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शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2009

जे मुंडिया वे साढी टौर तूं बेखनी ............


भले ही गायक इंद्रजीत हसनपुरी वीरवार को हमें छोड़ कर चले गए, लेकिन उनके अमर गीत जे मुंडिया वे साढी टौर तूं बेखनी गड़बा ले दे चांदी दा., ढाई दिन न जवानी नाल चलदी कुरती मलमल दी., चरखा मेरा रंगला विच सोने दिया मेखां, वे मैं तैनूं याद करां जदों चरखे वल वेखां. तथा जदों-जदों वी बनेरे बोले कां. हमेशा सर्वत्र गूंजते रहेंगे। बेशक, हसनपुरी का नाम बतौर गीतकार चमकता रहा है, लेकिन उनकी पुख्ता पहचान साहित्यकार, फिल्मकार, चित्रकार व शायर के तौर पर भी है। वे कला को सिर्फ मनोरंजन का साधन ही नहीं अपितु संदेश संप्रेषण व सुधार का सशक्त माध्यम भी मानते थे। रफी, मन्ना डे व शमशाद ने दी उनके गीतों को आवाज : उनके लिखे गीतों की यही विशेषता है कि शमशाद बेगम, मुहम्मद रफी, मन्ना डे, जगजीत सिंह, सुरिंदर कौर, आशा भोंसले, गुरदास मान तथा हंसराज हंस जैसे गायकों को उन्हें सुरों से सजाने में कोई हिचक नहीं हुई। हसनपुरी के लिखे गीत करीब छह दशकों से लोगों की जुबां पर है। कौन पंजाबी भूल सकता है हसनपुरी रचित गीतों को। करीब दो दर्जन पंजाबी व आधा दर्जन हिंदी फिल्मों में उनके गीतों का फिल्मांकन हो चुका है। पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री को भी दिया योगदान : पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री को हसनपुरी ने तीन बेहतरीन फिल्में भी दी हैं। इनमें तेरी-मेरी इक जिंदड़ी, दाज तथा सुखी परिवार शामिल हैं। टेलीफिल्म व धारावाहिक के निर्माण में भी हसनपुरी ने अपनी छाप छोड़ी है। साडा पिंड, उजाड़ दी सफर, मस्यां दी रात को लोग शायद भी भूले होंगे। उनकी फिल्में या धारावाहिक सीधे तौर पर सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती हैं या फिर देशभक्ति की भावना प्रोत्साहित करते हैं। यही वजह रही है कि फिल्म तेरी-मेरी इक जिंदड़ी में धरम भाजी ने मुफ्त काम किया था। ये नए कलाकारों के मसीहा भी रहे हैं। कम से कम दर्जन नाम ऐसे हैं, जिन्हें इन्होंने कला के क्षेत्र में परिचित करवाया। रिक्शा चालक चांदीराम से 1950 में अपना पहला गीत रिकार्ड करवा कर उन्हें गायन व अभिनय के क्षेत्र में स्थापित किया। गजल गायक जगजीत सिंह ने इनके गीत तेरी-मेरी इक जिंदड़ी से पा‌र्श्वगायन की शुरुआत की थी। इनके अतिरिक्त के.दीप, नरिंदर बाबा, वरिंदर, मेहर मित्तल, धीरज कुमार जैसे लोगों को भी स्थापित करने का श्रेय इन्हें प्राप्त है। इनकी निजी जिंदगी उतार-चढ़ाव से भरी रही है। सन 1933 में पैदा हुए हसनपुरी को पिता की मौत के बाद 15 वर्ष की आयु में परिवार से दूर 15 रुपये माह की नौकरी करनी पड़ी थी। वे बताते थे कि उनके पिता स्वर्गीय जसवंत सिंह दिल्ली के तत्कालीन प्रमुख ठेकेदार शोभा सिंह (लेखक व पत्रकार खुशवंत सिंह के पिता) के सहयोगी ठेकेदार थे। गूंजते रहेंगे जे मुंडेया वे साडी टोर तूं वेखणी.. जैसे अमर गीत फिल्म स्टार धमें्रद के साथ इंद्रजीत सिंह हसनपुरी।

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