
इलेक्ट्रानिक कचरा यानी ई-वेस्ट से पर्यावरण को होने वाले नुकसान की चर्चा जोरों पर है। इन चर्चाओं में मोबाइल फोन का नाम भी जुड़ गया है। बाजार में रोजाना आ रहे नए मोबाइल सेटों के चलते पुराने सेट बेकार होते जा रहे हैं। कूड़ा बन चुके इन सेटों से निकलने वाला जहर पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि 2012 तक धरती पर 8 हजार टन मोबाइल फोन का कचरा जमा हो जाएगा। ग्लोबल कंसलटेंसी डेलोइट के मुताबिक तेजी से बढ़ता सेलफोन कचरा पर्यावरण पर सबसे बड़ा खतरा है जिसका जल्द से जल्द प्रबंधन किए जाने की जरूरत है। एक आकलन के अनुसार तेजी से बदलती तकनीक के चलते हर साल ज्यादा से ज्यादा मोबाइल कूड़े के ढेर बनते जा रहे हैं। डेलोइट कंसलटिंग इंडिया के क्षेत्रीय प्रबंध निदेशक पराग साइगांवकर ने बताया, दोबारा प्रयोग में लाने की उपयुक्त विधि के अभाव में 2012 तक 8 हजार टन मोबाइल का जहरीला कचरा धरती पर जमा हो जाएगा। इसके पर्यावरण व इंसानों पर खासे दुष्प्रभाव पड़ेंगे। भारत में जहां मोबाइल फोन का तेजी से बढ़ता कारोबार है, मोबाइल कचरे पर नियंत्रण के लिए कोई नीति बनाए जाने की जरूरत है। ताकि पारिस्थितिकी पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को रोका जा सके। यह समस्या उस समय शुरू हुई जब अवैध रूप से मोबाइल कचरे को फेंका जाने लगा। मोबाइल फोन से विषैले पदार्थो का रिसाव भूमिगत जल में हो सकता है जो भविष्य में एक बड़ी समस्या बन सकता है। एक अनुमान के मुताबिक 2008-12 के बीच मोबाइल फोन कचरे में नौ फीसदी की बढ़ोत्तरी हो जाएगी। इसमें से 80 फीसदी कचरा पर्यावरण के लिहाज से घातक होगा। साइगांवकर के मुताबिक एशिया, यूरोप और अमेरिका के 65 फीसदी मोबाइल फोन उपभोक्ता दो साल में अपना सेट बदल लेते हैं। मतलब साफ है कि हर दो साल में लगभग 10 करोड़ मोबाइल कूड़े में फेंक दिए जाते हैं।
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