
विश्व शांति दूत के नए अवतार में आ चुके अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा का हाथ भारत की परमाणु स्वतंत्रता तक पहुंच सकता है। परमाणु हथियारों की होड़ पर अंकुश के लिए ओबामा को शाबासी का प्रतीक माना जा रहा नोबेल पुरस्कार भारत के लिए दंड साबित हो सकता है। यानी परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) और सीटीबीटी का फंदा भारत के गले में कसने की पहले से ज्यादा आक्रामक रणनीति व्हाइट हाउस में बन रही हो तो अचरज नहीं होना चाहिए। अगर इसमें थोड़ा भी शक हो तो ओबामा की कुछ पंक्तियां दूर कर देंगी जो नोबेल की घोषणा के तुरंत बाद उन्होंने अपने बयान में कहीं थीं। मैं नोबल सम्मान को आगे की कार्रवाई के लिए आदेश के तौर पर स्वीकार कर रहा हूं। यह है ओबामा की पहली प्रतिक्रिया। इसके तुरंत बाद की लाइन तो भारत के होश उड़ाने के लिए काफी है। अब परमाणु हथियारों की होड़ को आगे रोकने और सभी नाभिकीय अस्त्रों को ठिकाने लगाने की सख्त जरूरत है। भारतीय कूटनीतिक खेमे को इसके निहितार्थ निकालने में ज्यादा मशक्कत की जरूरत नहीं पड़ी। अमेरिका संग परमाणु करार की रणनीति पर काम कर रहे विदेश मंत्रालय के अफसरों के माथे पर पसीना सब कुछ बयां करता है। एक उच्च पदस्थ अधिकारी ने तो कह भी दिया एनपीटी की पदचाप नजदीक आती सुनाई दे रही है। भारत को इस पर दस्तखत की जगह अमेरिका को अंगूठा दिखाने की ठोस रणनीति बना लेनी चाहिए। आईएईए के प्रमुख अल बरदेई की भारत के रुख पर मुहर इस लिहाज से बड़ा अस्त्र साबित होगी। वैसे एनपीटी की प्रासंगिकता को लेकर भारत विश्व बिरादरी के बीच माहौल बनाने की पूरी तैयारी कर रहा है। वहीं,अफसरों का यह तर्क भी गले उतरता है कि परमाणु अप्रसार का राग लगातार ऊंची करने के पीछे ओबामा का मकसद अपनी आवाज नोबेल पुरस्कार समिति तक ही पहुंचाने का था। इस रणनीति की पुष्टि के लिए साउथ ब्लाक में दो अहम प्रमाणभी पेश किए जा रहे हैं। पहला, इटली में जी-आठ की बैठक में एनपीटी पर दस्तखत की अनिवार्यता वाला प्रस्ताव। दूसरा,एक पखवाड़ा पहले संयुक्त राष्ट्र में एनपीटी व सीटीबीटी को लेकर ऐसा ही दूसरा प्रस्ताव। दोनों का एक ही मकसद है। भारत जैसे एनपीटी पर दस्तखत न करने वाले मुल्कों की परमाणु महत्वाकांक्षा को पूरा होने से रोकना। सूत्रों के अनुसार, नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद ओबामा के पास अब परमाणु मामलों पर भारत से असहमति जताने का नैतिक बल पहले से ज्यादा बढ़ गया है। यानि परमाणु ऊर्जा संवर्द्धन और परमाणु ईधन के दोबारा प्रसंस्करण की तकनीक हासिल करने के नजदीक जा रहे भारत की राह में रोड़ा आ सकता है।
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