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रविवार, 4 अक्टूबर 2009
पूरे मोहल्ले के वोटों का सौदा!
( डॉ सुखपाल सावंत खेडा)-
मेरे मोहल्ले में एक हजार वोट है, मोहल्ला वासी मेरे कहने अनुसार ही किसी प्रत्याशी को वोट डालेंगे, मैं मोहल्ले का पूरा वोट आपके पक्ष में डलवा दूंगा, यदि आप कुछ खर्च करते हैं। चुनाव के मौसम का फायदा उठाते हुए वोटों के ठेकेदार इस तरह की सौदेबाजी करने में जुट गए हैं। वे प्रत्याशियों को वोटों का लालच देकर अपनी जेब भरने में जुटे हैं। वहीं प्रत्याशी भी अपनी जीत पक्की करने के लिए हर संभव प्रयास करे रहे हैं, तथा इस तरह के ठेकेदारों को झांसे में आकर उन पर पैसा लुटा रहे हैं। पिछले चुनावों की बात करें तो, चुनाव आयोग का इतना डंडा नहीं होता था। बैनर, पंपलेट व होर्डिग पर प्रत्याशी दिल खोलकर खर्च करते थे। जिस प्रत्याशी के बैनर, पोस्टर व पंपलेट अथवा लोगों की जेबों पर प्रत्याशी या पार्टी के बिल्ले ज्यादा दिखाई देते थे, उसकी जीत का आंकलन करने में आम लोगों को भी दिक्कत नहीं होती थी। लेकिन पिछले दो चुनावों से चुनाव आयोग की सख्ती से यह सब पूरी तरह कंट्रोल हो गया है। जेब पर लगने वाले चुनावी बिल्ले गायब हो गए हैं। प्रत्याशी भी अपनी स्थिति का ठीक से आंकलन नहीं कर पा रहा है। ऐसे में कुछ वोटों के ठेकेदारों की चांदी हो गई है। वे प्रत्याशियों का आंकलन करने लगे हैं, किस मोहल्ले में अमुक प्रत्याशी कितना वोट, और पैसा खर्च कर उस वोट को कैसे मोड़ा जा सकता है, इसके लिए प्रत्याशियों से ठेका कर रहे हैं। यह ठेका वोटों के अनुसार हो रहा है। मोहल्लेवासियों को हवा तक नहीं है, कि उन्हीं के मोहल्ले का एक व्यक्ति पूरे मोहल्ले के वोटों का ठेका कर किसी प्रत्याशी से पैसे ले लिए हैं। क्या ठेकेदार प्रत्याशी से लिए गए पैसे के अनुसार अपने मोहल्ले का उतना वोट उसके पक्ष में डलवा पाएगा। यह प्रत्याशियों को भी नहीं पता है। लेकिन उन्हें जीतना है, ऐसे में उन्हें इन ठेकेदारों पर विश्वास करना पड़ रहा है। वोट के लिए ठेकेदारों द्वारा मांगी गई कीमत भी चुका रहे हैं। कई ठेकेदार ऐसे भी हैं, जो एक नहीं कई-कई प्रत्याशियों को झांसा देकर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं। प्रत्याशियों को समझना चाहिए कि लोगों के बीच उनकी छवि ही उन्हें हरा जिता सकती है। वोटों के ठेकेदार सिर्फ मौके का फायदा उठा सकते हैं, किसी पक्ष या विपक्ष में वोट नहीं डलवा सकते।
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