
यह सत्य है, किताबों में छपे हुए कहानी के अंश नहीं। शाहाबाद के गांव दामली के ग्रामीणों में रूढि़वादिता कुछ इस कदर छाई कि वे सर्पदंश से मरे एक व्यक्ति को जीवित करने के फेर में पड़ गए। मुर्दे को जीवित करने का दावा करने वाला कोई महापुरुष नहीं, बल्कि गाजियाबाद से आया एक ओझा था। मृत व्यक्ति को जिंदा करने का खेल बारह घंटे चला, लेकिन ओझा मुर्दे में जान नहीं डाल सका। इसके बाद गांववासियों को समझ आया कि यह तो विधि का विधान और प्रकृति का नियम है। तब कही जाकर मृत व्यक्ति का अंतिम संस्कार किया गया। मामले के अनुसार गत रविवार की शाम दामली का रहने वाले जोगेंद्र सिंह जब खेतों में काम कर रहा था तभी एक सांप ने उसे डस लिया। घबरा कर वह बाइक से घर की ओर भागा, लेकिन कुछ दूर जाने के बाद वह मूर्छित होकर गिर पड़ा। यह देख गांववासी व परिजन वहां इकट्ठे हुए और गांव में ही झाड़ फूंक करने वाले सात व्यक्तियों को वहां पर बुलाकर लाए। कोई बात नहीं बनी और जोगेन्द्र सिंह ने दम तोड़ दिया। इसकी पुष्टि मौके पर पहुंचे चिकित्सक ने भी कर दी। लेकिन गांववासियों के मन में बैठा अंधविश्वास का रावण अभी भी उसके जीवित होने की आस लगाए था। इसी बीच वहां पर पहुंचे हसनपुर के एक बुजुर्ग व्यक्ति ने जोगेंद्र सिंह के परिजनों को सुझाव दिया कि गाजियाबाद में एक ऐसा ओझा है जो सर्पदंश से मृत व्यक्ति को जीवित करने की शक्ति रखता है और अगर उसे बुला लिया जाए तो जोगेंद्र जीवित हो सकता है। इस पर परिजनों ने शव का अंतिम संस्कार न करके उसे बर्फ में रखा और गाजियाबाद से ओझा को बुलाने के लिए गांव से दो व्यक्तियों को भेजा दिया। लगभग 24 घंटे बीतने के बाद गाजियाबाद का ओझा सोमवार शाम सात बजे गांव पहुंचा और एक अलग कमरे में मृत जोगेंद्र को जीवित करने के लिए तंत्र विद्या शुरू कर दी। ओझा के कहने पर गांववासी क्विंटलों आक के पत्ते भी मौके ले आए। लगभग बारह घंटे बीत गए और मंगलवार सुबह सात बजे तक ओझा उसे जीवित नहीं कर सका। इसके बाद शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया।
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