नई दिल्ली-शिक्षा का अधिकार पर राज्यों के तेवर से केंद्र सरकार दबाव में दिखाई देने लगी है। सरकार की मुश्किल से जमीनी हकीकत पर उतारना है। इसमें सबसे बड़ी मुश्किल वित्तीय प्रबंधन है। केंद्र जहां इसका बड़ा जिम्मा राज्यों पर थोपना चाहता है वहीं बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे गैर संप्रग राज्यों की ओर से सौ फीसदी केंद्रीय मदद की मांगें उठने लगी हैं। दबी जुबान संप्रग शासित राज्यों में भी सुगबुगाहट के बाद मानव संसाधन मंत्रालय नए सिरे से वित्तीय समीकरण तय करने पर विचार करने लगा है। शिक्षा के अधिकार को लागू कर केंद्र सरकार ने अपनी पीठ तो थपथपा ली पर राज्यों ने साफ कर दिया है कि सूबे के संसाधन पर केंद्र इसका श्रेय आसानी से नहीं ले पाएगा। गौरतलब है कि केंद्र ने शिक्षा के अधिकार के लिए होने वाली तैयारियों पर राज्य और केंद्र के बीच 55:45 फीसदी वित्तीय भार वहन करने का प्रस्ताव रखा था। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती हों या बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उन्होंने दूसरे ही दिन साफ कर दिया कि वह इसके लिए तैयार नहीं हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कर्नाटक सरकार भी उनके साथ खड़ी नजर आई। अपने सीमित संसाधन का हवाला देते हुए उन्होंने केंद्र से इसका पूरा भार उठाने को कहा है।
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