
( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)- तेरह साल तक हत्या के आरोपी होने का कलंक और आठ साल की उम्रकैद की सजा काट चुके पांच लोगों को आखिर हाईकोर्ट से न्याय मिल गया है। जीवित व्यक्ति की हत्या के आरोप में झूठे सबूतों के सहारे उम्रकैद की सजा के निचली अदालत के आदेश को हाईकोर्ट ने रद करते हुए पांचों को रिहा करने और उनमें से प्रत्येक को बीस-बीस लाख का मुआवजा देने का पंजाब सरकार को आदेश दिया। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस एमएस गिल व जस्टिस जितेंद्र चौहान की खंडपीठ ने इस मामले पर बुधवार को अपना फैसला सुनाते हुए पंजाब सरकार के मुख्य सचिव को आदेश दिया कि वह हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार के पास एक करोड़ रुपये जमा करवाएं ताकि तीस दिन के भीतर पांचों पीडि़तों को मुआवजा दिया जा सके। हाईकोर्ट ने इस मामले के जांच अधिकारी एसआई सर्बजीत सिंह व एएसआई दर्शन सिंह के खिलाफ मामला दर्ज करके कार्रवाई के आदेश दिए। कोर्ट ने बरनाला के तत्कालीन एसपी व डीएसपी (जो इस समय सेवानिवृत हो चुके हैं) को भी दोषी माना है। इसके साथ ही कोर्ट ने मृतक घोषित जगसीर सिंह (जो वास्तव में जीवित है और भागकर अपने घर से दूर रह रहा था), उसके परिवार के सदस्यों (जिन्होंने किसी और शव की जगसीर सिंह के शव के रूप में शिनाख्त की थी) व इस मामले में झूठे गवाह बने लोगों के खिलाफ भी मामला दर्ज कर जांच करने के आदेश दिए हैं। मामला क्या है : पुलिस रिकार्ड के अनुसार बरनाला निवासी जगसीर सिंह की 1996 में नछत्तर सिंह, शेरा सिंह, अमरजीत सिंह, निक्का सिंह व सुरजीत सिंह ने हत्या कर दी थी। निचली अदालत ने 2001 में इन सभी को कसूरवार करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। याचिकाकर्ता के वकील के अनुसार पंजाब पुलिस ने इन निर्दोष लोगों को सजा दिलाने के लिए यह दावा पेश किया था कि पुलिस ने जो हथियार बरामद किए हैं, उन पर मृतक जगसीर सिंह का खून लगा हुआ है। बचाव पक्ष के वकील ने कोर्ट को बताया था कि इन पांच लोगों को पुलिस ने पांच दिन तक अवैध हिरासत में रखकर उनका लगातार टार्चर किया जिस कारण उनके शरीर से खून निकलने लगा। पुलिस ने वह खून एकत्र कर उन हथियारों पर लगाया और कहा कि यह खून जगसीर सिंह का है। वकील के अनुसार पुलिस इस खून का लैब में टेस्ट भी करवाया लेकिन पुलिस ने जगसीर सिंह के ब्लड ग्रुप से मिलाने की जहमत नहीं उठाई और न ही कोई अन्य रिपोर्ट तैयार करवाई। पुलिस का मकसद केवल हथियारों पर इंसान का खून लगाना था जिससे वह इन लोगों को कातिल साबित कर सके। पुलिस ने दो खून से सने फावड़े, कुल्हाड़ी, प्रापर्टी के फर्जी कागजात, एक ट्रैक्टर व दो फर्जी गवाह जगसीर की हत्या की गुत्थी सुलझाने के लिए सबूत के तौर पर प्रयोग किए थे। इतना ही नही, पुलिस ने अपने केस को पुख्ता करने के लिए इस केस में दो गवाह करनैल सिंह व जगीर सिंह को भी पेश किया जिन्होंने अपने ब्यान में यह स्वीकार किया था कि इन पांच लोगों ने ही जगसीर सिंह की हत्या की है। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने भी इस मामले पुलिस की कार्रवाई पर हैरानी जताते हुए कहा था कि यह बहुत ही दुखद कदम है। सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने कहा था कि इस झूठी कहानी शामिल सभी पुलिस अधिकारियों, गवाह, जगसीर सिंह व उसके घरवालों के खिलाफ मामला आपराधिक मामला दर्ज होना चाहिए। खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में केवल जांच अधिकारी ही नहीं अपितु तत्कालीन एसपी, डीएसपी भी दोषी हैं। 18 सितंबर को हाईकोर्ट ने इस बहस के बाद कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला रिजर्व रख लिया था। उजड़ चुकी है पांचों की दुनिया : जब यह मामला सामने आया कि ये सभी निर्दोष हंै, कोर्ट ने सभी को पैरोल पर रिहा कर दिया था। लेकिन जब पैरोल के बाद बाद शेरा अपने घर गया तो उसकी मां व पत्नी की मौत हो चुकी थी। सुरजीत सिंह की दो बेटी व उसके माता-पिता की इलाज के अभाव में मौत हो चुकी थी। निक्का सिंह की पत्नी ने उसे छोड़कर दूसरा विवाह कर लिया था। अमरजीत सिंह के बच्चों ने रोटी कमाने के चक्कर में अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी। हाईकोर्ट से क्या मांग की थी : पांचों ने अपनी सजा व उन्हें दोषी करार देने के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए इस मामले में दोषी पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी। इनके वकील ने हाईकोर्ट में याचिका में कोर्ट से मांग की थी कि इस मामले में पीडि़त प्रत्येक व्यक्ति को 20 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए व इस मामले की जांच करवाई जाए और दोषी लोगों की सजा दी जाए। इस याचिका के बाद ही पुलिस मृतक व्यक्ति का पता लगाने का आदेश दिया था जिस पर पुलिस ने मृतक व्यक्ति को कोर्ट में पेश किया था।
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