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सोमवार, 2 नवंबर 2009

कैमूर पहाड़ी पर कैद है सम्राट अशोक का शिलालेख


एलेन च अंतलेन जंबुदीपसि। यही वह प्रारंभिक पंक्ति है, जो कैमूर पहाड़ी पर मौजूद मौर्य सम्राट अशोक के लघु शिलालेख पर अंकित है। ब्राह्मी लिपि में लिखित इस पंक्ति का अर्थ है जम्बू द्वीप (भारत) में सभी धर्मो के लोग सहिष्णुता से रहें। आज यह शिलालेख पहाड़ी पर वर्षो से ताले में कैद है। इतिहासकार, पुरातत्वविद् व पर्यटक शिलालेख को पढ़ने की चाहत में थककर पहाड़ी पर पहुंचने के बाद वहां से निराश होकर लौटते हैं। खासकर बौद्ध पर्यटक ज्यादा निराश होते हैं। सासाराम से सटी चंदतन पीर नाम की पहाड़ी पर अशोक महान के इस शिलालेख को लोहे के दरवाजे में कैद कर दिया गया है। इसपर इतनी बार चूना पोता गया है कि इसका अस्तित्व ही मिटने को है। यह स्थल पुरातत्व विभाग के अधीन है, पर इसपर दावा स्थानीय मरकजी दरगाह कमेटी का है, कमेटी ने ही यह ताला जड़ा है। जिला प्रशासन से लेकर राज्य सरकार तक गुहार लगाकर थक चुके पुरातत्व विभाग ने अब इस विरासत से अपन हाथ खड़े कर लिए हैं। इतिहास गवाह है कि सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ई. पूर्व देशभर में आठ स्थानों पर लघु शिलालेख लगाये थे। इनमें से बिहार में एकमात्र शिलालेख सासाराम में है। शिलालेख उन्हीं स्थानों पर लगाए गए थे जहां से होकर व्यापारी या आमजन गुजरते थे। सम्राट अशोक ने यहां रात भी गुजारी थी। ृव्यूठेना सावने कटे 200506 सत विवासता। इस पंक्ति में कहा गया है कि अशोक ने कुल 256 रातें जनता के दु:खदर्द को जानने को महल से बाहर गुजारी थीं। पुरातत्व विभाग के सहायक नीरज कुमार बताते हैं कि चार वर्ष पूर्व आये कुछ बौद्ध पर्यटकों ने तत्कालीन डीएम विवेक कुमार सिंह से मिलकर बंद ताले पर विरोध जताया था। डीएम के स्थिति पर रिपोर्ट मांगने पर विभाग ने पूरी स्थिति स्पष्ट की थी। मई 2009 में पुरातत्व विभाग, पटना ने डीएम, एसपी, एसडीओ को पत्र लिख शिलालेख के संरक्षण की मांग की थी। अफसरों ने वस्तुस्थिति का जायजा लेकर हर पक्षों को सुना था, परंतु मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। फिलवक्त वहां पुरातत्व का एक बोर्ड तक नहीं है, जिससे आम आदमी जान सके कि महत्वपूर्ण शिलालेख यहां है। ... शेष पृष्ठ 17 पर

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