कि सरकार बनने पर वह अच्छे से एडजस्ट किए जाएंगे?
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