
वाह बिजली कभी-कभी, आह बिजली बार-बार। कभी अनापूर्ति की तबाही तो कभी बिलों की गफलत। काका हाथरसी की वह पंक्ति सटीक बैठती है - बिजली कड़क के बोली, मैं मार दूंगी गोली, अब आप ही बताएं स्विच को दबाएं कैसे..? पूरे उत्तर बिहार में बिजली बिल को लेकर कुछ ऐसा ही आलम बना है। यहां के किसी जिले में मीटर रीडिंग नहीं हो रही और मनमाने तरीके से बिल बनाकर भेजा जा रहा है। आप हैरान होइए, परेशान होइए, पर बिल तो भरना ही होगा। अधिकारी कहते हैं कि मीटर रीडरों की कमी है। मजबूरी है। क्या करें? मुजफ्फरपुर शहर में करीब 42 हजार उपभोक्ता है। इनमें से करीब 10-12 हजार को प्रतिमाह त्रुटिपूर्ण बिल मिलते हैं। कई बार तो रकम जमा करने के बावजूद नए बिल में एरियर के रूप में पुराने बिल को जोड़ दिया जाता है। पहले जब शहरी क्षेत्र में उपभोक्ताओं की संख्या 23 से 24 हजार थी, उस समय मीटर रीडरों की संख्या यहां 20 थी। अब जबकि उपभोक्ता 42 हजार से अधिक हैं तो मात्र 12 मीटर रीडरों से काम चल रहा है। बिहार राज्य विद्युत बोर्ड के प्रावधान के अनुसार एक रीडर प्रतिमाह 1200 मीटरों की रीडिंग करेगा, जबकि अभी एक रीडर को करीब साढ़े तीन हजार मीटर रीडिंग करनी पड़ रही है। गड़बड़ी और विलंब स्वाभाविक है। तिरहुत विद्युत आपूर्ति क्षेत्र के महाप्रबंधक अविनाश कुमार सिंह कहते हैं कि आउटसोर्सिग से मीटर रीडिंग कराने की योजना बनाई जा रही है। सीतामढ़ी में चौबीस घंटे में भले चार घंटे बिजली नसीब नहीं हो, लेकिन बिल के करंट से उपभोक्ता चित्त हैं। शहर तक में एक साल में एक बार भी मीटर की रीडिंग नहीं ली जाती। विभाग हमेशा अंदाजन ही बिल भेजता है। कार्यपालक अभियंता सुधीर कुमार कहते हैं कि सुधार के लिए हर संभव प्रयास किया जाएगा। बेतिया नगर मुख्यालय में मीटर की जांच होती ही नहीं। कारण, रीडर के कई पद खाली हैं। कार्यपालक अभियंता सुखलाल राम कहते हैं कि संबंधित पदाधिकारियों को सूचना दी गई है, लेकिन समाधान नहीं हो पाया है। यहां एक घर में चालीस यूनिट खपत की बात हुई थी, पर हर घर इससे ज्यादा बिजली खपत कर रहा है। मोतिहारी में विभागीय अधिकारी का दो टूक जवाब था, क्या करें, रीडर गिनती के रह गए हैंै। मजबूरी है दो-तीन महीने पर एक बार रीडिंग कराना और एकमुश्त बिल भेजना। मधुबनी विद्युत प्रमंडल के अंतर्गत करीब पचास हजार उपभोक्ता हैं। कुटीर ज्योति कार्यक्रम एवं डीएसआई (देहाती क्षेत्रों का घरेलू कनेक्शन) के तहत बने 37 हजार उपभोक्ताओं के पास मीटर ही नहीं है। ऐसे लोगों को को प्रतिमाह 84.80 रुपये बतौर बिल निर्धारित है। शेष बचे उपभोक्ताओं के घर लगे मीटरों की ही रीडिंग होती है। कार्यपालक अभियंता पीके झा स्वीकार करते हैं कि तीन मीटर रीडर हैं। इनसे प्रतिमाह रीडिंग कराना संभव नहीं है। उधर, झंझारपुर प्रमंडल में भी दो मीटर रीडर के सहारे ही काम चल रहा है। समस्तीपुर का तो जुदा ही आलम है। यहां तो बिजली कनेक्शन के लिए आवेदन देने पर ही बिल आने शुरू हो जाते हैं। जितवारपुर के राजेन्द्र शर्मा, वारिसनगर के भोला पंडित, पूसा के राजेन्द्र पासवान आदि कुछ ऐसे ही भुक्तभोगी हैं। अधीक्षण अभियंता बताते हैं कि ऐसी शिकायतें अब तक उनके पास नहीं आई हैं। वैसे कभी-कभी लैक आफ इंफार्मेशन या कंप्यूटर की गड़बड़ी के कारण ऐसा हो सकता है। दरभंगा में मीटर रीडिंग होते कई सालों से नहीं देखा गया। उपभोक्ताओं को तीन-तीन साल से बिल नहीं भेजा गया है। अब बिल आना तो तय है, लेकिन लोगों के कलेजे कांप रहे हैं कि यह हजारों-हजार में आएगा और उसका भुगतान महंगा होगा। ढाई साल पहले ठेका पर सेवानिवृत जवानों को मीटर रीडिंग के लिए लगाया गया था, लेकिन उनकी रीडिंग पर आपत्तियां होने से उन्हें काम से रोक दिया गया। विभाग कर्मियों की कमी का रोना रोता है और निदान कुछ भी नहीं दिखता।
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