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गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

जो बच्चा स्कूल का काम नहीं कर पाता वह स्कूल व ट्यूश्न के काम को वक्त कैसे दे सकता है--बांसल

डबवाली-बच्चों के बारह घंटों को बच्चों के ही रहने दें और आठ घंटे स्कूल के स्कूल वालों के पास ही रहने दें केवल शेश चार घंटों के कुश्ल प्रबंधन से ही आप अपने बच्चों को अव्वल बना सकते हैं, ये शब्द सरदार सुच्चा सिंह बांसल ने स्थानीय हरियाणा पब्लिक स्कूल के प्रांगण अभिभावक मिलन कार्यशाला के दौरान अभिभावकों, अध्यापकों एवं प्रबंधक समिति को सम्बोधित करते हुए कहे।उन्होंने कहे कि जरूरत से अधिक बोलना अथवा न बोलना, जरूरत से अधिक सुनना अथवा सुनाना आदि-आदि ऐसे विकार हैं जो अध्यापक द्वारा कक्षा में एक समान शिक्षा देने के बावजूद भी बच्चों के शैक्षिक परिणामों में तथा बौद्धिक क्षमता में बहुत अंतर पाया जाता है। अक्सर बच्चे केवल अध्यापक को सुनते हैं सुनाते नहीं। अध्यापक से पूछते नहीं, अध्यापक की हां में हां मिलाते रहते हैं।
इसका मुख्य दोष वे ट्यूश्न तथा गाइड़ प्रणाली को मानते हैं। जो बच्चा स्कूल का काम नहीं कर पाता वह स्कूल व ट्यूश्न के काम को वक्त कैसे दे सकता है। ट्यूश्न तथा गाइड़ें कन्फूयजऩ पैदा करती हैं। बच्चे के विकास में बाधक बनती हैं। अक्सर बच्चे माता-पिता से स्कूल तथा अध्यापक की शिकायत करते रहते हैं और माता-पिता भी उस शिकायत के आधार पर अध्यापकों के प्रति तथा स्कूल के प्रति कुठांए स्थापित कर लेते हैं जैसे के दूरगामी परिणाम कभी अच्छे नहीं निकलते। उन्होंने कहा कि वे माता-पिता जो अपने बच्चे को अध्यापकों को सौंप देते हैं उनका विकास उसी प्रकार होता है जैसे कृष्ण का हुआ था।
वर्तमान में शिक्षा क्षेत्र की अनेकों समस्याओं को तथा विशेष कर गणित विषय की समस्या का मूल कारण संयुक्त परिवारों का विघटन है। इस कारण से अनेक बच्चे आज प्यार के लिए भटकते रहते हैं और अक्सर पथ विचलित हो जाते हैं। इसके साथ-ही-साथ उन्होंने अभिभावकों को यह जानकारी दी की वे किस प्रकार एचपीएस के बच्चों को समय-समय पर इवैल्यूऐट करेंगे तथा किस प्रकार वे गणित, सांईस आदि विषयों के लिए प्रशिक्षण देंगे।
बच्चों को केवल शैक्षिक दृष्टि से ही न देखें अपितु उनके दिनभर आचार, विचार तथा व्यवहार का भी अवलोकन करें तथा उसे अच्छा देखें नहीं दिखें। विद्यालय जाकर बच्चे की रिपोर्ट लें व दें। प्रत्येक माता-पिता यह प्रयास करेें कि उनका बच्चा प्रतिदिन यह सूचि बनाए कि मुझे यह आता है और यह नहीं आता है। यह जरूर ध्यान करे कि वह अपनी समस्यांए अपने टीचर से कहता है अथवा नहीं।
इस प्रकार अध्यापकों की तीन घंटे की वर्कशाप में उन्होंने अध्यापकों को सीबीएसई की शिक्षा कार्यविधि के बारे में जानकारी दी तथा शिक्षक किस प्रकार स्वयं का विकास करके ही बच्चों को विकास कर सकता है। उन्होंने की यदि टीचर की चैकिंग के उपरान्त यदि कोई गल्ती रह जाती है तो वह गल्ती पीढिय़ों तक चलती रहती है। विद्यालय निदेशक एवं प्राचार्य आचार्य रमेश सचदेवा ने बताया कि इस वर्ष अध्यापकों के प्रशिक्षण तथा बच्चों के सर्वांगीन विकास के लिए विशेष कार्यशालांए देश के विभिन्न शिक्षाविद्दों द्वारा लगाई जांऐगी तथा डबवाली को ऐजूकेश्न सीटी बनाने का वे एचपीएस की ओर से विशेष प्रयास किया जाता रहेगा।

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